Thursday, 20 July 2023

भाव पल्लवन---

 भाव पल्लवन---



असाड़ के कुहकी,कुँवार के घाम।

सहि लिच तेन, जीव लिच थाम।

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खेती किसानी बर वर्षा ऋतु के अबड़ेच महत्व होथे।ये ऋतु मा किसान हा भारी उमस,गर्मी ,झड़ी-झक्कर,हारी-बीमारी ला सहिके जी-परान लगा के फसल उगाथे।अइसे लागथे के जेन मनखे हा असाड़ के कुहकी अउ कुँवार के चिलचिलावत घाम ला सहिगे ता समझ ले वोकर जीव बाँचगे नहीं ते ये दूनों महिना जीव लेवा कस हो जथे।

  ग्रीष्म ऋतु के भागती अउ वर्षा ऋतु के आती मा असाड़ के महिना परथे अइसनहे वर्षा ऋतु के छेवर अउ शीत ऋतु के शुरवात होये के समे कुँवार के महिना आथे।

    जेठ के भारी गरमी मा लकलक ले तिपे धरती मा जब असाड़ महिना मा मानसूनी बादर बरसथे ता पानी के बूँद हा गरम तावा मा छिंचे पानी ले बने गरम भाप कस उड़े ला धर लेथे। ये समे पानी हा लगातार नइ बरसै- थोक बहुत गिरथे तहाँ ले घाम तनिया देथे। हवा खोभिया देथे। शरीर मा पसीना थपथपाये ला धर लेथे। ये महिना के हवा मा गरम भाप भरे रथे जेकर ले शरीर हा उसनाय कस लागथे। इही समे दुनिया भर के रोग-राई तको फइले ला धर लेथे। मौसम के उतार-चढ़ाव के संग पिये के पानी मा गंदगी के सेती सर्दी-खाँसी, जर-बुखार अउ डायरिया होये ला धर लेथे। फेर का करबे किसान हा सब ला साहत बोनी मा बिपतियाये रहिथे। 

     अइसनहे निंदई-कोड़ई के दिन कुँवार महिना मा मनमाड़े घाम करथे। जेठ-बइसाख के घाम हा तो कइसनो करके झेला जथे फेर कुँवार के उमस-धमका वाले घाम खटिया धरा देही तइसे लागथे। खान-पान मा थोरको ऊँच-नीच होथे तहाँ ले शरीर साथ नइ देवय।


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

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