Friday, 24 July 2020

मया अमोल होगे-

मया अमोल होगे-
-----------------------------राधेश्याम पटेल
भाग--2

पहिली भाग में आप पढ़ेव के शहर मा रिक्सा चलावत बैजू के एक्सीडेंट हो जाथे ...ए खबर नवाँपरहिन ला मिलथे तव बिचारी गिरत हपटत बैजू कोती भागथे...तब तक बैजू अस्पताल पहुँच जाय रथे...!
       अब आगू के हाल...
नवाँपरहिन अस्पताल तो पहँच जाथे लकिन आवत ले बहुँत अबेर हो जाय रथे .... इहाँ बैजू के जघा ओखर लहास मेर भेंट होथे.! ऐ का होगे भगवान ..?
नवाँपरहिन के ऊपर मानो पहाड़ टूट परे होय ... वोला समझ मा नई आवय के का करँव का नही...!
वोखर घर मालिक हा बैजू के पुरा काठी माटी के व्यवस्था करवाथे ...पर चिंता तो ऐ बात के रथे के अब शहर मा भला अकेल्ला टूरी परानी बिना चिन पहिचान के आँखिर दिन काटही तव कईसे ...? अऊ आँखिर जाय त जाय काहाँ .?   कोनो कोती रस्ता नई दिखत रहय..ससुरार तो जायेच नई  सकय...उहें सुख पातिस तव अईसन उदिम करतिचे काबर  अऊ न मईके जा सकय .. बने  बने मा तो ददा अऊ मउसी दाई पूछत नई रहिन हे अब  बिगड़गे तव का वोला घर मा घुसरन देहीं..?
बिचारी बर अब कोनो कोत के रद्दा खुल्ला नई दिखत रहय..!कहिथें के बुड़ईया बर तिनका के सहारा घलोक  हा बहुँत होथे... ओखर हाल ला देख के  जेखर घर काम करय तेने हा वोला अपने घर रहे  बर जघा दे दिस तव वोला घर किराया के चिंता ले मुक्ति मिलगे...खाना पीना घलो के व्यवस्था उहें होगे ...उँखर घर के बूता करय उहें खाय उहें रहय..!
धीरे धीरे दू महिना बितगे.. नवाँपरहिन अब अपन दुख ला भुलाय लागिस...लकिन जेखर करम मा भगवान दुखे दुख लिखे होय वोला भला सुख कईसे मिल सकत हे ....!
एक दिन नवाँपरहिन के मालकिन हा अपन बीमार भाई ला देखे बर मइके चल दिस ...घर मा ओखर गोसइया दू ठन लईका अउ अपन हा रहय..! वोला मालकिन के नई रहे ले भीतरे भीतर डरो लगय..एक दिन
अपन कुरिया मा रात के सोय रहय-- एका एक चमक के जाग  उठिस...देखथे के मालिक हा दबे पाँव ओकरे कोती आवत रहय चुपे चाप. कुरिया मा थोर थोर अँजोर रहय तेखर सेती नवाँपरहिन हा चिन्ह डारिस.. उठगे अउ हड़बड़ा के पुछ बइठिस --
"मालिक तु मन मोर कुरिया म...अतेक रात के...?"
--मालिक कुछू उत्तर देहे बिना नवाँपरहिन कती बढ़ते रहिस  नवाँपरहिन हा मालिक के मंसा ल समझ गे...खटिया ले उतर के मुड़सरिया कोती पिछघुंच्चा घुंचे लागिस...फेर कतेक बेर ले अपन आप ल बंचातिस..जवान मालिक के पोठहा पकड़ मा नवाँपरहिन हा छटपटाय लागिस....! आँखिर मा वोला का सुझिस तव मालिक के हाँथ ल जोर से कटकटा के चाब दिस ... एका एक हाँथ के पकड़ ढीला होगे अऊ नवाँपरहिन बर अतके बेरा काफी रहिस... पीरा मा भुलाय वो राक्षस कुछू सोचतिस समझतिस तेखर पहिलीच नवाँपरहिन बोचक के भागते भागिस.. ओखर कमरे के तीर रसोई हा रहय..ओही कोत भागिस ओखर मालिक घलो पाछू पाछू   दउँड़िस ...तब तक नवाँपरहीन रंधनही खोली मा घुसरगे अऊ बेंड़ी ल लगाके पल्ला मा पीठ ला टेंका के जोरहा सांस लेवत फफक फफक के रोय लागिस मन मा जरुर थोरक बर हाय के जीव होईस लकिन चिटिक बेर मा फेर जीव हा धक धक करे लागिस ...!
ओखर मालिक फईका ला जोर जोर से ढँपेलत रहय
नवाँपरहिन ल लगिस के अब ओखर बाँचना मुस्कुल हे.. मन करिस के गर मा फाँसी डार के छान्ही मा ओरम जाँव  फेर एका एक ओखर नँजर हा घनऊची मा माढ़े आमा काटे के बड़का सरँवता  मा परगे..  एक झन मा का सोचिस का नही अऊ सरँवता ला दूनो हाँथ मा उठा के किड़किड़ ले धरके फइका के बाजू डहर भिथिहा मा सपटके खड़ा होगे .... छाती के धकधकाई हा सल्लूग बाढ़त जात रहय. 
मालिक के ढँपलई मा फईका हा जादा बेर ला नई सहे पाईस अऊ मामूली बेंड़ी छटक गे ...नवाँपरहिन के हाँथ सरँवता मा आऊ जमगे रहय ...एती ओखर मालिक फईका के संगे संग हद्दक ले भीतर मा पेलाके गिरे असन मुड़भरसा तउलागे ...ऐती नवाँपरहिन दुहत्था सरँवता ओखर चेथी ल पागे ..
ओखर मालिक फईका के झपास ले उबरे नई पाय  रहय सरँवता के परते नकडेरा के भार जाके भिथिहा मा ठोंकागे अऊ कटाय रुखवा असन पाछू डहर फटिका के एकंगू जेउनी हाँथ कोती बरतन भंड़वा ऊपर गिरगे ...!
नवाँपरहिन सरँवता ला धरेच के धरे थर थर काँपत उहिच मेरन खड़े रहिस अऊ फेर  थोरकून मा उहिच मेरन धम्म ले बईठगे अब्बक ...!
ओखर मालिक के तो राम नाम सत्त होगे रहय...!
----नवाँपरहिन अपन सम्मान बँचाय खातिर का ले का कर डारिस...एकाएक जईसे सोय ले जाग परे होय ....
उठिस उठिस सरँवता ला मुँईया मा फटरस ले फेकत मानो कोनो बहुँत निरघिन जिनिस ला धर ले होय ...
मालिक के तीर मा गईस .... देखथे लहू हा भुईयाँ मा हँउला कस पानी गवाँय  रहय जेन कमसलहा रोशनी मा नवाँपरहिन ला लीले लेत रहय... नवाँपरहिन दूनो हाँथ मा मुँह ला छपक के रोय लागिस...वो जान गे मैं बहुत बड़े अपराध कर डारेंव ....! तब तक दूनो लईकन जाग गे रहँय अऊ अपन पापा ल चिल्लावत रंधनही खोली कोती आवत रहँय..!
---सब कुछ ऐके घरी मा सुवाहा होगे ...नवाँपरहिन ला खून के जुरुम मा बीस बछर के सजा होगे...!
बीस साल के सजा ला तो नवाँपरहिन जिंयत लहास बनके काट डारिस...अऊ जब छुटिस तव ओखर आँखी के आघू म फेर उही अंधियार  काहाँ जावय अपन ऐ बोजहा जिनगी ला धर के...जेल मा अईसनहेच बिमार होगे रहय. शरीर हा बांस बरोबर होगे रहय ..फेर सोच बिचार करके अपन मईके के रद्दा धरिस..
लकिन उहों वोला पाँव भर भुईयाँ नई मिलिस जेमा चिटको थिरबाँव ले पातिस.! 
कई पईत सोंचय के जीव ला हेर डारँव...फेर कऊन जनी अईसन का शक्ति रहिस जेनहाँ वोला अईसन करे ले रोकय...!
नवाँपरहिन ला कोनो कोनो बताईन के ओखर बेटी जेला छोंड़ के बैजू संग भाग गय रहिस...आज बाल बच्चा बाले हो गय हे अऊ लकठे के गाँव मा ओखर ससुरार हे...!
नवाँपरहिन अपन बेटी ल एक नजर देखे के आसा मा बेटी के ससुरार कोती के रद्दा धरिस..!ओखर बेटी तो अपन महतारी ल तो नई  चिन्हिस फेर महतारी हा जरुर मुहरन मा अपन लईका ला चिन्ह लेईस...!
 सास के हालत ला देख के ओखर दमाँद के आत्मा रो डारिस..! नवाँपरहिन के बेटी दमाँद वोला अपने तीर राख लीन ...वोला अलग कुरिया दे देहे रहिन.. नवाँपरहिन ला मानो एक बेर फेर जिऐं के 
बहाना मिल गे रहय...! 
बेटी दमाँद ले अलग तो रहय जरुर ...बेटी दमाँद ओखर पूरा परबस्ती करँय .... नवाँपरहिन अनसुहात 
जिनगी भर कभू सुख नई पाईस...अऊ आज जब जिनगी के बुढ़त काल मा कुछ ठहराव आबो करिस तव ओखर अपने मन उदास रहे लागिस...दिन रात अपन किस्मत ला सोंचय ..गुनय .. अपन बेटी दमाँद ल बोजहा हो गयेंव..मोर खातिर बेटी दमाँद काखर काखर बात ल नई सुनत होहीं..?
--अईसने चिंता सोंच मा अरझे नवाँपरहिन खाय पीये बर ढेरी ढारा करे लागिस... बेटी दमाँद खूब समझावँय ... फेर मन मानँय काहाँ... आँखिर बीमार परगे...अबके बिमारी अईसे लगिस के बने होय के नाँवे नई लेत रहय..!
सुसक सुसक के रोवय अऊ भगवान मेरन पुछय--
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    मोला काबर बनाये देंवता 
    मोला काबर बनाये ना$$$
    मन मोर टूटगे किस्मत फुटगे
    काबर जीव कलपाये ना$$$
              मोला काबर..........!   

    जनम लेवत मा दाई ल लूटे
         बालापन मा ददा  ला छोड़ाये
    जोंड़ी  मोरे रहिस  निरमोहीं
         जिनगी भर मोर आँसू बोहाये
     देके जनम मोला ऐ धरती मा...
     काबर भुलाये ना$$$
               मोला काबर..........!

      कऊन  जनम  के मोर  करनी ऐ
              भरत हँव भरनी मैं ऐ जनम में
      कतका गरू होगेंव मैं दुनियाँ ला
              का  लिखा लिखे मोर करम में 
      बसाके अलग तैं मोर नगरिया
      काबर उजारे ना$$$$
               मोला काबर..........!
      
नवाँपरहिन अनसुहात बिमारी के मारे दिनों दिन आऊ कमजोर होत चले गय...खाय पीये तक ला तियाग दिस..!
अपन बेटी दमाँद घर मुस्कुल मा छै महिना जिंये के बाद अनसुहात नवाँपरहीन ऐ निरमोंही संसार ल छोंड़के बिदा होगे..!
अनसुहात जिंयत भर सुख नई पाईस ..एक बूंद मयाँ बर तरसत रहिगे...मयाँ मिलबो करिस तव भगवान ल नई सुहाईस..!
आन जात ल लेके भाग गय रहिस तेखर सेती वोखर लहास ला घलो कोनो नई छुईन ..ओखर बेटी दमाँद घलोक...! सगा मन कहिन नवाँपरहिन के लहास ला छूहव त तुहूँ मन ला सगा ले बाहिर होय बर परही..! नवाँपरहिन जानबूझ के अपन तीथ ला बिगाड़ डरे हे --!
---बेटी दमाँद का करँय ...महतारी के मयाँ होय के बाद घलव महतारी के लहास ला खाँधा नई देहे सकिन..आँखिर मा गाँव के मन  नवापरहिन के माटी शरीर ला गऊँटिया के भईंसा मा झिंकवावत गाँव के कुवाँरा लईकन मन सो मरघटिया लेगवाईन...!
धन रे भगवान अनसुहात के किस्मत अईसे लिखे के बिचारी के मरे के बाद घलो गति नई बनिस..!
आज नवाँपरहिन तो नई ये फेर ओखर किस्सा गाँव मा कतको आदमी समय परे मा सुनावत रहिथें ....के बिचारी के मरे के बाद जात पात के बंधना के नाँव लेके ओखर लहास के अपमान होईस...!
अनसुहात नवाँपरहिन ल जिंयत भर मयाँ नई मिलिस त कोई बात नही...वोखर बर तो मरे के बाद घलोक एक बूंद  "मयाँ अमोल होगे"...!
---अतका कहिके बबा हा कथे---" अब दार भात चुरगे 
अऊ मोर किस्सा पुरगे"  नोनी होवा..,!
कोनो के मुँह ले कुछू नई सुनाईस ... हाँ ...सबो के आँखी ले आँसू जरुर टपकत रहय....!
                                              *****
                                            -----कहानी 
                                   राधेश्याम पटेल 
                                 तोरवा बिलासपुर

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