छत्तीसगढ़ म संत कबीर के प्रभाव
( 22 जून- संत कबीर जयंती पर विशेष)
आलेख - ओमप्रकाश साहू "अंकुर "
हमर देश के संस्कृति अउ सभ्यता ह सदा ले अब्बड़ समृद्ध रिहिस हे. धन -धान्य ले संपन्न भारत ह” सोना के चिड़ियाँ कहलाय. ये सोन रुपी चिरई ल लूटे बर कतको विदेशी मन बेपार करे के बहाना आइस अउ धीेरे ले अपन पइठ जमा के इहां राज करिस. हमर देश ल मुगल मन के आक्रमण ले नंगत नुकसान पहुंचिस. भारत के संस्कृति अउ सभ्यता ल नंगत नुकसान पहुंचाइस. हजारों मंदिर तोड़ दे गिस. समृद्ध सभ्यता ल तोड़ के तहस -नहस कर दे गिस .जनता तरह -तरह के अत्याचार ले कराहे लगिस. अइसन स्थिति होगे कि धर्म- परिवर्तन के नाम म लाश पटागे. डर के मारे लोग मन अपन धर्म ल भूल के दूसरा रद्दा अपनाय लगिस. अइसन बेरा म संत दादू दयाल, संत रविदास, गुरु नानक, संत सुंदर दास अउ, संत रामानंद,संत कबीर जइसे महामानव मन ह अवतरित लिस अउ जनता मन म ज्ञान के बीज बो के अंधियारी ल भगाय के
निक काम करिस.
जब हमर देश म कवि मन राजा मन के वीरता अउ श्रृंगारिकता वर्णन म मगन रिहिन अइसन विकट बेरा म संत कबीर अउ ज्ञान मार्गी के अउ संत,कवि मन अपन विचार ले जनता मन म जागरण फैलाय के काम करिन.
संत कबीर के काल मुगल साम्राज्य के समय के रिहिन हे .ये
समय भारत म राजनैतिक, सांस्कृतिक, सामाजिक अउ धार्मिक सबो क्षेत्र म विपत्ति ह अपन पांव पसार ले रिहिस. अइसन बेरा म हमर संत कवि मन
जनता ल घोर निराशा ल उबारे बर ईश्वर के निर्गुण भक्ति अउ ज्ञान डहर धियान मोड़े के काम करिस. संत कबीर ह समाज सुधार अउ सामाजिक समरसता के बीज बोइस. वोहा हिंदू अउ मुसलमान दूनों धर्म म समाय दिखावा अउ बुराई मन उपर जमगरहा चोट करिस . दूनों धर्म के ठेकादार मन कइसे जनता ल बरगला के अपन सुवारथ बर काम करय. ये सब उपर संत कबीर ह नंगत के व्यंग्य करिस अउ जनता मन म जागृति फैलाय के सुघ्घर कारज करिस.
संत कबीर अउ धनी धर्मदास
हमर छत्तीसगढ़ म संत कबीर के विचारधारा ल जन जन तक पहुंचाय के महान कारज करइया म धनी धर्मदास के नाँव अव्वल हे. कबीर पंथ के स्थापना करके जनता ल कबीर के बताय सही रद्दा म चले बर जउन काम धनी धर्मदास करिस वोहा इतिहास म दर्ज होगे हे. अइसने महान कारज
गुरु घासी दास बाबा ह करिस. ये दूनों महामानव के छत्तीसगढ़ हमेशा ऋणी रहि.
कबीर पंथ के संस्थापक, छत्तीसगढ़ी के आदि कवि धर्मदास साहब के जनम कबीर साहब के ढाई वर्ष पहिली विक्रम संवत 1452 (ई. सन् 1395 ) म कार्तिक पूर्णिमा के दिन रींवा राज्य के बांधवगढ़ नगर म प्रसिद्ध कसौंधन वैश्य कुल म होय रिहिन. वोकर पिता के नाँव मनमहेश साहू अउ महतारी के नाँव सुधर्मावती रिहिन हे. उंकर बिहाव 28 साल म पथरहट नगर के वैश्य परिवार के बेटी सुलक्षणावती के संग होइस. इही सुलक्षणावती ह आमिन माता के नाँव ले जाने जाथे. धनी धर्मदास के ननपन के नाँव जुड़ावन साहू रीहिन हे. सन 1425 म वोकर पहिली बेटा नारायण दास के जनम होइस. बाद म धनी धर्म दास संत कबीर के संत्संग प्रवचन ले प्रभावित होके अपन धन दौलत ल समाज सुधार अउ कबीर के विचार धारा ल फैलाय म लगा दिस. उही दिन ले संत कबीर ह जुड़ावन साहू ल नवा नाँव दिस – धनी धर्मदास ।
जुड़ावन साहू वइसे तो पहिली ले धनी रिहिन हे. जमीन -जायदाद भरपूर रिहिन हे. बचपन ले सत्यनिष्ठ ,सात्विक, धर्मनिष्ठ, धर्म परायण रिहिन. पहिली वो सगुणोपासक रिहिन. मंदिर बनवाय रिहिन अउ पंडित -पुजारी मन के गजब आदर -सत्कार करय. खूब तिरथ -बरत करय अउ धर्म के काम म अव्वल राहय.
जइसे धनी धर्मदास म बुढ़ापा आइस त तिरथ- बरत बर निकल गे. बारह साल तक देश के सबो तीर्थ स्थल मन के भ्रमण करिस. वि. सम. 1519(सन 1462) म मथुरा नगरी पहुंचिस. उनचे अचानक वोकर भेंट कबीर साहेब से होइस. सद्गुरु कबीर साहेब के
निर्मल वचन मन ल सुनके धर्म
दास के जिनगी म ज्ञान के अंजोर बगर गे. वोला अब लगिस कि अब तक के जिनगी ह बेकार चले गे . वो दुबारा कबीर साहेब के खोज म निकल पड़िस अउ कांशी नगरी म सद्गुरु ले वोकर भेंट होइस. सत्संग करे के बाद धर्म दास साहेब ह सद्गुरु ले अपन जनम भूमि बांधवगढ़ चले के विनती करिस. धर्मदास साहेब के अरजी ल सुनके कबीर साहेब वि. सं. 1520 म बांधवगढ़ पहुंचिस.
अब धर्मदास साहब अउ माता आमिन अपन हवेली म बने धियान देके कबीर साहेब के सत्संग सुने लगिस. सद्गुरु कबीर साहेब जइसे आत्मज्ञानी (ब्रह्मज्ञानी ) ल पा के धर्मदास धन्य होगे. अपन प्रथम गुरु बिट्ठलेश्वर रुपदास जी ले आज्ञा लेके बांधवगढ़ म विशाल संत समागम के आयोजन करिस अउ कबीर साहेब के शिष्य बन गे. आमिन माता ह घलो ये पावन मार्ग म चल पड़िस.
सद्गुरु कबीर साहब के शिष्य बने के बाद धर्म दास अउ आमिन माता जनसमुदाय के संग अपन हवेली बांधवगढ़ म रहिके लगातार सत्संग प्रवचन सुने लगिस.
कबीर साहेब के विचार धारा के प्रचार प्रसार
सद्गगुरु कबीर साहेब के कृपा ले
बांधवगढ़ म उंकर हवेली सद्धर्म प्रचार के प्रमुख केन्द्र बन गे. धर्म दास के पास सब कुछ रिहिस. धन दौलत के संगे संग मान सम्मान अउ प्रतिष्ठा घलो. येकर कारण सत्संग, भजन ,साधु संत अउ भक्त मन बर भोजन भंडार, सेवा सत्कार अउ ठहरे बर सबो सुविधा. इनचे ले ज्ञानी गुरु अउ विवेकी चेला के बीच महान ज्ञान गोष्ठी होइस. गुरु -शिष्य परंपरा के
प्रादुर्भाव अउ कबीर पंथ के शुरुआत होइस.
धनी धर्म दास ह कबीर साहेब के अमृत बरोबर वाणी ल जन समुदाय के बीच प्रचार प्रसार करे बर वोकर लिपिबद्ध करे के महान काम करिस. वि. सं. 1521 म कबीर पंथ के सब ले जादा चर्चित ग्रन्थ बीजक के संग्रह के कारज करिस.
अतकीच नइ धर्म दास साहेब ह एक लम्बा समय तक (49 बरस )
सद्गुरु कबीर साहेब के सान्निध्य म रिहिस अउ मानव जीवन ल सुखद, शांत अउ समृद्धिशाली बनाय के दिशा म सविस्तार चर्चा करय. ये सबो अनमोल वचन ल सहेजे के महान काम घलो करत गिस जेहर आज हमर बीच कबीर सागर, शब्दावली जइसे कतको सद्ग्रन्थ के रुप म उपलब्ध हवय.
अात्म साक्षात्कार होय के बाद धर्म दास जी ह अपन करोड़ो के संपत्ति ल जन कल्याण बर अर्पित कर दिस. धर्मदास साहेब सद्गुरु कबीर साहेब के प्रति अत्तिक समर्पित होगे कि एक जान अउ दू शरीर जइसे संबंध स्थापित होगे.
धर्म दास के काव्य शैली कबीर जइसे
सद्गुरु कबीर साहेब अउ धनी धर्म दास के बीच अटूट संबंध के कारण वोकर काव्य शैली घलो कबीर जइसे हे.
संत कबीर ने धनी धर्म दास साहेब को वि. स.1540 में पंथ प्रचार खातिर गुरुवाई करे के दायित्व सौंप दिस. गुरुवाई मिले के बाद धर्म दास ह कबीर साहेब के नाँव ल उजागर करे अउ उंकर संदेश ल जन जन तक पहुंचाय बर अथक प्रयास करिस.
सत्यपंथ के स्थापना करिस. पन्द्रहवीं शताब्दी के मध्यकालीन धार्मिक आंदोलन म संत कवि धर्मदास ह कबीर पंथ के संस्थापक के रुप म भारतीय इतिहास म अपन नाँव दर्ज कराइस.
जगत कल्याण के भावना खातिर सद्गुरु कबीर साहेब भविष्य म पंथ संचालन बर धर्म दास साहब ल ब्यालीस वंश तक अखण्ड अउ अटल राज स्थापित होय के आशीर्वाद घलो दिस. ब्यालीस वंश के ये गुरु परंपरा सद्गुरु कबीर साहेब अउ धनी धर्म दास साहेब के आशीर्वाद ले कबीर पंथ के सही ढंग ले प्रचार प्रसार करत हे.
सतगुरु कबीर साहेब के कतको शिष्य रिहिन . संत कबीर ह अपन बाद पंथ संचालन खातिर कुछ नियम बना के चार गुरु के नियुक्ति करिन. चार गुरु के स्थापना होय के बाद घलो धनी धर्म दास साहेब
प्रमुख अंश माने जाय. वि. स. 1570 म चूरामणि नाम साहेब कबीर पंथ म वंश परम्परा के तहत पहिली गुरु के रूप म गुरु गद्दी पर बइठिस. वर्तमान म श्री प्रकाश मुनि नाम साहेब कबीर पंथ के 14 वें गुरु के रूप म गुरु गद्दी म विराजमान हे.
ये प्रकार ले हमर छत्तीसगढ़ म सद्गुरु कबीर साहेब के विचार धारा ह गजब सुग्घर ढंग ले प्रचार प्रसार होवत हे. वंश परम्परा के संगे -संग पारख सिद्धांत ल लेके चलइया इहां लाखो कबीर पंथी हे. पारख सिद्धांत वाले संत अउ अनुयायी मन वंश परम्परा के विरोध करथे।कबीर पंथ के माध्यम से संत कबीर के संदेश जन जन तक बगरत हे. इहां वंश परंपरा के संगे -संग पारख सिद्धांत के अनुसार चलइया अनुयायी मन दामाखेड़ा, कुदुरमाल, रतनपुर,कबीरधाम (कवर्धा) कबीरमठ
नादिया ( राजनांदगांव), खरसिया, करहीभदर ( बालोद), पेण्ड्री ( राजनांदगांव) बुरहानपुर, सुरगी ( राजनांदगांव) सुंदरा ( राजनांदगांव), भिलाई अउ आने जगह घलो कबीर आश्रम संचालित हे. ये जगह मन के संगे संग कतको गांव अउ शहर म विशाल कबीर सत्संग मेला के आयोजन होथे. ये जगह मन धार्मिक तीर्थ स्थल के रुप म प्रसिद्ध हे.
हमर छत्तीसगढ समरसता के धरती आय। कुछ अपवाद ल छोड़ देथन त इहां धर्म अउ जाति के नांव म झगरा नइ होवय जइसे के आने प्रदेश म देखे जाथे। इहां के रहवासी मन संत कबीर, धनी धर्मदास, गुरू घासीदास बाबा, संत रविदास, बुद्ध, महावीर , गुरूनानक के संदेश ल अपना के सुमता के दीया जला के चलथे। हमर छत्तीसगढ समन्वय के धरती आय।
[ सुरगी,राजनांदगांव, छत्तीसगढ़ ]
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