Thursday, 20 July 2023

कर्जा (ऋण)

 *// कर्जा (ऋण) //*

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          ( निबंध)

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    *माता जी के गर्भ म जब ले कोई बच्चा भ्रूम के रूप म अस्तित्व पाथे,तब ले वो बच्चा ह अपन माताजी के प्रति जिंदगी भर के लिए कर्जदार हो जाथे!* 

      * *कारन-जऊन दिन ले माता जी ल जानकारी होथे- "मोर गर्भ म एक नन्हा सा-प्यारा सा,कलेजा के टुकड़ा एक  बच्चा अस्तित्व म आ गए हे" तब से वो महतारी ह अपन तन-मन,अपन शौक,अपन प्राण ले जादा,अपन होने वाली संतान के सुख-दुख के ध्यान राखथे !*

     *वो नन्हा सा शिशु के नाभी अपन माताजी के आहार नली से जुड़ जाथे अउ माता जी के भोजन पचे के बाद पोषक तत्व के रूप म शुद्ध रस एक निश्चित मात्रा में वो बच्चा ल निरंतर मिलते रहिथे |*

    *माताजी के गर्भाशय नाल से गर्भ म पल रहे शिशु के हर तंत्रिका तंत्र जुड़ जाथे, जेकर द्वारा वो शिशु ल निरंतर आक्सीजन गैस प्राण वायु के रूप म मिलते रहिथे!*

     *माताजी के भोजन के पूरा असर गर्भ म पल रहे वो शिशु ल मिलते रहिथे,तभे तो  सियानीन दाई बुढ़ी सास,काकी सास अउ सास मन अपन बहुरिया ल समझाथैं - जादा मिर्चा वाला तीखा साग झन खाबे बहुरिया नइते लईका ह कलबला जाही ( व्याकुल हो जाही) | जादा करू -कस्सा,जादा नमकीन घलो झन खाबे,सुग्घर नेत-परवान अउ मीठ-मीठ जेवन खाबे, मीठ-मीठ गोठियाबे, तव नवा अवईया पहुना ह तंदुरुस्त रहिही अउ मीठ-मीठ आचरन वाला होही!*

    *गर्भ धारन के दौरान महतारी ल झूठ-लबारी नइ बोलना चाही,कोनो के चारी-चुगली नइ करना चाही, चोरी-लुका कुछू जिनीस ल खाना भी नइ चाही ! कोनो के कुछू नुकसान नइ करना चाही, करम से ही नहीं - अपन मन म कोनो के  प्रति अहित सोचना भी नहीं चाही! गर्भ धारन के दौरान महतारी के जम्मो आचार-विचार के प्रभाव होवईया नन्हा बच्चा ल खच्चित होथे,जैसे उत्तरा के गर्भ से ही अभिमन्यु ह "चक्रव्यूह म प्रवेश करे बर सीख गए रहिस!*

    *नवजात शिशु ल अपन महतारी के गर्भ म पड़ने वाला एही संस्कार ल "पुंसवन संस्कार " कहे जाथे*

    *गर्भ ठहरते ही हर महतारी ल अपन होने वाला औलाद ल संस्कारी बनाए बर सुग्घर भजन कीर्तन,भागवत पुराण सुनना चाही | गीत-गोविंद रामायण के कथा सुनना चाही*   

       *"गर्भ ठहरते ही नौ -दस महीना तक महतारी ह पेट भीतरी अपन संतान के पालन-पोषन करथे, अउ अपार- असहनीय प्रसव पीड़ा सहि के- जीवन-मृत्यु से जूझ के, अपन जिंदगी ल दांव म राख के जब महतारी ह अपन संतान ल पैदा करथे, तब अपन बच्चा ल जिंदा राखे बर ओकर स्तन म "दूध से भरे कटोरा" से दूध पीला के नवजात शिशु ल जिंदा राखथें !  न केवल जिंदा राखथें, बल्कि रात-दिन अपन संतान के मल-मूत्र ल साफ करके ओकर हर प्रकार से सुरक्षा करते हुए बड़े बनाथैं अउ अपन जम्मो इच्छा, जम्मो सुख ल त्याग करके  अपन संतान के सुख-शांति, समृद्धि बर सर्वस्व न्योछावर कर देथे !*।    

        *अत्तेक महान ममतामयी-त्यागमयी महतारी के "दूध के कर्जा ल  ओकर संतान मन का  चुका सकथें ? शायद हीरा,मोती,जवाहरात अउ कीमती से कीमती जिनीस प्रदान करके भी अपन माताजी के "दूध के कर्जा" चुकाना संभव नहीं है !*


    * *एक उपाय हवय- "जब महतारी ह अपार त्याग-तपस्या,कठिन से कठिन दु:ख सहि के अपन संतान ल बड़े करथे, बेटी-बेटा के बिहाव कर देथे, तब बिहाव होय के बाद अपन पति या अपन पत्नी ले जादा अपन दाई के हर सुख-दुख के ध्यान रखते हुए ओकर दुख ल अपन दुख समझ के बिना कुछ बोले निवारण करना चाही | अपन दाई के त्याग-तपस्या,समर्पण भाव,ममता, संवेदना के प्रति हर पल सचेत हो के ओकर सद्भावना के सम्मान करते हुए ओकर हर दुख के निवारण करना चाही | ओकर मान-सम्मान, स्वाभिमान ल ठेस नहीं पहुंचाना चाही अउ दाई के इंतकाल हो जाय ले सुंदर श्रद्धा-भक्ति पूर्वक,वेद रीति-रिवाज के अनुसार दाई के सद्गति बर मृतक संस्कार करना चाही*


   *दाई के "दूध के कर्जा" के बराबर ही "ददा द्वारा पालन-पोषन" के कर्जा होथे!*

      *दाई ह घर म रहि के अपन संतान के देख-भाल करथे,तव ददा ह चिलचिलाती धूप,दिन भर कठिन बरसात म भींगते हुए, हड्डी गलाऊ ठंड म ठिठुरते हुए कठिन मेहनत करके अपन संतान के पालन-पोषण करथें ! अपार दुख सहि के अपन संतान ल तिल भर भी दुख नइ होवन देवै! अपार भूख सहि के,काटोकाट उपवास रहि के अपन संतान के मुंह म दुनो जुवार भोजन के व्यवस्था करथें ! खुद के पहिरे-ओढ़े अउ तन ढांके बर  चेंदरा-ओढ़ना नइ खरीदैं, लेकिन अपन औलाद बर ढेर सारा कपड़ा -ओढ़ना,जूता-मोजा,टाई,स्कूली बैग,पुस्तक कापी के व्यवस्था करके अपन सामर्थ्य के अनुसार अच्छा से अच्छा स्कूल-कालेज म पढ़ाथे,ट्यूशन फीस के जुगाड़ करके ट्यूशन पढ़ाथें, शहर भेज के पढ़ाय-लिखाय बर किसान,मजदूर अउ गरीब पिताजी ह घलो कत्तेक त्याग-तपस्या करथें ? तेकर वर्णन करना संभव नहीं हे !  पिताजी ह अकथनीय प्यार,अपार त्याग-तपस्या अउ अपन लाखों इच्छा के बलिदान करथें,तब एक बेटी-बेटा के पालन-पोषन कर सकथें!*

     

    *अत्तेक त्यागी ! अत्तेक बलिदानी! अपन मुंह के कौरा ल बचा के जउन पिताजी ह अपन संतान के पालन-पोषन करथें, तउन पिताजी द्वारा "पालन-पोषन के कर्जा" कोनो संतान ह का चुका सकथे ?*

     *"पिताजी द्वारा पालन-पोषन के कर्जा" चुकाना बेटी-बेटा के लिए बहुत कठिन होथे !*   *जब बेटी-बेटा  बड़े हो जाथे,तब दाई-ददा ह अपन जिंदगी भर के कमाई ,एक-एक रूपीया ल बंचाके बेटी-बेटा के बिहाव करथें !*

       *तब "सत म सती-कोट म जती" कोनो एक बेटा ह सरवन कुमार जैसे अपन दाई-ददा के आज्ञा के पालन करथे, सुपुत्र अउ सुपात्र हो के दाई-ददा के सेवा करथे | साथ ही बिहाव होय के बाद संतान उत्पन्न करके अपन पीढ़ी ल आगे बढ़ाथे | दाई-ददा ह बुढ़ाई काल म जब शारीरिक रूप से अक्षम हो जाथे,"तब अपन दाई-ददा के अंग बन के, अंधरा के लाठी बन के" दुख के निवारन करथे अउ पिताजी के देहांत होय ले सुग्घर विधि-विधान से, वेद-पुरान रीति-रिवाज से, सामाजिक -पारिवारिक,जातिगत रीति-रिवाज के पालन करते हुए अपन ददा के दाहसंस्कार करथें, पिंड दान करथे,गरूण पुरान सुनथे, गंगा समागम कराथें,गऊ दान,ब्राम्हण भोजन कराथे, रिश्तेदार,समाज ल भोजन कराथे,तभे अपन पिताजी के पालन-पोषन अउ पितृ ऋण से उऋण हो सकथें*

    

     *माता-पिताजी के कर्जा के साथ ही अपन कुल गुरू अउ अध्यात्म गुरू के भी ऋण होथे |*


     *कुल गुरू द्वारा कोई खास तिथि,परब-तिहार के दिन अपन घर म सपरिवार कथा -पुरान सुने ले अपन घर-परिवार के जम्मो लईकन-सियान के आचार-विचार,खान-पान,रहन-सहन ह सात्विक होथे,सदाचार के पालन करथें अउ सुंदर संस्कार के निर्माण होथे | तभे "कुल गुरू के कर्जा (ऋण) से उऋण होथें*

      *अध्यात्म गुरू के कर्जा" से उऋण होए बर गुरू द्वारा बताए गए "गुरू मंत्र" के जिंदगी भर एक घड़ी आधो घड़ी, सुबह-शाम मंत्र जाप, ध्यान -आराधना करे ले हमर आत्मा के शुद्धिकरण होके परम सुख-शांति के प्राप्ति भी होथे*


    *माता-पिताजी के ऋण के समान ही अपन "मातृभूमि,जन्म भूमि, गांव-बस्ती,राज्य अउ अपन देश के प्रति घलो ऋण होथे*


    *मातृभूमि के ऋण चुकाए बर ए धरती माता के श्रृंगार रूपी पेड़-पौधा ल जादा काटना नहीं चाही बल्कि अपने घर-परिवार के कुछू भी दु:ख-सुख जैसे:- नवजात शिशु के जन्म दिन,बिहाव के दिन अउ मृतक व्यक्ति के मृत्यु संस्कार के साथ-साथ  ऊंकर आत्मा के शांति अउ यादगार म हर मनखे ल एक-एक पौधा खच्चित लगाना चाही अउ वो जम्मो पौधा ल अपन बेटी-बेटा सहीं मानते हुए ओ जम्मो पौधा ल हमेशा जिंदा रखे के प्रयास करना चाही*

     *"प्रकृति अर्थात धरती  हमर माता आय !" धरती माता ल अपन सग्गे माता मान के "पर्यावरण प्रदूषण"  कम से कम करना  परम धर्म होना चाही !*

     *जल प्रदूषण,वायु प्रदूषण,ध्वनि प्रदूषण, संस्कार प्रदूषण ल रोकना हमर परम धर्म होना चाही, काबर के शुद्ध जल,वायु से ही हमर जिंदगी संभव हवय!*

     *दूषित जल,वायु से एक पल जीना भी असंभव हो जाही! तेकरे सेती प्रकृति अर्थात् धरती माता अउ पर्यावरण के सेवा करके "मातृभूमि के ऋण" से उऋण होना हमर परम धर्म होना चाही |*

     *ब्रम्हा जी के सृष्टि म "मानव योनी" ह सब से अनुपम,अनमोल अउ दुर्लभ योनी आय !*

     * *सिर्फ मानुष योनी ल  ही विधाता ह बुद्धिजीवी प्राणी बनाए हवय, सिर्फ मनुष्य ल ही हांसे के दुर्लभ योग्यता प्रदान करे हवय |* *पाप-पुण्य,धर्म-अधर्म के ज्ञान भी सिर्फ मनुष्य योनी ल ही प्राप्त हवय ! ये सृष्टि के क्षणभंगुर होए के ज्ञान भी सिर्फ मनुष्य ल ही प्राप्त हवय*

     *तभो ले क्षणभंगुर अउ माटी के पुतला ए मनखे ह अब्बड़ेच घमंड करथें ! अब्बड़ेच झूठ-लबारी बोलथें ! स्वार्थ सिद्ध करे बर साम,दाम,दंड,भेद के अब्बड़ेच उदीम करथें, धन-दौलत कमाए बर खूब पागल हो जाथें !*

     *विधाता के देहे अद्वितीय गुंण बुद्धिजीवी  हो के भी मनखे ह जब कामी,लोभी,दंभी,घमंडी, दुराचारी,हत्यारा, बलात्कारी हो जाथे,तब दुनिया के सकल पशु से भी बद्तर अउ नीच हो जाथें!*

     *तेकरे सेती सिरिफ मनखे बर लागू मातृ ऋण,पितृ ऋण,देव ऋण,ऋषि ऋण,कुल गुरू ऋण, आध्यात्मिक गुरु ऋण, मातृभूमि,जन्म भूमि,अपन घर-परिवार के प्रति ऋण,अपन गांव-बस्ती, जाति,समाज,देश, दुनिया के प्रति ऋण ल जानना खच्चित जरूरी हवय अउ ऊपर बताए गए जम्मो ऋण से उऋण होना ही सच्चा मानव  मात्र के धर्म आय*


      *ये आलेख -कर्जा (ऋण) आप जम्मो भाई-बहिनी ल कईसे लागिस ?*

       *अपन कीमती विचार समय निकाल के जरूर लिखिहौ | कंजूसी मत करिहा, आप मन के बहुमूल्य प्रतिक्रिया के हमेशा अगोरा करत रहिहौं*



 *सर्वाधिकार सुरक्षित*

दिनांक -०4.०7.2023



आपके अपनेच संगवारी


*गया प्रसाद साहू*

"रतनपुरिहा"

*मुकाम व पोस्ट करगीरोड कोटा जिला बिलासपुर (छत्तीसगढ़)*


मो. नं.-9165726696



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