कमेलिन नोनी
चन्द्रहास साहू
मो - 8120578897
चौमासा के घरी। किसान मन के मन कुलकत हे ऐसो के पानी-बादर ला देख के। इही करिया-करिया बादर तो आय जौन हा किसान ला भविस के आस देखाथे। भलुक करिया हाबे ते का होइस रंगीन सपना के उजास घला देखाथे। कोइली के कुहुक-कुहुक पपीहा के पिहिप-पिहिप अउ मैना के चैंक-चैंक अब्बड़ सुघ्घर लागत हाबे। ...अउ चिरई जाम के पिंजरा मा धंधाये मिठ्ठू के बोली, अब्बड़ गुरतुर लागथे। करिया-बादर ले जादा करिया-करिया चिरई जाम (जामुन)...? मुँहू मा पानी आ जाथे। ललचा जाथे-मन हा।
सबरदिन बरोबर वोकरो मन ललचावत हावय अब्बड़। पाँख रिहितिस ते उड़िया जातेंव-अगास ला अमरे बर। रंग रिहितिस ते बगर जातेंव-इंद्रधनुष कस। अँजोर रिहितिस ते बन जातेंव जोगनी-रिगबिग-रिगबिग बरे बर। अउ पइसा रिहितिस ते बन जातेंव- महुँ हा विद्यार्थी। नवा स्कूल ड्रेस टाई जूता मोंजा पहिर के इतरातेंव। चुन्दी ला पाटी पारे, आँखी मा काजर आँजे नवा टिफिन डब्बा धरे स्कूल जातेंव-वोकरो मन कलबलावत हाबे।
बारा ए पंद्रा बच्छर के नोनी आवय वोहा-कंचन। कोनो राजकुमारी नो हरे फेर स्कूल के आगू के जगह हा वोकरे आवय-पोगरी। जंगल के जम्मो रुख-राई वोकरे आय बेरा बखत मा टोर लेथे फल-फलहरी ला। जौन घरी तौन रिकम के जिनिस। जिमीकांदा चार तेंदू केरा गभोती अउ केछरवा कांदा ले बुचरवा कांदा जम्मो मिलथे नोनी कंचन करा। इही जम्मो ला बिन के आनथे अउ स्कूल के आगू मा पसरा लगा के बेच लेथे।
हमर छत्तीसगढ़ हा पोठ राज आय जम्मो कोती अइसन दिखथे ....अउ बस्तर के मोहाटी कांकेर जिला चारामा में ये जम्मो मनमोहनी जिनिस अब्बड़ सुघ्घर दिखत हाबे। शहरिया अउ गवइया जम्मो के मन ला भाथे।
आज अपन पसरा मा चिरई जाम अउ सरई बोड़ा बेचत हाबे कंचन हा। जम्मो अवइया-जवइया मन चिथो-चिथो कर डारिस।
"कतका किलो हरे सरई बोड़ा हा नोनी ?''
नवा-नवा उतरे हाबे अभिन सरई बोड़ा हा। अभिन मेछराये के बेरा हाबे। मेछरावत हाबे अपन दाम मा। नवा बइला के नवा सिंग चल रे बइला टिंगे-टिंग। कतको झन पूछिस अउ हिरक के देखे बिना मुँहू करू करत चल दिस। तब कोनो के मोल भाव नइ पटे के सेती लहुटगे। ...अउ कोनो हा मोल-भाव करत हाबे।
"दू सौ रुपिया पाव ले कमती नइ होवय सेठ।''
"एक सौ तीस रुपिया पाव लगा न ओ !''
अब्बड़ बेरा ले जोजियावत हाबे सेठ हा। नब्बे रुपिया ले शुरू करके पांच-पांच रुपिया बढ़त एक सौ तीस रुपिया तक अमरे हाबे।
"जंगल-झाड़ी,कांटा-खूंटी, अझमहा-निझमहा मा किंजरबे तब मिलथे सरई बोड़ा हा सेठ ! हुडरा-बघवा चितवा-भालू ले ओरभेट्टा हो जाथे कभु-कभु। पाछु बच्छर तो कमारिन दीदी ला भालू खखोल दे रिहिन। लटपट बाचीस।अतका सस्ता मा नइ पोसाये सेठ !''
भाव नइ पटिस। अब नोनी कंचन के गोठ सुनके अपन सोना चांदी के दुकान कोती सुटूर-सुटूर रेंग दिस सेठ हा। आज तो बेरा हाबे सेठ ले बदला हेरे के। पाछु दरी काकी के माला टुटगे रिहिन, बनाके दिस तब एक्को पइसा कमती नइ करिस।अब्बड़ कहे रिहिन पांच रुपिया चिल्हर नइ हाबे सेठ ! जी छड़ा के माँगे रिहिन। कंचन फुसफुसाइस।
"बोड़ा का हरे बड़का गुरुजी ?''
स्कूल कोती ले तीन झन मास्टर आवत हाबे गोठ-बात करत।
"अब्बड़ गरमी ले तिपे भुइयाँ मा अकरस पानी गिरथे। ये बेरा तापमान आद्रता अउ दंद-कुहर जादा रहिथे तब सरई रुख के जर हा एक रिकम के केमिकल के स्राव करथे, जिहां फंगस हा एसोसिएशन करके अपन ग्रोथ करथे अउ सादा चीनी बाटी बरोबर अपन आकार बना लेथे। इही ला सरई बोड़ा कहिथन। जौन अब्बड़ मिटाथे-गुरतुर। सिजनेबल जिनिस आवय अउ लाने मा अब्बड़ मिहनत लागथे वोकरे सेती अब्बड़ महंगा बेचाथे।''
"ऐहा अब्बड़ पुसटई घला आवय। खनिज लवन विटामिन अउ आयरन अब्बड़ रहिथे।''
लंच के बेरा आवय। स्कूल के तीनों मास्टर मन रोज आथे पसरा मा कुछु जिनिस बिसाये बर-बड़का मंझला अउ नान्हे मास्टर। अब कंचन के पसरा के तीर मा आगे। लइका मन के खेल-खेलई ला मगन होके देखत हाबे नोनी कंचन हा। कोनो लइका झूलना झूलत हाबे तब कोनो लइकामन छू-छुवउल खेलत हाबे।
"के रुपिया आय चिरई जाम हा ?''
कंचन के धियान टूटिस अउ आगू मा गुरुजी मन ला देख के हड़बड़ा गे। टुपटुप-टुपटुप पांव परिस।
"एक सौ बीस रुपिया किलो आवय सर ! सौ रुपिया लगाहुँ।''
भलुक अवइया-जवइया मन पुछिन तब एको पइसा कम नइ करिन कंचन हा फेर बिन मोल-भाव करे आगू ले चिरई जाम के भाव कम कर दिस।
बड़का गुरुजी हा किलोभर भर बिसा डारिस चिरई जाम ला जम्मो स्टॉफ बर। भलुक किलो भर तौलिस फेर वोकर ले आगर रिहिस।
"गु गु...गुरुजी एक गोठ रिहिस। पुछव का ?''
कंचन के आँखी मा ऑंसू छलछलावत रिहिस। अब्बड़ दिन के पूछे के उदिम करत रिहिन फेर आज सामरथ करिस कंचन हा।
"पूछ न बेटी ! का बात आय ?''
"गुरूजी ! हमन जंगल के रहवइया आवन अब्बड़ रुख-राई लगाथन। हमर कोती गुंगुवा उड़इया कल-कारखाना घला नइ हाबे। जौन ऑक्सीजन ला मइलाहा कर देथे तभो ले गाँव वाला बर ऑक्सीजन कइसे कमती परगे कोरोना दरी मा ? शहरिया मन बाचगे अउ गवइया मन काबर मरगे ? हमर परसा डोली बाहरा खेत ला बेचिन तब एक ठन ऑक्सीजन सिलेंडर बिसाइस कका हा। अइसन बिपत के बेरा सिलेंडर अब्बड़ महंगा काबर बेचाथे गुरुजी ? ''
गुरुजी अकबकागे। ससन भर देखे लागिस नोनी कंचन ला। सांवर बरन दाढ़ी मा तीन बुंदिया गोदना तेरा-चौदह बच्छर के नोनी चिरहा ओन्हा पहिरे। कजरारी आँखी नरी मा ताबीज अउ बजरहा खिनवा पहिरे । गोल उदास चेहरा ला देखे लागिस गुरुजी हा।
"कोरोना महामारी विश्व त्रासदी आवय बेटी ! कतको झन के जम्मो परिवार सिरागे ऐमा। इही तो बेरा रिहिन अपन अउ बिरान चिन्हे के। मानवता ला जाने के। आज घला कतको अस्थि के विसर्जन नइ होये हाबे। मालखाना मा धुर्रा खावत परे हे। पुलिस के रजिस्टर मा लावारिस हाबे। भलुक वोकर संपत्ति के सुख भोगइया कोरी-खइरखा हे।''
गुरुजी गुन डारिस जम्मो ला छिन भर मा। वोकरो एकलौता हीरा बेटा ला लील डारिस कोरोना हा ऑक्सीजन के कमती ले।
"का करबो बेटी ! प्रकृति महतारी के आगू जम्मो नतमस्तक हावन ओ।''
बड़का गुरुजी किहिस अउ रोनहुत होगे। लइका मन के सकेलाये के घण्टी घला बाजगे अब। काँपत थरथरावत गुरुजी लटपट स्कूल अमरिस अउ लझरंग ले खुर्सी मा बइठ गे। नोनी कंचन के कोंवर चेहरा हा आँखी-आँखी मा झूलत हाबे अउ गोठ हा कान मा चोट करत हाबे। पढ़इया लइका मन के मूल्यांकन कर डारिस गुरुजी हा। फेर पसरा वाली नोनी के कइसे मूल्यांकन करही ? कोन श्रेणी मा राखही ए बी सी...।
गुनत-गुनत आठवी क्लास मा पढ़ाये लागिस-पराक्रमी राजा के कहानी। जौन अपन राज के विस्तार करे बर कतको झन सिपाही के वध करके वोकर लइका मन ला अनाथ कर डारिन। असली पराक्रमी कोन आवय-युद्ध मे लड़इया सिपाही हा कि अनाथ लइका जौन जीवन भर आँसू लेके जीही ? नान-नान जिनिस बर कुकुर गत होही ? पढ़े के उम्मर मा मुड़ी मा बोझा डोहारही, बाजार मा पसरा लगाही। गुरुजी ला आज पढ़ाये के मन नइ होइस।कभु जुच्छा खुर्सी मा कंचन के बइठे के सपना देखथे गुरुजी हा तब कभु घेरी-बेरी खिड़की के ओ पार धियान चल देवय जिहां कंचन पसरा लगाए हाबे।
कंचन आधा बोड़ा ले जादा ला बेच डारिस अब अउ चिरई जाम तो उरक घला गे। सोना चांदी के दुकान वाला इहाँ के नामी सेठ हा फेर लहुट के आगे हावय कंचन के पसरा मा सरई बोड़ा बिसाये बर।
"हे... हे... अब तो छँटागे नोनी बोड़ा हा। अब डेढ़ सौ मा एक पाव दे दे।''
सेठ हाँसत किहिस अउ फेर जोजियाये लागिस।
"नही सेठ ! आज तो रेट कमती नइ होवय।''
"निच्चट ढीठ हस टूरी ! छँटवा माल ला घला कमती नइ करस। बैपार करे बर घला नइ आवय।''
"ढीठ करे बर तो तुहरे मन ले सीखे हँव सेठ ! जइसे तुमन आनी-बानी के टेक्स लगाथो तभो ले दू पइसा कमती नइ करो-कोनो जिनिस मा। भलुक बैपार करे बर नइ आवय फेर मया बढ़ाये ला आथे सेठ ! हमर तो अब्बड़ लरा-जरा हाबे अभिन बेचत भर ले बेचहू ताहन घर जाके फोकट मा बाँटहू।''
सेठ के मुँहू उघरा होगे।
"अतका महंगा जिनिस ला फोकट मा बाँटबे ?''
"काबर नइ बाँटहू सेठ ! वहुँ मन तो हमन ला देथे। रउतइन हा मही देये रिहिन काली, सोनारिन दाई हा गोलेन्दा भाटा। गोंदली के फोरन डारके बनाये रिहिन मोर काकी हा। अब्बड़ मिठाइस रात के साग ला आज बिहनिया घला खाये रेहेंन चाट-चाट के।... वोकरो करजा ला छूटे ला लागही ?''
"तुम छत्तीसगढ़िया मन भलुक अब्बड़ कमा लेथो फेर खाये ला नइ जानव। सब साग मा प्याज लसुन डारके स्वाद ला बिगाड़ देथो।''
"प्याज तो हरे सेठ ! जौन मइनखे के गरमी ला उतारथे। तहुँ मन ला खाना चाहिए।''
कंचन के गोठ चटकन कस लागिस सेठ ला। ऐती-ओती देखे लागिस।
"तुमन तो भलुक प्याज खाये ला छोड़ देये हव फेर ब्याज खाये बर कब छोड़हु सेठ !''
सिरतोन सेठ के मुँहू करू होगे। पच्च ले थुकिस अउ गुटखा के पाउच के जिनिस ला चभलाये लागिस। रुपिया ले भरे बेग ला एक खाँध ले दूसर खाँध मा पलटिस अउ फेर जोजियाये लागिस।
"डेढ़ सौ मा एक पाव दे दे नोनी ! सरई बोड़ा।''
अतका बेरा ले एक दू झन अउ बिसा डारिस। बांचे-खोंचे चिरई जाम ला तो उरक घला गे।
"ले सेठ अब्बड़ जोजियाथस। आधा किलो लेबे तब लगाहु डेढ़ सौ रुपिया पाव-तीन सौ के आधा किलो।''
"नही .. ! एक पाव भर दे।''
"अब्बड़ अकन माई-पिला हाबो सेठ ! आधा किलो हा पुरही। ले ले।''
सेठ लिस आधा किलो अउ बड़का गड्डी ले पांच सौ के कड़कड़ाती नोट ला निकाल के दिस कंचन ला। बचत पइसा ला झोंकिस अउ अपन बड़का सोना-चांदी के दुकान कोती चल दिस।
सांझ होगे स्कूल के घंटी बाजिस अउ छुट्टी के बेरा होगे। किलोबाट टुकनी ला सकेलिस। बोरी ले सिलाये नानकुन पाल ला घिरियाइस अउ घर लहुटे के तियारी करत हाबे। फेर उदुप ले देखथे ते पोटा कांप जाथे। जवनहा आवय। माते हाबे छत्तीसगढ़ के सरकारी रसा मा। पांव लड़बड़ावत हाबे अउ मुँहू ले भभका आवत हे। काकी के कनिहा पीरा के पांच रुपिया के दवई लेये बर पइसा नइ हे कहिके हाथ ला झर्रा देये रिहिन बिहनिया। अउ अभिन ? संझा बेरा खुद पीके झुमरत हाबे।
"दे टूरी पइसा दे, कतका कमाये हस ?''
तकादा करे लागिस। कंचन के सगे कका आय।
"आज जादा नइ कमाये हँव कका ! तभो ले, चल घर मे दुहुँ।''
"अभिन तो सेठ हा गड्डी निकालत रिहिस तोला देये बर। लबरी, मोला लबारी मारथस। कतका चामड़ी डांटे हाबे जम्मो बुकनी ला झर्रा दुहुँ घर जाहू तब। अभिन दे मोला पइसा।''
"दारू के सेती अइसने गोठियावत हस कका ! नइ पीयस तब अब्बड़ दुलारथस। काबर अब्बड़ दारू पीथस कका ! झन पीये कर।''
"नानकुन टूरी ! मोला बरजथस। मंदहा ला झन बरज। मंदहा बांच जाथे अउ बरजईया मन मर जाथे। तोर दाई ददा अब्बड़ बरजे मोला-झन पी सिरा जाबे अइसे फेर उही मन सिरागे कोरोना मा।''
"सिराना रिहिन तब जम्मो परिवार मर जातेंव। दाई-ददा दुनो कोई मरगे अउ टूरी ला छोड़ दिस। अब पढ़ाई-लिखाई शादी-बिहाव के खर्चा मोर माथे परगे। खेत घला बेचागे का थोथना मा बिहाव करहुँ तोर....?''
झोला के चार सौ ला झटक लिस कका हा अउ सरकारी अमृत दुकान कोती रेंग दिस बड़बड़ावत।
आजकल नाचा नंदागे फेर गम्मत देखइया कमती नइ हे। सकेलागे भीड़। कोनो कमेलिन नोनी के मान नइ राखिस भलुक दांत खिसोर के हाँसिस जम्मो कोई। लइका आय ते का होइस ? वोकरो मान हाबे। फेर आज गाँव के सियान मन घला भीष्मपितामह बनगे। अउ जौन बेरा भीष्मपितामह आँखी मुंदथे तब सिरतोन महाभारत होथे। इहाँ तो महुआ रस के नरवा बोहावत हे कोन दुरपति बाचही ? स्कूल के छुट्टी होगे। जम्मो लइका अब अपन-अपन घर जावत हाबे। गुरुजी घला,फेर कंचन के रोनहुत बरन ला देख के अतरगे। तीर मा आके अउ गोठिया डारिस।
"बेटी तोला पढ़े के साध हाबे ते स्कूल मा आ जाबे।''
"नहीं गुरुजी ! पइसा कमा के नइ जाहू तब मोर कका हा मारही नंगतेहे। भलुक मोर काकी अब्बड़ मया करथे फेर कका बखानथे। टूरा रिहतेस तब राखतेंव। कोट-कोट ले दाइज-डोल आतिस फेर तेहां तो टूरी आवस-खरचा करइया। घर ला जुच्छा करइया। भलुक कोनो संग भाग जाबे फेर बिहाव के खरचा झन कराबे कहिथे। कहाँ भागे के गोठ करथे गुरुजी कका हा ? जौन भागथे तौन मन ला पइसा नइ लागे ?''
गुरुजी फेर मुक्का होगे। आँखी मा ऑंसू आगे। कुछु गुनिस अउ उदुप ले कहिथे।
"बेटी ! मोर घर रहिबे चल, जतका पढ़बे पढ़ाहु।अपन बेटी बना के जतन करहुँ।''
"नही गुरुजी ! भलुक कका हा मोला मर जाये कहिके सरापथे फेर काकी अब्बड़ मया करथे। मोर बिना वहुँ हा नइ जी सकही....। गुरुजी ! वोला छोड़ के नइ जावव। नवा नत्ता जोरे बर जुन्ना नत्ता ला नइ टोरो गुरुजी''
गुरुजी देखते रहिगे कंचन के चेहरा ला। गरब अउ साभिमान मा सिरतोन कंचन बरोबर चमकत हाबे।
"ठीक हे तोर कका ला रोजी ले मतलब हे न। मेंहा दुहुँ तोला पइसा फेर काली ले बुता झन करबे सिरिफ पढ़बे।''
"नही गुरुजी ! मोर काकी के ईलाज बर कमाये ला लागही मोला। सब के किस्मत में विद्या धन नइ राहय। मोरो मा नइ होही...? फेर लाँघन नइ मरो गुरुजी मेंहा। अउ मोर काकी-कका बर जिये ला लागही ..! कका बिगड़ाहा होगे हावय तब महुँ तो अपन आदत ला मइलाहा नइ कर सकवँ गुरुजी !''
कंचन के विचार ला सुन के गुरुजी गदगद होगे। भलुक वोकर घर जाय बर नइ खंधिस कंचन हा फेर गुरुजी के अंतस मा घर बना डारिस। अब कॉपी किताब बिसाये बर चल दिस गुरूजी हा। नोनी भलुक कतको कमा ले आखर अँजोर तो सब ला चाही।
"ठीक हे बेटी ! तोला रोज पढ़ाहु छुट्टी के पाछु। तभे तो पोठ बनबे। अपन अधिकार ला जानबे। अपन घर मा भलुक रहा फेर कोनो भी जिनिस के कमती होही अपन बाबूजी समझ के माँग लेबे।''
गुरुजी के गोठ सुनके टुपटुप-टुपटुप पांव परिस कंचन हा। आँखी ले आँसू आवत हाबे अब। गुरुजी घला अपन एकलौता बेटा के दुख ला बिसरा डारिस कंचन ला देख के।
जम्मो लइका मन नाचत-कूदत घर लहुटत हाबे काली नवा उछाह संग स्कूल लहुटे बर। कंचन घला अपन डलिया टुकनी ला मुड़ी मा बोहो के घर कोती लहुटत हाबे अब। ससनभर देखत हाबे गुरुजी हा लुसुर-लुसुर रेंगइया कंचन ला, कमेलिन नोनी अउ गुणवती नोनी ला।
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चन्द्रहास साहू द्वारा श्री राजेश चौरसिया
आमातालाब रोड श्रध्दानगर धमतरी
जिला-धमतरी,छत्तीसगढ़
पिन 493773
मो. क्र. 8120578897
Email ID csahu812@gmail.com
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