छत्तीसगढ़ी बाल कहानी
वोखर किराया माफ कर दे पापा
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कमलेश प्रसाद शर्माबाबू
प्रियांशी अउ मुस्कान अब अच्छा अउ पक्का सहेली बन गे रिहिन।पिछले तीन साल मा तो जइसे ऊखर संबंध सगी बहिनी ले घलो वो पार होगे रिहिस। दुनोझन एक संघरा पूर्व माध्यमिक शाला मा पढ़त रिहिन।एके संघरा आना जाना पढ़ना खेलना घूँमना दुनोझन के चलय।प्रियांशी जब छठवी कक्षा मा रिहिस तभे किरायेदार बनके मुस्कान के अब्बू गुलजार ऊखर गाँव आय रिहिस।कोठार मा बने नवा पक्की मकान ल प्रियांशी के पापा वो मनला किराया मा दे रिहिस।गुलजार गाँव-गाँव मा फेरी लगाके कपड़ा बेंचे के काम करय अउ वोखर पत्नी सुल्ताना घर मा पीकू फाल लगाके मशीन चलावय,अच्छा खासा कमाई हो जाय ।बिल्कुल नियत समय मा नौकरी वाले मन बरोबर पाँच तारीक के वो अपन एडवांस किराया दू हजार रूपया मकान मालिक मुरली ल बिजली बिल सहित जमा कर दय।
कब काखर ऊपर कइसन मुसीबत आ जही केहे नइ जा सकय। फेर ये त्रासदी तो हमर देश के संग-संग कतको देश मन झेले रिहिन।पूरा कारोबार ठप्प होगे रिहिस,दू महिना के सख्त लाकडाऊन ह तो जइसे पूरा कनिहा ल टोर के राख दे रिहिस।आर्थिक स्थिति पूरा चरमरागे रिहिस।धंधा पानी सब चौपट होगे रिहिस। गुलजार ह कतको घरेलू समान टी वी, कूलर, आलमारी ल दुकान मनसे किश्त मा खरीदे रिहिस, आखिर कोन जानत रिहिस कि आफत बनके ये कोरोना महामारी आ जाही।ये बइरी के कारण आज हजारो लोगन के हाँसत खेलत जिंदगी बरबाद होगे।घर से न निकले के सरकारी आदेश घलो बिकट सख्त रिहिस।
कोरोना के डरावनी अउ भयानक तस्वीर के बीच कइसनो करके दू महिना के समय रोवत-धोवत कट गे , फेर ब्यापार करे के आजादी कोनो ल नइ मिलिस।गुलजार के चिंता धीरे-धीरे बाढ़े लागिस,अब तो किराया दे मा घलो भारी परेशानी आय लागिस।दूसर तरफ मकान मालिक मुरलीधर बेहद हि कठोर इंसान रिहिस लेन-देन के मामला मा अउ भारी सख्त राहय।किराया बर तो रोज दबाव डालय अउ रोज दू चार बात सुनाय बिना खाना नइ खाय ।संझा बिहनिया उदे पानी पियाय लागिस। गुलजार अउ सुल्ताना ल रातदिन नींद नइ आवय आखिर वोमन करय त का करँय,,, समझ नइ आय।
गुलजार हर समय मुसीबत मा अपन ससुराल वाला मनसे कुछ समय बर उधारी पइसा माँग लेवय फेर ये दरी तो उहू आसरा टूट गे।वोखर ससुर के ईलाज मा छय लाख रुपिया लगाय के बाद घलो वोला वोखर ससुराल वाले मन नइ बचाँ सकिन।वोहा कोरोना बीमारी ले संक्रमित होगे रिहिसे।बाँचे खोंचे उम्मीद ससुर के जनाजा के संग ही दफन होगे। फेर ये सब बात ल मकान मालिक ल कोन समझाँवय।मुरलीधर तो आज फटकार लगाय मा कोनो कसर नइ छोड़िसअउ वोखर सात पीढ़ी ऊपर पानी रिको के छट्ठी के दूध सुरता कराके राख दीस।मुरलीधर अभी-अभी नवा घर बनाय रिहिस हे अउ अपन मन जुन्ना घर में राहँय।नवा पक्की मकान ल किराया दे रिहिस हे घर के दू लाख करजा घलो मूड़ मा बोझा कस माढ़े रिहिस हे, ऊपर से किरायेदार चार महिना ले किराया बर तरसावत रिहिसे जइसने मुँह मा आय तइसने उराट-पुराट सुना दय,अउ अब तो पइसा पटा के घर खाली करे के फरमान घलो जारी कर दीस।
प्रियांशी पिछला दू दिन ले खाना पीना सब छोड़ दे रिहिस।अस्पताल मा डाँक्टर मन वोखर पूरा टेस्ट कराइन फेर कोनो बीमारी नइ निकलिस।डाँक्टर मन मुरलीधर ल सख्त चेतावनी दीस कि अगर प्रियांशी के इच्छा अउ भावना के ख्याल नइ राखे जाही त वोला बचाना मुश्किल हे।वोला कोनो बात से गहरा धक्का पहुँचे हे। साँझ के जइसे हि प्रियांशी ल घर लाय गिस,देखे बर मुस्कान वोखर अब्बू अउ अम्मी सबझन संघरा आइन।वोमन ल देख के प्रियांशी सिसक-सिसक के रोय लागिस, मुस्कान घलो फफक-फफक के रोय लागिस सब के आँखी नम होगे,अपने-अपन आँसू चूहे लागिस।
मुस्कान ल जइसे हि जानकारी होइस कि दू दिन ले प्रियांशी कुछु खाय-पीये नइहे, झट ले अपन मम्मी संग घर जाके एक बड़े कटोरा भर दाल खिचड़ी बनाके ले आइस अउ ले बहिनी खा,,,ले बहिनी खा कहिके खवाय लगिस।प्रियांशी ह रोवत-रोवत सबो खिचड़ी ल पेट भर खा डरिस। पापा मुरलीधर ह देख के अकबकागे, काबर कि वोहा तो पिछला दू दिन ले प्रियांशी ल खवाय के बिक्कट उपाय कर डारे रिहिस फेर प्रियांशी एक कँवरा घलो नइ खाय रिहिस।माँ गीतारानी के आँखी घलो डबडबा गे आँसू रोके नइ रूकय, संग मा मुरलीधर के आँसू घलो मउहा कस टपाटप चूहे लागिस।वोतके बेर प्रियांशी के दादा दादी मन घलो आगे। दादा दादी मन चारधाम यात्रा करे बर गे रिहिन फेर का करबे सख्त लाकडाऊन के सेती उही डाहर तीन महिना ले छेंकाय रिहिन।उहूमन नोनी के अइसन हालत ल देख के घबरागें।प्रियांशी वोमन ल पोटार-पोटार के रोय लागिस।मुरलीधर ह मुस्कान ल कीथे बेटी अब तैं रोज प्रियांशी ल अइसने आके खवाय कर कहत-कहत,,,गभरागे।
मुरली ह जइसे हि प्रियांशी के मूड़ मा हाथ फेरे ल धरिस प्रियांशी ह वोखर हाथ ल अपन हाथ मा धरके सिसक-सिसक के रोवत कहिथे,,,वोखर किराया माफ कर दे पापा,,,वोखर किराया माफ कर दे पापा अउ जोर-जोर से दहाड़ मार के रोय लागिस।
मुरलीधर के कठोर दिल आज चानी-चानी होगे आखिर उहू भी मनखे आय अउ हर मनखे के दिल मा कहूँ न कहूँ मानवता छिपे रहिथे वोखर पापा वादा करिस कि हाँ बेटी,,, मै तोर भावना ल समझ गे हँव कि तैं का कहना चाहत हस।ये कोरोना के त्रासदी मा जेन दुखी हे वोला अउ दुख नइ पहुँचावन अउ मिल-जुलके ऊखर सहायता करबोन। मैं तोला कसम देवत हँव बेटी कि आज से वोखर पूरा किराया माफ कर दे हँव अउ जब तक लाकडाऊन रिही तब तक अउ आगे चार महिना तक वोखर किराया माफ हे।अतका सुन के प्रियांशी के चेहरा म मुस्कान लहुटगे।
कमलेश प्रसाद शर्माबाबू
कटंगी-गंडई
जिला केसीजी छत्तीसगढ़
9977533375
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