स्वच्छ भारत अभियान
गाँव ला स्वच्छ बनाये के संकल्प ले चुनई जीत गे रहय । फेर गाँव ला स्वच्छ कइसे बनाना हे तेकर , जादा जनाकारी नइ रहय बपरी ल । जे स्वच्छता के बात सोंच के , चुनई जीते रहय , तेमा अऊ शासन के चलत स्वच्छता अभियान म , बड़ फरक दिखय । बहुत दिन ले बांचे के कोशिस करिस , फेर छेरी के दई कब तक खैर मनाही , लपेटा म आगे अऊ वहू संघरगे शासन के अभियान म । अपन गाँव ल स्वच्छ बनाये बर , घरो घर , सरकारी कोलाबारी बना डरिस । एके रसदा म , केऊ खेप , नाली , सड़क अऊ कचरा फेंके बर टांकी ...। गाँव म हाँका परगे के , कनहो मनखे ला , गाँव के खेत खार तरिया नदिया म , दिशा मैदान बर नइ जाना हे , जे जाही , तेकर ले , डांड़ बोड़ी वसूले जाही । कागज म , गाँव के भौतिक कचरा के , अधकचरा नियंत्रण होगे फेर , एक कोती गाँव उहीच करा के उहीच कर , अऊ दूसर कोती , मनखे के मन म सकलाये कचरा , शौचालय के संखिया ले जादा बाढ़हे बर धर लिस ।
एक दिन के बात आय , एक ठिन तिहार म , उही गाँव के भगवान ल , अबड़ अकन भोग लगिस । भगवान घला कभू खाये निये तइसे , उनिस न गुनिस , पेट के फूटत ले खा डरिस । रथियाकुन पेट पदोये लागिस । भगवान सोंचिस मंदिर भितरी म करहूँ , त पुजेरी सोंचही भगवान घला मंदिरेच म .......। चुपचाप लोटा धरिस अऊ निकलगे भाँठा ..... । जइसे बइठे बर धरिस , कोटवार के सीटी के अवाज सुनई दिस । भगवान सोंचिस – कोटवार हा कहूँ मोरे कोती आगे अऊ चिन डरिस त बड़ फजित्ता हो जही । धकर लकर हुलिया बदलिस तब तक , कोटवार पहुँचगे अऊ केहे लागिस – तैं नइ जानस जी , हमर गाँव हा ... ओ डी एफ ... घोषित हे , इहाँ खुल्ला म शौच मना हे । भगवान पूछिस - कती जगा बईठँव , तिहीं बता ? कोटवार खिसियावत किथे – तोर घर शौचालय निये तेमा , भाँठा पहुँच गेस गंदगी बगराये बर । भगवान किथे – मोला तो पूरा गाँवेंच हा शौचालय दिखत हे अऊ अतेक गंदा के , बइठना मुश्किल हे । कोटवार अकबकागे , सोंचत रहय .. कइसे गोठियाथे बिया हा ... ।
भगवान फोर के बतइस - मंदिर म धरम के ठेकेदार मन , कोंटा कोंटा तक म अपन सोंच के शौच म ... दुर्गति कर देहें । कोटवार किथे – मंदिर मा रहिथस त , पुजारी अस का जी ? तोर घर म तो शौचालय हाबे , उहें नइ बइठथे गा .... । भगवान किथे - मोर तो कतको अकन घर हे बाबू , जेकर गिनती निये । मंदिर म मोर नाव ले अपन अपन रोटी सेंक के , मोर रेहे के जगा म शौच कर देथें । मस्जिद म रहिथँव त , अलगाववाद अऊ कट्टरवाद के पीप ला , जतर कतर शौच कस बगरा देथे । गिरिजाघर म खुसर जथँव त , वहू मन , लबारी के प्रचार प्रसार करत ...... पूरा खोली म , एक ला दूसर ले लड़ाये के बैचारिक कचरा ल घुरवा कस , बगरावत रहिथे ।
थोकिन सांस लेवत फेर केहे लागिस - आम जनता के घर के , सरकारी शौचालय के तो बाते निराला हे । बनते बनत देखथँव , ओकर हरेक ईंटा म मिस्त्री , ठेकेदार अऊ इंजीनियर के , शौच के निशान पहिली ले मौजूद हे । शौचालय बनतेच बनत , इँकर भ्रस्टाचार के गंदगी ले निकले बदबू म , नाक दे नइ जाय । कोटवार किथे – तोर पारा के पंच ला नइ बताते जी ..... । भगवान किथे - उहू ला बतायेंव , थोरेच दिन म एक ठिन ओकरो नाव के , बइमानी के शौच लगे ईंटा चढ़गे । सरपंच तो अऊ नहाकगे रहय , ओहा जगा जगा के शौचालय म धोखाधड़ी के कांड़ लगावत किंजरत रहय । अधिकारी मन करा का शिकायत करतेंव - ओमन कपाट बर , लबारी के फ्रेम तैयार करत रहय , जेमा सरहा मइलहा लालच के पेनल , वहू अतका भोंगरा के ........ बिगन झाँके जना जाये के , कती मनखे भीतरि म खुसरे हे । बिधायक के घर म , फरेब के पलस्तर लगाये के , योजना बनत देखेंव । दिल्ली तक पहुँच गेंव , उहां येकर संरक्षण बर , मौकापरस्ती के छड़ अऊ विस्वासघात के सीमेंट म , फकत आँकड़ा के छत , बनत रहय । उहू छत के हाल तो झिन पूछ बइहा ....... , अतका टोंड़का ........ अऊ हरेक टोंड़का ले , देश ला बर्बाद करइया , किरा बिलबिलावत .... बदबूदार सोंच , बूंद बूंद करके टपकत , गंदगी बगरावत रहय । अभू तिहीं बता कोटवार , कति जगा जाके गोहनावँव । कति मनखे , मोर बर , स्वच्छ शौचालय बना सकत हे ? मोर देस म स्वच्छ भारत के कल्पना कइसे अकार लिही ?
कोटवार किथे - जब अतेक ला जानथस , त , तिहीं नइ बइठ जतेस दिल्ली म । कोन गंदा बगराये के हिम्मत करतिस । भगवान जवाब देवत किहिस – मय भगवान अँव बेटा । मय सरग म शासन कर सकत हँव फेर , तोर भारत म शासन , मोर बर मुश्किल का ...... असंभव हे । कोटवार लंबा सांस भरत किथे - का करबे भगवान – जेला अच्छा जानके दिल्ली म बईठारथन तेमन ...... उहाँ बइठते साठ , कोन जनी काये खाथे .. , का पचथे ....... का नइ पचय ......., संसद भितरी म , गंदगी बगराना शुरू कर देथे , इही गंदगी हा , जम्मो देश म , धिरलगहा , एती ओती , जेती तेती , जतर कतर , बगरके देश ला जहरीला बना देथे । जे मनखे संसद म खुसर नइ सके तिही मन , तोरे कस लोटा धरके , गंदगी करे के जगा अऊ मौका तलाशत किंजरत रहिथे .......।
कलेचुप लोटा धरके भगवान हा मंदिर म खुसरिस ओकर बाद से .. कभू निकले के हिम्मत अऊ इच्छा दुनों नइ करिस ।
हरिशंकर गजानंद देवांगन , छुरा .
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