Friday, 26 July 2024

अपन अपन रुख

 अपन अपन रुख

रुख रई जंगल झाड़ी के , बिनाश देख, भगवान चिंतित रहय। ओहा मनखे मन के बइठका बलाके , रुख रई लगाये के सलाह दिस । कुछ बछर पाछू ,भुँइया जस के तस । फोकट म कोन रुख लगाहीं । भगवान हा मनखे मन ल , लालच देवत किहिस - रुख रई के जंगल लगाये बर , मनखे ल , मुफ्त म भुँइया अऊ नान नान पौधा बितरण करहूँ , संगे संग घोषणा करिन के , जे मनखे मोर दे भुँईया म बहुत अकन रुख , रई , झाड़ झरोखा लगाही , अऊ वोला सुरक्षित राखही , ओमन ल जीते जियत परिवार समेत सरग देखाहूँ ।

समे बीते के पाछू ... भगवान ला धरती म ..रुख लगइया मन ला देखे के इच्छा जागृत होइस । समय पाके उँकर मन तिर पहुँचगे भगवान । एक झिन रूख लगइया हा बतइस - हमन अइसे जंगल लगाये हाबन , जे न केवल हमन ल सुख देवत हे , बल्कि अवइया हमर कतको पीढही ल सुख अऊ समृद्धि दिही । भगवान उँकर लगाये जंगल ला देखे के सऊँख करिस । ओ मनखे हा भगवान ला अपन जंगल देखाये बर दूसर दिन लेगे । उहां बड़े जनीस भुँइया म बिशाल सभा के आयोजन रिहिस जिंहा घंटों भाषण , तहन राशन , सांझ कुन कुछ कुछ अऊ ......., रथिया कुछ अऊ.......। शरम के मारे भगवान देख नइ सकिस ....... कसमसावत अपन आँखी मूंद लिस । दूसर दिन बिहाने ले भगवान फेर पचारिस - आज तोर रुख ल देखाते का जी ? ओ मनखे किथे – या .. काली नइ देखेव का भगवान ? चलव फेर देखावत हँव । एक ठिन गाँव म बड़े जिनीस सभा सकलाये रहय जेमा कोरी खइरखा मनखे ...... पाँव धरे के जगा निही ..... चारों डहर खोसकिस खोसकिस ......। भगवान पूछथे - कती करा हे तुँहर रुख , देखा मोला .... खाली भीड़ भडक्का म धुर्रा खाये बर ले आनथस । मनखे किथे - अतका कस मनखे रुख तोला नइ दिखत हे भगवान ......। मुहूँ ल फार दिस भगवान । भगवान पूछिस - ये कइसे रुख आय जी ? मेंहा रुख रई के जंगल लगाये बर केहे रेहेंव , तूमन मनखे के जंगल लगा देव ? मनखे किथे -जे रुख लगाये ले सरग के सुख मिलही , तिही ल लगाये हाबन जी । भगवान रटपटा के किहिस - तूमन ल सरग लेगना तो दूर ,जुर्माना होही । बिगन हमर आज्ञा ,हमरे जगा भुँइया म दू गोड़िया रुख लगा डरेव । मनखे किथे - जुर्माना .... काये के जुर्माना जी ..... । रुख लगाये बर तोर भुँइया के एक इंच इस्तेमाल नइ करे हाबन , अऊ तो अऊ ये रुख के बाढ़हे बर ... तोर सुरूज के घाम तोर प्रकृति के हावा तक नइ ले हाबन । तैं खुदे देख ...। 

भगवान ध्यान लगाके देखे लागिस । वाजिम म , भाषण के खेत म , आश्वासन के खातू , लालच के पानी अऊ मौकापरस्ती के घाम म खसकस ले उपजे रहय , बन बांदुर कस , मनखे रुख। बीच बीच म राहत के कीटनाशक के छिड़काव करके , कीरा परे ले बचा डरय ।भगवान पूछिस -  एकर फल फूल म ,तूमन ल कायेच फयदा होवत होही ? वो किथे - इहाँ के बात तोर समझ म नइ आवय , ये रुख म जे फूल खिलथे , तेकर महक म कतको झिन बौरा जथे । पाँच बछर म एक बेर फूलथे , ये फूल के नाव वोट आय । इही वोंट फूल हा खुरसी फर बन जथे , जेला एक बेर तहूँ चिखबे ते , सरग ल भुला जबे , वापिस नइ जाँवव कहिबे । भगवान किथे - त मोर दे भुँइया अऊ पौधा के का होइस जी ? ओ मनखे किथे – ओला हम नइ जानन ..... अपन जमीन म मनखे के पेंड़ ल लगाथन अऊ पालथन भगवान .... रिहिस बात तुँहर पौधा के , होही कहूँ करा फेंकावत , हमर सरग इँहे हे , हम का करबो तोर पौधा ल , लेग जा वापिस । मुड़ी पीटत , रुख लगइया दूसर मनखे खोजे लागिस भगवान हा.......। 

कुछ धूरिहा म , एक झिन ला रूख तिर देख पारिस त ... ओला पूछे लगिस भगवान हा –तहूँ रुख लगाथस का जी ? देखा भलुक , कइसने लगाये हस ? ओ किथे - तैं सी. बी. आई. के मनखे तो नोहस ? भगवान किहिस - अरे नोहो रे भई , मेंहा भगवान अँव ...। वो फेर किथे - अच्छा ..... तोला कन्हो जाँच वाले समझत रेहेंव । तूमन ल हमर रुख का दिखही भगवान ? हमर साहेब खानदान म , हमन अपन रुख इहाँ नइ लगावन , हमर रुख स्वीस बैक म जामथे । का..... मुहुँ ला फार दिस भगवान ? ओ किथे - हव भई , हमन पइसा के रुख लगाथन , जेला कन्हो ल देखन नइ देवन । जे देख डरथे , तेला नान नान चँटा देथन । भगवान खिसियइस - कस रे साहेब , अइसने रुख लगाये म तूमन ल सुख मिलथे रे ? जुर्माना लागही , बिन आज्ञा के हमर दे जगा भुँइया म दूसर रुख जगो डरे ।ओ जवाब दिस – का के जुर्माना भगवान , न तोर भुँइया , न तोर हवा , न तोर प्रकाश । भगवान पूछिस - त कइसे जाम जथे तोर रुख ? वो किथे - कागज के खेत म , भ्रस्टाचार के खातू , जनता के लहू ले सिचई अऊ हेराफेरी के घाम म मोर रुख लहलहाथे भगवान ..... तैं का जानबे...... । लबारी के कीटनाशक ओकर रक्षा करथे । मोर लगाये रुख म , मोर सात पीढ़ही बइठे बइठे सरग कस खा सकत हे । भगवान किथे – त मोर भुँइया ल का करेव ? ओ मनखे बतइस – ओहा को जनी ….. कबके बिदेश म गिरवी धराहे ........... ।

कुछ धूर म .... खँचका खनत मनखे देख भगवान पूछिस – रुख जगोये बर खनत हस का जी ? वो किथे – का रुख लगाबे भगवान , ओला रात दिन , राजनीति के ढोर डांगर मन चर देथे । भगवान पूछिस - त खँचका काबर खनत हस ? ओहा किथे - रुखेच जगोये बर आय , फेर अपन रुख जगोहूँ । भगवान फेर पचारिस - हमर दे रुख नइ लगावस का जी ? ओ किथे -ओला का करबे , आज लगाबे , काली उखानबे , नइ उखानबे तभो उखनही , वइसे भी हमर देश के सरकारी भुँइया म तोर रुख जगोये के अऊ ओला खड़े राखे के ताकत निये । आज गड्ढा कोड़थन , महीना भर पाछू , रुख के जगा बिल्डिंग खड़ा हो जथे । भाखा , जाति ,क्षेत्र अऊ धरम के गड्ढा भले कभू नइ पटाये , फेर रुख लगाये बर खने गड्ढा दूसरेच दिन पटा जथे । तोर दे रुख लगइच देबो त , तामझाम के भुँइया म , प्रचार के खातू अऊ स्वारथ के सिचई , खइत्ता ताय , कतिहाँ ले जामही .....। किरागे तँहंले , अवसरवादिता के कीटनाशक म कतेक दम ...... । तेकर सेती , तोर दे रुख के ओधा म , हमन अपन रुख , अइसे जगा जगोथन ,जेहा जामथे ते जगा भुँइया हा , शहर बन जथे । का ...... भगवान सोंच म परगे  ? ओ मनखे हा ..... देखइस अपन रूख ला .......जेती देख तेती घरेच घर , बड़े बड़े बिल्डिंग , फेक्ट्री ....... अऊ कांक्रीट के जंगल । भगवान सुकुरदुम होगे ।

 चिरहा कुरता पहिरे , बीता भर खोदरा पेट के मनखे का रूख लगावत होही ...... इही सोंच ओला अनदेखी करत रेंगत रिहिस भगवान हा । तभे अवाज अइस , रुख तो मोरो करा बहुत हे भगवान , फेर लगावँव कति .... ?  जे भुँइया ल मोर किथँव , तेला सरकार नंगा लेथे , बिन भुँइया के कामे जगो डरँव । जियत जियत सरग जाये के साध म , रुख लगाये के उदिम जहू तहू ... महूँ कर पारथँव , फेर ओला पेंड़ाये म काटे बर पर जथे । भगवान किथे – अब समझ अइस , हमर जंगल ल कोन काट बोंग के पर्यावरण ल नकसान पहुँचाथे , लेगव ले नरक म एला । वो किथे – वा....... कइसे करथस भगवान ? तैं कहत हस ते रुख ल काटना तो दूर , ओकर सुखाये डारा पाना ल सकेले म हमन पकड़ा जथन , ओ रुख मन ल ट्रक ट्रक भरके शहर म बेंचइया मन मलई खावत हे , अऊ हमन ल नरक लेगहूँ किथस । में तो अपन रुख के बात करत हँव । भगवान किथे - देखा , तोरो रुख ल , कइसना हे ? वो रोवत किहिस - का देखावँव भगवान , गरीबी के खेत म , मेहनत के खातू अऊ पछीना के सिचई म , अरमान के रुख लगाथँव भगवान । फेर उहू ल , कलह अऊ स्वारथ के किरवा मन , सरकारी बिकास के पइसा कस चुहँक देथे । कतको साम्प्रदायिकता के बन बांदुर ल नींदथँव , तभो जामिच जथे । त्याग अऊ तपस्या के दवई हा .....  मंहंगई के घाम झेले नइ सकय ..... लेसा जथे । ओहा बताये लगिस -ले दे के मोर अरमान के रुख बाढ़िच जथे तब उही ला मसक के , ओकर बोटी बोटी करके , अपन लइका ला पढ़हाथँव । इही रुख के कुटका कुटका करथँव तब हमर चूलहा म आगी सिपचथे , रंधनी खोली म कुहरा गुंगवाथे , मोर बिमार दई के दवई आथे , अऊ अपन बई के लाज ढाँकथँव । मोर अरमान के रुख , मोला आज तक सुख नइ दिस ......, त मोर नोनी बाबू ल का सुख दिही । ये रुख जबले जामे हे , मन म दुखेच उपजथे । मोर अइसन रुख ल तोरे तिर लेग जते भगवान । भगवान किथे - में काये करहूँ , इही रुख के सेती खुदे किंजरत हँव ... ये दुआर ले वो दुआर ...........।

हरिशंकर गजानंद देवांगन , छुरा .

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