योजना
प्रदेश के मुखिया संग , योजना आयोग के बइठक चलत रहय । योजना आयोग के उपाध्यक्ष हा भड़कत कहत रहय – खैरात म बांटे बर बंद करव । तुँहर अइसन बूता के सेती हमर जम्मो खजाना खाली होवत हे । अब अइसन बूता बर , हमर करा कन्हो फंड निये । तूमन शुरू करे हव , तुहीं मन अइसन योजना ला , अपन पइसा म चलावव । प्रदेश के मुखिया किथे – समे के मांग के हिसाब से योजना सुरू करे रेहेन बाबू .... तैं का जानबे .. ? सरकार बनाये खातिर अइसन करेच ला परथे गा ...... । कन्हो ला , एक रूपिया दू रूपिया किलो म , चऊँर दे के , ओकर पेट भरना गलत हे का ..... ? उपाध्यक्ष किथे – गलत कहीं निये , फेर सस्ता राशन के चक्कर म गरीब के संख्या , उदुप ले बाढ़गे , तबले , हमूमन गरीबी के लइन म आगेन । मुखिया किथे – असल म योजना ला हमन , सिर्फ बोट बर लाने रेहेन फेर , को जनी , कब बोटर मन घला जुड़गे एमा , तेकर सेती , खरचा बाढ़गे । योजना आयोग किथे – चाहे कहीं होय , हमर देश के मुखिया हा .... अब अइसन योजना बर , पइसा दे बर , मना करत हे , तूमन , अपन अपन , बेवस्था कर लेवव ।
दूसर दिन प्रदेश म , केबिनेट के बइसका म , समस्या के समाधान बर मंथन चलत रिहीस । जम्मो मंत्री मन अपन अपन सुझाव दीन । सार्वजनिक निर्माण बिभाग के मंत्री बताथे – सर , जम्मो सार्वजनिक बितरण प्रणाली ला हमर बिभाग ला दे दव । मुखिया किथे – एकर ले काये होही ? मंत्री किथे – सिर्फ लीपापोती ....। कागज म चिक्कन सड़क बना सकत हन , त ये बहुत छोटे बूता आय हमर बर । सिर्फ बजट बनही , खरचा के आवश्यकता निये ... । मुखिया किथे – अरबों रूपिया के बजट ला तुँहर अधिकारी मन सड़क कस लील दिहीं तैं देखते रहि जबे ...... । तोर से नइ हो सके । मंत्री जवाबलेस होगे ।
सिचाई मंत्री किथे – सर , जम्मो सिस्टम ला मोला दे दव । चार दिन म खरचा म नियंत्रण हो जही । मुखिया किथे – पानी के नियंत्रण बर जे बांध बनाये हस तेमा , कतका पानी नियंत्रित होइस हे ....... ? दूधो गे दुहना घला गे , बांध अऊ पानी संघरा बोहागे ....... । तहन फसल बोहागे , मनखे बोहागे , जानवर बोहागे , मुवावजा बाँटत हमर कतको बोहागे ...... । कलेचुप बइठगे ।
संस्कृति मंत्री किथे – मोर करा वइसे भी कन्हो बूता निये । में सिर्फ , राजिम म कुम्भ कराथँव , कभू कभू साहित्य के सम्मेलन अऊ बछर म एक बेर , राज्य महोत्सव । में सार्वजनिक बितरण प्रणाली ला बहुतेच नियंत्रण कर सकत हंव । मुखिया किथे – न तोर कुम्भ म ठिकाना , न कन्हो महोत्सव म .... , इनाम बाँटथस तिही म अंगरी उच जथे .... तैं का कर सकबे ..... नानुक बजट तोर से सम्हलत निये , तैं अतेक बजट के बूता ला काला संभाल सकबे .... तोर करा का योजना हे तेला बता .....। मंत्री किथे – काम हाथ म मिलही तब योजना बनाबो .......।
बित्त मंत्री किथे – मोला लागथे अब ये काम ला सीधा , हमर नियंत्रण म दे देना चाही । हमन जइसे चहापत्ती ला ऊँच म टांग के .... गोंदली ला टिलिंग म चइघाके , जनता ला पदोथन तइसने , सस्ता राशन ल अइसे ऊँच म टांगबो के .... कन्हो अमर झिन सकय । जे अमर पारही , ते टेक्स म , मर जही ... । मुखिया किथे – येमा हल्ला होये के चांस हे । चुनई लकठियागे हे , तोर योजना म वोटर ते वोटर , बोट तको दुरिहा जही ...... ।
स्वास्थ्य बिभाग के मंत्री कलेचुप बइठे रहय । मुखिया किथे – तहूँ कुछ तो बोल .... । वो किथे – मैं का कहँव सर । जे योजना ला सुरू करथन , बदनामेच होथन । अऊ सरकार के किरकिरी होथे । आँखी के आपरेशन के अभियान चलाथन , त कतको झिन के , आँखी फूट जथे । परिवार नियोजन म , पेट म कैची छूट जथे । साँस के तकलीफ दुरिहाये बर लाने , आक्सीजन के सिलेंडर हा , बड़का बड़का कारखाना म लग जथे । फेर एक बात हे मुखिया जी ... मोला सार्वजनिक बितरण प्रणाली ला दुहू ते , कुछ महीना म तुँहर समस्या के , समाधान हो सकत हे । मुखिया किथे – कइसे ? स्वास्थ्य मंत्री किथे – फकत एक बेर घोषणा भर कर दव के , सार्वजनिक बितरण प्रणाली के सस्ता राशन , अस्पताल ले मिलही कहिके ...... । मुखिया पूछिस – येकर ले का होही ? स्वास्थ्य मंत्री किथे – जनता जानत हे , सरकारी अस्पताल के हाल ला । इहाँ आये के बाद बहुतेच कम सौभाग्यशाली मन , सकुशल वापिस जाथे , तेकर सेती , कन्हो सरकारी अस्पताल के चौंखट म पाँव दे बर सोंचथे ..... । सस्ता राशन के योजना ल , हमन ला बंद करे बर नइ लागे , हमर अस्पताल म राशन बिसाये बर .... कन्हो आबेच नइ करही , त खुदे , कुछ दिन म योजना अपंने अपन चुमुकले बंद हो जही । पूरा पइसा बाँच जही ....... । चुनाव समे , जनता ला मुहुँ देखाये म घला कन्हो परेशानी नइ होय । हमन , कहि सकत हन के , हमन तो दे बर तैयार रेहेन .... फेर कन्हो झोंके बर .... तैयार निये । केबिनेट म प्रस्ताव ला मंजूरी मिलगे । चार महीना म , प्रदेश म सस्ता राशन झोंकइया के संख्या शून्य होगे । प्रदेश के गरीबी पूरी तरह ले दूर होगे । गरीब मुक्त राज्य ला यू. एन. ओ. म पुरुस्कार झोंके बर बलाये गेहे ...... ।
हरिशंकर गजानंद देवांगन , छुरा .
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