Monday, 13 July 2020

*गोबर दे बछरू गोबर दे* - छत्तीसगढ़ी कहानी(जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया)

*गोबर दे बछरू गोबर दे* - छत्तीसगढ़ी कहानी(जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया)


गोबर दे बछरू गोबर दे-----,नानपन ले खेल खेल म ये गीत ला गावत झामिन अउ कामिन, दुनो जुड़वा दुखिया बहिनी मनके उम्मर कब अधियागे, पता घलो नइ चलिस। दुनो बहिनी ल बियावत बेरा दाई गुजर गे, त गोसाइसन के बिछोह म कुछ दिन बाद ददा। कामिन अउ झामिन ल ओखर दरुवहा कका स्वार्थी बरोबर उँखर धन के राहत ले पालिस, ताहन अपन ठिहा ले सातेच बछर के छोटे उमर म वो बपरी मन ल धकिया दिस। दुनो दुखिया बहिनी के दुख ल देख  गाँव म पंचायत बैठिस, पंच,पटइल मन फैसला करिस  कि, गाँव के दैहान मेर एकठन घर दिये जाय, अउ जीवन यापन बर गौठान के गोबर ल  बिने के काम दुनो बहिनी मन जब तक चाहे कर सकत हे। पंचायत के ओ दिन के फैसला अनुसार दुनो बहिनी मन, बरदी के गोबर ल बिने अउ उही मेर के बड़का घुरवा म सरोय बर फेक देवय, कुछ के छेना घलो थोपे, त कुछ ल कोई तुरते छर्रा, छीटा अउ लीपे बर ले लेवय। गाँव बने बड़े जान रिहिस, जिहाँ के खइरखा म  कई हजार गाय,भैस सकलाय। गोबर खातू अउ छेना ल बेंच दुनो बिहिनी ले देके अपन जिनगी के गाड़ा ल खींचय। *कहिथे न कि पथरा ल धूप,छाँव अउ हवा पानी नइ जानवव, कहे के मतलब पथना ल कतको मार पड़े फेर आँसू नइ बोहय, वइसने दुनो बहिनी मन पहाड़ कस दुख ल करम के लेखा समझ के झेलिस*, अउ कभू हार नइ मानिस।

        रिमझिम रिमझिम पानी झरत सावन महीना म पेड़,पात ,नदी, नाला अउ भुइयाँ सँग जम्मो जीव जंतु प्रकृति के दया मया पाके, हरिया जथे। मयूर गा गाके नाचथे, किसान मन कर्मा ददरिया गाथे, दादुर अउ झिंगुरा मन राग धरके, रात रात भर गाथे। *फेर दुनो बहिनी  उदास रहय काबर कि बरदी के गोबर, पानी बादर म  एकमई हो जाय। तभो दुनो अतिक महिनत करे कि, जादा से जादा गोबर हाथ आ जाय।* एक दिन शहर जावत बेरा, दुनो बहिनी ल गाँव के मितानिन गोबर बिनत देख रूक गे, अउ टकटकी लगा के ओमन ल देखेल लगिस। भरे सावन महीना म घलो पछीना म तर बतर, कामिन डहर ल देखत झामिन कहिथे, देख तो बहिनी, ये दुखाही , हमला चील कस घूरत हे, कही हमर पेट म लात मारे के बिचार तो नइ बनात हे? झामिन के हाँ में हाँ मिलावत, कामिन कहिथे, हो सकथे बहिनी, आजकल सरकारी मनखे मनके भारी पावर रथे, गाँव,पंच,पटइल अउ अइटका बइठका ल घलो नइ माने। त का हमर हाथ ले, ये दुखाही ह गौठान ल नँगा लिही का, झामिन मितानिन ल तीर म आवत देख फड़फड़ात कहत हे। मितानिन तीर म आके कहिस, कि का तुमन ल सरकार के योजना के खबर हे? तुरते कामिन कथे, का ख़बर बहिनी, का राशनकार्ड ले नाम कटइय्या हे, या फेर हमर रोजी रोटी जवइइय्या हे, अउ हम अनपढ़  का जानबों?  न टीबी देखन, न रेडियो सुनन, न पेपर सेपर। अउ ये सरकार घलो तो आके नइ बताये। मितानिन कहिथे, अतेक डरे के बात नइहे, बल्कि ये तो खुशखबरी आय कि सरकार कोती ले अब गोबर के घलो दाम मिलही। झामिन कहिथे, बने हो जाही बहिनी, *अभी तो हमर मरना होगे हे, किसान मन गोबर खातू ल भुला, यूरिया डीपी धर लेहे, चूल्हा अउ छेना के जघा घर म गैस माड़ गेहे, अउ अब तो टाइल्स,पेंट-पुट्टी के जमाना म छर्रा छीटा घलो नँदा गय।*  मितानिन ढाढस धरावत कहिथे, अब संसो झन करव। वइसे के किलो गोबर सकेल लेत होहू एक दिन म ? दुनो बहिनी हाँसत कहिथे, भाजी पाला थोरे हरे, जे किलो बाट ल सनाबो बहिनी, आज तक तो झँउहा अउ कोल्लर  ल जानथन।  उँखर बात ल सुनके, मितानिन घलो हाँसत चलदिस। कामिन अउ झामिन ल मितानिन के बात सपना कस लगिस, अउ वोला तुरते बिसरावत अपन बुता म लगगे। जम्मो गोबर ल तिरियाके दुनो बहिनी बँइहा जोरे घर कोती चल दिस ।
           दुनो बहिनी के घर ल, गाँव के धान कोचिया कालू झाँकत कहिथे, कोनो हो वो। कालू के हुँक ल सुन कामिन आथे अउ कहिथे, कइसे ग रद्दा भुलागे हँव का ? जेन हमर घर आगे हव, न हमन किसान अन न दीवान, कहाँ के धान पान पाबो ददा? अरे नही, मैं कोनो रद्दा नइ भुलाये हँव, बल्कि ये बताये बर आय हँव कि, तुम्हर बरदी के गोबर ल  कल ले, मैं खरीदहूँ। माने अब मैं काली ले गोबर के कोचयई चालू करहूँ। कामिन मितानिन के बात ल उही समय सुरता करत घर म मुचमुचावत खुसर जाथे। दुनो बहिनी दूसर दिन बिहना फेर बरदी मा आ जथे, पाँच ठन पहट जेमा कई हजार गरवा गाय, जे पहातीच ले माड़े अउ दस बज्जी उसले। सबके गोबर बिने म बनेच महिनत लगे। तभो धकर लकर गोबर ल दुनो बहिनी घुरवा म न डार के एक जघा कालू के केहे अनुसार कुढ़ोवत गिस। बरदी उसले के बाद, कालू अपन नाप तौल के समान धरके गौठान म आगे, अउ सकलाय गोबर ल तऊले बर लगिस, तउलत ले कालू पछीना म गदगद ले नहा डरिस,आखिर म थक खागे, अउ अपन कोचयई के अनुभव म गोबर ल देखत कहिथे, तुम्हर ये गोबर ह, लगभग डेढ़ टन होही। का टन वन, कालू, हमन तो स्कूल के मुंह ल घलो नइ देखे हन,काँटा मारत  घलो होबे। अपन टन वन ल तैं अपने कर रख अउ ये बता कि, के पइसा  होइस? कालू  दू ठन नोट देखात कहिथे,ये ले 500 तोर अउ 500 तोर। दुनो बहिनी एक दूसर ल देख, गौठान के पाँव परत हाँसत कहिथे, जब गोबर ल सरोइया घुरवा के दिन बहुरथे कहिथे, त का गोबर बिनइया मनके दिन नइ बहुरही?  दुनो बहिनी भारी खुश हो गुनगुनाय बर धर लेथे। इती कालू गोबर ल चुंगड़ी म भरके चल डेेेथे। कामिन झामिन के चेहरा खिले रहय,अउ काली के सपना ल मन ह आजे गढ़े लगगे कि काली घलो,500, 500 मिलही। ओतकी बेरा पड़ोस गाँव के आदमी बिसन  आके दुनो बहिनी ल कहिथे कि तुम्हर गोबर ल देव, मैं खरीदहूँ। झामिन मुंह छुपावत कहिथे, वोला तो गाँवे म बेंच डारेन। का ये गाँव म गोबर कोचिया घलो हे, अकचका के बिसन कहिथे। मोर नाँव बिसन हे, मैं साग भाजी बेचथों, अउ अब गोबर घलो लेहूँ, वइसे कतका रुपिया के होइस ,के किलो रिहिस ते। झामिन कहिथे, वो डेढ़ टन टन अइसे कुछु काहत रिहिस, अउ येदे 1000 दे हे। बिसन बात काटत कहिथे, मैं एक हजार के जघा बारा तेरा सौं देतेंव। दुनो बहिनी भइगे काहत मुँह घुमावत  घर  कोती चलदिस।

            पइसा पाके झामिन बड़ खुश रहय, सँझौती बेरा पुचपुचावत , गाँव म लगइया बाजार कोती बेनी हलावत, चल दिस। झामिन के जाते ही कालू उँखर घर हबरगे, कामिन ल अउ 200 देवत किहिस, अब मैं तुम्हर गोबर ल रोज लेहूँ। इती झामिन के मुलाकात बाजार म बिसन ले होगे।  बिसन  अउ झामिन  बाजार म दू चार बेर आमने सामने होइस, फेर बिसन, कुछु बोल नइ सकिस।आखिर म हिम्मत करके जावत जावत मुँह घुमाये कहिथे, तुमन दू बहिनी हव का अइसे नइ हो सके, कि आप मन अपन हिस्सा के गोबर ल मोर तीर बेच दव। झामिन बिसन ले नजर मिलाथे, फेर कुछु बोले नही, अउ अपन घर आ जथे। दुनो बहिनी पहाती फेर गौठान म चल देथे, अउ अपन बुता म लग जथे। बरदी उसलते साँठ बिसन अउ कालू दुनो पहुँचगे। झामिन,बिसन ल अउ कामिन, कालू ल गोबर बेचबों कहिके बाताबाती होय बर धर लिस, ओतकी बेरा बिसन कहिथे, ले का होही, आधा आधा कर लेथन, कालू घलो  मूड़ी हला दिस। *गोबर के कुड़ही के दू टुकड़ा होगे, मानो दुनो के मया बँटागे।*  600, 600 रुपिया थमा के दुनो कोचिया बरदी ले चल देथे। एती झामिन अउ कामिन घलो एक दूसर ल देख के मुँह अँइठ लेथे। अउ लरधंग लरधंग दुनो मरखण्डी बछिया बरोबर घर आके तिलमिलाय बर धर लेथे।  बढ़त मन मुटाव म, उँखर घर घलो खँड़ा जथे। हाथ के पइसा, एक दूसर के जरूरत अउ नानपन के मया ल भुला दिस। गाँव भर के मनखे मन जौन झामिन अउ कामिन के मया के गुणगान करे, उहू मन देखते रिहिगे। झामिन के मया बिसन बर, अउ कामिन के मया कालू बर दिन ब दिन बाढ़ेल लगिस। बिसन अउ कालू मितानिन ले डरे कि कही, वोहर दुनो बहिनी मन ल गोबर के सही दाम झन बता देवै, अउ यदि जान जाही, त ओमन ह गोबर ल आने तीर बेंच दिही। फेर दुनो कोती ले, बाढ़त मया म दुनो कोचिया बिहाव के बँधना म बँधा जथे।  बिहाव के बाद घलो,दुनो बहिनी गोबर बिनय अउ आधा आधा दुनो साढ़ू बाँट के बेचे बर ले जावय।  हाथ म आवत पइसा अउ नवा नवा गोसँइया सँग दुनो के जिनगी बढ़िया गुजरे लगिस। बिसन अउ कालू दुनो साढ़ू  गाँव के बरदी के गोबर के सँगे सँग आसपास म घलो गोबर खरीदय अउ बेचे। झामिन अउ कामिन घलो गोबर बिनइया बनिहारिन लगा डारिस। सियान मन कइथे गरीबी म मया बढ़ाथे अउ अमीरी म कम्पीटिशन(प्रतियोगिता)। अउ अइसने  घटिस घलो एक घर टीवी, फ्रीज, कूलर आइस ताहन दूसर घर आवत देरी घलो नइ लगिस। दुनो देखा सीखी गाय गरुवा घलो बिसा डरिस। दुनो बहिनी भले अपन आधा उम्मर ल गरीबी अउ बेसहारा होके जीये रिहिस फेर बचे जिनगी बढ़िया कटेल धरलिस।  गांव वाले मन उँखर दुख अउ कंगाली ल देखे रहिस, त बढ़ोतरी ल देख इही काहत ,दुनो के उप्पर रोष नइ जतावय कि जब बाँटे भाई परोसी अउ एके भाई बर बिहाय दू सगे बहिनी देरानी जेठानी कस लड़ सकथे, त इँखरो बीच छोट मोट मन मुटाव सहज हे।

                  गोबर के पइसा मिले ले गाँव म अब गोबर के पोटी घलो देखना नोहर होगे। झामिन अउ कामिन मन तो रोजे गोबर चोरइय्या ल हात हूत काहत, अउ कभू कभू गरिवावत घलो दिखे। गाय गरु जे सड़क म बइठे, मोटर गाड़ी के भेंट चढ़ जावत रिहिस, उहू मन ल, उँखर गोसाइया मन चेत करे बर धर लिस। गोबर के माँग ले गाय भैस के मान बढ़ेल लग्गिस। शहर नगर का, गाँव घर म घलो बाम्हन पुरोहित मन ये कहि दिस कि यदि गोबर नइ मिलही त माटी के गौरी गणेश घलो चलही, यहू म पूजा सफल हो जही। गोबरेच खोजना जरूरी नइहे। गोबर के भाव मिलत देख, कामिन अउ कालू के मन म लालच हमाय बर धरलिस,देखते देखत गाँव के गौठान गढ्ढा होय बर लगगे, काबर कि गोबर के सँग  अब, कामिन भुइयाँ के मास ल उकाले बर लगगे कहे के मतलब पहली गोबर भर ल बिने अब वजन बाढ़ही कहिके माटी घलो ल सँग म उखाड़े बर धरलिस,। अउ करिया दिखइया  जतेक प्रकार  के भी मल रहय  चाहे वो छेरी बोकरा के होय या कुकुर माकर के, आधा आधा गोबर ल बाँटे के बाद कालू अउ कामिन ओमा मिलावट करे बर घलो लग्गिस। बिसन अउ झामिन ले जादा कालू अउ कामिन पइसा कमाये बर धर लिस, तभो झामिन अउ बिसन ईमानदारी ल नइ छोडिस।  फेर बुराई कतेक दिन छुपही,एक दिन कालू ल फटकार पड़थे अउ जुर्माना घलो हो जथे, जतका  मिलावट म कमाये रिहिस ओखर ले जादा, जुर्माना म सिरा जथे। पुलिस अउ कोर्ट केस होय ले, बिसन अउ झामिन मन बचाथे, ते दिन ले  कालू मिलावट करे बर चेत जथे।  दुनो बहिनी के छरियाय मया पहली कस तो नही, फेर परोसी बरोबर जरूर जुड़ जथे।  दुनो बहिनी घर गाय गरुवा के सँगे सँग धन दौलत के बढ़वार लगातार होय लगिस। अँगना म मेछरावत बछरू के पीला  ल देख  गोबर माँगत, डेरउठी म बइठे कामिन अउ झामिन गँवाय दिन के सुरता करत गावत हे,,,,,,, *गोबर दे बछरू गोबर दे*,,,,,,,,,,,,, फेर  पहली कस ये गीत  कोनो खेल खेल म नइ रिहिस,,,,,,,,,,,  बल्कि पइसा के लालच म रिहिस, कि, रे बछरू तैं गोबर दे, ताहन वोला बेच पइसा पाबों। दुनो बहिनी के आँखी इही सब सोचत एकाएक मिलथे, फेर एक दूसर ल नइ देखिस तइसे, फेर  राग लमा गाये बर धर लेथे,,,,, गोबर दे बछरू गोबर दे-----------।
(बछरू गोबर दय, अउ सरकार ओखर दाम दय, ताकि झामिन कामिन कस कतको दुखियारी मन अपन जिनगी सँवार सकयँ)


    जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
      बाल्को,कोरबा(छग)
        9981441795

3 comments:

  1. बहुत सुग्घर बधाई हो

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  2. बड़ सुग्घर सर

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  3. बहुत बढ़िया कथानक, बहुत बधाई आप ला

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