Thursday, 20 July 2023

मेचका के नाव झींगुरा के पाती*

 *मेचका के नाव झींगुरा के पाती* 


मयारुक मितान मेचका राजा जय जोहार। 

     हमन इहाँ सुखम दुखम जिनगी काटत हवँन।मयारुक मितानिन के राधें तसमई  के बड़ सुरता करत हवँन। आजो ले इड़हर और देहरौरी के सेवाद मुँह म हमाय हवय।

 आप मन बने बने जिनगानी के क ख ग लिखत होहू। हमन तो इहाँ गर्मी भर बड़ मोहरी कस धुन धरे खुशी मनाय हवँन। मारे गर्मी के कारन सरी देंह उसना गे हे। हमर राजा महाराजा अउ धन्ना  मन तो एसी कुलर पँखा म जीव तर कर लेहें। पर हमर कती एसो आने किसम के तमाशा घलो होय हे। ऐसो तो गर्मी म भुइँया महतारी घलो छै आँसु रोवाय हे यह तात तात भभका मरई म जीव अकलिया गे हे। बुद्धिमान अउ सुजानिक मनखे मन बड़ हुशियार होगे हवँय हमर घर कुरिया ल चिक्कन जतन डारे हवँय। चाँटी नोनी अउ चींटा भाँटो पाछू दिन सिकायत ले के मुखिया तीर गय रहीन। मुखिया कहीन तुहँर बर दर्रा सफारी बनावत हँव।उँहा किसम किसम के सबो चाँटा चाटी मन रइहव ।

बहिनी बिचारी रोवत सुसकत आ गय। अउ अपन सगा सोदर जात समाज बर उमन एक ले एक छइँहा माड़ा खोंधरा आवास कोठी बनावत हे, अनुदान घलो देवत हें। पर हमर निरिह प्राणी मन के कोन पुछारी हे। आंसो के असाढ़ घलो बने नइ रहीस। हमन कतका बोहा तौरन एसो एको खँचवा डबरा घलो नइ भरीच। का समय आगे सँगवारी हमन झमाझम बरसा म सुर धरे उड़ावन पर बरसा होबे नइ करिस। तुमन बतावव तुहँर कति का हाल चाल हे। का एसो तुमन कतको पानी गीर मोर टोंटेच भर कहे ल पाय हवव। का एसो बने डबरी -तरिया, नरवा- नँदिया मन बाढ़िन हे। बने खेत खार अउ लेवा मन तुहँर मेछराय लइक भरे हवँय के तुहूँ मन सिसियाय घर म किसान मन कस घुसरे हवव। कि घेरी बेरी अगास ल देखत हवव अब बरीस ही के तब। 

  एक बात अउ कहत हवँव का तुहँर कती साग भाजी सदगल मिलत हे । का तुहँर चाटे खाय बर नरवा लेवा डबरा घुरुवा बारी म सरहा कोचरा पताल फेंकाय हे। नइ न ! 

  आमा के अमराई, अमली- जामुन के पेंड़ बिही बारी ए तो सब के बगइचे च कटा गे। अउ त अउ हमर डहर तो एसो कुसियार के रवार के मारे गोंदली बारी अउ कोंचई बारी मन घलो खँगत खीरत हवँय। नइ ते एकात छाक राग इँहो धर लेवत रहेंन।

अबतो सबो दुकाल हे। बरसा बिना जिनगी बदहाल हे। दिनो दिन पेड़ झाड़ जंगल कटत हे। 

       मँय सुने हँवव बड़े बड़े ऊँट हाथी किसम के जीव मनन बोतल म भरे पानी पीयत हें ।अउ त अउ सिलेंडर ले भरे हवा (ऑक्सीजन) 

सुँघत हें। बड़ चरीत्तर होवत हे।

 हमन खेत जोतावय तव नाँगर बक्खर संग इतरावन, किसानिन मन के ददरिया सुनन। तुमन के बोर बीर बोर बीर मेटे मेटे ल आरो लेवत चिर्रावन। रात रात भर मस्ती म झुमन फुरफुरावन अब तो मुहू सीला गे। 

 लेवव जय जोहार तुहँर पाती के अगोरा म । 

     झींगुर राज 

         ठौर

नवा दर्रा खेत के मेढ़ ।


अश्वनी कोशरे

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