लघुकथा –
नाव दोष
एक गाँव म पति पत्नि के बीच म पटबे नइ करय । रात दिन खिटिर पिटिर होतेच रहय । इँकर सेती नोहर सोहर के एके झन बेटा के पालन पोषन ठीक ढंग से नइ हो पावत रहय । बाई हा बहुतेच उच्छृन्खल किसम के रिहिस । ओहा अपन घरवाला के एको बात नइ सुनय । अपन घरवाला ला अपन हिसाब से चलावय । बपरा घरवाला हा बदनामी के डर म कलेचुप रहय ।
घेरी बेरी किटिर किटिर के सेती परिवार म सुख शांति नइ रिहिस । बेटा ला जब पाये तब .. मारे बर बाई के हाथ उचेच रहय । घर के मुखिया हा एक झिन ज्योतिष महराज तिर देखना सुनना करवाये बर गिस । कुंडली म सबो ठीक रहय । न कोनो ग्रह दोष न अऊ कुछु दोष .. । हाथ बिचारत महराज हा उँकर नाव पूछिस । मुखिया हा अपन नाव ला संविधान .. बाई के नाव ला सरकार अऊ बेटा के नाव ला लोकतंत्र बतइस ।
ज्योतिष महराज हा समझगे के .. नाव के सेती परिवार के बीच तनाव अऊ अनबन होवत हे । फेर बता नइ सकिस अऊ शांति जाप म लगगे ।
हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन . छुरा
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