Friday, 26 July 2024

दीपक' कभू नइ बुझाय-*


 *'दीपक' कभू नइ बुझाय-*


      सियान मन केहे हे ये चोला ह माटी के आय। कतिक जान कोन, कइसन हवा, धुंका, बड़ोरा आही अउ माटी के काया ला भींजो के माटी मा मिला दिही, कोनो नइ जान सके। काली रतिहा जेवन के बाद चार्जिंग ले निकाल के  मोबाइल ल देखेंव। उँहा पुरवाही साहित्य समिति पाटेकोहरा के सँगवारी दुर्गेश सिन्हा 'दुलरवा' के एक मैसेज ह दिमाक ला सन्न कर दिस। पढेंव फेर मन माने बर तैयार नइ होइस। अइसे लगिस बिजली के टू पिन ला लगात धोखा ले अंगरी ला लगा परेंव। अउ मोर मन अभी भरे बारिश ला छोड़के एक साल पीछू चिलचिलात गरमी के दिन में चल दिस।


        20 मई 2023 मंगलवार के  बिहनिया दसक बजे दुर्ग शहर ला देखत-देखत अउ बताये रद्दा मा पूछत-पूछत आखिर घर के पता ला पा डारेंन। दुआर बने चक-चकले साफ-सुथरा अउ आंट मन बने लिपाय रहय। तीरेच के एक ठन रुख के छैहाँ मा गाड़ी खड़े करके महूँ खड़े होगेंव। अब घर में जाये के हिम्मत नइ होय। गरमी मा कोनों सँगवारी नइ मिलिस त मेंहा अपन श्रीमती जी ला घलो लेगे रेहेंव। दूनो के हिम्मत नइ होय अंदर जाए बर। एक कनी के बाद एक झन मोठ डांठ बंगाली पहिरे बाहिर आइस अउ हमन ला भीतरी मा लेगिस।


       चारों मुड़ा ले घर अउ बीच में बैठक व्यवस्था बने रहय। पोहा चाय पानी के सँग सगा असन मान गौन पाके मन मा थोकिन हिम्मत आइस। अब लगत रिहिस जे काम बर आये हों, ओला पूरा कर डारहूँ। चाय पियत खोली भर लगे पोस्टर, फ़ोटो, मोमेंटो मन ल देखत मने मन खुश होत रहँव। उदुप ले आघू डहन ले एक झन पतला-दुबला शरीर ला एक झन सहारा देवत इही तीर लाइस, अउ सोफा मा बैठारिस। में देख के अंदाज लगा डारेंव कि इहिच हा हमर छत्तीसगढ़ के हरफनमौला कलाकार शिवकुमार 'दीपक' जी हरे। पांव-पैलगी करे के बाद बताएंव कि मोला गुरुदेव अरुणकुमार निगम जी हा भेजे हे। निगम सरजी के नाम सुनिस तहन मुस्कुराइस।


       जनकवि कोदूराम 'दलित' जी के साहित्य में पीएचडी करे के शुरुआत ले निगम सरजी के सँग गोठबात, पूछ-परख लेवत प्राथमिक डाटा संकलन अउ साक्षात्कार, भेंट मुलाकात, पुस्तक खोजई के दौर चलत हे। एक दिन बाते-बात मा शिवकुमार 'दीपक' के बात खुलगे तब निगम सरजी हा बताथे कि 'दलित' जी हा 'दीपक' जी के प्राथमिक शिक्षक आय। अउ उँकर प्राथमिक शिक्षा बैथसर्ट प्राथमिक शाला गंजपारा दुर्ग मा होय हे। मोर बर सोने मा सुहागा होगे। 'दलित' जी के बारे में कतको अकन बात पुछहूँ कहिके।  'दीपक' जी के बेटी अउ छन्द के साधिका शशि साहू दीदी ले गोठबात होइस। दीदी मोर बात ले खुश होइस अउ तुरते अपन भाई शैलेश साव जी के नम्बर दिस। मेंहा उंखर संग बात करके आय के दिन ला बता दे रेहेंव।


     शैलेश भैया हमरे तीर बइठे रिहिस। अउ कुछु लगही का भैया,  चाय लांव का भैया अइसे कहय। में आश्चर्य भाव ले देखेंव। शैलेश जी हा मोर मन ला तमड़ डारिस। कथे हमन पिताजी ला भैया कथन  सहारे जी! मेंहा आश्चर्य मिश्रित भाव बनाके हाँसेंव, ठीक हे भैया कहत। घर के मन सबो बात ला बता डारे रिहिन होही, मोला ज्यादा नइ तिखारिस। फेर कोन गाँव ले आये हस, कहाँ रथस, का करथस जइसन सवाल पूछबे करिस। मेंहा अपन मुख्य बात ला रखे बर देखत राहंव। मौका मिलिस अउ अपन पहिली ले बनाये प्रश्नावली ला शुरू करेंव। 'दीपक' जी ला बताएंव कि मेंहा आपके गुरु जनकवि कोदूराम 'दलित' जी के साहित्य में  पीएचडी करत हों, अउ आपसे कुछ जाने, पूछे बर आये हों। दलित जी के नाव ला सुनिस तहन मोर तीर बनेच देखिस अउ किहिस- हाँ... जानथों मेंहा! वोला, मोला पढ़ाए हे। गंजपारा मा रहय अउ पढ़ाए। फेर किहिस- 'दलित' बढ़िया गुरुजी रिहिस। हमन ला पढ़ात-पढ़ात अब्बड़ हँसवाय। अउ स्कूल मा अब्बड़ नाचा-गम्मत, राउत नाचा नाचे बर सीखोय। ओहा लिख-लिख के देय अउ याद करके बोले बर कहय। हमन नाटक मन में घलो निकलन। 'दीपक' जी बताइस कि 'दलित' जी के काव्य-संग्रह दू मितान के सुप्रसिद्ध कविता "पियईया मन खातिर" के प्रमुख पात्र झंगलू अउ फगवा मा मेंहा झंगलू बने रेहेंव। अउ कविता के दू-चार लाइन गाके घलो सुनाइस।


"तँय कोन? अरे! झंगलू अस का?

जय हिंद, कहाँ ले आत हवस?

छाता के ओधा-ओधा मा,

तीरे-तिर कइसे जात हवस?"


       90 साल के उम्र होय के सेती सुने के क्षमता थोरिक कम हो गे रिहिस। फेर हौसला कम नइ दिखत रहय। उम्र के हिसाब ले बहुत मजबूत रिहिन। जोर से बोले मा सुने, तब जवाब देय। लगातार 2-3 घंटा बैठे के बाद धन्यवाद देवत घर जाये के बात बताएंव। तहन घर के मन ला अब्बड़ चिल्लाके बलाइस। अउ आये मा थोड़ा देरी होगे, तहन भड़क गे। तुमन सुनथो कि नइ नइ सुनो। फेर दउड़त एक झन भैया आइस, ओला कथे- मोर किताब ला लान के दे। ओ भैया लकर-धकर लाय बर चल दिस। ओकर आत ले अपन जम्मो पुरुस्कार, सील्ड, प्रमाण-पत्र मन ला लाइन से देखाइस। अउ मेंहा ओ दुर्लभतम जिनिस मन के फोटो खींचे मा मगन होगेंव। पीछू ओ भैया एक ठन किताब धरके आइस। फेर मोर खुशी के ठिकाना नइ रेहे गे। प्रो. शिवानंद कामड़े कृत "हरफन मौला शिवकुमार दीपक" ला ओकर हाथ मा दे दिस। फेर मोला कथे- येला पढ़बे, तोर बर देत हों। 90 साल मा पेन धरके लिख डारिस- "हेमलाल सहारे को भेंट करते हुए।" अउ अपन नाम लिख के अंग्रेजी मा दस्तखत घलो मारिस। 


         छत्तीसगढ़ सिनेमा के प्रारंभिक अवस्था ले अपन उम्र के सकत ले 'दीपक' जी कतको सांस्कतिक संस्था, टेलीफिल्म, हिंदी अउ छत्तीसगढ़ी फ़िल्म जगत के बेजोड़ हास्य व सम्पूर्ण कलाकार के रूप में काम करिस। कहि देबे संदेश, घर-द्वार, मोर छइहाँ भुइयाँ, मया दे दे-मया ले के, परदेशी के मया, तोर मया के मारे, कारी, टूरी नम्बर 1, लेड़गा नम्बर 1, मयारू भौजी, तीजा के लुगरा, बाँटा, सलाम छत्तीसगढ़ जइसे छत्तीसगढ़ी फ़िल्म के सँग हिंदी, मालवी, अफगानी, भोजपुरी फ़िल्म मा घलो बेहतर काम करिस। उन कलाकारी के हर रूप ला शिद्दत ले जीइस अउ छत्तीसगढ़ के सेवा मा अपन जीवन खफा के चिरकाल तक ले अमर होगे।


      'दीपक' जी जइसे विश्व स्तर के उम्दा कलाकार के सँग बइठ के मोला अब्बड़ नीक लगिस। मोर असन छोटे मनखे घलो उंखर तीर मा बइठ के छोटे नइ होइस, बल्कि बड़े असन जनाइस। जतके बड़े कलाकार रथे ओतके ओमन जमीन ले जुड़े रथे। येला मोला उंखर संग भेंट-मुलाकात मा  जाने बर मिलिस। उंखर अउ उंखर जम्मो घर भर के सादगी अब्बड़ पसंद आइस। शैलेश भैया सँग मैसेज में गोठबात होत रथे। अउ अपन कार्यक्रम छुरिया तरफ लगथे तो मोला फोन करके देखे बर जरूर बुलाथे।


    हमर शासन के तरफ के कतको झन कलाकार ला बड़े-बड़े पुरुस्कार मिलिस। शायद उंखर मूल्यांकन बने नइ होइस या स्वाभिमानी होय के सेती मांग नइ करिस। ये कहे नइ जा सके। फेर लगथे हरफनमौला शिवकुमार 'दीपक' जी सबो पुरुस्कार ले बड़े होगे हे। ओकर लाइक कोनो पुरुस्कार नइ हे। 


       अब तो उँकर देवलोक गमन होय के बाद उँकर नाव ले कला के क्षेत्र में पुरुस्कार देय के घोषणा होना चाही। तब उँकर कोनो कद के बराबरी कर सकत हे।


विनम्र नमन.....🙏🌸



हेमलाल सहारे

मोहगाँव(छुरिया)

राजनांदगाँव

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