*(छत्तीसगढ़ी साहित्यिक पुरोधा छत्तीसगढ़ी के दूसरा उपन्यासकार आदरणीय श्री शिवशंकर शुक्ल जी, जउन हर 'दियना के अंजोर ' अउ 'मोंगरा' छत्तीसगढ़ी उपन्यास लिखिन हें। उंकर लिखे बाल कहानी संग्रह 'दमांद बाबू दुलरू' म संग्रहित एक ठन प्रमुख कहानी 'पइसा के रुख' हर अविकल प्रस्तुत हे । मोर पूरा प्रयास रहिस हे कि कनहुँ करा उँकर भाषा -शैली म छेड़ छाड़ झन होवे कहके, अउ एमे मंय सफल हंव, अइसन लागत हे।)*
*पइसा के रूख*
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- *श्री शिवशंकर शुक्ल*
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एक गांव में दूझिन भाई रहत रिहिन ।बड़े के नाम दुकालू अउ छोटे के नाम सुकालू रहिस। दुनों झिन के खटला मन मं आपुसे मं रोजेचझगरा होवै । रोज के किलकिल ले दुनों भाई मन अलगिया गिन ।
सुकालू बहुत एक कोढ़िया रहिस। कभु कोनों काम धंधा नई करत रहिस । दिन रात सूतय अउ इती उती किंदरय । ओखर इहिच बूता रहय । अपन ददा के कमई ,जोन ओला बटवारा मं मिले रिहिस उही ल उड़ावय ।
थोर दिन मं ओह अपन ददा के कमई ल फूंक डारिस । फेर ओह भीख मांगेल धरिस। गांव के मन ओला बाम्हन घर जनम धरे ले कुछु कांही दे देवंय । अइसने इनकर दिन बीते ।
एक दिन सुकालू के टूरा हर अपन बड़ा के टूरा मेर एक ठिन कठवा के हाथी देखिस । ओहर दऊरत दऊरत अपन दाई आई मेंरन आइस अऊ रोवन लागिस । सुकालू के खटला हा पूछिस , का होगे , काबर रोथस ?
टुरा ह किहिस, दाई बड़ा ह मेला ले भइया बर कठवा के हाथी लानिस हे, वइसने मंहू ला बिसा देना । सुकालू के खटला जोंन ला तीन दिन ले अनाज के एक सीथा खाय ल नई मिले रहिस, खिसिया गे । कहिस कस रे करम छड़हा, तोर ददा के गुन मां पसिया नइ मिलय, तोला हाथी चाही । सुकालू के टुरा अऊ रोवन लागिस । टुरा ल रोवत देख के वोह खिसियागे अऊ दुचार चटकन टुरा ल झाड़ दिस।
सुकालू ह कुरिया मं एक मांचा ऊपर बइठे रिहिस। अपन जोड़ी के गोठ ह ओला बान उसन लागिस। ओह अपन मन मं गांठ बांधिस कि मेंह कुछ काही करबे करहूं ।
दूसर दिन सुकालू कमई करे बर आन गांव जाय बर अपन घर ले निकरिस । गांव के मुहाटी मं एक लोहार के घर रहय । सुकालू ल गांव के बाहिर जावत देख के ओह किहिस, कस गा बाम्हन देवता, कहां जाथस?
सुकालू ह किहिस, लुहार कका में ह दूसर गांव जावत हववं, कुछु काहीं बुता करहूं। अब कले चुप्पे नइ बइठवं ।
लुहार हर किहिस-- गांव ले बाहिर काबर जा थस , मोर हिंया बूता कर । सुकालू किहिस -- लुहार कका तैं जउन बूता तियारबे में उहीकरहूँ ।
ओ दिन बेरा के बूड़त ले सुकालू ह लुहार हियां घन पीटिस- संझा जाय के बेरा लूहार ह सुकालू ल दिन भर के मजूरी तीन पइसा दीस। सुकालू ह तीन पइसा ल लेके चलिस अपन कुरिया कोती। सुकालू ल आज एइसे लगे जइसे ओला तीन पइसा नई, कहूं के राज मिलगे ।
कुरिया के मुंहाटी ले सुकालू ह अपन खटला ल हांक पारिस। सुकालू के खटला ह दिन भर ले अपन जोड़ी ल नई देखे रहय । सुकालू के हांक पारत वहू दुवारी के अंगना मं आगे । सुकालू हर किहिस, ले ये दु पइसा, मेंह आज बूता करके लाने हवंव । अब में ह बइठ के नइ रहवं। जतेक बेर सुकालू हर पइसा ल देत रहिस,सुकालू के खटला ह देखिस कि सुकालू के हाथ ह लहू लूहान होगे हावय। कहिस,ये तोर हाथ मं का होगे हे? सुकालू ह किंहिस,आज दिन भर मेंह लुहार कका हिंया घन पीटे हंवव ओखरे ये।
सुकालू के खटला पानी तिपोइस अऊ सुकालू ल नहाय के पथरा ऊपर बइठा के ओखर हाथ ल सेके ल तीपे पानी भित्तरी लाने बर गिस , ओतके बेर सुकालू ह उसका बेर सुकालू ह एक पइसा जेन ला ओहर चोंगी -माखुर बर लुकाय ले रहिस, तेन ल नहाय के पथरा के नीचू मं लुका दिस।
हाथ ल सिंका के सुकालू ह बियारी करिस। खातेखात वोला नींद मातिस वो ह सूतगे ।
बिहानियां सुकालू के खटला ह उठिस । त काय देखथे कि नहाय के पथरा के तीर म पइसा के रूख लगे हवय। पहिली तो वोला लगिस के मोला भोरहा होवत हावय । वो ह पथरा मेरन जा के देखथे त सहीं मं उहां पइसा के रुख रहय। लकर धकर ओह पइसा ल चरिहा मं भर भर के सुते के कोठी में लेग लेग के कुरोय लगिस। पइसा के झन- झन सुन के सुकालू के नींद ह टूटगे। वोह देखिस कि मोर जोड़ी ह चरिहा म पइसा भर भर के लान लान के इहां कुरोयवत हे । वो ह पूछिस, कउन मेर ले तोला एतका धन दोगानी मिलगे?
वो ह कहिस-- उठ त देख पथरा मेरन कतेक बड़े पइसा के रुख लगे हे । सुकालू घलो देखिस त ओला अपन रात के पइसा के सुरता आइस, जेला वोह पथरा खाल्हे लुकादे रिहिस । आज वोला जनइस के अपन पसीना बोहाय पइसा मं कतेक बल होथे। वो ह गांठ बांधिस के बिन बूता के मेंह बइठ के एक सीथा मुंख मं नई डारंव ।
सुकालू घलो पइसा वाला बनगे। पइसा के रूख के सोर राजा लगिस। वोह खूभकन बनिहार लानिस अउ सुकालू के कुरिया म नींग गे। सुकालू, राजा ह हांक पारिस। सुकालू ह अपन दुवारी म राजा ल देख के जान गे के येहर काबर आय हाबय । फेर राजा के आगु वोह काय । बनिहार मन कुदाली रापा ले के भिड़गे ,रुख उदारे बर फेर करतिस जेतक वो मन भुंया ल खनय ओतके रुख ह भुंइया मं हमात जाय।थोर दिन मं रुख हर धरती माता के कोख मं हमागे । राजा हर मन मार के रेंग दिस।
सुकालू ल पइसा के रूख हर चेत करा दिस के मिहनत के कमई हा कतेक बाढ़थे ।
*श्री शिवशंकर शुक्ल*
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खाँटी छत्तीसगढ़ी शब्द -
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खटला - औरत, सुवारी
हिंया -इहाँ , यहाँ
कुरोय लगीस -भरे लागिस,जमा करे लागिस
खाल्हे -तरी ,नीचे
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प्रस्तुतकर्ता -
*रामनाथ साहू*
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