*भाव बढ़िस बंगाला के*.
ब्यंग
भोरहा मा झन रबे बाबूजी, समय आथे न तब घुरवा के दिन घलो बहुरथे। काली तक मोला कोनों सोजबाय देखत पूछत नइ रिहिन। आज मोर नाँव लेके सुनके सबके खीसा मा जड़कला अमावत हे। खीसा मा हाथ डारत कपकपी धरत हे। ओकर कारन अतके हे कि आज मँय हर कालर ऊँचा करके रेंगत हवँ। भले मोर ठाठ बाठ कतको दिन बर रहय फेर मोला मउका मिले हे तब तो मेंछराबेच करहूँ। मोला अइसे लगत हे कि कइयो जमाना के बाद मोर औकात ला जनता जाने हे। ये बात मँय हर निहीं रे भाई, वो बजार के बंगाला माने टमाटर माने पताल हर कहत हवे। अइसे लगत हे जानो मानो दसो चुनाव लड़े के बाद लटपट मा आज गिनवा वोट ले जीतके विधानसभा के मोहाटी तक पाँव रखे हे। अब सम्मान के जगा मा चलिदेय हे तब कतको अनपढ़ गदहा रहय कलेक्टर के फरज बनथे सलामी ठोंके के। बस ये दसा मा बंगाला के मेछराना सहज हे। आज वो हर सब्जी मंडी के सरदार कस या तो थाना के सिपाही ले उपर दू फीता वाला एस पी के पद मा हे। अइसन मा सौ रुपिया पार होइच गेय हे तभो कालाबाजारी के मोल बेचरउहा नेता तो नोंहे।
ओकर ठसन ला देखके सरकारी बंगला मा बिना पद के काबिज चेंच अमारी जेकर तारी कभू बंगाला के सँग पटबे नइ करे ताना मारत कहत रहय----- चारे दिन अँटिया ले रे बंगाला।ये तो बेरा बखत के बात आय अउ फेर जेन कुरसी मा आज तैं बइठे हावस काकरो नइ होवय। सदा दिन के गठबंधन के राग म राग मिलाने वाला आगू के दुकान ले गोंदली उर्फ पियाज कहत हे हम तोर हश्र ला जानत हवन बंगाला वो रायगढ़ वाले बन तोला टेक्टर मा जोर के लानथें अउ सड़क बाजू घोंडा के जाथें। तब तँय हर घर के रहस ना घाट के। ये तो सरकार के नाइंसाफी के सेती हम बैपारी मन के कालाबाजारी जमाखोरी ले बोचक के सफेद बजार मा फटेहाल डालर के भाव मा जाथन। बंगाला कथे------कभू काल आज मँय हर उपर उठेंव तौ सबके आँखी गड़त हे। आज मँय रोज बजार अखबार मा अउ मनखे मन के जबान मा समाये हवँ तब सबके सब जलन मरत हव। ये सहानुभूति के बाँटे पोरसे ई व्हीएम के बटन नोंहे जेमे जनता दया करके चपके हे। ये तो मोर खुदके योग्यता अउ क्षमता के असर हे जेकर ले अखबार अउ बजार मा जगा बनाय हँव। जेन दिन मोर मोल सरहा भाजी के लाइक नइ रिहिस दस रुपिया मे दस किलो रेहेंव तब कोनों मोर तिर आँसू पोछे बर नइ आयेव। हारे नेता के तिर मनखे तो का माछी नइ ओधे तइसे मोर हाल रिहिस। कोनो उजबक नेता के मंच मा सरहा के जगा टाटक ताजा ला फेंके तब नेता के जगा मोर कतका हिनमान होवय मिंहीं जानथों। तब मँय अपन तकदीर मा आँसू बोहावत खुद ला कोसवँ तब कोनो मोर हाल पूछे बर नइ आयेव। मोर सौभाग्य हे कि आज तुँहर मनले उँचहा जगा पाये हव। तुँहर मन कस छुटभैया चिरकुटहा नोंहों। ताना मारे के मिले मउका ला कड़हा भाँटा जेकर ले बइद अउ डाक्टर तक परहेज करे बर कथें। इन चिरकुट पाखंडी किसम के भाँटा जे समाज मा खस्सू खजरी अउ बतहा के संक्रमण कभू कसर नइ छोड़े गवाना नइ चाहत रिहिस, कथे-----अतको ऊँचा का काम के रे बंगाला जेकर ले आदमी उपर कोती देखबे नइ करे।
मुँहूँ अँइठत गोंदली ला देखके बंगाला कथे--------जादा भाव खाना छोड़दे गोंदली, जतका आदर सम्मान मनखे समाज मा तोर हे ओतके मोरो हे। फेर तँय कहू जमाखोरी मुनाफाखोर बैपारी मन के फाँदा मा फँदबे तब तोला जबरन ऊँचा उठाए जाही। एकर ले साफ हे कि तोर खुद के औकात नइये। मोर अपन पहिचान हे इज्जत हे, भले मँय दस रुपिया के दू किलो रहवँ चाहे सौ रुपिया किलो। मोर स्वाभिमान ला तँय नइ गिरा सकस। मोर उमर भले चरदिनिया हे फेर कोनो बनिया के गोदाम मा कैद होके नइ रहन। अउ वो तोर बाजू मा बइठे आलू जे हर मोला देख देख के हाँसत हे ओकर औकात पंचायत के सचिव आउ सचिवालय मा लेखापाल ले जादा नइये। वो मोर ले का बात करही। एक तो बिना गठबंधन के ओकर सरकार नइ चले। अपन इज्जत बनाके रखे बर चना केरा जइसे निर्दली मन के पाँव पखारत रथे। मँय मानत हवँ कि ओकर व्यक्तित्व गाँधीजी अउ अटलजी कस हे। फेर अकेला चना भाड़ नइ फोरय तेकरो मुँहुँ खुलत हे। हम भारी बहुमत ले हारे जीते निर्दली कस हवन, फेर अपन शान रुतबा ला गिरन नइ देवन। राजनीतिक लफड़ा ले दूर छेल्ला बुद्धिजीवी कस रथन। अरे तोर नाँव लेके संसद मा हल्ला मचत रथे कि पियाज के कालाबाजारी जमाखोरी बंद करौ कहिके। चिरकुच असन नेता मन धरना मा बइठ जाथें। फेर तोर खैंटाहा आदत हे जनता ला रोवाय के सरकारी कुरसी हलाय के। बैपारी के खीसा भरे मा कभू कमती नइ करे। किसान के सुध लेते ते तोरो मान अउ बाढ़तिस। आज मोर खुशी के बेरा मा दाँत झन कटर।
अतका तो तय हे कि जे किसान मोला पाल पोसके जतन करथे तुँहरे मन कस महूँ उँखर खीसा भर नइ पावत हँव। दलाल कोचिया के दम ले किसान के नाँगर नाँस गँसिया नइ पाय। बिचारा मन के कालर ऊँचा करे मा मोरो हाथ बात हो जतिस तौ अहोभाग मनातेंव। फेर का कबे महूँ बजारु होके रहि गेय हँव। मोला तो अतको भान हे कि चार दिन मा सर के मर जाहूँ, अउ उही चार दिन बाद किसान करही। भले आज दुरिहा ले पाँव लागी महराज कहत हे महूँ खुश रहो बेटा कहिके आशिष दे देथँव। साग मा नेंगहा डारयँ चाहे ठोमहा भर। आम जनता के सँग चुलहा फुँकइया सुवारी तको बजरहा के झोला भितराय के पहिली पूछत तो हे कि बंगाला के आज का भाव हे।
राजकुमार चौधरी "रौना"
टेड़ेसरा राजनांदगांव।
(ब्यंग संग्रह "का के बधाई" ले)
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