: लेख
हाथा दे के परम्परा
हाथा दे के परम्परा बड़ जुन्ना हे।ये परम्परा छत्तीसगढ़ के संगे संग पूरा देश में हवय।भारतीय संस्कृति में हाथा ल बड़ सुभ माने गे हे।हाथा ल हिंदी म पंचसूलक कहे जाथे। हाथा दुनों खाली हाथ म कुमकुम या हरदी ल एक ठिंन थारी म घोर के हाथ म सान के घर के दीवार म छापे जाथे। हमर छत्तीसगढ़ म चौऊर पिसान या गहूँ पिसान ल पानी म घोर के ओमा हरदी या बंदन मिलाके हाथा दे जाथे।
नवा घर के गृहप्रवेश के पूजा के बेरा म घर के मुख्य दरवाजा म हाथा दे जाथे।गृहप्रवेश के पूजा हाथा बगैर पूरा नी माने जाये। कथा-पूजा ,तीज-तिहार,जन्म संस्कार ,बर बिहाव म हाथा दे के परम्परा हे। नवा बहुरिया के घर म गृहप्रवेश होथे त नवा बहुरिया ह घर के मुख्य दरवाजा म हाथा देथे। हाथा ह हिंदू धर्म म बड़ सुभ अउ समृद्धि कारक माने गे हे। हाथा या पँचसूलक के साथ म स्वास्तिक बनाये जाथे। हाथा के छापा बनाये ले घर म सुख शांति रहिथे। घर के लोगन मन ल हर काम-काज म सफलता मिलथे।घर म कलह-क्लेश के नाश होथे। घर म बुरी आत्मा, भूत प्रेत के नजर नी लगे। हाथा ल लछमी माने जाथे।हाथा दे ले घर म साक्षत लछमी माँ बिराजमान होथे। घर म अन्न -धन के कोनो कमी नी होवे ।अईसे माने जाथे।
हाथा के परम्परा ह बड़ प्राचीन हे। जुन्ना बेरा म जब कैमरा अउ फोटू नी रहीस तब परदेस जवईया मन ह अपन परिवार वाला के याद बर ओखर हाथा ल कागज म छाप के ले गे अउ ओ हाथा ल देख के खुस होवे। रवींद्र नाथ टैगोर के कहिनी काबुलीवाला में एखर जिक्र हे।
पूजा-कथा या तीज तिहार ,बर बिहाव म हाथा सुहागिन या कुंवारी कन्या मन देथे। हाथा देवईया सुहागिन या कुंवारी कन्या मन ल हाथा दे के बदला म कुछु पईसा, कपड़ा या अन्न धन दे जाथे। हाथा घर के मुख्य दरवाजा, धान के कोठी, तिजोरी, पूजा घर, अउ मंदिर म दे जाथे। कई जगह म गोबर के हाथा दे जाथे।अईसे मान्यता हे कि गोबर के हाथा दे ले बुरी आत्मा और भूत प्रेत के नजर नई लगे। हाथा देवई हमर संस्कृति के परिचायक हे। जेला नवा पीढ़ी भुलात जाथे।
डॉ. शैल चन्द्रा
रावण भाठा,नगरी
जिला-धमतरी
छत्तीसगढ़
आदरणीय सम्पादक महोदय,
सादर नमस्कार!
उक्त लेख मौलिक अप्रकाशित है।
डॉ. शैल चन्द्रा
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