Friday, 3 July 2020

लघुकथा- ज्ञानु

लघुकथा- ज्ञानु
 
         बड़े बिहनिया चहा पीयत रहँव तभे पाँव परत हव कका कहत गजेंद्र आइस।आ बइठ बेटा कहत खटिया ले एक डहर तिरियावत पूछेंव ,कब पहुँचे अउ सब बने बने ।गजेंद्र हव कका सब बने बने आजे रतिहा 10 पहुँचे हन। लकर धकर करत कहिस अतके बइठ हू कका बहुत काम हावय; आज ददा ला बरसी मिलात हन नेवता हे माइपिल्ला आहू कहत निकलगे।
            मैं बीते समे के सुरता मा थोकुन खोगेंव , मोर ननपन के सँगवारी दुकालू बपरा कतका तंगी अउ बीमारी के मार ला सहत सरग सिधारगे।कतको खबर भेजिस फेर वाह रे बेटा निहारे तक ला नइ आइस।
             मंझनिया मोर सँगवारी दुकालू घर गेंव , देखके आँखी चकरागे ,बड़े -बड़े पंडाल, किसिम -किसिम के पकवान ।मने मन सोचँव जतका खर्चा आज बरसी मा करत हे, इही कहू ईलाज पानी बर करे रहितिस ता मोर सँगवारी दुकालू बपरा जरूर कुछ बरस अउ जी जतिस।

इही ला कहिथे -'जीयत मा डंडा अउ मरे मा गंगा' ।
गुनत लहुट गेंव।

ज्ञानु

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