-
*बड़े माटी के छोटे करजा*
--------------------------------
*(कहिनी)*
मंझ अंगना म तुलसी- चौरा अउ अंवरा के पेड़ । नानपन म महतारी के संग म भाव - विभोर हो के दुनों भई के पूजा -आंचा करइ ।
ये पुन अउ महतारी के अशीष हर दुनों भई ल बने फलिस।
आज सरकार -द्वार म बड़े भई हर बड़े- सहाब अउ छोटे भई हर छोटे- सहाब हें।अपन -अपन जगहा म वोमन के बड़ नाम हे।काम -बुता म एकदम चोखट।बड़े भई हर तो बड़े -बड़े इनाम - इकराम तक पाय हावे ।
अँगना म अब न दई-ददा यें न अँवरा -चौरा ।बस माटी के काया माटी म मिलत..घर के चीन्हा- बूंदा भर दिखत हे।
बड़े भई तो इहाँ ल निकलिस हे, तब येती ल लहुट के देखे के भी फुरसत नइ पाइस हे।हां, छोटे हर बच्छर म कम से कम एक पइत ,इहाँ आके ये माटी म जुवार भर भर ले बइठे रह जाथे।वोहर जादा से जादा बेर ये जगहा म रहना चाहत हे.. अइसन लागथे वोला देखे के बाद ।
राजधानी के एकदम पॉश कॉलोनी म बड़े भई हर दुनों भई बर बढ़िया वास्तु शास्त्र के अनुसार पूर्वाभिमुख अउ गौमुखी जमीन के व्यवस्था कर देय हे। दुनों भई के आलीशान नवा डिज़ाइन के बंगला खड़ा हो गय हे।
बड़े भई के अतका म मन नइ माढे ये।ओहर अब तीर के आन दूसर शहर म एकठन अउ बंगला बनवाय के बारे म सोंचत हे। भइया ..मोर बर अउ आन झन कुछु करबे उँहा..।भेंट करे आय छोटे भई हर बड़े ल अपन फैसला सुनावत कहिस ।
आज अपन जुन्ना गांव वाले जगहा म, छोटे भई के नावा घर के गृह प्रवेश होवत हे । आलीशान... नावा डिज़ाइन के घर...तीर तखार के गंवईहा घर मन के मंझ म रग बग ल उबकत हे जइसन अगास म तारा- जोगनी बीच म चन्दा..!
छोटकी हर नावा बने तुलसी -चौरा तीर म अंवरा के नानकुन पौधा ल रोपत हे। फेर ये आगु के अतेक लम्बा -चौड़ा हॉल असन डिज़ाइन हर, शुरू के दिन ल ही काकरो समझ म नइ आवत ये ...!
"सरपंच कका..!गांव के कोई भी जात-सगा के बरतिया आहीं,तब ये जगह हर वो दुल्हा के स्वागत बर तइयार रहही।"छोटे भई कहिस,"अउ हमन ल लागही ये नानकुन कमरा हर, अगर आना- जाना होवत हे तब ।अउ ये पूरा घर ल स्कूल-अस्पताल के मास्टर कर्मचारी मन अपन जान के उपयोग कर लें।किराया -भाड़ा के रूप म बच्छर भर म, एमा एक पइत रंग पॉलिश ...सब ल जुर् -मिल के कराय बर परही ।अउ येकर ल बड़े बात...ये चौरा अउ अंवरा म दिया बाती बारे बर लागही ।"
"जब तोला इहाँ खुर... रोप के रहना ही नइ ये।तब तंय अतेक बड़े घर ल काबर बनवाय रे... बाबू !"सरपंच थोरकुन अचम्भा म पर गय रहिस ।
" कका, ये माटी के मोर उप्पर बड़ कर्जा हे।ये माटी हर बड़े ये...बहुत बड़े ये । ये बड़े माटी के बहुत बड़े कर्जा हे,मोर उप्पर ।"छोटे थोरकुन रुकिस,फेर अबगा धीरन्त सुर म कहिस,"ये बड़े माटी के एक ठन छोटे कर्जा ल उतारे भर के कोशिश ये येहर...अउ बस्स कुछु नहीं..।"
छोटे हर सरपंच कका के गोड़ ल धर डारे रहिस ।
*रामनाथ साहू*
-
No comments:
Post a Comment