Monday, 20 July 2020

संस्मरण-धनराज साहू

 संस्मरण-धनराज साहू

*गाँव के लिल्ला*

रथिया १२ बजे ,खटिया ले उठ के खाल्हे म बोमियात " अरे रावण सम्हल जा, मैं तोर काल आगेंव , नान-नान बेंदरा -भलवा ला  अब्बड़ मारे, अब आजा मोर वार सम्हाल "....काहत बड़बड़ावत रेहेंव। बइगिन दाइ रटपटा के उठके मोला , तेल फूल चुपरके सुताइस। पहिली बार मेंहा राम के पाठ ले रेहेंव अउ अपन पाठ ल रात-रात के अइसने गिंगयात राहंव, आज तो सँउहत रावण के घेंचउरी ल धर डारे रेहेंव। अइसनेच हाल मोर सँगवारी दिलीप, योगेंद्र अउ प्रदीप मन के भी रिहिस। हमन 1994 में आठवीं म पढ़त रेहेंन , तब राम लीला के रावण वध के लिल्ला करत रेहेंन।
  हमर गाँव म चार-बछर ले राम लीला बर पात्र नइ मिलत रिहिस। तब समिति के मनिज्जर हा गाँव के परंपरा ल बचाए बर हमर जइसन लइका मन ल जोंड़ के लिल्ला करे के जोखिम उठाय रिहिस। वहू दिखाना चाहत रिहिस की काकरो बिगन काम नइ रुकय।
    मनिज्जर रोजेच आठ बजे रथिया स्कूल खोली म रिहल्सल करवाय , जइसे घंटी बाजे सब खा-पीके लइका मन जुरियावन। मनिज्जर हमन ल पूरा बिधि-बिधान ले एक - एक ठन बारीकी ल सिखाय, फेर उही सीखोय बुद्धि अउ पलोय पानी , दुनो नइ लहय , सही होय। सुवा सही रट्टा मारके जावन , फेर अपन संवाद के बेरा सब ल परीक्षा म पेपर बनाय के सही भुला जावन। फेर मनिज्जर हमन ल कभू फटकारे नहीं, भलुक अउ बने लगन लगाके धीर-धरके सिखाय।
   नान - नान लइका मन के कतेक अक्कल , भले हमन बछर पुठ बानर सेना नइ ते राक्षस गण बनन अउ मँच म घोंडइया मारन , फेर कभू अइसने मुख्य पात्र के पालो नइ परे राहन। उही हमर पाठ अउ ललक ल देखके , मनिज्जर घलो फँसगे।
    हमर सबके घर मे रात-रात के गिंगयइ ले घरवाला मन हलाकान रिहिन , अउ एति हमर मनिज्जर हमन ल सिखावत घिलर गे रिहिस। घरवाले मन मनिज्जर ल बताइन की एमन घर म रात के सँउहत के रोल करथें। रात-रात के अचानक-भयानक उसनिन्दा म हमन गिंगिया-गिंगिया के लिल्ला करन। अउ जब रिहल्सल म आवन त अपन संवाद ल भुला जवन। घर वाला मन के कहे म एक दिन हमर मनिज्जर कका हा गाँव के नामी बइगा बबा ल बलाके , बने झारा-फूँका करवाइस अउ सबके घेंच म ताबीज बँधवाइस। ओला बड़ चिंता-फिकर धर डारिस।काबर की सबो पात्र लइका मन के, बपरा के इज्जत दाँव म रिहिस।
    जइसे ही झारा-फूँका होइस सबके गिंगियइ बंद होगे अउ सब ल पाठ याद होय लागिस, सबो रिहल्सल म बने अपन पाठ ल अँख मूँदा केहे धरेंन। अब तो हमर घर म भी बड़बड़इ बंद होइस। घर वाला अउ मनिज्जर दुनो खुश होइन।
   अब ओ दिन घलो आगे जब मंच म कार्यक्रम देना रिहिस। फरहर मन ले मनिज्जर कका हमन ल अब्बड़ बेरा ले मनोबल ल बढ़ाइन , अउ नउ कका करा नान-नान पिका धरत मुछा ल रोखवाय धरिन। महिला पात्र वाला मन के घिग्घी बंधा गे , दू-तीन झन मन तो पल्ला होगीन। जब मनिज्जर कका ल पता लगिस तो उँकर पाछू म बानर सेना ल सीता खोज सरीख भेजिन। ओकर मन के लुक-लुउकल म मनिज्जर के पछीना छुटगे, हाथ गोड़ फुलगे, ले-देके ओमन ल मना-बुझा के तइयार करिन।
   मेकअप करइया अउ संगीतकार मन के अलाउंस करे लगिन फलाना ढेकाना जँहा कँही भी हो रिहल्सल खोली म आय के कष्ट करें। धीरे-धीरे सबके मजमा लगे धरिस , अउ सबो तियारी शुरू होइस। सम्हरैय्या मन आनी-बानी के रंग-रोगन अउ पोशाक मन ल धरिन त संगीतकार मन अपन पेटी ढोलक के सुर मुंधान ल मिलाय लगिन। बने-बने सबो बुता चलत रिहिस अउ अचानक दु झन लइका मन रोय-ललाय धर लिन , एक झिंन सीता मइया अउ दासी ...कहिन की साड़ी नइ पहिनन-खूंटी खिनवा नइ लगान। मनिज्जर कका फिर से ओमन ल देव-धामी बरोबर मानय-बुझाय लगिन कहिन हे देंवता हो आज बस मान जाव , मोर लाज राख दव जिनगी भर तुँहर पायलगी रही , ये बदन ले कुकरा-बोकरा दे सही मनमाने खाइ-खजाना ले मान-गउन करिन। ले देके सुलिनहा ये उदिम सिराइस। मनिज्जर के हालत देखे के लइक रिहिस, चेंदवा मुंड म पसीना चमकत राहय, जानू-मानू सुक्खा खेत म पानी पलोय सही। मुँहू सुखाय राहय जइसे भाँठा-डोली ह सुक्खा रहिथे। बिचारा सबो जोखा करत , छिंहि-बिहीँ होगे राहय। गाँव-गँवाई के संस्कृति , परंपरा ल बचाए के चक्कर म बिचारा बिहनिया ले लाँघन-भूखन बेवस्था ऊपर बेवस्था अउ ऊपर ले कलाकार मन के बेंगवा सही डँहकइ-कुदइ , ओकर पोलइ चमकगे राहय।
     अब धीरे-धीरे लिल्ला ठउर म लोग-लइका मन पोता बिछा के जगा पोगराय धरिन। सेमो-सेमो होय धरिस , ये डाहर जम्मो लइका पात्र मन खिड़की डाहर ले भींड़ ल देखके इक्की-दुक्की करे लगेन। धन तो पाछू कोत बेवस्था रिहिस नइ तो का गत होतिस भगवाने मालिक रिहिस। हमर मन के हालत देखके मनिज्जर के हवा-पानी गोल , मुँहू चोपियागे राहय। बिचारा जनता जनार्दन के समुद्दर म एकेल्ला डुबकी मारत राहय , उबुक-चुबुक होगे राहय।
   अब तो बाजा रुंजी बाजे लगगे, गणेश वंदना अउ गीत संगीत शुरू होगे , हिम्मत करके मनिज्जर कका सब झन ल एक जगा बैठारिस अउ बइगा बबा करा हुमन-धुपन कराके , सबके माथ म भभूत ल चुपराइस , अउ किहिस "बोलो जय श्री सीता राम की जय " , सबो लइका मन के मन म बल बाढ़िस , अउ ये तरह ले लिल्ला शुरू होइस।
  भगवान के किरपा ले लिल्ला बहुते सुग्घर होइस। सबो लइका मन मार सुवा सही बाँचे लगिन , उसने बजनिया मन घलो जोरदार सुर लमा-लमा के गाये-बजाए धरिन , पूरा पब्लिक लिल्ला के अबड़ आनंद लीन अउ बीच-बीच म नजरिया घलो दे लगिन। अब तो जइसे मनिज्जर के भाग खुलगे , बिचारा लिल्ला सिराय के बाद रिहल्सल खोली म मनमाने रोहों-पोहों होके रोय धरलिस , हमन लइका मन डरा गेन  , अचानक ये कका ल का होगे कहिके। तब मनिज्जर कका रोवत कहिस की मोर ददा हो , तुमन आज मोर लाज ल बचा देव। मोर जिनगी भर के मिहनत के फल ल आज एके घाँव म दे देव, अब मोला बिस्वास होगे की मोर गाँव के संस्कृति अउ परंपरा सदा दिन उल्होही , कभू मुरझाय नहीं , तुँहर पाँव परत हों।
   ओ बेरा ल सुरता करके अब मन ह खुसी से भर जाथे , की ननपन म हमन हाँसी-ठिठोली म कतेक कठिन बुता ल करे के भार-भरोसा ले रहेन। आज भी गाँव म लीला होवत हावे , नवा-नवा लइका मन ओ परंपरा ल बचा के राखे हँवय।

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धनराज साहू बागबाहरा 🙏
व्याकरण गत त्रुटि बर क्षमा प्रार्थी हँव।

4 comments:

  1. सुग्घर संस्मरण सर

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  2. बहुत सुग्घर सर

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  3. बहुत सुन्दर सर

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  4. अब्बड़ सुग्घर संस्मरण भइया गाँव के लिल्ला के बारे मा 🙏🙏

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