1 जुलाई जनमदिन//
छत्तीसगढ़ी कला-संस्कृति के जोखा करइया डाॅ. मन्तराम यादव
छत्तीसगढ़ी कला-संस्कृति खातिर जबर बुता करइया डाॅ. मन्तराम जी यादव के पूरा जिनगी भर के जीवन-दर्शन अउ कारज ल देखथौं त मोर मुंह ले ये चार डांड़ अपनेच अपन निकल परथे-
बिन घिसाए लगय नहीं माथ म ककरो चंदन
न होवय पूरा एकर बिन 'भोले' के पूजा-वंदन
अइसनेच होथे जिनगी घलो महके खातिर
धरथे जे संघर्ष के रद्दा होथे वोकरे अभिनंदन
गाँव देवरहटा (लोरमी) जिला मुंगेली के सियान बइहा राम जी यादव अउ महतारी बतसिया देवी के घर 1 जुलाई सन् 1951 के जनमे डाॅ. मन्तराम जी यादव बहुआयामी व्यक्तित्व के कर्मयोगी मनखे आय. मैं जेन किसम के लोगन ल पसंद करथौं, आगू के डांड़ म सुरता, सरेखा करत गिनथौं ठउका वइसने. मोर मानना हे- 'हम अपन कला-संस्कृति के उज्जर रूप के रखवारी करत वोकर बढ़ोत्तरी करे के उदिम करीन, त एकर बर सिरिफ कागज-कलम भर म लिखे ले जादा भुइयॉं म उतर के ठोसहा बुता करे बर लागही.' मोर ए मानक म डाॅ. मन्तराम जी ठउका फिट बइठथें. उन कागज-कलम म जतका लिखीन, वोकर ले जादा मैदान म उतर के बुता करीन. चारों खुंट, चाहे सामाजिक बुता होय, सांस्कृतिक बुता होय या फेर जनजागृति के आने अउ कुछू बुता. उन सबोच म कर्मयोगी के भूमिका म भुइयॉं म भीड़े दिखीन.
मैं जब दैनिक छत्तीसगढ़ के साप्ताहिक पत्रिका 'इतवारी अखबार' के संपादन कारज करत रेहेंव तभे ले उंकर संपादन म हर बछर छपइया पत्रिका 'रऊताही' के संग्रहणीय अंक मनला देखत अउ पढ़त रेहेंव. मन्तराम जी के अनन्य सहयोगी साहित्यकार कृष्ण कुमार भट्ट 'पथिक' जी के माध्यम ले उंकर जम्मो कारज अउ गतिविधि मन के जानकारी घलो मिलत राहय. फेर उंकर संग प्रत्यक्ष भेंट तब होइस, जब मैं शारीरिक अस्वस्थता के सेती घर म ही रहे लगेंव. उन वरिष्ठ साहित्यकार चेतन भारती जी संग खुद मोर ठीहा म पधारे रिहिन.
उंकर संग मेल-भेंट अउ गोठबात ले मन-अंतस जुड़ाय कस लागिस. काबर ते आज अइसन निष्काम कर्मयोगी मनखे बिरले देखब म आथे, जेन बिना कोनो स्वारथ के अपन उदिम म सरलग भीड़े रहिथे. मन्तराम जी संग गोठबात म उंकर अउ कई रुचि मन के जानबा घलो होवत गिस. जइसे उन अपन निजी समाज, जेन एक किसम के परंपरा के रूप म बंधुआ प्रथा के अंग बने राहय, वोकर ले मुक्ति के अंजोर बगराईन, उनला बंधुआ प्रथा ले मुक्त कराइन. अंचल के पिछड़ा कहे जाने वाला लोगन ल एकफेंट करे खातिर सम्मेलन करवाईन, अपन जनमभूमि गाँव देवरहटा म सन् 1993 ले सरलग अहीर नृत्य अउ शौर्य प्रदर्शन के कारज इहाँ के प्रसिद्ध परब 'छेरछेरा' के दिन करवावतेच हें, एमा उन साहित्यिक अउ सांस्कृतिक प्रतिभा मन के हर बछर सम्मान घलो करथें. उन व्यक्तिगत रूप ले आध्यात्मिक परानी आयॅं, तेकर सेती कतकों किसम के धार्मिक आयोजन घलो करवातेच रहिथें.
आज उंकर जनमदिन के बेरा म उंकरेच लिखे ए चार डांड़ के सुरता करत उनला गाड़ा-गाड़ा बधाई संग शुभकामना पठोवत हौं, के उन अपन सोनहा अउ प्रेरणादायी जिनगी के शतक पूरा करॅंय-
काॅंटे ना हो राहों में
ताकत ना हो बाहों में
सपने ना हो आंखों में
तो क्या जाने जीने का मजा.
-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो/व्हा. 9826992811
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