संस्मरण
डोंगरगढ़ यात्रा
हमर संग म एक डोकरी चघिस ।ओ समय म सीढ़ी नई बने रहिस हे 1974 के बात आय ।मै अपन ममा के बेटी शशि दीदी संग गे रहेंव।ओखर एक बछर के बेटा के मुंडन कराये बर गे रहेन ।
हमन करीब तीन बजे जघे बर शुरु करेन ।एक चट्टान के बाजू म बड़े जन खोह रहिस हे ।जीजीजी भागबली वर्मा डिप्टी रेंजर रहिस हे ।वो ह कहिस के ये मेर शेर हावय ओखर गंध आवत हावय ।ओखर ठीक पहिली एक झन डोकरी मिलिस ।एक ठन लौठी धरे रहिस हे ।हमर सियान मन लुगरा पहिरंय वइसने लुगरा पहिरे रहिस हे ।मइलखोड़हा लुगरा ।बाल बिखरे रहिस हे ।
हमन ओ खोह.ल देखे बर चल देन ।बाद म देखेन के डोकरी आगू आगू जात हे ।हमन भी दीदी के कारण बइठत बइठत चढ़त रहेन ।
जब उपर के सीढ़ी ल चढ़े के शुरू करेन तब ओ ह पाछू म रहिस हे ।हमन चढ़ गेन ।उहें नाऊ रहिस हे ।लइका के मुंडन होगे ।ओ डोकरी दिखत नई रहिस हे ।अब सांझ होय ले लगगे ।पुजारी ह कहिस अब जल्दी उतरव नही त रात हो जही ।जानवर आ जथे ।हमन कहेन एक डोकरी हमर आगू आगू.आवत रहिस हे..ओ ह पहुँचे नईये .पुजारी कहिस अकेल्ला डोकरी नहीं भाई नई आ सकय ।एक पानी भरत रहिस हे तेन ह हऊंला ले के उतरीस ।हमन उतरेन ।पुजारी उतरिस ।डोकरी कोनो मेर नई मिलिस ।नीचे के दुकान मन म पुछेंन त सब कहिन के अइसना कोनो डोकरी इंहा नई दिखय ।अब तो हमन थरथरा गेन।कोन रहिस हे ।भूत परेत तो नोहय.।हमन शेर के बात बतायेन ।डोकरी अऊ शेर के बात सुन के नीचे के पुजारी कहिस भागशाली आव भाई तुमन देवी के आरो पा लेव अउ देख घलो लेव ।वो देवी आय अपन सवारी संग साक्षात तुमन ल अपन धाम तक लेगे ।
अइसे हमन वास्तव म अनुभव करे रहेन ।मोर काका ( पिताजी ) डोंगर गढ़ के हाई स्कूल म प्राचार्य रहिस हे ।मोर बड़े बहिनी डा. सत्यभामा आड़िल के बाद कोनो संतान नई रहिस हे ।तब हमर बड़े दादी ह.दूसर बिहाव करे बर कहि दिस ।काका चार साल तक गांव वापस नई अइस । हमर माँ के सहेली मिश्रा चाची रहिस है ।ओ ह मानता रखिस अउ मै पैदा हो गेंव ।बड़े दीदी ले बारह साल छोटे ।तब तक काका ह जगदलपुर म प्राचार्य होगे रहिस हे ।चाची के बेटी जेन मोर ले एक साल बड़े हे ओखरो नाम सुधा हे।ओ चाची अपन बेटी के नाल ल हमर माँ ल पिलाये रहिस हे ।एक माँ के मातृत्व दूसर माँ के गोद सुना नहीं देख सकिस ।एक माँ ,एक सहेली के बहुत बड़े उदाहरण आय मिश्रा चाची ।हमर घर म खुशी आगे ।येला मिश्रा चाची ह डोंगरगढ़ के बम्लेश्वरी दाई म एक हऊंला पानी अउ एक माला साल भर चढ़ा के पूरा करिस ।ये मोर बिहाव होय के बाद भी चढ़ावत रहिस हे .बारहो महिना चढ़ावय अउ साल म एक बेर जाके पइसा देवय । एक माँ जेन अपन लइका के नार जेन ल जमीन म गड़ाय जाथे तेन ल मोर माँ ल पियइस ।माँ के दरबार म मानता रखिस,अउ ओला सालो साल पूरा करिस ।एक मोर माँ जेन जनम देय के बाद बम्लेश्वरी ल नई भुलइस ,मोर मुंडन भी उहें होय हावय ।हमन जाते राहन ।मोर लइका बर भी मोर माँ ऐखरे अँगना म लेगिस ।मै तो तीन माँ के परेम पायेंव ।एक बेर बम्लेश्वरी संग भेट होगे ,अपन होय के आभास देवइस फेर हमन नई पहचान पायेन ।अतका सुरता हे के मैं जब थकव त ओखरे बाजू म बइठ जांव ।ओ ह मोर संग संग चलय ।दीदी काहय टोनही होही दूरिहा रह ।येला मै मुलावंव नही ।आज भी ओखर रूप दिखथे ।
सुधा वर्मा ,18-4-2016
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