Friday, 5 July 2024

समाज ला सत् अउ अहिंसा के रद्दा दिखईया*-

 *समाज ला सत् अउ अहिंसा के रद्दा दिखईया*- 

                      *सद्गुरु कबीर* 


                           - *वसन्ती वर्मा* 


       कबीरपंथ अउ बड़े-बड़े कतको विद्वान मन के मानना हे के संत कबीर जइसन ग्यानी पुरुस पिछले दू हजार बरस मा ए जगत मा कोनो पैदा नई होय हे। सद्गुरु कबीर साहब के बानी हा मनखे मन के जीवन मा गहरा प्रभाव डाले हे। जिनगी के डोरी मा उनखर विचार ह माला कस गुथाँय हवय। धर्म अउ समाज के जम्मो पक्छ मा उनखर विचार ह-  विवेकपूर्ण समाधान प्रस्तुत करे हे। समाज अउ मनखे, राजा अउ रंक, नगर अउ गाँव, मानव अउ पसु जगत, चेतन अउ जड़, आत्मा अउ परमात्मा सबो के सार बात ला कबीर साहेब हा सुघ्घर अउ सरल ढंग ले बरनन करें हें। एखरे सेथी कबीरपंथ मा संत कबीर ला ‘ *सद्गुरु*’ के दर्जा मिले हवय।

सद्गुरु कबीर साहेब के जनम् सन् 1398 के जेठ पुन्नी के दिन होय रहिस, ते पाय के *जेठ पुन्नी* के दिन ‘ *कबीर जयंती*’ मनाय जाथे। फेर कबीरपंथी मन के मानना हे के कबीर साहब के जनम एखर पन्द्रह दिन पहिली जेठ अमावस के दिन होय रहिस। एही दिन कबीर साहेब हा तरिया के भीतर पुराइन पान के बीच खोखमा फूल के ऊपर प्रगट होय रहिन। ते पाय के कबीर पंथी मन जेठ अमावस के दिन बरसाइत उपास रहि के ‘ *प्रगट दिवस* ’ मनाथें। एखर बाद कबीर साहेब 120 बरस तक ये धरती मा प्रगट रुप मा रहिन।

           सद्गुरु कबीर मांस, मदिरा सेवन, वेस्यावृत्ति, जुआ, चोरी जइसन सामाजिक बुराई ला जड़ से खत्म करे के उपदेस दिन। 


 *माँस भखै मदिरा पिवै, धन वेस्या सों खाय।* 

 *जुआ खेलि चोरी करै, अन्त समूला जाय।।* 


         सद्गुरु कबीर के दृस्टि मा जेन मनुष्य के हिरदे म प्रेम अउ जीव के प्रति करुणा के संचार नि होय ओहा मुरदा समान ए।


 *जा घट प्रेम न संचरै, सो घट जानु मसान।* 

 *जैसे खाल लुहार के, स्वांस लेत बिनु प्रान।।* 


      सद्गुरु कबीर समाजवादी अउ समतावादी महापुरुष रहिन। उनखर विचार मा जौन व्यक्ति ऊंच-नीच के भेद नि करे वोहा भगवान के समान ए।


 *लोहा, कंचन सम करि जाना, ते मूरत होवय भगवाना।* 


     सद्गुरु कबीर जब ए धरती मा अवतरित होईन ओ समय स्त्री मन अर्धगुलामी के जीवन जीयत रहिन, ओमन के बलात् धर्म परिवर्तन कराए जात रहिस। सद्गुरु कबीर स्त्री मन के गुलामी के विरोध करिन ता उन ला पंडित, मौलवी, सामंत-राजा मन के जबरजस्त विरोध झेलना पडि़स। सद्गुरु कबीर सबो ला ललकार के कहिन।


 *नारी निन्दा मत करो, नारी नर की खान।* 

 *नारी से नर होत है, धु्रव, प्रहलाद समान।।* 


      संत कबीर के मानना रहिस कि समाज मा न जादा गरीब होना चाही न जादा अमीर। उनखर विचार मा जादा संचित धन ला जरुरतमंद ला बांट देना चाही।


 *जो जल बाढ़े नाव में, घर में बाढ़े दाम।* 

 *दोनों हाथ उलीचिये, यही सयानों काम।।* 


         सद्गुरु कबीर के सबले बड़े ग्यान के बात ऐ रहिस के ओमन गृहस्थ अउ विरक्त दुनों ला मुक्ति के अधिकारी मानिन। कबीरपंथ मा घर परिवार छोड़ के जंगल पहाड़ मा परमात्मा ल खोजे बर नी कहे गे हे, न ही यज्ञ-हवन करे बर, न ही माला जपे बर कहे गे हे। कबीर पंथ मा सहज उपासना पूजा-पाठ के विधान हावय जेला स्त्री-पुुरुष दोनों कर सकत हें। वास्तव म कबीर पंथ ला ‘पारिवारिक धर्म पंथ’ कहे जाय ता कोई बड़े बात नी होय।

संत कबीर के जीवन दरसन के महात्मा गांधी के उपर बहुत प्रभाव पडि़स। संत कबीर अहिंसा अउ सत् के रद्दा मा चले के उपदेस जीवन भर दीन, तव गांधी जी ह सत्य अउ अहिंसा ला स्वराज के लड़ाई मा अपन हथियार बनाईन। कबीर साहब के पालन-पोसन जुलाहा परिवार मा होईस, ते पाय के सूत काते के चरखा हा जीवन भर ओखर साथ रहिस। गांधीजी घलो चरखा ला अपनाईस अउ स्वराज के लड़ाई मा चरखा ला लेके चलिन। वास्तव मा चरखा मा लगातार कर्म करे के मर्म छुपे हे। लइका जवान, बूढ़ा, नारी-पुरुस सबो कोई चरखा मा सूत कात सकत हें दिन मा घलो अउ रात मा घलो। एमे बहुत जादा श्रम के आवश्यकता नि होय, फेर एला सबो कोई लगातार चला सकत हे।

         सद्गुरु कबीर साहब हा छै सौ बरस पहले मनुष्य जाति के उत्थान पर जो उपदेस दे रहिन, ओहा आज घलाव वइसनेच प्रासंगिक हे। मानव समाज हा हमेसा सद्गुरु कबीर के रिणी रही।


 *सत्गुरु हम सू रीझि करि, एक कहा परसंग।* 

 *बरसा बादल प्रेम का, भीग गया सब अंग।।* 


         सद्गुरु कबीर साहेब के जीवन दर्सन अउ समाज सुधार बर ऊँकर उपदेस हर मध्यकाल के भारतीय समाज के ऊपर अतेक जादा प्रभाव पडि़स के उन-ला ज्ञान-दीप लेकर अवतरित आत्म-ज्ञानी संत माने गईस। सद्गुरु कबीर साहेब के अवतरन मध्यकाल मा- अइसे समय मा होइस जब राजा-महाराजा-नवाब-सामंत मन के आपसी लड़ाई के कारण पूरा भारतीय समाज आतंकित रहिस। लूटमार, हत्या, बलात्कार जइसे जघन अपराध ले आम आदमी अपन रक्छा करे में असमर्थ रहिन। तब सद्गुरु कबीर साहेब ह आम आदमी मन में आत्मबल के संचार करके ओला नवा रद्दा दिखाईन। हिन्दु-मुसलमान समुदाय म व्याप्त पाखण्ड, कुरीति, भ्रमपूर्ण आचरन के निंदा के साथ-साथ क्रूरता अउ हिंसा के उपहास करिन अउ ओला रोके प्रयास करिन।


 *ना जाने तेरा साहिब कैसा है।* 

 *मस्जिद भीतर मुल्ला पुकारे, क्या साहिब तेरा बहिरा है?* 

 *चिउंटी के पग नेवर बाजे, सो भी साहब सुनता है।* 

 *पंडित होय के आसन मारें, लंबी माला जपता है।* 

 *अंदर तेरे कपट कतरनी, सो भी साहब लखता है।* 

 *सब सखिया मिलि जेवन बैठी, घर भर करै बड़ाई।* 

 *हिंदुअन की हिंदुवाई देखी, तुरकन की तुरकाई।* 

 *कहै कबीर सुनौ भई साधो कौन राह है जाइ।।* 


       ग्यान-दीप ले के अवतरित संत कबीर ल केवल गुरु नि माने गईस बल्कि उन ला सत् के राह दिखईया अर्थात् सद्गुरु के रुप मा भारतीय समाज ह मान्य करिस। हिंदू अउ मुस्लिम दुनो समाज के रहईया मन कबीर साहेब ल सद्गुरु के रूप मा जानिन, मानिन अउ उन ला ईश्वर के साक्षात् रुप मान के पूजिन। गुरु के बारे म संत कबीर ह कहिन -


 *गुरु कुम्हार सिष कुंभ है, गढि़-गढि़ काढ़ै खोट* 

 *अन्तर  हाथ  सहार  दे,  बाहिर  बाहे  चोट।।* 


         अर्थात् गुरु कुम्हार ए अउ सिस्य कुंभ (घड़ा) हे। जइसे कुम्हार कच्चा घड़ा के भीतर एक हाथ ले सहारा दे थे अउ दूसर हाथ ले बाहर से चोट मार-मार के घड़ा ल ओकर आकार देथे अउ साथ-ए-साथ घड़ा बनात जतका भी कंकड़-रोड़ा आदि मट्टी म मिलथे ओला चुन-चुन के फेंक देथे वइसने गुरु ह सिस्य ल सही आकार देथे अउ सही रद्दा दिखाथे।


- वसन्ती वर्मा, बिलासपुर

No comments:

Post a Comment