Friday, 5 July 2024

छत्तीसगढ़ी कहिनी* *सबला बड़खा धरम*

 -



             *छत्तीसगढ़ी कहिनी*



             *सबला बड़खा धरम*

            ---------------------------


                                     


          महाविद्यालय के सभाकक्ष मा सबो पढ़ईया  लईका मन ठुला गय रहिन। आज युवा उत्सव के तीसर दिन रहिस। मंच म स्वामी विवेकानंद के आदम कद तेल चित्र  हर  माढ़े रहिस । फुल - पान,अगरबत्ती के बाद  म ये  जगहा हर  बहुत नीक लागत हो रहीस । 


        आज के विषय  रहिस,  'मोर धरम:दू पद म ' ।एक प्रकार ले  एहर विवेकानंद के विश्व धर्म सम्मेलन  के सुरता म  एकठन छोटकुन खेलवारी घलव रहिस ।   मंच संचालक पलीहा हर  थोरकुन म अपन बात रखत बारी बारी ले  भाग लेवइया मन ल बलाय के शुरू  कर दिस-


        "मोर नॉव जुनैद आय।इस्लाम मोर धरम ये।अउ मोला अपन मुसलमान होय म बड़ा फख्र हे।इस्लाम ल अगर एक शब्द म आप कहना चाहो तब वो शब्द हर ये -ईमान। अगर हर मनखे ईमान ल साध लेय तब सब सधा जाही।"


          कतेक न कतेक अउ कतका बेर ल ताली हर बजिस।


"मैं पीटर,  पहिली मोर नाव पीतर लाल रहिस।बपतिस्मा होइस अउ मैं पीटर बन गय ।मैं अब ईसाई अंव ।ईसाई धरम ल एक शब्द म कहबे तब वोहर 'प्रेम' ये।सच्चा  ईसाई  करा प्रेम के छाण अउ आन कछु नइ रहय। वोकर कोई बैरी नइ रहय।वोहर नफरत जानबे नइ करे। प्रेम अउ प्रेम ...सब बर प्रेम एइच हर सच्चा ईसाइयत आय ।"


" मैं श्याम सुंदर ..आप सब झन ल जोहर हे।मैं हिन्दू अंव ।हिन्दू धरम ल एक पद म समझे बर हे तब  'सत' आय।   अउ सत्याचरण  का ये।

।  मनसा वाचा कर्मणा ऐक्य, मन म जउन है वोहर कण्ठ ले निकले अउ वोइच्छ ल हाथ  हर करे । अउ ये सब परहित बर रहे-

परहित सरिस धरम नही भाई ।

पर पीड़ा सम नही    अधमाई ।


       हिन्दू धर्म के बस यई हर सरल रूप आय ।ताली फेर बड़ जोर ले बजिस ।


   जसबीर सिख धर्म ल समर्पण, त अजित मांडे बौद्ध धर्म ल मध्यम मार्ग अउ समन्वय बताइस । उदित हर तप ल जैन धर्म के प्रान कहिस।


          सब बोल  डारिन ।


"अरे चन्द्रशेखर ..!तोर कुछु भी धरम नइ ये का।"प्रोफेसर असलम कहिन।


"है सर जी, मोरो धरम हे ।" चन्द्रशेखर कहिस ।


"तंय तो हिन्दू होवस न । तहुँ कुछु बोल ।"


"हिन्दूत्व मोर धरम ....पीछु ये।पहिली मोर धरम राष्ट्र धर्म ये। एहू धरम हर  देश म सदा सदा ले रहे हे ।सिंधु काल,वैदिक काल ल लेके चाणक्य , चन्दबरदाई से लेके माखनलाल चतुर्वेदी तक ए धरम के अस्तुति म कहत नइ थके ये । यई राष्ट्र धर्म हर मोर् धर्म ये। स्वतन्त्रता, समानता , मितानी अउ सब ल न्याय ।एइ हर मोर  राष्ट्र धर्म के चिन्हारी ये ।"चन्द्रशेखर अतका कह के चुप रह गया ।


"अरे एहर तो अइसनहेच धरम ये ,वोहू भी सब बर ।मान ..मान नही त झन मान।"जूही नोनी झर्रस ल अइसन कहिस।


"नही जूही, चन्द्रशेखर हर एकदम  ठीक कहत हे। हिन्दू, सिख ,मुसलिम ये सब धर्म मन तारा जोगनी येँ ।तब  राष्ट्र धर्म हर  चन्द्रमा  आय ..सुरुज आय।राष्ट्र धर्म हर धर्म भर नोहय वोहर परम् धर्म  ये। एकरे कोरा म सब धर्म आके  थिराथें । "प्रोफेसर असलम एक प्रकार ले आज के सभा के उपसंहार करत कहिन ।


     राष्ट्र धर्म ...परम् धर्म..  सबला बड़खा धरम ...उँकर गुरु गम्भीर अवाज एक पइत फेर गुंजिस ।


     विवेकानंद के तैल चित्र के तीर म उदबत्ती मन अभी ले जलतेच रहिन अउ उँकर सुवास ले जगहा हर महमहातेच रहिस ।



*रामनाथ साहू*


-

No comments:

Post a Comment