Thursday, 20 July 2023

भाव पल्लवन---


भाव पल्लवन---



न उधो के लेना न माधो के देना

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कतेक झन सियान मन अपन अनुभव के अधार  मा नवा पीढ़ी ला सीख देवत कहिथें के -- जिनगी मा सुखी रहना हे---खुशी चाही ता न उधो के लेना न माधो के देना वाले रसता मा चलना चाही मतलब ककरो पाँच-पँदरा मा नइ पड़ना चाही। कोनो दूसर से न तो सहायता लेना चाही ,न तो सहायता देना चाही। उन समझावत कहिथें के दूसर ले सहायता लेये मा वोकर अहसान तरी हमेशा दब के रहे ला परथे अउ दूसर के सहायता करे मा खुद ला नुकसान सहे ला परथे। पर के सहायता करबे वो हा न गुन के होवय न जस के उल्टा जेकर सहायता करबे तेने हा मौका मा धोखा दे देथे----उही हा  पीठ पीछू गारी देथे--चुगरी चारी करथे।अइसन लोगन ले दुखेच मिलथे।

     कोनो ल परशानी मा देखके पइसा उधारी दे देबे ता वो धन डूब जथे -- वापिस नइ मिले ला धरय। कर्जा लेये के समे मनखे हा गाय रूप एकदम सरू होथे --हाथ पाँव जोरत रहिथे अउ लहुटाये के बेरा शेर बरन हो जथे। पइसा वापिस माँगे मा  गुर्रा के हबके ला धर लेथे। मौका परे मा डंडा बजाये बर तइयार तको हो जथे।इहाँ तक के कहि देथे के --जा नइ देववँ, का कर लेबे ?

  सियान मन कथें के अइसनहे दू के झगड़ा मा बीच बँचाव करे बर नइ परना चाही काबर के अक्सर वो मन अपन रीस ला तिसरइया ऊपर उतारे ला धर लेथें। बीच बँचाव करइया भले मानुस ला फोकटे फोकट मार खाये ला पर जथे।अइसन आफत मोल लेये मा दुख अउ पछतावा के अलावा अउ कुछु हाथ नइ आवय। सुखी रहना हे ता ये सब ले दुरिहाके रहना चाही।

 फेर कुछ चिंतक मन के कहना हे के मनखे हा समाजिक प्राणी ये। वोला समाज में हिममिल के, एक-दूसर के काम आके --एक दूसर के सुख-दुख मा शामिल होके रहना चाही। ककरो ले मतलब नइ रखके अकलमुंडा कस जिये मा भला का खुशी--कहाँ के खुशी? असली खुशी तो कोनो दीन-दुखी ,जरूरतमंद के सहायता करे मा--सहयोग करे मा मिलथे। ठीक हे आन ले सहायता नइ लेना चाही फेर अइसना मनखे भला के झन हो सकथे?

अपने आप मा मगन रहिके जियें मा असमाजिक प्राणी बने के खतरा तको होथे। ये तो मनखे के सोच ऊपर रहिथे के वोला कइसन जिनगी जीना हे---कइसन व्यवहार करना हे।


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

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