"पब जी"
सुकालू गली गली म चिल्लावत राहय भाव बड़गे ,भाव बड़गे। में पूछेंव काखर भाव बड़गे जी कहिथे टमाटर के भाव बड़गे।त ऐमा अतिक डिंडोरा पिटे के काय बात हे भाव सबके बड़ना चाही।अऊ भाव बड़हाय म काखर हाथ हे? एक समे म टमाटर ल सिलपट्टी चटनी बर बिसान अब तो बिन टमाटर के सब्जी नरी म नई लिलाय।तो भाव बड़ना सुभाविक हे।अऊ भाव बड़गे त खुशी मनाना चाही।तुही मन तो कथो किसान के आय दुगुना होना चाही।तेखरे सेती कहिथे मनखे दुसर के दुख ले खुशी अऊ खुशी ल देख के दुखी होथे।जेन दिन दस के तीन चार किलो नपाथो त बारी वाला मन के दुख पीरा नी जनाय। आज कल के मनखे मन बड़ इंटेलिजेंट होथे ,वेतन बाढ़े, महंगाई भत्ता बाढ़े, फेर मंहगाई नी बड़ना चाही।
सुकालू भड़क गे नी चिल्लाबो एमा सरकार के हाथ हे। में कहेंव हव भाई नवा संसद भवन ल टमाटर,प्याज,अदरक लगाय बर बनाय हे।इंहा अवईया जवईया मन ट्रेक्टर म जोतही,निंदही,कोड़ही अऊ तुहर गरिबी ल भगाही।सुकालू कथे हमर ताकत देखे नई हस हम सरकार ल हिला देबो टमाटर सौ,अदरक चार,सौ? में कहेव सुकालू तै खूदे हालत हस अस्सी के पव्वा ल रोज अकेल्ला लगाथस तो मंहगाई नी जनाय।
अस्सी के पव्वा,अऊ
बीस के चखना
कमा -कमाके हो गेहे
सुवारी लईका ह पखना।
सुकाल कथे तहू मन संज्ञान वाले समुह म सामिल होना चाही न। संज्ञान देखे बर कोनो अलग से चस्मा राहत हो ही न बड़े भाई।जेमे एक (हिस्सा) भाग दिखथे दूसर भाग नी दिखय,जईसे कनवा मन ल करिया चस्मा पहिराय ले पता घलो नी चलें के कदे आंखी ले देखथे। कतको झन तो लऊठी धर के रेंगत रहिथे तो कतको झन दूसर के पीठ,हाथ ल धर के रेगथे।कईयो झन इशारा म चलथे।जईसे स्काउट म कथे,दांया मुड़,बांया मुड़,पिछे मुड़,आगे बड़। देश के कुटका,कुटका हो ही कही त तहूं ह बिज्जूल संज्ञान नी लेबे।हमर देश म कतको दुखियारी,दुखियारा हे फेर कोनो संज्ञान नई ले। संज्ञान घलो चेहरा मोहरा देख के बने राहत हो ही।कईयो झन कतको केस म जमानत ले के घुमत हे कतको झन,दारु,गांजा म सजा काटत हे।वाह रे समानता के अधिकार?सुकालू ल कहेंव अवईया चुनाव म तहूं ह पारटी बना लेबे अऊ नाम रख लेबे संज्ञान पारटी,अऊ सब ल बराबर अधिकार देबर लड़बे।बैनर म लिखवाबे -आंखी के अंधरा, नाम नयन सुख।
सुकालू कहीं काम बुता नी करस जी का काम करबे भाई ठेलहा बेरोजगार घुमत हन। कोनो दुकान पानी नी धरतेस जी।आज कल आनी- बानी के दुकान आगे, चखना दुकान, टमाटर अदरक, मोहब्बत के दुकान। आज कल ऐकरे जादा चलन हे ये भाई। मोहब्बत म कोनो सीमा पार आथे, कोनो पार जाथे। कोनो एक के संग चार फिरी ला थे।शहर उही मन भाही जिंहा फिरी के मिलही मलाई। फेर मोहब्बत के दुकान मारकांट वाले जगा म खोलना मना हे। जब सबो ल मोहब्बत हो जाही त राजनीति कहां चल पाही।
पब जी खेलत- खेलत
प्यार होगे जी
वो तो चार लईका ल
धरके सीमा पार होगे जी।
फकीर प्रसाद साहू
" फक्कड़ "
ग्राम -सुरगी
राजनांदगांव
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