Friday, 26 July 2024

छत्तीसगढी कहानी-- बदला

छत्तीसगढी कहानी-- बदला

                         चन्द्रहास साहू

                         मो 8120578897

चौमासा के घरी बरखा रानी अपन करिया-करिया चुन्दी बगराके आथे तब उमड़-घुमड़ के पानी गिरे लागथे। गरमी मा उसनावत जीव-जिनावर अउ पियास मा बियाकुल धरती दाई के ओन्हा फिले ले जम्मो कोती हरियर-हरियर दिखत हाबे। मेचका के टर्र-टर्र, झिंगुरा के झिंगीर-झिंगीर हा.... हा.... तो... तो..... अरई-तुतारी के राग-रंग,रिमझिम-रिमझिम, टिपीर-टिपीर, बरखा के स्वर लहरी अउ बादर के गरजना चिरीरिरी...फट.....। कभू संगीत के सातो स्वर हाबे तब कभू डरभुतहा लागत हाबे वातावरण हा।

फेर..... माहुर लगे दू गोड़ जंगल के रद्दा रेंगत हे। तब कोंवर भुइयां मा मोटियारी गोमती के पाॅंव के छप्पा, छपा जावत हाबे। शीतला तरिया के चढ़ाव-उतार मा चिकचिकावत पाॅॅंव-पाॅंव के चिन्हा गजबेच सुघ्घर लागत हाबे।

"....... अब्बड़ सुघ्घर दिखत हाबे दाई पाॅॅंव-पाॅंव के चिन्हा हा।''

आठवी क्लास के लइका किहिस अउ देखे लागिस अपन पाॅंव के चिन्हा ला। अब उछाह मा दूनो कोई हाॅंसे लागिस खुल-खुल हाॅंसी। ....अउ अपन दाई संग अपन गोड़ ला देखे लागिस। मटासी माटी अउ मुरुम ले लगे माहुर ला। मुड़ी मा टुकनी, टुकनी मा बासी-पेज,हॅंसिया, डोरी, खांध मा टंगिया अउ कोस्टहू लुगरा माड़ी ले उप्पर....बस अतकी तो सवांगा आवय मोटियारी के ।.... अउ लइका तो स्कुल ड्रेस मा जावत हाबे जंगल।... बघमार जंगल। अब जंगल अमरके अपन नत्ता-गोत्ता, लाग-मानी ला जय जोहार अउ बंदगी करत हाबे। कतका सुघ्घर होथे मनखे अउ प्रकृति के नत्ता हा ?

"जय जोहार हो महुआ दाई !''

"पाॅंव पैलगी हो सरई बड़की काकी !''

"राम राम हो मंझली भौजी तेंदू !''

"राम राम बहिनी सीताफल !''

"सीता राम हो परसा कका !''

"गुड मार्निंग हो सइगोना मैडम !''

मोटियारी गोमती बड़का रुख ला दुरिहा ले पैलगी करत हाबे अउ नान्हे झाड़ झखोरा मन ला हला-डोला के दुलार करत हाबे। ...अउ जम्मो रुख राई हा अपन पाना पतई मा माढ़े पानी के छिटका छितके आसीस देथे अपन बेटी गोमती अउ नतनीन फुलवा ला। सिरतोन कतका सुघ्घर होथे प्रकृति अउ मनखे के बीच के मूक संवाद हा।

सब बने-बने हावव ना,मोर मयारुक हो ... ! मोटियारी गोमती अगास के अमरत ले चिचियातिस।

"हांव ! .....बने-बने।''

चिरई चिरगुन जीव जिनावर रुख राई ले प्रतिध्वनि आतिस। जम्मो कोई उछाह मनावत दुलार देतिस मीठ आमा-जाम, टोट्ठाहा कसैला जामुन, अम्मट अमली अउ चार,तेंदू फन्नस सब रोदरिद ले गिरे लागथे। मोटियारी गोमती अपन ओली मा अउ नोनी फुलवा अपन फ्राक मा‌ सकेले लागिस। ...फेर आज तो बड़की काकी सरई ले कुछू स्पेशल जिनिस मांगत हाबे। .......सरई बोड़ा खोजत हाबे गोमती हा।

"दाई! सरई बोड़ा का हरे जानथस ?''

गोमती के चेहरा जोगनी बरोबर बरिस अउ बुतागे। अपन ननपन मा अपन दाई ला इही प्रश्न पुछे गोमती हा बोड़ा निकालत-निकालत। धमतरी के जंगल मा कटाकट सरई रुख राहय। उदुप ले सुरता आगे। दुगली के जंगल ला तो देख के अंग्रेज मन के आँखी फुटगे अउ रेलवे के स्लीपर बनाये बर जंगल के भादो उजाड़ करे लागिस। सरई रुख ला विदेश लेगे बर रेलगाड़ी चलाये लागिस। दुगली सिहावा बोरई ले ...ओड़िशा। रिही-छिही,  तिड़ी-बिड़ी होगे। सिरतोन शहर के विकास बर गाॅंव के कतका विनास होगे ? कोन हाबे जिम्मेदार ?

गोमती गुने लागथे। अपन ननपन ला सुरता घला कर डारिस।

"दाई!भैरी होगे हावस का ? मेंहा पुछे हॅंव सरई बोड़ा का हरे ? कइसे फुटथे जानथस ?''

''हम अप्पढ़ का जानबो वो ! चौमासा के घरी सरई रुख के जर मा फुटू बरोबर फुटथे बोड़ा हा वोतकी ला जानथन वो ! तेहां बता तुमन ला तोर मास्टर बताये होही ते ...!''

दाई गोमती किहिस। फुलवा तो मन लेये बर पुछत हाबे भलुक जानथे जम्मो ला।

"दाई ! जब असाढ़ सावन के महिना मा दंद कुहर अब्बड़ रहिथे वो बेरा वातावरण मा आद्रता माने नमी घला अब्बड़ रहिथे। तब सरई रुख के जर ले एक केमिकल के रिसाव होथे तब वोमा फंगस अपन ग्रोथ करथे अउ इही ला हमन बोड़ा कहिथन। अइसना फुटू घला होथे लाल, नीला, पीयर, हरियर, संतरा रंग के फुटू ला नइ खाना चाहिए। वोमा टाक्सिन रहिथे। भलुक सादा रंग अउ गोल मुड़ी वाला फुटू सुघ्घर होथे। चिटको, सुगा, छेरकी, चरचरी कठवा करिया तितावर जम्मो जहरीला होथे।''

फुलवा सुरता कर करके जम्मो फूटू के किसम ला बताइस हाथ ला झुला-झुला के। गोमती के चेहरा दमकत हाबे अब बिद्वान बेटी ला देख के। वोकर मनमोहनी बेटी सिरतोन आज मन ला मोह डारिस। बेटी जतका पढ़बे वोतका पढ़ाहूं। एक बेरा कमती खाहूं, तन के जम्मो गाहना ला बेच दुहूं। कड़ी मेहनत करहूं, भलुक  करजा घला कर लुहूं फेर तोला अब्बड़ पढ़ाहू गोमती किरिया खा डारिस मने-मन। ...अउ गरीब घर का गहना ?  नरी मा मंगलसूत्र अउ गोड़ के बिछिया- सुहाग के चिन्हारी। अतकी तो हाबे गोमती करा । गोमती अउ फुलवा सरई बोड़ा  निकाले लागिस अब। सरई के जर ला चाकू ले हलु-हलु खरोचे लागिस अउ बोड़ा ला बिने लागिस। सुघ्घर गोल-गोल बोड़ा। माटी मा सनाये भुरवा-भुरवा बोड़ा ला देख के फुलवा मुचकावत हाबे ।‌ तब दाई गोमती घला अघागे हाबे सरई काकी के मया पा के। आज अपन बेटी मन ला बोड़ा के रुप मा अब्बड़ दुलार देवत हाबे। .... नान्हे टुकनी भरगे अब बोड़ा ले। गोमती रुख ला पोटार लिस अब धन्यवाद देये के भाव लेके।... अउ सरई काकी आसीस देवत हाबे अपन पाना-पतई ला झर्रा के। जइसे काकी सरई के नेवता घला आवय बेटी हो काली झटकुन आहू अइसे। 

बोड़ा के टुकनी ला फुलवा बोहे हाबे अउ गोमती अब बियारी बर लकड़ी सकेलत हाबे। .....फेर फुलवा ला ?

अब्बड़ भुख घला लागत हाबे।....अउ अब जंगली जानवर अउ हाथी के घला डर बने हाबे।''

"डर के तो गोठ हाबे बेटी ! मनखे हा जंगल मा घर बनाही तब जंगल के रहवासी कहाॅं जाही...? कतका सहही एक दिन पलट के जवाब तो दिही येमन ? अपन घर ले खेदारे के उदिम तो करही ।''

"अतका दुरिहा ले काबर लकड़ी सिल्होथस दाई ! गाॅंव तीर ले सकेल लेबो लकड़ी ला। चल घर जाबोन अब झटकुन।

"गाॅंव तीर मा सुक्खा लकड़ी नइ मिले बेटी ! भलुक दुरिहा ले बोहो के लेग जाहूं फेर तीर के हरियर रुखवा मन ला नइ कांटव वो ! जीयत मनखे के गोड़-हाथ ला मुरकेटबे तब पीरा होथे वइसना रुख-राई ला घला पीरा होथे। वहूं मन दंदरत ले रोथे फेर मनखे तो भैरा आवय। आने के दुख नइ दिखे अउ‌ नइ सुनावय।''

"हंव दाई ये रुख-राई मन सिरतोन सजीव होथे। सांस लेथे, बढ़वार होथे...। हमन ला जीवन दायिनी आक्सीजन देथे।...अउ रुख-राई मा देवता मन के वास होथे। पीपर मा विष्णु, बरगद मा शिव जी, लीम मा माता शीतला अउ दुबी घास मा गणपति जी बिराजथे दाई ! हमू मन जम्मो ला पढ़थन वो अपन क्लास मा।''

गोमती अपन गुणवती बेटी के गोठ सुनके मुचकावत हाबे।  कोनो कोती ले अगास मा करिया बादर फेर आइस अउ टिपीर-टिपीर फेर शुरु होगे। ....अउ गाॅंव के साहड़ा देव ला नाहकिस अउ अब मुसलाधार बरसे लागिस। लकर-धकर लकड़ी ला तिरियाइस अउ अपन घर मा खुसरगे अब दूनो कोई।

             आज सिरतोन ये करिया बादर अब्बड़ पानी दमोरत हाबे। बड़का बूंद अइसे कि खपरा फुट जाही। ...अउ खपरा नइ फुटही अभी तभो का बांचे हाबे गोमती घर। छानी अब्बड़ चुहे लागिस। लोटा थारी गिलास कटोरी जम्मो ला बगरा दिस पालिथीन बनइया वैज्ञानिक मन ला पैलगी करत चाउर के मइरका ला तोपीस-ढ़ाकिस तभो ले घर ला कइच्चा होये ले नइ बचा सकिस गोमती हा। जम्मो कोती अब रोहन-बोहन होगे। ...अउ आधा घर उजार परे हाबे तौन ला देखथे ते आँसू बोहा जाथे। 

                 दुब्बर ला दू असाढ़ कस दुख होगे हाबे गोमती ला। हाथी दल आके गोमती के घर के भादो उजार कर डारिस। गाॅंव के आने घर घला नुकसान होइस फेर गोमती के तो सर-बसर चल दिस। ......अउ मुआवजा ? जेकर चौरा भसकिस तौनो ला अब्बड़ मुआवजा मिलिस साहेब  !  ......फेर गोमती बर तो अटागे। सिरिफ बीस हजार रुपिया मिलिस। वोतका मा का होही..? बीस हजार रुपिया मा तो नेंव घला नइ निकले। कोतवाल के परसार के भसकाहा दीवार टूटिस अउ मुआवजा के पइसा मा चमकट्ठा घर बनगे। सरपंच घर तीन मंजिला मकान ठाड़े होगे। ...अउ पटइल घर चकाचक टाईल्स लगगे। 

"चढ़ोतरी चढ़ाबे तभे तो बुता होही भौजी गोमती ! फोक्कट मा तो देवता घला नइ माने। कुकरी बोकरा चढ़ाये ला परथे।'' 

कोतवाल किहिस अउ हाॅंसे लागिस। 

"तब लेग जा न बाबू करिया कुकरी ला सगा समझ के खा लुहूं।''

"......वो तो खाबोच भौजी! तुंहर देये कुकरी ला अउ बोकरा ला घला फेर अतकी मा बुता नइ बने। बुता बनाये बर फिफ्टी परसेंट देये ला परथे। मुआवजा के फिफ्टी परसेंट  मिलही तब अउ वोकर पहिली पचास हजार एडवांस देये ला परथे।''

कोतवाल एजेंट बरोबर काहत रिहिस। गोमती संसो मा परगे। वोतका पइसा तो बाप पुरखा एक संघरा नइ देखे हाबे। अउ कतको खुरच लिही तभो वोतका के  बेवस्था नइ हो सके।..... अउ बेवस्था हो जाही तब ? घूस देना सही रही....? नही, बुढ़ादेव ! आंगा महराज ! येहां तो पाप आवय। .....अउ मेंहा पाप मा बुड़के अपन बेटी ला सुघ्घर मनखे नइ बना सकंव। घर नइ बनही ते का होही ? छइयां तो मिल जाही....? गोमती गुणत हाबे। 

"का करबे भौजी ! साहब मन ला अब्बड़ पइसा बांटे ला परथे। ले, भइयां संग सुंता-सलाह होके बताबे।'' 

कोतवाल किहिस अउ टूंग-टूंग रेंग दिस। 

...अउ सिरतोन जम्मो घर भक्कम पइसा मिलिस मुआवजा के फेर गोमती घर बर सरकार के खजाना कमती परगे।....बीस हजार भर मिलिस। इही गोठ ला पुछे बर गोमती के गोसइया हा जिला के फारेस्ट आफिस चल दिस अउ उही हा जी के काल बनगे। तोला देख लुहूं किहिस अधिकारी हा अउ सिरतोन देख डारिस। अपन बियारी बर सुक्खा लकड़ी ला बिन के लानत रिहिस अउ जंगल कांटे के धारा लगगे। जेल मा हाबे दू बच्छर होगे। जबानत घला नइ मिले।


आज गोसइया के अब्बड़ सुरता आवत हाबे। सुरता करके ससन भर रो डारिस गोमती हा।


"गोमती !  का करत हावस वो...?''

बड़की आवय आरो करइया। गाॅंव के गौटनीन  आवय बड़की हा। 

"आवव काकी ! भीतरी कोती।''

गोमती अपन घर के भीतरी कोती सत्कार करत बलाइस।

"काला जाबे गोमती तुंहर घर। पानी चुहई मा तुंहर घर तो गैरी माते हाबे। जम्मो कोती छिपीर-छापर हाबे। न बइठे के जगा, न ठाड़े होये के। बैंगलोर ले मोर बेटा के पठोये माहंगी सैंडिल हा मइला जाही। वोकर ले तो गली के सीसी रोड सुघ्घर हाबे।''

बड़की सीसी रोड वाला गली मा ठाड़े-ठाड़े किहिस। बड़की के गोठ सुनके मुॅंहू करु होगे गोमती के। चुरचुर लागगे गोठ हा। मुरझाये चेहरा मा हाॅंसी-मुचकासी लानत किहिस।

"कइसे आये हस काकी ? बता ।''

"आज सुघ्घर मौसम हाबे। चार महिना गरमी मा उसनावत रेहेंन ते चौमासा के पानी ले सबके मन हरियावत हाबे। शहर ले बहु-बेटा अउ देवर-देवरानी माई-पिल्ला घला आय हाबे।  जम्मो परिवार जुरियाये हाबन तब ये बरसात मा पकौड़ा खाये के मन हाबे। बरा बनाये बर उरीद अउ मूंग दार ला घला भिंगो डारे हॅंव। झटकुन चल अउ बनाबे। तोर हाथ के बनाये बरा अउ पताल चटनी अब्बड़ मिठाथे। पीतर पाख मा खवाये रेहेस तौन ला अब्बड़ सुरता करथे मोर बहुरिया हा।''

"हंव !''

बड़की किहिस अउ गोमती हुंकारु दिस। का करही बपरी हा ? इही बहाना दू पइसा मिल घला जाथे। अउ कभु-कभु तो बांचल-खोंचल घला खाये बर मिल जाथे। तभो ले फुलवा ला एक फोहई के चाउर चढ़ाये बर घला किहिस।

गोमती दरपन मा अपन चेहरा देखिस कंघी मा आगू के बाल ला सोझियाइस अउ नानकुन लाल टिकली लटका के चल दिस बड़की घर।

बड़का घर-दुवार, टीवी, फ्रिज, एसी, टाइल्स संगमरमर लगे खोली-कुरिया। चकाचक करत इंटीरियर डेकोरेशन जतका मनखे नइ राहय वोकर ले जादा कुरिया टायलेट....। अब्बड़ भागमानी आवय वो ये बड़की के परिवार हा। पाछू जनम मा कोनो पुण्य करे होही तेखर सेती ये जनम मा सरग कस सुविधा मिलत हाबे। गोमती बरा बनाये बर दार पिसत हाबे सील पट्टी मा अउ गुणत हे। 

"मिक्सी मा कतको सुघ्घर दार पिसा जावय फेर सुवाद तो सील पट्टी मा आथे।''

"हांव काकी ! सिरतोन काहत हावस।''

बड़की अब गोमती ला पंदोली देये लागिस अउ गोठ-बात घला होइस। शहरनीन देवरानी स्वेटर बुनत हाबे अपन नाती नातिन बर। बड़की के बड़की बहुरिया लइका सम्हाले हाबे अउ नान्हे मास्टरीन हा देवरानी के इंजीनियर  बहुरिया  संग मेहंदी लगावत हाबे। बबा जात मन बैठक रुम मा टीवी देखत हाबे अउ राजनीतिक गोठ-बात करत हाबे। बड़की के गोसइया हा गाॅंव के खेती-बाड़ी के हियाव करथे अउ छोटका भाई हा पहिली फारेस्ट मा रेंजर रिहिस फेर अब बड़का अधिकारी बनगे हाबे। जम्मो कोई आज जुरियाये हाबे गाॅंव मा अउ बाचे हाबे तौनो आवत हाबे। रेंजर के नान्हे बेटा-बहुरिया घला अब अमरतेच होही। ये जम्मो कोई मन अइसना सकेलाथे अउ बरसात के मजा लेये के संग कभु-कभु खेती-किसानी के हाल-चाल ले जानबा हो जाथे।

               बड़की के पंदोली ले गोमती हा  जम्मो तेल-तेलई ला बना डारिस अब,बरा भजिया मिरचा भजिया गुलगुला  ला। गोमती अब परोसे के तियारी करत हाबे फेर मन मा अब्बड़ गोठ घला उमड़त हे। बेरा-बेरा मा रेंजर कका ला अपन गोसइया बर अरजी कर डारे हाबे तभो ले अउ पुछे के साध लागत हाबे।

"सुघ्घर बनाये हस गोमती ! तोर हाथ के बरा खाबे ते दाई के सुरता आ जाथे वो।''

बड़का किहिस गोमती के तारीफ करत।

"...अउ ये चिरपोटी बंगाला के चटनी ? सेजवान चटनी घला फेल हाबे हा...हा..।''

रेंजर बाबू किहिस अउ हाॅंसे लागिस। गोमती ला अइसे लागिस जइसे राजा हा उछाह होगे। गोमती के अंतस के अटके गोठ अब उछाल मारत हाबे। मुॅंहू मा गोठ अउ आँखी मा आँसू तौरे लागिस। 

"रेंजर कका ! मोर बनौती बना दे गा ! हम गरीब मन के सबरदिन सुध लेवइया आवव तुमन। मोर गोसइया ला छोड़ा दे कका !''

"मोर गाहना जेवर अन-धन कही नइ बाचिस कका पुलिस कछेरी मा। तिही कुछू कर ....अब तोरे आसरा हाबे।''

गोमती के आँखी ले आँसू बोहागे अउ तरी-तरी दंदरे लागिस। 

"हा... हा...... तोरो घरवाला हा तो अब्बड़ अइबी हाबे गोमती ! राजनीति करे ला धर ले रिहिस। दू मुठा खावव अउ परे राहव ये जंगल मा तुमन। ....का‌ कमती हाबे इहां। अभिन मुआवजा नइ मिलिस ते का‌ होगे..?  अउ मिल जाही  कभु...? अब न हाथी हा आये-जाये ला छोड़े अउ न तुमन जंगल छोड़ो। बनत रही प्रकरण। मिलत रही मुआवजा।''

रेंजर साहब अपन बड़का बिल्डिंग ला ससन भर देखिस अउ मिर्ची भजिया ला मसकत किहिस। .... फेर चुरपुर गोमती ला लागगे।.... गोठ के चुरपुर। 

"आजकल भ्रष्टाचार अब्बड़ बाढ़गे हाबे गोमती। जम्मो कोती चढ़ोतरी चढ़ाबे तब बुता हा सिद्ध होथे। ...... तोर करा का हाबे देये के ?''

रेंजर बाबू गोमती ला अपन एक्स-रे आँखी ले देखत किहिस।

"एक गोठ हाबे गोमती .....''

गोमती के चेहरा मा जोगनी बरे लागिस।

"तोर बेटी ला हमर मन संग शहर पठो दे गोमती ! खवई-पियई, पढ़ई-लिखई के जिम्मा मोर रही। 

"....अउ बदला मा का लेबे रेंजर कका ?''

गोमती मन ला पोठ करत किहिस। 

"......कु...कुछू नही । शहर के दू कुरिया के साफ-सफई कर दिही।  बाकी रंधई-गढ़ई तो बहुरिया मन कर डारथे। तिही तो कहिथस लइका ला पढ़ाये बर कुछू भी कर लुहूं अइसे। शहर मा कामवाली के अब्बड़ समस्या हाबे। मोला थोकिन बुता करइया मिल जाही अउ तोर बेटी ला सुघ्घर स्कूल।''

गोमती अब धर्म संकट मा परगे। 

गोमती ला अपन बेटी ला पढ़ाये-लिखाये के अब्बड़ साध हाबे। कोठा-कोठार, जल-जंगल-जमीन जम्मो जगा लइका ला पढ़ाये के ढिंढोरा पीट डारे हाबे फेर कइसे पढ़ाये ?..... ये तो सुघ्घर मौका हाबे। गोमती के मन मा मथनी चलत हाबे। फेर का करही ? 

"एक उपाय अउ हाबे।''

"का ।''

"मेन रोड ले लगे दू एकड़ खेत ला दे दे गोमती ! ताहन कुछू उदिम करबो तोर गोसइया ला छोड़ाये के।

"उही बंजर खेत हा तो बांचिस कका ! न उहा धान होवय ना उरीद मूंग ।''

"वोकरे सेती तो कहिथो मोर बेटा-बहुरिया के नाव मा चढ़ा दे ताहन रजिस्ट्री के बिहान दिन तोर गोसइया आ जाही.....?''

"आज आवत घला हाबे बेटा-बहुरिया मन हा इही गाॅंव। गोठ-बात कर लेबो। ...अउ बहुरिया के अगले महिना बर्थडे घला हाबे। बहुरिया के नाव ले तोर खेत मा पेट्रोल पंप खुल जाही तब बहुरिया ले जादा वोकर विधायक ददा हा उछाह हो जाही। अब तोर हाथ मा हाबे गोसइया कब आही........छुटके।'' 

रेंजर साहब किहिस अउ गोमती के आँखी कोठ मा टंगाये हिरण ला दबोचे बघवा के फोटू मा गड़ गे।

"सिरतोन कका !''

"हंव!''

अब तो कोनो रद्दा नइ दिखत हाबे गोमती ला। सिरतोन अब खेत के बली चढ़ाये ला परही। भलुक कतको बंजर कहि ले तभो ले घर खरचा के पुरती उरिद मूंग तो हो जाथे।  गोमती गुणत हाबे।


"कका ! कका....!

तोर छोटे बेटा-बहुरिया.........?''

गाॅंव के एक झन जवनहा आइस धकर-लकर अउ कुछू बताये के उदिम करिस फेर नइ बता सकिस।

"का होगे रे ?''

रेंजर किहिस वोकर रोनहुत चेहरा ला देख के अउ अब तो कोतवाल पटइल मन घला दोरदिर ले आगे। 

"रेंजर कका ! तोर बेटा-बहुरिया ला हाथी पटक-पटक के मार डारिस।''

"सब राई-छाई होगे। रद्दा भर लहू बोहाये हे।''

"अंग-अंग बिखरे परे हाबे।"

"कोनो जगा हाथ परे हाबे तब कोनो जगा गोड़ अउ छाती।''

"उकर कार ला तीस पैंतीस ठन हाथी दल घेर डारिस अउ......।''

बतइया मन... नइ बता सकिस भलुक जम्मो कोती रोवा-राई परगे। रेंजर अउ घर के जम्मो कोई अब जंगल कोती दउड़े लागिस।

गोमती घला दउड़त हाबे पाछू-पाछू। आज जंगल के जम्मो लरा-जरा, रुख-राई, नदिया-पहार  बर रिस लागत हाबे। गाॅंव अवइया मन के रक्षा नइ कर सकिस। 

कइसे  सरई बड़की काकी...? 

कइसे महुआ दाई ...?  

कइसे तेंदू कका...? 

कइसे सागौन मैडम...? 

काबर मूक हाबो तुमन ! 

गोमती सन्न होगे अउ कान सून्न। 

"सी.........टी.........!''

कान बाजे लागिस अउ जीव-जिनावर,नदिया-पहार, रुख-राई जम्मो के एक संघरा आरो आइस गोमती के कान मा।

"अपन बेटी के अहित करइया ला छोड़ देबो का ?''

"जल जंगल अउ जमीन के बिनास करइया नइ बांचे अब ?''

"मोर मयारुक बेटी नातिन ला दुख देवइया मन ला छोड़ देबो का ?''

"जौन जइसे बोही तइसन लुही गोमती! येहां प्रकृति दाई आवय बिन बदला लेये नइ छोड़े।''


गोमती बेसुध होगे अब। 

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चन्द्रहास साहू द्वारा श्री राजेश चौरसिया

आमातालाब रोड श्रध्दानगर धमतरी

जिला-धमतरी,छत्तीसगढ़

पिन 493773

मो. क्र. 8120578897

Email ID csahu812@gmail.com

   

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