Monday, 31 January 2022

1 फरवरी जयंती के बेरा म सुरता//


 

1 फरवरी जयंती के बेरा म सुरता//

छत्तीसगढ़ी सांचा म पगे साहित्यकार टिकेन्द्रनाथ टिकरिहा

   छत्तीसगढ़ी साहित्य के बढ़वार म जेकर मन के नांव आगू के डांड़ म गिने जाथे, वोमा टिकेन्द्रनाथ टिकरिहा के नांव अगुवा के रूप म चिन्हारी करे जाथे. उंकर नाटककार के रूप म सबले जादा चिन्हारी हे, काबर ते उन हिन्दी अउ छत्तीसगढ़ी म सैकड़ों नाटक लिखिन. फेर कविता, कहानी, व्यंग्य लेखन म घलो उंकर वतकेच योगदान हे, जतका नाटक विधा म हे. 

   एकर मन के छोड़े एक अइसे लेखन के मैं विशेष रूप ले इहाँ चर्चा करना चाहथंव, जेकर कोनो साहित्यिक चर्चा म उल्लेख नइ करे जावय. वो आय, एक हिन्दी के दैनिक अखबार म छत्तीसगढ़ी म सरलग कतकों बछर ले संपादकीय लिखना. 

   1 नवंबर सन् 2000 के जेन दिन अलग छत्तीसगढ़ राज के घोषणा होइस, उहिच दिन ले उन दैनिक अग्रदूत म छत्तीसगढ़ी म संपादकीय लिखे के चालू कर देइन. वो बखत अग्रदूत प्रेस म संपादकीय लिखे के बुता ल उही मन करत रिहिन हें. उन रोज दू संपादकीय लिखंय, एक राष्ट्रीय स्तर के मुद्दा ऊपर जेला उन हिन्दी म लिखंय, अउ एक क्षेत्रीय स्तर के मुद्दा म जेला उन छत्तीसगढ़ी म लिखंय. अइसन ऐतिहासिक बुता आज तक अउ कोनो आने साहित्यकार मन अभी तक नइ कर पाए हें.

     1 फरवरी सन् 1926 म दुरुग जिला के गाँव लिमतरा के शिक्षक पिता श्यामलाल जी के घर जन्मे टिकेन्द्रनाथ जी लइकई च ले पढ़ाकू अउ होशियार रहिन. उन पहिली खाद्य विभाग म सरकारी अधिकारी रिहिन. फेर वोला छोड़के लेखन (पत्रकारिता) ल अपन रोजगार के माध्यम बना लेइन. इही नवा रोजगार के ठीहा म मोर भेंट उंकर संग होइस दैनिक अग्रदूत प्रेस म. नवा नवा मैं अग्रदूत म सन् 1982 के आखिर म  काम करे (सीखे खातिर कहना जादा ठीक रइही) गे राहंव, वो बखत अग्रदूत ह साप्ताहिक निकलय, दू-चार महीना के पाछू सन 1983 म वो ह दैनिक होइस. तब महूं अलवा जलवा दू चार लाईन लिखे के उदिम करत रहंव अउ उहाँ के साहित्यिक संपादक, जेन अंचल के प्रसिद्ध व्यंग्यकार घलोक रिहिन आदरणीय विनोद शंकर शुक्ल जी, उनला देखावंव. उन वोमा कुछ जोड़ सुधार के छाप देवंय. मैं गदगद हो जावंव. 

  विनोद शंकर शुक्ल जी अउ मैं अग्रदूत प्रेस के ऊपर मंजिल म बइठन, तेकर सेती टिकरिहा जी संग मोर खास पहचान नइ हो पाए रिहिसे. काबर ते वोमन नीचे के कमरा म बइठंय. तब उहाँ संपादकीय आदरणीय स्वराज प्रसाद त्रिवेदी जी लिखंय. उन मोर साहित्यिक अभिरुचि ल देख के भारी मया करंय. एक दिन त्रिवेदी जी के कुरिया म बइठे रेहेंव, तभे खादी के झक कुरता पैजामा पहिर पातर देंह के सियान उहाँ आइन अउ त्रिवेदी जी ल अपन लिखे कागज ल देखाइन. त्रिवेदी जी वोमन ल कुर्सी म बइठे बर कहिन. अउ मोर डहर देख के पूछिन, तैं एमन ल जानथस का? त्रिवेदी जी मोर संग छत्तीसगढ़ी म गोठियाए के कोशिश करंय. तब तक मैं सिरतोन म टिकरिहा जी संग विशेष परिचित नइ होए रेहेंव. तब त्रिवेदी जी बताइन के ये छत्तीसगढ़ी के बड़का साहित्यकार टिकेन्द्रनाथ टिकरिहा जी आंय. मैं जोहार पैलगी करेंव. 

   बाद म तो तहाँ ले रोज जोहार पैलगी होवय. फेर नीचे के कमरा म बइठंय तेकर सेती जादा गोठ बात नइ हो पावय. कुछ दिन के बाद अग्रदूत के भोपाल संस्करण चालू होइस, अउ आदरणीय स्वराज प्रसाद त्रिवेदी जी ल संपादक बना के भोपाल भेज दिए गइस, तेकर बाद फेर संपादकीय लिखे के जवाबदारी टिकरिहा जी के ऊपर आगे, तब टिकरिहा जी के ऊपर के संंपादकीय कमरा म अवई बाढ़गे, अउ एकरे संग मोरो उंकर संग मेल जोल अउ गोठ बात बाढ़गे. हमन एके समाज के होए के सेती घर परिवार गाँव गंवई के घलो गोठ करे लगेन. उंकर हांडीपारा वाले घर आना जाना करे लगेंव, उहू मन मोर संजय नगर वाले घर पधारिन. इही बीच उन मोला छत्तीसगढ़ी म लेखन करे खातिर प्रेरित करे लागिन. तब मैं हिन्दी म ही अलवा जलवा लिखत रेहेंव. उन बताइन के उहू मन पहिली हिन्दी म ही जादा लिखंय. बाद म डा. खूबचंद बघेल के प्रेरणा ले छत्तीसगढ़ी म सरलग लिखे के चालू करिन. उन बतावंय के डा. खूबचंद बघेल उंकर हांडीपारा वाले घर म आवंय, अउ उंकर सियान संग बइठ के छत्तीसगढ़ अउ छत्तीसगढ़ी के संबंध म गोठ बात करंय. मैं वोमन ल ध्यान लगाके सुनंव. रायपुर के तात्यापारा वाले कुर्मी बोर्डिंग वो बखत स्वाधीनता आन्दोलन अउ वोकर बाद छत्तीसगढ़ राज आन्दोलनकारी मन के एक प्रकार के ठीहा रिहिस, जिहां सब जुरियावंय अउ आन्दोलन ल कइसे गति दिए जाय, एकर ऊपर चर्चा करंय.

  टिकरिहा जी बतावंय के उहू मन एकर मन के चर्चा म शामिल होवय. उंकर घर उहिच तीर हे, तेकर सेती आए जाए म सोहलियत परय. वोकरे मन के संगत के सेती मोर छत्तीसगढ़ी म छोटे छोटे नाटक लिखे के चलन बाढ़िस, अइसे बतावंय. छत्तीसगढ़ के दुख पीरा, समस्या, समाजिक असमानता जम्मो डहर कलम रेंगे लागिस.

   मोला उन साप्ताहिक अग्रदूत के जुन्ना फाइल मन ल घलो देखावंय. वोमा के हर अंक म टिकरिहा जी के कहानी, नाटक, व्यंग्य या कविता आदि कुछू न कुछू जरूर छपे राहय, अइसे एको अंक नइ राहय, जेमा टिकरिहा जी के रचना नइ राहत रिहिस होही. वोमन एक छत्तीसगढ़ी फिल्म 'मयारु भौजी' म कथा, पटकथा अउ संवाद लेखन घलो करे रिहिन.

    टिकरिहा जी भारी संकोची स्वभाव के घलो रिहिन. उन लिखंय पढ़य तो अबड़, फेर कोनो कार्यक्रम म खासकर के मंच म जवई ल भावत नइ रिहिन. महूं ल कई बखत काहय- गोष्ठी फोष्ठी म झन जाए कर समय के बर्बादी भर आय कहिके. हाँ उन आकाशवाणी जरूर जावंय. उहाँ ले उंकर कहानी अउ नाटक बहुत प्रसारित होवय. वोकर मन के कहे म महूं एक पइत अपन तीन चार छत्तीसगढ़ी कविता ल लिफाफा म भर के आकाशवाणी भेज देंव. थोरके दिन म उहाँ ले मोर जगा चिट्ठी आगे, के फलाना दिन तोर कविता के प्रसारण होही अतका बजे तैं आकाशवाणी पहुँच जाबे कहिके.

   वो बखत आकाशवाणी रायपुर के रतिहा प्रसारित होवइया चौपाल कार्यक्रम म छत्तीसगढ़ी कविता, कहानी आदि के प्रसारण घलो होवय. उहाँ बरसाती भैया (केशरी प्रसाद वाजपेयी जी), गुमान सिंह जी आदि चौपाल के उद्घोषक अउ प्रस्तुतकर्ता रहिन. मोला प्रसारण कमरा म उन अपन संग लेगिन. कार्यक्रम चालू होइस. बीच म मोला कविता पाठ खातिर आमंत्रित करिन. तब कार्यक्रम के सीधा प्रसारण होवय. तुमन बोलत जावव, अउ वोती प्रसारित होवत जाही. अब  तो पहिली ले  रिकार्डिंग कर लेथें, तेकर बाद फेर पाछू प्रसारित करथें.

   टिकरिहा जी ककरो कार्यक्रम म भले नइ जावत रिहिन हें, फेर मोर दू बड़का कार्यक्रम म उन जरूर गेइन. पहिली बार मोर द्वारा प्रकाशित संपादित छत्तीसगढ़ी मासिक पत्रिका 'मयारु माटी' के विमोचन जेकर 9 दिसंबर 1987 के कुर्मी बोर्डिंग रायपुर म विमोचन होए रिहिसे. अउ दूसर मोर पहिली आडियो कैसेट 'लहर' के विमोचन जेन कुर्मी समाज के महाधिवेशन जेन पाटन क्षेत्र म होए रिहिसे उहाँ. वइसे उंकर घर ले दू कदम के दुरिहा म छत्तीसगढ़ी समाज कार्यालय म घलो हमर मन के साहित्यिक बइठकी, जेन साप्ताहिक छत्तीसगढ़ी सेवक के संपादक जागेश्वर प्रसाद जी के संयोजन म होवय, तेनो म संघर जावंय, फेर उन सिरिफ श्रोता के भूमिका म रहंय.

   टिकरिहा जी वइसे तो छोटे बड़े सैकड़ा भर के पुरती नाटक लिखिन, वोमा दू चार बड़का नाटक घलो रिहिस. हमन उंकर एक बड़का नाटक 'गंवइहा' के मंचन रायपुर के रंगमंदिर म 1 जनवरी 1991 म करे रेहेन. पूरा तीन घंटा के प्ले रिहिसे. एला लोगन के भारी तारीफ मिलिस, त पाछू फेर भिलाई इस्पात संयंत्र द्वारा आयोजित लोक कला महोत्सव म घलो प्रस्तुत करे रेहेन. 

   गंवइहा नाटक के निर्देशन ल राधेश्याम बघेल अउ राकेश चंद्रवंशी करे रिहिन, एकर मुख्य संयोजक रिहिस पूरन सिंह बैस जी. ए नाटक के जम्मो गीत मनला मैं लिखे रेहेंव, जेला बोरिया गाँव के कलाकार संगवारी गोविन्द धनगर, जगतराम यादव, खुमान साव आदि मन के संग मिलके संगीत बद्ध घलो करे रेहेन. एकर मुख्य पात्र म राधेश्याम बघेल, विष्णु बघेल, पूरन सिंह बैस, हरिश सिंह, संदीप परगनिहा, इंद्रकुमार चंद्रवंशी, अमित बघेल, राकेश वर्मा,   मंजू, अंजू टिकरिहा, चंद्रकांता टिकरिहा, रमादत्त जोशी, टाकेश्वरी परगनिहा, साधना महावादी आदि बहुत झन कलाकार साथी रिहिन. ' गंवइहा' के रंगमंदिर म मंचन के पाछू इही मंच म आदरणीय टिकरिहा जी के आयोजन समिति डहार ले सम्मान करे गिस. मोर सौभाग्य आय के उंकर स्वागत थारी ल धरे के मुही ल अवसर मिलिस.

   7 अक्टूबर सन् 2004 के दिन ल मैं अपन जिनगी म कभू नइ भुलावंव. तब मैं प्रेस के काम ल छोड़ के अपन खुद के रिकार्डिंग स्टूडियो चलावत राहंव. दिन भर इहें बइठंव, काबर ते चारों मुड़ा के कलाकार अउ साहित्यकार मन इहें मोर जगा आ जावंय, त मोला ककरो संग भेंट करे बर कहूँ जाए के जरूरते नइ परय. फेर वो दिन जाने कइसे मोला अपन स्टूडियो म बइठे के मने नइ होइस. तेकर सेती मैं उठाएंव गाड़ी अउ शहर कोती रेंग देंव. अचानक  अग्रदूत प्रेस जाए के मन होइस, गुनेंव अबड़ दिन होगे हे, वोती गे, चलो जुन्ना संगवारी मन संग भेंट कर लिया जाए.

   मैं सीधा अग्रदूत प्रेस जेन वो बखत मालवीय रोड म रिहिस उहाँ चल दिएंव. अंदर घुसरेंव त उहाँ के केशियर वर्मा जी तीर ठाढ़ हो गेंव. तब उन बताइन के टिकरिहा जी तो अब हमर बीच म नइ रिहिन. मैं कइसे गोठ करथव वर्मा जी कहेंव, त उन बताइन, अभी मुकेश के फोन आए रिहिसे. मुकेश, टिकरिहा जी के छोटे मंझला बेटा आय, वो बखत उहू ह अग्रदूत प्रेस म काम करत राहय. 

 वर्मा जी मोला कहिस के मैं मुकेश ल बोल दे हंव अंतिम संस्कार के पूरा व्यवस्था प्रेस डहार ले होही, तुमन कुछू लेहू झन कहिके.  वर्मा जी (तब वोमन घलो मोला वर्मा जी ही काहंय) तुमन बांस टाल जावव न उहाँ अंतिम संस्कार के जम्मो समान मिल जाथे, वोला ले के रिक्शा म जोर के हांडीपारा उंकर घर अमरा देवव. 

   मैं वर्मा जी के प्रेस डहार ले दे पइसा ल धरेंव अउ बांस टाल चल देंव. वोती वर्मा जी ह मुकेश ल बता दे राहय के सुशील वर्मा (भोले) ह अंतिम संस्कार के सब समान लेके आवत हे, तुमन बाकी सब तैयारी ल कर के राखव. मैं सब समान ल धर के हांडीपारा वाला घर  पहुंचेंव तब तक जम्मो नता रिश्ता अउ शहर के जम्मो पत्रकार साहित्यकार मन उहाँ पहुँचगे राहंय. तहाँ उनला अंतिम बिदागरी दे के काम चालू होगे.

   ए कइसे अजीब संयोग आय के जे आदरणीय टिकरिहा जी मोला छत्तीसगढ़ी लेखन खातिर रद्दा बताइन, उंकरे अंतिम बिदागरी के समान ल मैं अपन हाथ ले लेके गेंव. उंकर सुरता ल सादर नमन.. दंडासरन पैलगी.

-सुशील भोले

संजय नगर, रायपुर

मो/व्हा. 9826992811

क्रांतिकारी वीर, छत्तीसगढ़ के मंगल पांडे, ठाकुर हनुमान सिंह



 

*क्रांतिकारी वीर, छत्तीसगढ़ के मंगल पांडे, ठाकुर हनुमान सिंह*

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क्रांतिकारी कहे म उन देशभक्त वीर मन के छवि, मानस पटल म उभरे ल धर लेथे जे मन भारत माता के परतंत्रता के बेड़ी ल काटे बर अत्याचारी ब्रिटिश हुकूमत संग अपन जान के बाजी लगाके, मूँड़ म कफन बाँध के लड़िन। क्रांतिकारी मन के सीधा सिद्धांत रहिस--''जिन्ह मोहि मारा,ते मैं मारे"।ईंट के जवाब पत्थर ले देना चाही--इँकर मूल मंत्र रहिसे। अत्याचारी मन के निर्मम हिंसा के जवाब,हिंसा ले देये म इन पीछे नइ हटत रहिन हे। ब्रिटिश शासन के अत्याचारी गोरा मन ल रद्दा ले हटा के ,आजादी के मारग ल इन चतवारना चाहत रहिन हें।धन्य हें ये क्रांतिकारी मन।

        हमर देश म आजादी के लड़ाई जेकर से जइसे बन परिस तइसे--कई मोर्चा म लड़े गिस। ये लड़ाई म पढ़ईया लइका, सरकारी नौकरी करइया, वकील, किसान, गृहणी, साहित्यकार, राजनैतिक दल, क्रांतिकारी युवा अउ अंग्रेजी सेना के भारतीय सैनिक मन के अनमोल योगदान रहिसे।

     छत्तीसगढ़ महतारी के भुँइया म तको आजादी के लड़ाई के कतकोन इतिहास भरे हे। सन् 1857 के गदर ल प्रथम स्वतंत्रता संग्राम भले कहे जाथे फेर इहाँ के आदिवासी मन अलग-अलग कारण ले एकर पहिलीच ले ब्रिटिश हुकुमत ले विद्रोह करके अपन प्राण न्योछावर करें हें।

      इही क्रांतिकारी मन में एक झन सोनाखान के शेर सपूत छत्तीसगढ़ के प्रथम शहीद वीर नारायण सिंह रहिसे। जब वोला पकड़के 10 दिसम्बर 1857 के रायपुर (वर्तमान जय स्तंभ चौक ) म अंग्रेजी शासन ह सरे आम फाँसी दे दिस त सरु छत्तीसगढ़िया मन के आत्मा खउलगे। जगा-जगा विरोध होइस।चारों कोती अशांति फइलगे।ये विरोध के आगी ल लेफ्टिनेंट स्मिथ के फौज ह बंदूक के नोक म लटपट म बुझाइस फेर चिंगारी तो  दहकते रइगे--भारतीय सिपाही मन के छाती म।

        इही म रायपुर के अंग्रेजी हुकुमत के सैनिक छावनी के बहादुर सिपाही ठाकुर हनुमान सिंह के छाती के चिंगारी ह धधकत दावानल बनगे।जब ले वो सुने रहिस के क्रांतिकारी ,गरीब मन के हितवा जमींदार वीर नारायण सिंह ल फाँसी दे दे गेहे ,तब ले वो व्याकुल होगे रहिस।वोकर हिरदे अँग्रेज मन बर नफरत अउ गुस्सा ले भरगे रहिस।वो ह दाँव खोजत रहिस के कब लेफ्टिनेंट जनरल स्मिथ जेन ह वीर नारायण ल पकड़ के लाये रहिस अउ वोकर अंग्रेज आफीसर मन ल काट के कुढ़ो दवँ। वो ह मौका के तलाश म रहिस।

    कहिथे न - ' चहाँ चाह है वहाँ राह है '।  हनुमान सिंह ल वीर नारायण सिंह के फाँसी के 40 दिन पाछू वो अवसर मिलगे। साँझ के गहिरावत अँधियार म 18 जनवरी 1858 के उही लगभग 7:30 बजे तलवार धरे लेफ्टिनेंट  सार्जेट मेजर सिडवेल के बंगला म धावा बोल के वोला कुटी-कुटी काट के कुढ़ो दिस तहाँ ले खून म सनाये तलवार ल लहरावत शस्त्रागार कोती दउँड़गे। उहाँ जाके सैनिक मन ले विद्रोह बर पुकार करिस, देखते देखत 17 झन आजादी के परवाना सैनिक जिंकर नाम--शिवनारायण(गोलची), पन्नालाल (सिपाही), मतादीन(सिपाही), ठाकुर सिंह(सिपाही), बल्ली दुबे(सिपाही), ल ल्ला सिंह(सिपाही), बुद्धु सिंह (सिपाही),परमानंद(सिपाही),शोभाराम (सिपाही), गाजी खान(हवलदार),अब्दुल हयात(गोलची), मल्लू(गोलची), दुर्गा प्रसाद(सिपाही),नजर मोहम्मद(सिपाही), देवीदास(सिपाही)अउ जय गोविंद(सिपाही) मन भारत माता के जै बोलावत दउँड़ के आगें तहाँ ले जम्मों झन बंदूक अउ कारतूस मन ला अपन कब्जा म कर लिन।अगर कहूँ अँगरेजी फौज के जम्मों भारतीय सिपाही आ जतिन त छत्तीसगढ़ ले उही दिन अँग्रेज मन के नामो निशान मिट जतिस फेर कुछ डरपोकना अउ घुचपुचिया मन गोरा मन के पाछू म जाके लुकागें।

       इही बीच सिंडवेल के हत्या अउ सैनिक विद्रोह के खबर पूरा छावनी म फइलगे।लेफ्टिनेंट रैवट अउ लेफ्टिनेंट सी० एच०एच० लूसी ह अपन सैनिक मन संग विद्रोही सैनिक मन ल घेर लिस।लगभग छै छंटा ले मुकाबला होइस। विद्रोही मन के गोली सिरागे, बंदूक के मुँह बंद होगे तहाँ ले अंग्रेज मन सबो विद्रोही क्रांतिकारी सैनिक मन ल पकड़लिन फेर वोमा वीर हनुमान सिंह नइ रहिस।वो तो अंग्रेजी फौज के चंगुल के बोचक के कती गिस तेकर पता कोनो ल नइ चलिस।

     पकड़ाये सबो 17 क्रांतिकारी सैनिक मन उपर झटपट मुकदमा चलाके रायपुर के डिप्टी कमिश्नर इलियट के आर्डर ले सैनिक छावनी (वर्तमान पुलिस लाइन मैदान रायपुर) म 22 जनवरी 1858 के फाँसी म लटका देइन। उपर ले इन अमर शहीद मन के परिवार जन उपर जुल्म ढावत, उँकर सम्पत्ति ल जप्त कर ले गिस।

    वोती ठाकुर हनुमान सिंह ल जिंदा या मुर्दा पकड़े बर 500 रुपिया के इनाम के घोषणा कर दे गेइस फेर  बैसवाड़ा (वर्तमान अवध क्षेत्र, उत्तर प्रदेश) म 1922-23(निश्चित तिथि ज्ञात नइये) म जन्मे 35 साल के गबरू जवान ,राजपूत देशभक्त, मतवाला ठाकुर हनुमान सिंह कभू ककरो हाथ नइ अइच।

अइसे भी बताये जाथे के वो ह 24 जनवरी 1958 के रात म उही अंग्रेज मन के खून के प्यासा तलवार ल धरके कमिश्नर इलियट के बंगला म जिंहा स्मिथ तको सुते रहिस हे, दूनों झन ल काटे बर दीवाल फाँद के कूदे रहिसे फेर पहरादार मन के चिल्लाये ले सब बिरथा होगे अउ वीर हनुमान सिंह ह लहुटगे।वो दिन ले वो कहाँ गिस, कहाँ रहिस, कब अमर लोक गमन करिस---कोनो ल पता नइये।

  धन्य हे भारत के लाल क्रांतिकारी ठाकुर हनुमान सिंह जेला छत्तीसगढ़ के मंगल पांडे पुकारे जाथे---धन्य हे--धन्य हे----धन्य हे।


जय हिंद। वंदेमातरम।


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

महात्मा गांधी जी ला श्रद्धा सुमन* ======०००======

 *महात्मा गांधी जी ला श्रद्धा सुमन*

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    *लगभग ३५० बच्छर तक ब्रिटिश हूकूमत ह हमर भारत देश म शासन करते हुए भारतवासी के नस-नस ले वाकिफ हो चुके रहिस*

     *दुर्भाग्यवश हम सब भारतवासी म जात-पात,छुआछुत, ऊंच-नीच,धर्म भीरू, आलसीपन, कामचोर,संतोषी प्रवृत्ति, भाई-भाई म झगरा,बाप-बेटा म तकरार,नशाखोरी आदि बुराई अउ एही हमर मुख्य कमजोरी ला अंग्रेज मन सबसे बड़े हथियार बना लेहिन,तभे अत्तेक दिन तक तानाशाही करते हुए हम सब भारतवासी ऊपर अपार जुल्म सीतम ढाए के साहस करिन*

     *हमर नजर के सामने हमरे बेटी-बहू के इज्जत ला तार-तार करके हैवानियत करे के आदत बना लेहे रहिन*

    *तऊन महान क्रूर तानाशाही पशु तुल्य अंग्रेजी हूकूमत के विरूद्ध आवाज उठाने वाला,घोरतम अंधकार में एक "चिराग" रूपी महान् आत्मा गुजरात के पोरबंदर नामक छोटे से गांव में जन्मे "मोहनदास करमचंद गांधी जी" अवतरित होईस*

     *मोहनदास करमचंद गांधी से "महात्मा" के उपाधि प्राप्त करना "कोई चना-मुर्रा खाए सहीं सहज नोहय*

     *तईसने एक सामान्य इंसान ला हमर देश के जम्मो लईका,सियान,स्त्री-पुरूष,सब्बो जवान,आमजनमानस द्वारा फोकटे-फोकट "राष्ट्रपिता" ले संबोधन काबर करिन ? "राष्ट्रपिता" नाम से संबोधन कोई व्यर्थ संबोधन नोहय,नइतो हर मनखे ला राष्ट्रपिता नइ कहितिन? एहूच संबोधन के पीछे मोहनदास करमचंद गांधी जी के व्यक्तित्व अउ कृतित्व के परिणामस्वरूप ही आप ला "राष्ट्रपिता" नाम से संबोधन करे जाथे*

     *आज के परिवेश ला देखते हुए कोनो उथली सोच के कारण कहना सुरू कर दिए हवंय के -गांधी जी अब अप्रासंगिक हो गए हवंय,ये विचार हा समवेत स्वर नोहर,बल्कि वो बोलैया मनखे के जतका बुद्धि,जईसन सोच हवय,तेकर उपज आय*

    *जबकि मोर व्यक्तिगत विचार से श्रद्धेय गांधी जी,अपन जीवनकाल म पूजनीय तो रहिबे करिस, आज भी प्रासंगिक हवंय,कल भी प्रासंगिक रहिही अउ चिरकाल तक सदा दिन प्रासंगिक ही रहिहीं*

   *ये बात भी अकाट्य सत्य आय -पेट भर भोजन प्राप्त हो जाय के बाद कतको लजीज व्यंजन रहे,चाहे मेवा मिष्ठान रहे,ओकर कोई औचित्य नइ रहै*

    *भरपेट पानी पी लेहे के बाद छटाक भर पानी घलो औचित्यहीन लगते*

     *स्वारथ सिद्ध हो जाय के बाद सगे बाप के प्रति भी वो सद्भावना नइ रहै,नइतो मौका परे म "गधा ला घलो बाप कहना पड़ जाथे*

    *एक बात अउ अटल सत्य हवय-"बड़े से नदिया म जब तक स्वयं के जलधारा प्रवाहित होवत रहिथे,तब तक वोमा के जल हा परम पवित्र,एकदम निर्मल नीर बोहावत रहिथे,लेकिन जब वोमा छोटे-छोटे ढेर सारी अन्य नदिया आ के मिल जाथे, शहर-शहर,कस्बा-नगर के गटर के गंदगी पानी आ के मिल जाते,तब "पापनासनी गंगा मैया" के जल ला घलो प्रदूषित कर देथे*

    *तईसनेच महात्मा गांधी जी जब तक स्वयं के विचारधारा स्वयं के सिद्धांत के पालन करत रहिन,तब तक महान् पूजनीय रहिन,लेकिन जब गांधी जी कोई पार्टी,कोई परिवार के प्रति जुड़ के ऊंकर दबाव में काम करना सुरू करिन,तब से आप के महत्व,आप मान-सम्मान धीरे-धीरे धूमिल होना सुरू होगे*

    *अईसनेच कोई महापूरूष के व्यक्तिगत त्याग,तपस्या सेवाभाव हा पूजनीय रहिथे,लेकिन जब कोनो आश्रम बना लेथैं,आश्रम बना के ढेर सारा चेला,समर्थक,अनुयायी बना लेथें,तब ओकर अनुयायी मन ओकर सिद्धांत के पुजारी बने के ढोंग करे लागथें अउ वो महापुरुष के विचारधारा, सिद्धांत ला क ख ख घ नइ जानते हुए भी अपन"डेढ़ बुद्धि" लागू करके संबंधित महापुरुष अउ ओकर सिद्धांत,वाद के मटियामेट कर डालथैं*


    *आज हमर देश के महान विभूति राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी के १५१वें जन्म दिवस के उपलक्ष्य में सादर नमन करते हुए श्रद्धा सुमन अर्पित करत हौं*


    दिनांक-०२.१०.२०२०


*गया प्रसाद साहू*

   "रतनपुरिहा"

*प्रादेशिक महासचिव*

*कला परंपरा-कला बिरादरी संस्थान छत्तीसगढ*

🙏💐💐💐💐💐👏

Sunday, 30 January 2022

चलौ महात्मा गाँधी जी ल खोजन


 

चलौ महात्मा गाँधी जी ल खोजन

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प्रसिद्ध वैज्ञानिक अलबर्ट आईंस्टीन हा कहे हे--"आने वाली नस्लें यह मुश्किल से विश्वास करेंगी कि हाड़-मांस से बना ऐसा कोई इंसान भी धरती पर कभी आया था।"

       वोकर उद्गार सिरतो म कतका सच हे के हमर जइसे पीढ़ी जेन ह न तो स्वतंत्रता आंदोलन ल देखे हावन ,न तो राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ल,सिरिफ फोटू म देखे अउ किताब म पढ़े हावन वोला विश्वासे नइ होवय के ये घोर कलयुग म जिहाँ चारों कोती स्वार्थ,छल-छिद्र, हिंसा, झूठ-फरेब बगरे हे उहाँ 74 साल पहिली अहिंसा अउ करुणा के मूर्ति, सत्यवर्ती ,भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अजेय योद्धा, सच्चा समाज सेवक मोहनदास करमचंद गाँधी नाम के मनखे राहत रहिसे। अइसे महापुरुष जेन काहय तेला अक्षरशः करके देखावय।जेकर मानना रहिसे के क्रोध ल क्रोध ले नहीं भलुक प्रेम ले बुझाये जा सकथे। हिंसा ल हिंसा ले नहीं बल्कि अहिंसा ले मिटाये जा सकथे।जेन ह आन ल कुछु शिक्षा देये के पहिली खुद अपनावय चाहे वो सत्याग्रह के बात होवय ,चाहे अहिंसा के बात होवय,चाहे उपवास, शाकाहार या प्राकृतिक चिकित्सा ल अपनाये के बात होवय।

     सच ह तो सच होथे ।सिरतो म  विश्व वंद्य अइसन हाड़-मास के पुतला, गाँधी जी के रूप म, हमर महतारी भुँइया भारत म जनम लेये रहिस हे। अक्सर अइसे देखे-सुने म आथे के मनखे के मूल्यांकन वोकर मरे के पाछू होथे फेर गाँधी जी तो अपन जीते जी संसार म बहुतेच प्रसिद्ध होगे रहिस हे। गुरुदेव रविन्द्रनाथ टैगोर ह उन ल 'महात्मा' कहिके विभूषित करिन। ये शताब्दी म गाँधी जी जइसे सच्चा धार्मिक अउ करुणा ले भरे हिरदे के, दीन -दुखी, रोगी, कोढ़ी -अपाहिज के  निस्वार्थ सेवा करइया खोजे नइ मिलय।

         सत्य, अहिंसा, प्रेम, दया-परोपकार, सेवा इही मन तो असली धर्म आयँ जे मन आदिकाल ले ये सृष्टि म सुखी समाज के अधार आँय तेकरे सेती कहे जाथे के सत्य धर्म हा सनातन अउ अजर- अमर होथे। अतका जरूर हे समे के गर्त म ये ह जब दबे असन हो जथे तब कोनो महान आत्मा ह अपन कर्म ले वो गर्त ल हटाके वोला पुन: स्थापित करे के काम करथे। पूज्य गाँधी जी वोइसने महान आत्मा रहिस जेकर एक आह्वान म लाखों नर नारी अपन सब-कुछ न्योछावर करके, आजादी के समर म कूदे बर तइयार राहयँ।वाणी म अइसन चमत्कारिक प्रभाव बिना कठोर साधना अउ संयम के नइ आ सकय।

       परम पूज्य बापू जी के जीवनी ल पढ़े ले पता चलथे के वोकर उपर उनकर धार्मिक स्वभाव के महतारी पुतलीबाई, मर्यादा पुरुषोत्तम दशरथ नंदन श्रीराम, भक्त प्रहलाद अउ सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र के संगे संग सदग्रंथ गीता के गहिरा छाप परे रहिस। एकर परछो बापू के जम्मों कार्य म करे जा सकथे चाहे वो उनकर प्रिय भजन -वैष्णव जन तो तेणे कहिए-----,रघुपति राघव राजाराम ---,अछूतोद्धार, चरखा काँतना, मितव्ययता ,सर्व धर्म समभाव सहित ,आजादी के वोकर द्वारा चलाये गे सबो आंदोलन।

   संसार म गाँधी जी जइसे क्षीणकाय ,फकीर अउ कोनो नइ मिलय जेन अपन अहिंसा,असहयोग अउ सत्याग्रह के बल म देशवासी ल जगाके ,  बंदूक ,बम -बारूद वाले शक्तिशाली अत्याचारी, सम्राज्यवादी अँग्रेज मन ल पराजित कर दिस।

        गाँधी जी निष्काम अउ निस्वार्थ सेवा के जीता जागता उदाहरण रहिस। वो चाहतिस त स्वतंत्रता मिले के बाद खुद प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति बन सकत रहिन फेर वो ये सब ल ठुकराके बिना कोनो राजनीतिक पद के समाज सेवा ल अपन कर्तव्य चुनिस।

       सत्यमार्ग म चलने वाला के हर युग म विरोधी होथेच। राम बर रावण त कृष्ण के विरोधी शिशुपाल अउ कंस मिली जथे। पांडव मन उपर अत्याचार करइया कौरव मन के कहाँ कमी हे ?गाँधी जी के विचार धारा के विरोध करइया तको रहिसे। दुष्ट  नाथू राम गोड़से के गोली मारे ले पूज्य महात्मा गाँधी ह 30जनवरी 1948 के 'हे राम ' काहत अपन प्राण त्याग के स्वर्गलोक गमन करे रहिस।

         महात्मा गाँधी जी के काया भले माटी म मिलगे फेर वोकर अजर-अमर विचार धारा जिंदा हे। फेर अइसे लागथे के वो ह राजनैतिक छल-छंद, भाई भतीजावाद, भ्रष्टाचार, जात-पात, शोषण आदि के कचरा म गँवागे हे। ये विचारधारा के आड़ लेके कतको झन सिरिफ अपन राजनैतिक रोटी सेंके के काम करत हें त कतको झन इही विचारधारा के मुखौटा लगाके आडंबर करत हें। गाँधी जी के नाम तो याद हे फेर काम बिसरा गेहे।गाँधी जी अउ राम राज के भारी हल्ला होवत हे।

      सचमुच म अगर हम ये संसार ल स्वर्ग सहीं बनाना चाहत हावन, भारत म राम राज अउ खुशहाली लाना चाहत हावन त ईमानदारी ले महात्मा गाँधी जी के विचार ल अपनाये बर लागही।

 परम पूज्य राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी जी ल शत शत नमन हे।


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

Saturday, 29 January 2022

नान्हें कहिनी वो कुरिया

 नान्हें कहिनी

           वो कुरिया

           

            "दाई दिखत नइये कोनो डहर गे हवे का?गांव गवतरी?" रमलू के मितान ह मंगलू ला पूछिस।

          "हव गा मितान, वो का हे कि हमर घर -कुरिया मन ह छोटकन परत रहिस।दाई बर घर म जघा नई पुरत रहिस त घरवाली अउ लईका मन  कहिन त दाई ल  हमन वृद्धा आश्रम म भेज देहन।"रमलू कहिस।

         "अरे!फेर तुंहर घर म तो तीन ठीन कुरिया हे। एक ठी कुरिया म तुमन दुनों गोसाईं-गोसईन रहिथो।एक ठी म लईका मन अउ एक ठी म तो दाई ह रहत रहिस।त अब का होगे जी?ये कइसन कर डरेव तुमन?" मंगलू ह गुस्साए कस कहिस।

         हां मितान, का करबे।अब तीसर कुरिया म हमर घर के कुकुर झबरा ह रहत हे।वो का हे कि झबरा कुकुर बिन हमर लईका मन नी रह सके।त दाई ल वृद्धा आश्रम मजबूरी म भेजना  पर गे।" रमलू ह  झेंपत  कहिस।

             डॉ. शैल चन्द्रा

            रावण भाठा, नगरी

            जिला-धमतरी

            छत्तीसगढ़

डायरी

 23 जनवरी 2022 दिन इतवार 

                                                                       बिहनिया 9 बजे 

  आज नेता जी के दिन आय ...अभियो नेता जी कहे ले एके झन मनसे के सुरता आथे जेला हम सबो झन सुभाष चंद्र बोस के नांव से जानथन । डायरी अउ कलम दुनों तो मोला अगोरत रहिथें ..समय सुजोग मिलथे त कुछु काहीं लिखथंव जी ...थोरकुन पढ़े लिखे के बान तो  लइकाई च ले पर गए हे न ..।  अक्षर ज्ञान होए के बाद तो सबो झन ल पढ़े आइ जाथे उही जेला साक्षर होना कहिथें फेर पढ़ना घलाय हर एक ठन कला तो आय जेला साधे बर परथे एकरो ले बड़े बात के मन मं विचार आथे पढ़ना काबर , कब , कइसे अउ का पढ़ना चाही जेहर गहन गंभीर अध्ययन के रुप लेहे सकय ...। 

     सुरता आवत हे स्कूल मं जब " नेता जी के तुलादान " कविता पढ़ेवं तभे उंकर बारे में अउ जादा जाने के मन लगिस ...त श्री कृष्ण सरल के लिखे सुभाष चन्द्र बोस , सुभाष चन्द्र की दृष्टि में स्वतंत्रता , चंद्रशेखर आजाद किताब मन ल पढ़ेवं अउ कुछु पढ़े के मन होए लागिस । 

नेहरू पुस्तकालय जांजगीर ले भैया दू ठन किताब लानिन पहिली " एक भारतीय यात्री " (एन इंडियन पिलिग्रिम ) दूसर भारत का संघर्ष ( द इंडियन स्ट्रगल ) दूनों किताब अंग्रेजी मं लिखे हें सुभाष चन्द्र बोस ...मोला तो ये किताब मन नेता जी के आत्मकथा असन लगिन । उन लिखे हें " अपनी ताकत पर भरोसा रखो , उधार की ताकत घातक होती है । " आज गुनत हंव ओ समय तो मोला राजनीति , क्रांति , साम्राज्यवाद , समाजवाद , हिंसा , अहिंसा असन विषय मन समझे च मं नइ आवत रहिन ...। अकबका के फेर श्री कृष्ण सरल के सरन परेवं तब चिटिकन सुराहा मिलिस । ठीक तो आय सुभाष चंद्र बोस तो हिंसावादी रहिबे नइ करिन उन तो ब्रिटिश साम्राज्यवाद से बल्कि कहिन त विश्व साम्राज्यवाद से संसार के सबो देश राज के सबो मनसे के रक्षा करना चाहत रहिन जेकर बर जरूरत परे मं हथियार उठाना , लड़ाई करना ल वाजिब समझत रहिन । तभे तो कांग्रेस से मोहभंग होइस त 16 मार्च 1939 के दिन इस्तीफा दे दिन । आजाद हिंद सेना के गठन , स्थापना तो सन् 1943 मं करे रहिन । ठीके कहिथें के श्री कृष्ण सरल अपन लेखन से क्रांतिकारी , देशभक्त मन ल सबले जादा श्रद्धाजंलि देहे हें ...उही जेला हमन आखर के अरघ कहिथन । 

   अउ सुरता आवत हे उही समय भैया के किताब वाला आल्मारी मं ख़ाकी जिल्द वाला मंझोलन अकार के पुस्तक रहिस " पथेर दावी " शरत चंद्र चट्टोपाध्याय के बंगला भाषा मं लिखे किताब ...अभी हांसी आवत हे ओ दिन ललही बड़े नोनी मंझनिया ले भैंसा मुंधियार होवत तक पूरा किताब ल पढ़ी च डारिस ...का करवं ..आल्मारी मं किताब ल रखना भी तो रहिस दूसर डर के मां , काकी , बड़े फूफू कोनो देख डारतिन त पढ़न्तिन नोनी ल गारी खाए ले कोन बंहचातिस ? आज गुनत हंव पथेर दावी के प्रकाशन तो सन् 1926 मं होए रहिस त फेर उपन्यास के पात्र डॉक्टर सव्यसाची के चरित्र चित्रण हर दूरदृष्टि वाला  , क्रांतिकारी के रुप मं अतका सटीक कइसे हे ? 

 दूसर बात के पथेरदावी तो एक ठन विप्लवकारी संगठन के नांव रहिस मनसे के नांव थोरे रहिस ? तीसर बात के सव्यसाची हर घलाय तो स्वामी विवेकानन्द अउ अरविंद घोष के विचार मन ल जानय , मानय , समझय । नेता जी असन ओहू हर महात्मा गांघी ल राष्ट्रपिता कहय त रवींद्र नाथ ठाकुर संग सलाह मशविरा , देश के दशा उपर बातचीत करयं । मोला लगते इही सब के चलते शरत बाबू के पथेरदावी ल ओ समय के ब्रिटिश सरकार हर ज़ब्त कर देहे रहिस । 

अतका जरुर हे उपन्यासकार रोचकता बढ़ाये बर ही भारती अउ सुमित्रा असन नारी पात्र ल जघा देहे हंवय एकर फायदा ए होइस के सव्यसाची के सुदृढ मनोबल , अटूट अडिग देशप्रेम वाला चरित्र हर पुन्नी कस चंदा जग जग ले अंजोरी बगरा देहे हे । 

उन भारती से कहे हें " राज करने के लोभ से जिन लोगों ने देश में मनुष्य कहने लायक दस , पांच मनुष्य भी नहीं छोड़ा है , उन लोगों को मैं कभी क्षमा नहीं कर सकता । विदेशी हुकूमत का मुझसे बड़ा शत्रु कोई दूसरा नहीं हो सकता । " 

तलवलकर , गाड़ीवाला , पगला बइहा के रूप धरे बेहाला बजानेवाला , अपूर्व जेहर बढ़िया तनखा वाला नौकरी पाए के लोभ मं संगठन संग गद्दारी करथे अइसन मनसे मन ही ओ समय देशभक्त मन के चारी चुगली सरकार तिरन करत रहिन । सव्यसाची कहिथें ए पराधीन देश के फुटहा करम आय के इहां विभीषण , जयचंद , दाहिर असन मनसे सबो जुग मं होवत आए हें । 

पथेरदावी के संकल्प रहिस हे जल्दी से जल्दी देश ल स्वाधीन बनाना ...अउ नेता जी भी तो कहे रहिन " चलो दिल्ली ...तुम मुझे खून दो , मैं तुम्हें आजादी दूंगा । " 

    पथेरदावी के दरकना हर सव्यसाची ल निराश तो करबे च  करीस तभे तो उन बिरबिट कारी रात मं अहोधार बरसत पानी मं भरोसेदार गाड़ीवाला के सहायता से बर्मा चल दिहिन , गुनिन होहीं नवा पथ के दावेदार के संग़ठन करके देश ल आजाद कराए के सपना ल तो पूरा करे च बर परही ...। 

   पूरा शरत साहित्य डहर नज़र डारिन त पाबो के ये उपन्यास हर लीक से हट के , अनमोल हे । 

सहित्यकार तो युगसृष्टा , युगदृष्टा होबे करथे तभे तो ये उपन्यास ल पढ़े के बाद अभियो मोला डॉक्टर सव्यसाची मं नेता जी सुभाष चंद्र बोस दिखथें । 

  आज तो देश पराक्रम दिवस के ओढ़र मं नेता जी ल ही सुरता करत हे , बड़ खुशी के बात आय ।  अब ए उम्मर मं मोर सुभाव तो बदलही नहीं तभे तो मैं किताब मन के सुरता करत हंव ..। रात पहावत हे , डायरी कलम बंद करके नींद के हांथ पांव जोरे बर परही ...नहीं त नींद के का ठिकाना रात जागा पाखी ( उल्लू ) समझ के खिड़की ले झांक के भाग पराही । 

     सरला शर्मा

व्यंग्य-खुरसी के कीमत

 खुरसी के कीमत 


                हमर गाँव के एक झन मनखे के घर म जुन्ना पुराना ददा पैती के खुरसी हा पठँउहा म गरू माढ़े रहय । कोठी ले धान हेरे के बेर .. नौकर मन घला .. घेरी बेरी खुरसी ला एती ले वोती टारत असकटागे रहय । घर के मन हा जइसे सुनिन के खुरसी घला बेंचावत हे .. वहू मन खुरसी ला बेंचे के सोंच डरिन । सियान सियानिन हा कतको मना करिस फेर बहू बेटा मनके आगू म नइ चलिस । सियान हा अतका तक किहिस के ओला कोन बिसाही गा तेमा ? बेंचना हे त .. हमन ला मरन दव तहन बेंच लेहू .. । घर के मन नइ मानिन । खुरसी के नाव म .. घर म रात दिन हरहर कटकट होय के आशंका म सियान के जिव धकधकागे .. ओहा खुरसी ला बेंचे बर हामी भर दिस । खुरसी बहुतेच सुघ्घर रिहिस । अबड़ दिन ले पठँऊहा म माढ़हे माढ़हे मइलागे रिहिस । धुर्रा माटी ला फरिया गुड़ी म रगड़ रगड़ के पोंछ डरिस अऊ धो धुवा के घर के बाहिर परछी म निकाल के मढ़हा दिस । केऊ दिन तक बाहिर म माढ़हे रहि गिस फेर कोई बिसइया नइ अइस । कोन्हो खुरसी ला हिरक के तको नइ देखिस ।

               घर म आपस म सबो झन चरचा करिन के अतेक दिन होगे खुरसी ला बाहिर म माढ़हे .. कन्हो लेवाल आबेच नइ करिस । सियान किहिस – मेहा तो पहिलिच केहे रेहेंव के कोन हमर घर के खुरसी ला बिसाही .. फेर तूमन तो मानबेच नइ करेव । ओकर नाती हा किथे – बेंचाही बबा । फेर कन्हो ला बताये बर परही के हमन खुरसी बेंचत हन .. तभे तो लेवाल आही । दूसर ला कइसे पता चलही के तूमन खुरसी ला बेंचे बर राखे हाबव । दूसर दिन खुरसी के तिर म एक ठिन बोर्ड टँगागे – खुरसी बेचना हे .. इच्छुक बिसइया सम्पर्क करव ... । बोर्ड हा टँगाये टँगाये थकगे । बोर्ड के गोड़ टुटगे फेर कोई मनखे तिर म नइ ओधिन । 

               घर के सदस्य मन के बीच बइसका सकलागे । चारों मुड़ा चाँव चाँव होय लगिस । बहू बेटी मन खुरसी ला रोज रोज झाड़ धो पोंछ के तंग आ चुके रिहिन । ओमन खुरसी ला टोर फोर के आगी बारे के सलाह दे लगिन । बेटा मन वापिस पठँऊहा म टाँगे के बात करिन । नाती मन खुरसी ला क्रिकेट के समान बनाये के जिद करे लगिन । सियान किथे – में जानत हँव बेटा .. कोन हमर खुरसी ला बिसाही .. फेर तूमन नइ मानेव । तेकर ले .. रहन देव एला .. तुँहरे मन के बइठे के काम आही । नाती टुरा मन भड़कगे – अइसन खुरसी म बइठबो त हमर तो धंधा चौपट हो जही बबा । एमा कोन्हो ला बइठना नइहे कहिके तो बाबू मन एला पठँउहा म टाँग के राखे रिहिन । येहा नइ टँगाये रहितिस .. त हमन अभू घला खाये बर तरसत रहितेन । 

               सियानिन किथे – अइ पठँउहा म टाँगे म जब हमर धन दोगानी म अतेक बढ़होत्तरी होइस तब येला घर ले निकाल के बेंचे म अऊ कतेक हो जहि .. गऊकिन हम नइ जानत रेहे हन बेटा .. । तोर बबा हा तो फायदा के बात तो मोला कभूच नइ बतइस । अब तो हमर मरे के पहरो आगे हे बेटा । हमर काये .. आज के रेहे कल के गे .. । तूमन जइसे उचित समझव कर डरव ... ।  

               नाती किथे – येकर पाया ला बदल देबो तहन जरूर बेंचाही .. डोकरी दई । कुछ दिन म पाया बदलगे । बहुत जल्दी ओकर बाबू हा सरपंच बनगे । खुरसी ला बिसाये बर घर म लइन लगगे । जइसे जइसे खुरसी के बोली लगत गिस तइसे तइसे ओकर कीमत बाढ़त गिस । एक दिन नाती हा विधायक बन गिस । खुरसी के रेट महँगाई कस सनसनऊँवा बाढ़े लगिस । नाती हा विधायक ले उपर अऊ चार कदम ओ पार नहाकगे । खुरसी के रेट हा आसमान छुये ला धर लिस । खुरसी के कीमत ला सियान ला अभू तक समझ नइ अइस । ओहा पठँउहा भितरि म वापिस राखे के जुगत म लगे रहय .. एती नाती मन खुरसी ला अतेक वजनदार बना डरे रहय के .. ओला उचा सकना सियान के बस के बाहर के बात रिहिस । जनता के खुरसी ला कोन बिसाही ... ओला बेंचे बर ईमानदारी के जुन्ना पाया ला निकालके .. ईमानदार लिखाये नावा पाया धराये ला परथे ... वजनदार बनाये बर परथे ... बपरा सियान अइसन बात ला अभू तक नइ समझ पइस । 


हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन , छुरा .

लोकतंत्र के आत्मकथा

 लोकतंत्र के आत्मकथा 

                सोंसी गली म किंजरत .... कलहरे के अवाज सुन ..... मोर गोड़ ठिठकगे । एती ओती खुल्ला कपाट देख ... ओकर भितरी म नजर दौंड़ायेंव ..... कहींच नइ दिखीस । आवाज के दिसा म  कान देके सुने के प्रयास करे लगेंव ..... आवाज हा उहीच तिर के आधा ओधे कपाट के भितरि ले आवत रिहीस । कपाट बजाके .... कहाँ जी कहत भितरि डहर खुसर गेंव । लरी लरी डोरी ओरमे खटिया म ..... तार तार हो चुके कथरी उपर ..... घुमघुम ले चिरहा चद्दर ओढ़हे सुते रहय । चद्दर के छेदा ले आधा देंहें झाँकत रहय फेर ... अतेक छेदा के बावजूद .... न हाथ .... न गोड़ .... कहींच दिखत नइ रिहीस । अतका समझ नइ आवत रिहीस के मुड़ी कती हे .... गोड़ कती । तिर म गेंव त लम्भा लम्भा रूक रूकके आवत कलहरत साँस ..... अइसे लगिस के ..... कोन जनी कब छूट जही परान । सिर्फ हिरदे धड़कत रहय । घरके मन ला हाँक पारेंव .... कन्हो नइ दिखत हव जी .... देखव तुँहर सियान कइसे करत हे .... ? कोई उत्तर नइ मिलीस । बिमरहा हा कोन आय .. तेला जाने के इच्छा जागृत होगे । सोंचे लागेंव , कोन होही एहा ? एकर देखरेख करइया मन कहाँ हे ? येकर अइसे हालत कइसे होइस ?  

               तभे हाँसे के आवाज अइस .... । हाँसना बंद होइस तहन मोर कान म बोले के आवाज अइस - तेंहा अइसे सोंचत हावस बाबू , जानो मानो मोला कभू नइ देखे हस .... । मय अवाक रहि गेंव .... अऊ केहेंव ... अभू ले पहिली सहीच म तोला देखे नइ अंव , त जानहूंच कइसे ? फेर बोले के आवाज सुनेव - मोर अइसन हालत के जिम्मेदार तहूँ तो अस .... । मोर दिमाग खराब होगे .... न चिन न पहिचान ..... अउ उप्पर ले मोरे उप्पर आरोप घला लगावत हे । मय वापिस रेंगे ल धरेंव । तभे चिरहा चद्दर भितरि ले ..... ओकर थोथना के उपर भाग दिखीस – आँखी तोपाय रहय .... येहा बिगन देखे  मोला कइसे चिन्हत हे ? प्रश्न ठड़ा होगे ..। एकर नाक कान मुहुँ .... कहींच नइ दिखत हे .... कइसे सुनत हे अऊ कइसे गोठियात हे ? समझ नइ अइस । 

                जिज्ञासा ले जादा डर बाढ़गे । मोर देंहे घुरघुराये लगिस । वापिस भागे बर गोड़ नइ उचत रहय । फेर आवाज अइस – कहाँ जाबे बाबू .... मोला अइसन स्थिति में अमराके .... तहूँ नौ दो ग्यारह होना चाहथस । तोर ले पहिली ..... कतको अइन , कतको गिन .... फेर कन्हो ल मोर दुरदसा उप्पर तरस नइ अइस । चद्दर ला फेंकके ओहा उचके जइसे बइठिस ..... मोर देंहें म डर के मारे पछीना निकलगे । भूत परेत मरी मसान ला अभी तक कभी नइ देखे रेहेंव ..... उही तो नोहे ...... सोंचत .. मोर सरी कोती गिल्ला होगे । भागे के प्रयास करेंव ... फेर गोड़ उचबे नइ करिस । उही तिर ... ओकर कोती बिगन देखे ... अपन आँखी कान ला मूंद के ऊँखरूँ बईठ गेंव । थोरिक बेर म .... आवाज बंद सुन .... पूछेंव - तैं कोन अस तेला तो बता ? ओ किथे - बतावत हँव बाबू , अधीर झिन हो गा .... । 

                ओहा केहे लगिस – तैं का करबे बाबू जानके .... । मोला जनइया मन .... मोला जाने के पाछू मोर अइसन हालत करिन हे ..... फेर तैं इहाँ तक मोला जाने बर आये हस ..... तैं अइसन नइ कर सकस .... फेर गलत समे म आगे हस बाबू .... । अभी जानबे तहन बाहिर निकलके भुला जबे .... मोला तो मोर जनम देवइया मन ..... भुलागे हें .... तेकरे सेती तो भुगतत हौं । ओमन मोला अंगियाना नइ चाहे .... तेकर सेती अपन देखरेख अऊ सुरक्षा बर दूसर कोती निहारत रहिथँव .... फेर कन्हो राखना नइ चाहे । जेकर डेरौठी म ओड़ा देथँव , तिही दुतकारथे । जेन मनखे ल अपन समझथँव , उहींचे ले दुतकार मिलथे । तेकर सेती इहींचे परे हँव .... समे के अगोरा करत .... । 

               वोहा कहितेच रहय - तैं सोंचत होबे के मोरो दई ददा मन बड़ बिचित्तर हे .... अपन लइका ला जनम दे के पाछू .... अइसने काबर मरे बर छोंड़ देतिस कहिके ? ओमन मोला अइसने नइ छोंड़े रिहीस गा .... । मोला राजा बनही कहिके ..... मोर लालन पालन , देखरेख अऊ सुरक्षा ला बड़े मनके हांथ म सौंप दिस .... । तैं मोला फेंकत होही कहात होबे के .... गरीब के लइका ला कन्हो अमीर हा थोरेन पालही अऊ राजा बनाही .... ? ओ समे मोर ददा मन गरीब नइ रिहीन जी .... । अतका अमीर रिहीस के .... जेला पाये तेला .... राजा बना सकत रिहीस .... । मोला राजा बनाये बर संस्कार के आवश्यकता महसूस करत .... मोला दूसर के हांथ म दे दिस .... बस इही गलती होगिस । मोर खिरे हांथ  गोड़ ला देख तोरो मन म सवाल आवत होही ..... का येहा अइसनेच पैदा होये होही तेमा ... ? लमभा सांस मारत रुक के किथे – मेंहा जब जनम धरे रेहेंव तब ..... मोर सरी अंग रिहीस हे । जेकर कोरा म भरोसा करके .... मोला छोंड़िन .... तिही मन मोर बिगाड़ करे हे .... । तैं हाँसत हस ना ..... के यहा महंगाई के दिन म .... बिमार विकलांग बोझा कस जीव के फोकटे फोकट कतेक दिन ..... कोन पूछ परख देख रेख करही तेमा .... । रोवत बताये लगिस – हमर तिर अतेक चीज बस रिहीस के .... तिहीं सुनतेस त .... तुहीं ला मोर केयर टेकर बने के इच्छा जागृत हो जतिस । मोर महतारी बाप मन अतका अमीर रिहीन के .. मोर देखरेख शिक्षा संस्कार अऊ सुरक्षा बर चार झिन केयर टेकर राखिन ..... फेर उही बैरी मन ..... मोरे चीज ला खइन अऊ मुही ला दुतकारिन । मोला अतका गरीब बना दिन के ..... ऊँकर गोदी के जगा .... ऊँकर सरन परे बर मजबूर होगेंव ..... दंड पुकार के ससन भर रो डरिस ....... । आँसू  खटिया तरी बोहाये लगिस । चुप होइस तहन किथे - तोर मन म सवाल आवत होही के .... अइसन म अपन दई ददा तिर वापिस नइ जातिस .... ? मोर दई ददा मन ला इही केयर टेकर मन ..... तोर बेटा हा हमर राजा आय कहिके .... बरगला डरे हाबे । मोला अपन दई ददा ले मिलन नइ देवय ..... । कहूँ तोरे कस मिले बर पहुँचिचगे .. त मोला चिन्हय निही । अइसन हालत म देख ..... चिनहीच कोन .... ? 

               मोर केयर टेकर मन बर ... तोर मन मा घुस्सा दिखत हे मोला .... फेर ऊँकर मजा नइ बता सकस । ऊँकर कुछ नइ बिगाड़ सकस । ओकर नाव सुन के तोर पोटा काँप जही .... । सुने के इच्छा करे त सुन ..... मोर पहिली केयर टेकर व्यवस्थापिका आय .... जेकर सरन म अपन ठिकाना बनाये के , अपन आप ल सुरक्षित करे के प्रयास करेंव । वोमन मोला सुरक्षित राखे हन कहिके .... बड़े जिनीस हाल भितरि म .... कुटकुट ले मारिन पीटिन । मय रेंगे झिन सकँव कहिके , मोर गोड़ ल टोर के बइठार दिन । केऊ खेप मोर नाक इँखरे मन के सेती कटइस । जइसे तइसे उहाँ ले निकल के दूसर केयर टेकर कार्यपालिका कोती प्रस्थान करेंव । देखते देखत मोर हाथ ल काट दिन चंडाल मन .... ताकी कुछू काम बूता झिन कर सकँव । बड़ निराश होगे रेहेंव । फेर आसा के किरन दिखीस तीसर केयर टेकर .... न्यायपालिका कोती । उहू हथियार धरके बइठे रिहीस । जातेच साठ दिमाग ल नंगा लिस ...... सोंचे झिन सकय कहिके । जेल म डारे बर धरत रिहीस । बड़ मुश्किल ले परान बचा के पल्ला भागेंव .... चौथा केयर टेकर कोती ... उहू कमती खतरनाक नइ रिहीस । मोर आए के अगोरा करत रिहीस । जइसे पहुंचेंव तइसे , देख झिन सकय , सुन झिन सकय , कहिके , आंखी अऊ कान ल काट के झोला म धर लीन । 

                बोलत बोलत रुक गिस । थोरिक बेर म .. आवाज अइस – तैं जरूर सोंचत होबे के .... तोला गरीबी देखा दिस .... तोर चीज बस धन दोगानी ला नंगा लिस अऊ तोला नइ राखिन .... फेर एमन तोर अंग ला काये करिन होही ? जेमन मोर गोड़ ल राखे हावंय , तेमन जनता ल गुमराह करत बतावत फिरथें के देखव .... हमन अपन गोड़ म नइ रेंगन , मोरे गोड़ म , मोरे बताये रद्दा म रेंगथन । इही मन मोर नाक ल कटवा के , अपन नाक म लगवाके , अपन नाक ल ऊँच करके घूमथें । जेमन मोर हाथ ल धरे हे , तेमन कहिथें के मोरे हाथ ले .... जनता बर काम करत हन । मोर दिमाग लुटइया मन मोरे दिमाग ले पूरा काम काज चलत हे कहिके , डंका बजावत फिरथें । अऊ आँखी कान लेगइया मन , जनता ल ये कहिके भरमाथे के , मोरे आँखी कान के अनुसार देख सुनके अपन कलम चलाथन । 

               तोर मन म जरूर प्रश्न उचत होही ..... के अइसन म मोर अऊ कन्हो अंग ल लेगे बर आ जही तब ? तब ये गरीब के कुटिया म मय कइसे सुरछित रहि सकहूँ ? एमन मोला आके मार डारही तब ? जोर से हाँसिस .... हा ...... हा ...... हा ...... । अभू तक ये चारों झन ..... मोर दई ददा के कुटिया के डेरौठी म अपन गोड़ ल नइ मढ़ाए हे । अऊ में जानत हँव .... अवइया समे म घलो नइ मढ़ाये । त एकर ले सुरछित जगा कती करा हे , तिहीं बता ? रिहीस गोठ बात मोर जिये मरे के , मय ऊँहे जिंदा रहि सकथँव जिंहा .... गरीब भुखर्रा .... मोर पेट भरय । जिहाँ उघरा नंगरा किसान मोर तन ढंकय । फुटपाथी मजदूर मोला अपन करा रेहे के जगा दे । में हाँसेव तेला देख डरिस अऊ केहे लगिस – तैं हाँसत हस बेटा ..... तैं सोंचत होबे ..... जेमन अपनेच बर नइ कर सके , तेमन मोर का बेवस्था करहीं । खुद महामुश्किल ले जइसे तइसे अपन जिनगी ल पोहाथें तेमन मोला काये जिंदा राखिही ? इही सचाई ल स्वीकारना बहुत मुश्किल हे बाबू .... । इँकर तिर सत्य , अहिंसा , भाईचारा अऊ ईमान के हावा बोहावत हे । इही हावा मोला जिये बर उर्जा देथे । अऊ जब तक हईतारा मन के गोड़ के धुर्रा , इँकर डेरौठी म नइ परही , तब तक जिंन्दा हँव । मोर अऊ जनता गरीब के बीच महतारी बेटा के संबंध हे । जनता के पेट जइसे भरथे .... महू तृप्त हो जथँव । ओहा अपन तन तोपे लइक कमा डरथे तब मोरो देंहे म कपड़ा पर जथे । ओला फुटपाथ म नींद आ जथे तब मोरो नींद पर जथे । तैं अब तो समझगे होबे के मोर नेरवा आज तक कटाये निही ..... तभे तो ..... । 

               अतेक राम कहानी सुने के पाछू घला .... में समझ नइ पायेंव के .... ओहा कोन आय .... पूछ पारेंव .... अब तो बता दव तूमन कोन अव ? ओ किथे - अतका दुखड़ा सुनाये के पाछू में सोंचेंव .... तैं जान गे होबे । इहां इहीच समस्या हे , जेमन मोला सुरक्षित जरूर राखे हे तिही मन जाने निही .... में कोन आँव तेला ....  । ओमन जे दिन जान डरही ..... तिही दिन मोर सरी अंग वापिस जाम जही । मिही तो लोकतंत्र आँव बाबू ..... जेला जिंदा राखे के जतन लोक हा करे हे अऊ मारे बर तंत्र भिड़े हे .... । लोक मोला जाने निही .... तंत्र मोला माने निही .... । आगू होना चाही लोक ला ..... फेर तंत्र अगुवा जथे .. ओहा लोक के अगुवाई ला स्वीकार नइ करत हे .... । मोला जाने बर हरेक पांच बछर म बड़े जिनीस जलसा देस भर म होथे .... लोक ला भरपूर मौका मिलथे फेर ..... का करबे .... तंत्र हा भरमा के लोक ला छुद्र स्वारथ म बुड़ो के ..... मोला जाने समझे ले रोक देथे । मोला अवतरे सत्तर बछर होगे .... फेर एक दिन बर घला राजा नइ बन सकेंव .... उलटा .... पेरेंट्स के सऊँख के सेती ..... अपन सरी अंग ला खोके ..... बीते केऊ बछर ले .... घुरवा कस अतगितान परे हँव .... । मोला जिंदा रखे के ..... पाले के .... पोसे के अऊ कन्हो प्रकार ले सुरक्षित राखे के पक्का इंतजाम मोर इही गरीब , बेबस , लाचार दई ददा मन भले करत हाँबय फेर को जनी कब जानही के .... मिही ऊँकर बेटा .... राजा लोकतंत्र .... आँव । वइसे हईतारा मन मोला जान सम्मेत मार घला देना चाहथें , फेर मोर मरे के घोसना नइ चाहें । मोर नाव ले .... जेकर हांथ म पद पावर पइसा आ जथे .... तेहा मोला भले जियन नइ दे ..... फेर मरे बर घला नइ दे ....। जेकर हांथ म पावर होथे .. केवल उहीच हा मोला जियत हे कहिथे ..... बांकी मन मोला मरगे मरगे कहिके .... चिचियावत रहिथे .....। मोरे मरई जियई के नाव ले .... इंकर दुकान ....... बिना कन्हो बिघन बाधा के जोरदार चलथे .... । तेकर सेती मोला सहींच म मारके .... मोर मरे के अधिकारिक घोसना सम्भव निये .... । में इहाँ काबर दरद पीरा म कलहरत हँव ... तहू प्रश्न तोर मन ला उद्वेलित करत होही .... यहू ला सुनले ..... मोर दई जनता के पेट भरत निये .... ओकर बाँटा के जेवन ला कौंरा ले नंगा के लेग जावत हे .... ओला गली गली नंगरा कस किंजरे बर मजबूर कर देवत हें अऊ एक रात चैन से नींद भर नइ सुतन देवत हे ..... त मोला तो दरद पीरा तो होबे करही बाबू .... । सुसके के अवाज आए लागिस । थोरिक बेर म .... खटिया म ढलंग दिस ..... में उचाये के कोसिस करेंव .... पांच बछर होये के पाछू जागहूँ कहत .... आँखी मुंद लिस .... ।   

   हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन  , छुरा

छत्तीसगढ़ी छन्द मा "गणतंत्र दिवस'*

 *छत्तीसगढ़ी छन्द मा "गणतंत्र दिवस'*


          (गणतंत्र दिवस विशेष) 

26 नवम्बर 1949 के संविधान सभा ह प्रस्ताव ल पारित करिस अउ 26 जनवरी 1950 के हमर देश के संविधान लागू होइस । तब ले आज पर्यन्त ये दिन ला हमन गणतंत्र दिवस के रुप म मनात आत हन। देश के जनता ल अधिकार मिलिस संगे संग कर्तव्य पालन के जिम्मेदारी घलो। परतंत्र भारत के निवासी मन आजाद होय के बाद खुला म साँस लिन। देश के हर वर्ग ला समुचित अधिकार देवाय खातिर डॉ भीमराव अंबेडकर जी नवा संविधान गढिन। दबे कुचले मनखे मन घलो सम्मान के साथ जी सकय येकर पूरा ख्याल राख के अथक परिश्रम के बाद संविधान बनाये गिस जेन दुनिया के सबले बड़का संविधान आय। जाहिर हे कि 26 जनवरी ल हर भारतवासी धूमधाम से मनाथे। प्रत्येक मनखे ला अभिव्यक्ति के अधिकार भारत के संविधान हा दे हवय। छत्तीसगढ़ के साहित्यकार मन गणतंत्र दिवस ला बेरा-बेरा मा परिभाषित करत रहे हवँय। छत्तीसगढ़ी साहित्य म छन्दकार मन घलो गणतंत्र दिवस उपर अपन अपन कलम चलाय हवय। 

हमर पुरोधा साहित्यकार जनकवि कोदूराम "दलित" जी राम राज आय के कामना राउत दोहा म बड़ सुग्घर ढंग ले करे हवँय-

अमर होय गणतन्तर भैया, जन-जन होय निहाल रे

राम-राज आवै अउ जुग-जुग,जियै जवाहर लाल रे।।

फूलय-फरय स्वर्ग बन जावय,हिन्द देश ये प्यारा।

"गणतन्तर हो अमर" सदा हम, इहिच लगाईं नारा।।

           छन्दविद अरुणकुमार निगम लोकतंत्र में संविधान के ताकत ला आल्हा छन्द में सुग्घर ढंग ले लिखथें-

संविधान जब लागू होइस, तब हम पाए हन अधिकार।

लोकतंत्र के परब हमर बर,सब ले बड़का आय तिहार।।

जन के,जन बर,जन के द्वारा, राज कहे जाथे गणतंत्र।

सबो नागरिक एक बराबर, लोकतंत्र के हावय मंत्र।।

           संविधान के निर्माण म बहुत अकन पेंच रहिस। येला बनाय मा काफी परिश्रम लगिस। दुनिया भर के संविधान ल खंगाले गिस तब जा के भारत के संविधान बनिस। येकर बढ़िया वर्णन सरसी छंद म महेंद्र बघेल के कलम ले- 

सबो नियम लिपिबद्ध करे बर, जुरमिल करिन उदीम।

फेर लिखे बर संविधान ला, आइन बाबा भीम।।

का अमीर अउ का गरीब के, गिन-गिन राखिन ध्यान।

दलित-दमित के मान रखे बर, संचित करिन विधान।।

भारत के खुशियाली खातिर, मिलके फूॅंकिन मंत्र।

जनता बर जनता के शासन, मिलिस एक गणतंत्र।।

          200 बछर के अंगेजी हुकूमत ले छुटकारा पाये के बाद संविधान बने ले देश के जनता ला समान अधिकार अउ हक मिलिस तब जनता के उछाह स्वाभाविक हवय । युवा छन्दकार जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"अपन दोहा छन्द मा संविधान के सुन्दर बखान करथें-

संविधान जे दिन बनिस, आइस नवा सुराज।

हक पाइन हें सब मनुष, पहिरिन सुख के ताज।।

का छोटे अउ का बड़े, पा गे सब अधिकार।

हवे राज गणतंत्र के, बहे खुशी के धार।।

            डॉ भीमराव अंबेडकर के मेहनत ला छंदकार श्रीमती आशा देशमुख हरिगीतिका छंद के माध्यम ले रेखांकित करथें - 

सबके धरम एके बरोबर ,एक जइसे मान हो।

अम्बेडकर जी हा कहिन हे, विश्व मा पहिचान हो।

अन्याय शोषण से बचे, जन बर रचिन सँविधान ला।

ऊँचा रहय झंडा हमर, गावंय सबो जन गान ला।

             छन्दकार चोवा राम वर्मा 'बादल' लावणी छन्द में संविधान के महत्ता ला बतावत लिखथे-

सदी बीसवीं सन पचास मा,संविधान लागू होइस।

जेन गुलामी के कलंक ला,सबके माथा ले धोइस।।

जनता बर जनता के शासन,जेकर सुग्घर कहना हे।

सबो धर्म के आदर करके,भेदभाव बिन रहना हे।।

           मनीराम साहू मितान दोहा छन्द के माध्यम ले सविधान ला जाने समझे के बात कहिथे,ताकि बखत परे म संविधान हमर रक्षा कवच बनय-

का कइथे प्रस्तावना, ध्येय हवय जी काय।

मिलके सब ज्ञानी गुनी, कइसे हवँय बनाय।

आखर आखर शब्द मन, कहे कतिक हें रोठ।

जानँन हम सँविधान ला, बने हवय जे पोठ।

           संविधान के रक्षा करना हर भारतवासी के कर्तव्य हवय,ये बात ल अजय अमृतांशु आल्हा छन्द म लिखथें -

संविधान के रक्षा करबों,जुरमिल सब राहव तैयार।

किरिया खावव सब झन संगी,झन खोवय ककरो अधिकार।

           छन्द के युवा हस्ताक्षर उमाकांत टैगोर सार छन्द में गणतंत्र के महत्ता ल बड़ सुग्घर ढंग ले बताथे :-

गणतंत्र बने जब ले भारत, सुमता हावय भारी।

अइसे हे कानून बनाये, काँपै अत्याचारी।।

पढ़े लिखे के रद्दा खुलगे, अउ किस्मत के ताला।

संविधान गणतंत्र बना के, बगराइस उजियाला।।

         ये प्रकार से हम देखथन कि संविधान बने के बाद ले छत्तीसगढ़ के रचनाकार मन जागरूकता के परिचय देवत बेरा-बेरा मा आम जनता ला संविधान के मूल तत्त्व ले अवगत कराय के काम करत रहे हवँय। छन्दकार मन आम जनमानस ल जगाय के काम अपन छन्द के माध्यम ले करत रहे हवँय। 


अजय अमृतांशु

भाटापारा (छत्तीसगढ़ )

मो.9926160451

डायरी

 27 जनवरी सन् 2022 दिन गुरूवार 

                               मांघ पहिली पाख दशमी  

                                बिहनिया 9.30 बजे 

   कोनो कोनो दिन सुरुज देवता मोर अंगना मं घाम के संग अब्बड़ अकन खुशी घलाय बगरा देथे ...त दूसर बात एहू तो आय के ये मोबाइल , टेबलेट , लेपटॉप ल कतको गारी देवंव बिहनिया ले सोशल मीडिया के सरन मं चली देथंव । आभासी दुनिया के रंगबिरंगी पोस्ट मन के बहुत अकन ल तो पढ़बे नइ करवं त कोनो कोनो मं कुछु काहीं लिखथंव ओहू लोभ के मारे के मैं नइ लिखिहंव त मोर बक बक उपर कोन टिप्पणी लिखही ..। फेर ..संगवारी मन ! आज तो बिहनिया बिहनिया मन कुलकुल्ला होगिस काबर के गद्य गगन मध्यप्रदेश के हिंदी पट्टी के सम्मानित पटल आय उहां हिंदी के नामी गिरामी साहित्यकार मन के रचना ल स्थान मिलथे ...। 

मोला बहुत अकन उत्कृष्ट साहित्य पढ़े बर मिलथे ...। 

  अइसन पटल मं आज छत्तीसगढ़ी लेख " शहीद वीर नारायण सिंह "( मूल छत्तीसगढ़ी मं)  लेखक हें श्री चोवा राम वर्मा ' बादल ' ..ल जघा मिले हे ....हमर छत्तीसगढ़ , हमर छत्तीसगढ़ी , हमर साहित्यकार भाई ....त खुशी के ठिकाना नइये ...। भगवान से बिनती करत हंव मोर ये खुशी दिनों दिन बाढ़य .....पुन्नी के चंदा कस चंदैनी बगरय ...। चलवं महूं  गद्य गगन मं छोट मोट टिप्पणी लिख देवत हंव ..। 

   सरला शर्मा 

  दुर्ग

व्यंग्य- फैसला

 व्यंग्य- फैसला 


               अदालत म कटकटऊँवा भीड़ सकलाये रहय । अपराध सिद्ध हो जहि तहन ओला फाँसी हो जहि सोंच सोंच .. कुछ मन अशांकित सशंकित रहय .. त कुछ मन मने मन खुश रहय .. अच्छा होइस हमर बर रसता खुलही । फैसला आगिस – मामला बेफजूल आय । लोकतंत्र के हत्या हा कोनो अपराध के श्रेणी म अइ आवय । बल्कि अइसन करइया मन बहुत सम्माननीय अऊ पूजनीय मनखे हो जथे । अदालत के समे ला अइसन बेकार मामला ला उचा के बर्बाद झन करव । अइसे भी अइसन मामला के निपटारा बर अदालत के टाँग नानुक हे .. कटघरा म खड़ा होवइया के गिरेबान बहुत उपर हे । हम एमा कुछ कर नइ सकन .. । लोकतंत्र ला मरइया मन बाइज्जत बरी होगे । 

               केस जनदालत म पांच बछर तक चलिस । कटघरा म खड़ा मनखे हा केस जीतगे । लोकतंत्र ला मरइया हा एक बेर फेर क्षेत्र के इलेक्टेड प्रतिनिधि बनगे । 


 हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन , छुरा

वर्चुअल केनवासिंग*

 *वर्चुअल केनवासिंग*


लोकतंत्र में चुनाव खास करके हमर ये देश म विधानसभा और लोकसभा के निर्वाचन ला सबसे बड़े तिहार माने जाथे।ये लोकतंत्र के चुनावी तिहार ह बहुतेच खर्चीला होगे हावय। देश के खजाना ल दूनों हाथ ले जम के लुटे अउ लुटाए जाथे। प्रत्याशी मन तकों अनाप-शनाप खर्च करथें, तहाँ ले जेन जीत जथे वो ह जनतेच ल लूटके वोकर भरपाई करथे। चढ़े सरकारी करजा ल उतारे बर जनता उपर नाना प्रकार के टैक्स लगाए जाथे। कालाबाजारी अउ घूसखोरी दिन दूना रात चौगुना बाढ़े लागथे,काबर के राजनीतिक दल मन ल चंदा देवइया व्यापारी अउ  जनता के खून ल चुहक- चुहक के जोंक असन घोसघोस ले मोटाये अफसर मन के जुगाड़   घलो मढ़ाये ल परथे। मँहगाई ह बादर ल अमरे ल धर लेथे।

 ये चुनाव रूपी तिहार के खराबी ल गिनाबे त  गिनती सिरा जही फेर वो खतम नइ होही। समे-समे म निर्वाचन आयोग हा जतका वोकर टाँग पूर  सकथे ,बेचारा ह सुधारे के वोतका भरपूर कोशिश करे हे। ई वी एम के उपयोग, प्रत्याशी बर खर्च के लिमिट,  भड़काऊ भाषण म प्रतिबंध आदि ये कोशिश म शामिल हें। ये निर्वाचन आयोग ह जादा टांँग फइलाये के कोशिश करथे त दलदल म धँसे जम्मों दल मन केकरा सहीं जुरियाकें वोकर टाँग ल इँच के मुँड़भरसा गिरा देथें। 

       ये चुनाव हा संख्या बल जेला बहुमत कहे जाथे के अटपटा खेल आय जेमा सरकार बनथे अउ बिगड़थे। राजनीति में जतका छल- प्रपंच देखे म आथे वोकर कारण इही खेल हर आय। ये छल-छंदी खेल ले निपटे बर दल बदल कानून बने हे ओहू म छेद हे कतको दल बदलू मन बाँबी सहीं छलंड के बुलक देथें। कुल मिलाके स्वच्छ और निष्पक्ष चुनाव बर जतका कानून बने हे वो ह ऊँट के मुँह म जीरा बरोबर हे।

       अभी के समे म कोरोना महामारी के सेती अउ वोकर अलावा रोज-रोज के मनमाँड़े सभा-रैली, रोड जाम, चिल्ल-पों, झगरा-लड़ई ल देखके आयोग ह बड़े-बड़े सभा-रैली म रोंक लगाके , वर्चुअल केनवासिंग के रसता निकाले हे।एक प्रकार ले सोचे जाय त ये ह मतदाता अउ प्रत्याशी दूनों बर सुभिता अउ फायदा के सौदा हे। काबर के प्रत्याशी ह बेतहाशा खर्च ले बाँच  सकथे, त मतदाता ह रात दिन के हलकानी ले निजात पा सकथे। मतदाता ल जेने पाथे तेने वोट बर हला -हला के अधमरा कर डरथें। वोला झूठ बोलके  सबझन ल हव कहे ल परथे।  नैतिक पतन के श्री गणेश अइसने म होथे जेन दारु -मुर्गा ,रुपिया- पइसा के लालच रूपी गहिर गड्ढा म ढकेल देथे। मतदाता ह जात-पात, धरम के चक्कर म पड़के  भ्रमित हो जथे अउ सही निर्णय ले म असमर्थ हो जथे। 

        वर्चुअल केनवासिंग ह मतदाता ल अइसन बुराई ले बँचा सकथे ,काबर के प्रत्याशी अउ वोकर गुर्गा मन के सीधा संपर्क मतदाता ले नइ हो पाही। लालच देके वोट खरीदे म रोक लगही।ये वर्चुअल केनवासिंग के कहूँ सिरतो म फायदा होही त हमेशा बर खच्चित लागू कर देना चाही।

फेर कतको झन के कहना हे के चाहे कान ल एती ले  पकड़ चाहे वोती ले पकड़ बात एके हे। वर्चुअल केनवान सिंग के नाम म एक कोती मोबाइल म मैसेज भेज-भेज के राजनीतिक दल मन, प्रत्याशी अउ वोकर आदमी मन मतदाता के  भेजा ल खाबे करहीं ,वोकर जीना हराम करबे करहीं। दूसर कोती जिंकर करा मोबाइल नइ हेअउ मोबाइल हे त टावर नइहे, टावर हे त बिजली के पावर नइये, वो मन कइसे करहीं।ऊँकर तक  प्रत्याशी मन के अपील ह पहुँचबे नइ करही।

    जहाँ तक मतदाता ले प्रत्यक्ष सम्पर्क नइ होये के बात हे त, अइसे भी वर्चुअल केनवासिंग म मतदाता सो पाँच -दस झन ल मिले के छूट हाबयच न ? ये मन पाँच के पँदरा करके रइहीं। पाँचे झन मन पिचकाट करे बर नइ छोड़यँ। ये मन लफंदर करके रइहीं। कुकुर के टेड़गा पूछी कभू सोझ हो सकथे का ?कभू नइ हो सकय।

   बहुत झन मन ये वर्चुअल केनवासिंग  जल्दी से जल्दी खतम हो जावय कहिके बिनती बिनोवत हें। काबर के रैली म झंडा उठाके नारा लगाये के कतको गरीब मन ल मजदूरी मिलय तेनो बंद होगे। झंडा, पोस्टर, बैनर बनइया मन के धंधा ठप्प होगे हे। रेहड़ी वाला मन रेड़हाय ल धर ले हें। छुटभइया नेता मन के खर्चा-पानी चलना मुश्किल होगे हे। संझाकुन के ठंडा चाय के जुगाड़ तको नइ हो पावत हे।

 सोचे ल परत हे के कोनो बीच के रसता निकल सकथे का?


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

Saturday, 22 January 2022

छत्तीसगढी ब्यंग """देशी गदहा"""""

 छत्तीसगढी ब्यंग       

       """देशी गदहा"""""


         एक जमाना मा कोनो ला गदहा उपर बइठार के गली मा घुमावय तब वोला राष्ट्रीय स्तर के अपमान माने जाय। अब चतुर सियार मन गदहा मा चढके सम्मान के जगा मा पहुंचगे। भइया जी मॅय बात चौपाया गदहा के निही दुपाया गदहा के बात करत हवॅ। जे मन सावन भादो के हरियर चारा मा तको अघा नइ पावत हे। न पेट भर खावत हे। बस मिहनत अउ इमानदारी ला लादे बिकास के रद्दा मा बिन पनही के रेंगत हे। ये गदहा मन मूक बधिर बनके बेवस्था के मार अउ भार दुनो ला सहत हे। अउ आगू सहत रहीं। बेइमानी चोरी छल कपट दंड भेद के दाॅव खेलिन ओमन चतुर सियार असन  दरबार के हकदार होगे। काग भुसुंडी अउ सियार जइसे चलाकी  करिन अउ सिखिन ओमन प्रजातंत्र के जंगल मा राजगद्दी पागे। सही मायने मा देश भगत अउ राष्ट्रवादी  सोच वाले देशी गदहा हे ओमन भीड़ बढाय अउ वोट डारे भर के काम आवत हे। इही राष्ट्र वादी गदहा मन आज ले उॅकरे मन बर खुरसी खटिया जठावत हे। अति तो तब होथे जब राजधानी के कुकुर कोलिहा मन आथे तब इही देशी गदहा मन चिलचिलात घाम मा सुवागत बर माला धरके खड़े रथे। 

         गदहा मन परबुधिया होथे कि परबुधिया मन गदहा। सोध के बिषय हे। फेर बात सत्य हे कि दूनो मन एके हथे। कोनो मन चतुराई करत हन कहिके बड़े चतुरानंद मन के आगे पीछू होत रथे । फेर जेमन खाॅटी हे मुखौटा पहिरन नइ देवय। आदमी के स्वभाव मा अब पशुता के सबो गुन समावत हे। बड़ शान अउ साहस ले कोनो ला भी कहि देथन  कि वो तो निच्चट गदहा हे कहिके। फेर आप मनके जानकारी बर बता देथों कि गदहा समाज मा जब कोनो गदहा के आदत आचरण चाल चलन नीयत मा प्रदुसन आ जाथे। तब गारी के संबोधन देवत कथे ये नलायक हर बिलकुल आदमी हो गेहे। तभे समझ मा आ जाथे कि गदहा के नजर मा आदमी बर कतका सम्मान हे तेहा। पशु मन ला बिन मुंहूं के जानवार कथे। ये मन ला नाॅगर फाॅद चाहे बोजहा लाद अपन करतब ले पीछू नइ हटे। ये मन काम के बेरा काम के बाकी बेरा बेकाम अउ बेकार रथे। वो देशी गदहा ला अतको मालूम नइये कि रैली जूलुस दंगा के दलदल मा ढकेल के अपन फायदा बर ही उपयोग करथे। इंकर मनके  फसाद मा चपका के मरगेस त काठी कफन के लाईक मुआवजा नइ मिले। उप्पर ले चतुरानंद मन मरे परे लाश मा राजनीतिक लाभ के चक्रब्यूह रचही। जब स्वभिमान गिरवी धरागे सतबुद्धि  सिरागे चलाक कॅऊवा अउ चतुर सियार मन पूरा तंत्र ला अपन हाथ मा तो लेबेच करही। 

         मनखे ला गदहा कहना जादा अपमान जनक तो नइये काबर कि वोला राष्ट्र वादी कहिके सम्मान तो देवत हवॅ। आखिर राष्ट्र निर्माण बर इंकरे पीठ हर तो काम आवत हे। जेमन इंकरे पीठ मा चढके परधान बनगे जनता ले जनार्दन आम ले खास होगे। आज हमर देशी गदहा मन अखंड भारत बर गीत लिखके उही मन ला सुनात हे जे मन कान मा ठेठी गोंजे हे। समय सॅग देशभक्ति अउ  राष्ट्रवादी के परिभाषा बदल गेहे। चाल चलन नियत मा चूना रंग चघा बइमानी झूठ धोखा के कंठी पहिर सिरिफ अउ सिरिफ दौलत बटोरे के जुगत मड़ा बेवस्था के डोंगा बोर विकास मे अड़ंगा डार बिपत्ती देश के रहय चाहे दुनिया के दिखावा के चार आॅसू बोहा तब कहि जा के तोर उपर तिरंगा के कफन चढ पाही। गदहा मन कब खीर खाइन होही भगवाने जाने। देश के अजादी के पहिली खाइन होही तेला नइ बता सकवॅ। सत्तर अस्सी साल ले तो दूबी चाॅटत देखत हन। आज हमर देश विकसित अउ विकास शील देश के बाजू मा खड़े हे। तब देशी गदहा मन के धरम अउ फरज होथे कि मही बासी खावत हन कहिके झन बतावय। तंगहाली मा जीयत हन भूख गरीबी पसरे हे कहिके रेंके ले देश के मान सम्मान उपर आॅच आथे। कोनो कोनो बिरोधी किसम के गदहा मन माईक धर के रेंक रेंक के जग जाहिर करत रथे। अजादी के लड़ाई मा गांधी बबा सॅग रेंगइया एक झन संग्रामी के मुंहूं मा माईक टेकाके एक झन अखबार वाले पूछ पारिस---------कस बबा अब हमर आजाद भारत हर कइसे लागत हे? ओ अतके किहिस-------बबा अउ ओकर पहरो म वन्दे मातरम् कहिके फाॅसी चढिन उप्पर ले देख के इही सोचत होही कि भारत ला अजाद करके जिंकर बर छोड़ेन वो मन सब गदहा निकलगे। एक तो गदहा पना ले गुलामी झेलेन । अउ अब हुंआ हुंआ करइया मन हाॅव हाॅव करत हे तिंकर मन के गुलामी करत हन। दूसर के सोच ला अपन सोच बनाके गदहा होय के परमाण देवत हन। सार बात ये हे कि हाथ पाॅव हर अजाद हे मन हर आज ले गुलाम ही हे। लोकतंत्र के फरिहर पानी ला जात धरम सम्प्रदाय अउ खसवाहा राजनीति के गोड़ मा मतलावत हे तेला देश भगत देशी गदहा मन सोसन भर पीयत हे। आज के दसा दुर्दसा ला देख के घलो पूछत हस तब तोर ले बड़े गदहा कोन हो सकथे। अउ अपन गदहा पन के साॅटीपिकट माईक धर के घुमत हस। 

        आने वाला पाॅच साल ले एको झन मत मरे एकर सेती जियाके पोस के राखथे। सोजहा गोठ मा हम पोसवा अउ पेट पोसवा गदहा आवन। न मर सकत हन न मोंटा सकत हन। अउ कहूं अपन दुखड़ा रोय त ओहू मा विरोध के साजिस दिखथे । अइसन हाल मा मुद्दा जस के तस। सदा सुखी उपाय इही हे कि एको झन मोटहा ठोसहा के झंडा ला धर उॅकर बिचार धारा ला पीठ मा लाद अउ नरी खोल के जयकारा लगा। तोर पीठ  देश के निर्माता मन बर काम आगे माने तैं राष्ट्रीय अउ देशी हरस। फेर आवस तो गदहा तभे देशी गदहा हावस।


राजकुमार चौधरी

टेड़ेसरा राजनादगाॅव🙏

व्यंग्य- करजा के प्रकार

 करजा के प्रकार 

                      यू पी एस सी के परीक्षा म करजा के प्रकार के उपर प्रश्न पूछे गे रिहीस । जम्मो किसिम के स्मार्ट अऊ योग्य लइका मन ..... फाइनल इक्जाम बर सलेक्ट होय रिहीन । ओमन अपन अपन जानकरी के हिसाब से अपन अपन तरीका ले जवाब लिखिन । 

                    मेंनेजमेंट ले जुड़े कुछ मन घला परीक्षा म बइठे रिहीन । ओमन लिखे रहय ...... करजा  तीन किसिम के होथे । पहिली किसिम के करजा ओ आय जेला केवल लेना हे पटाना निये , पटाये के जुम्मेदारी ओकर उत्तराधिकारी के आय । जइसे सरकार लेथे । जे लेथे तेला पटाये के कोई आवसकता निये , पटाये बर दूसर ला मेहनत करे बर परही । करजा लेवइया हा जीते जियत सरग पा जथे । ये करजा खाके भागे म ..... धराये पकड़ाये के झंझट घला नइ रहय । 

                   दूसर किसिम के करजा ओ आय जेला ब्यापारी अऊ उद्योगपति मन लेथे । येहा अइसे करजा आय जेला कभू पटानाच नइ रहय । पटाये के बेर जादा दबाव अइगे त ....... बिदेस म शरण के रसता खुल जथे ........ तहन पटाये के कोई आवसकता निये । अइसन करजा ला ... नइ पटाये ले .... पहिली इँहे सरग मिल जथे अऊ दबाव परे के पाछू बिदेश म सरग मिलथे । 

                   तीसर करजा कुछ अलगेच किसिम के उत्तम करजा आय .... जेहा लेवइया ला सुख नइ देवय बलकी ..... नइ पटाये बर कहवइया ला .... सुख देथे । येला सिर्फ लेके समे झंझट हे पटाये के झंझट निये । ये करजा ला लेना भर मुश्किल हे फेर पटाना न मुश्किल न जरूरी ......... । मन चाहे तो पटा सकत हस ..... नइ पटाबे तभो कन्हो बात निये । करजा ले छुटकारा पाये बर चुनाव तक अगोरे ला परथे । ये करजा म ....... लेवइया ला केवल माफी भर नइ मिलय .... बलकी अऊ करजा लेके ..... चार बछर कलेचुप बइठे के प्रेरणा घला मिलथे । फेर ये करजा के कमी सिर्फ इही आय के ....... करजा लेवइया कभू न सरग पाय न नरक ....... बलकी माफी देवइया मन ....... जियत जियत अपन संग अपन पूरा परिवार अऊ कुनबा ला सरग के मजा देवा देथे । मेंनेजमेंट ले जुड़े जम्मो लइका मन पास होके ......... कलेक्टर बनगे ।

हरिशंकर गजानंद देवांगन

मोर गोदना छत्तीसगढ़ के चिन्हा हरे दुर्गा प्रसाद पारकर


मोर गोदना छत्तीसगढ़ के चिन्हा हरे

दुर्गा प्रसाद पारकर

गोदना ह आदिवासी संस्कृति के बिसवास ले जुड़े हे। गोदना के अर्थ गोभाई (गोभना,चुभोना) ले हे। गोदना आदिवासी मोटियारी मन के सिंगार भर नोहे बल्कि उंखर परिधान घलो आय। जऊन ह तन भर चकचक ले उपके रहिथे। आजकाल तो बिदेशी मनखे मन फैशन बना डरे हे। वोइसे तो गोदना के उद्गम स्थान पोलोनेशिया ल माने गे हे। फेर येखर ठोस सबुत नइ मिले हे। न्यूजिलैंड, बर्मा, लाओस अऊ आफ्रीका के मूल वासी मन म गोदना ह भारत के जनजाति मन कस लोकप्रिय हे। अब तो अमेरिका म गोदना गोदवाए के प्रतियोगिता होय ल धर ले हे। ”वाल्टर” ह अपन तन म ५४५७ गोदना गोदवा के ” गिनीज बुक आफ वल्र्ड रिकार्ड ” म अपन नाव लिखवा डरे हे।

           छत्तीसगढ़ म अगघन-पुस ले गोदना गोदवाए के शुरुवात हो जथे। वोइसे तो गोदना उपर कतनो कथा हे फेर कोंड़ागांव (बस्तर) म येदइसन दंत कथा सुने बर मिलथे - बुढ़ा वा देव के छै भाई अऊ सात बहिनी रीहिस। बुढ़ा देव ह अपन टूरा मन के नाव ल मुरहा अऊ ओझा राखिस। बुढ़ा देव ह मुरहा ल लकड़ी धरा के भुईया ल बजाए बर सीखोइस। सीखीस ताहन मुरहा ह किसान बनगे। ओझा ल खांध म डमरु लटकवा के डमरु बजाए बर सीखोइस। ओझा ह डमरु बजावत-बजावत, किंदर-किंदर के कोठ (दीवाल) मन म छापा छापे तेन ल देख के ओखर माईलोगन ह गोदना गोदे बर सीख गे। तभे तो साल म एक घांव ओझा परिवार (गोदना गोदइया ओझनीनन, बदनीन, देवरनीन) बुढ़ा देव ल कुकरा, बोकरा, बधिया जेखर ले जतना बन सकय ओकर बली चढ़ा के सुमिरन करथे। हे देव! गेदना ह हमर रोजी रोटी के साधन हरे हमर गोदे गोदना म घाव झन उपके। मवाद झन भरय, सुजन झन होवय अऊ कोनो टोनही-टम्हानीन के नजर डीट झन लगे। तेखरे सेती अइसे मानता हे कि गोदना गोदे के बेर ठाकुर देव ह गुदनारी मन के संग म रहिथे। गुदनारी गोदना गोदे के बाद रीठा देथे जेन ल पानी म घोर के गोदना के उपर चुपरे ले पीरा ह सपसप ले तिरा जथे। लइका मन के दांत जामे बर सोहिलत होही कहि के रीठा ल रेसम म गुंथ के गर (गला, टोंटा) म घलो पहिरा देथे। चाऊंर, हरदी, अऊ तेल ल लकड़ी के चारों मुड़ा घुमा के अनुष्ठान करके एक भाग ल सतबहिनिया म चघा दे ले गोदना के पीरा ह जियाने नही। गुदनारी मन कोइला पोंठार के छिलका ल पीस के अंडी, खजूर, हर्रा नही ते मंउहा के ते म घोर के सियाही बना लेथे। येला फूटहा गघरी म गरम कर लेथे। अइसन करे ले काजर तियार हो जथे। काजर ल खड़होर के नरियर के खोटली म सकेल लेथे। इही काजर ल गोदना बर प्रयोग म लानथे। ओझनीन मन बांस के सूजी बना के सतबहिनिया के अराधना करके गोदना गोदे के शुरुआत करथे-

तोला का गोदना ल गोदंव वो 

मोर दुलौरिन बेटी 

मोर गोदना चुक ले उपके 

दाढ़ी म चुटकुलिया

रामलखन हिरदे म गोदा ले 

दाढ़ी म चुटकुलिया

       गोदना गोदवाले रीठा ले ले ए वो दाई आए हंव गुदनारी तोर गांव म कही के गोहार पारत गंाव के गली-गली म देवरनीन ह टूकना म गोदना के सराजाम धर के किंदरथे। गोदना गोदे के नियम-धियम ल सुग्धर ढंग ले छत्तीसगढ़ के लोक नाट्य नाचा के देवार गम्मत म देखे जा सकत हे। गोदना गोदवाए के बखत गंज पीरा होथे, पीरा मा कहर के ए दाई वो..........

  पिरावथे वो, कही के रो डरथे। अनाकनी करथे उन ला भुलवारथे। नइ माने वोला धर बांध के गोदना गोदत कथे- गोदना गोदवा ले ओ परलोखलीन नही ते तोला भगवान हा साबर मा ततेरही। जइसे-जइसे नाचा मा देवार गम्मत हा नंदावत जात हे ओइसने ओइसने गोदना के परम्परा ह घलो खीरत जात हे। गोदना गोदवाए के बाद नेंग मा अनाज के संगे संगे पइसा कउड़ी अनाज भेंट करथे। गुदनारी ला सम्मान पूर्वक बिदा करथे। मड़ई-मेला, हाट-बजार म घलो गुदनारी मन ल किंदरत, गोदना गोदत देखे जा सकत हे। जेन जात म गोदना गोदवाए के परंपरा हे उखर मानना हे कि गोदना ह माईलोगन मन बर स्वर्ग जाये के निसैनी हरे। गोदना ह तन के संग माटी म मिल जथे।

ददा देथे चूरा पइरी टूट फूट जाय

दाई देथे कारी गोदना, माटी म मिल जाय

 जनजाति परंपरा के मुताबिक जब नोनी जाने सुने के लइक होथे तब उन ल गोदना गोदवाय के मउका मिलथे। मइके म गोदना गोदवई ल शुभ माने गे हे। मान ले कोनो बहुरिया ह बिना गोदना गोदवाए ससुराल चल दिही ते ओखर सास ससुर मन बहुरिया के दाई ददा ले गोदना के खरचा मांग सकथे। घर ते घर डीगर मन घलो नवा बहू ल ताना मारे बर नइ छोड़े-

देख तो दई बहुरिया ह 

चुरी पइरी नइ गोदवाए हे

बांहा - पहुंचा, तन ल घलो

नई फोरवाए हे.................

  एक समे गोदना ह देवार जात के जीवन यापन के साधन रीहिस फेर मशीनीकरण ह उंखर पेट म लात मार दे हे। गोदना गोदवाए ले कतनो बिमारी के निराकरण घलो हो जथे। गोदना ल देख के गठिया वात के तकलीफ ह भगा जथे। लोगन तो यहू मानथे के एक्यूपंचर चिकित्सा पद्धति ह गोदना के देन हरे। शेख गुलाब ह अपन किताब भिम्मा म लिखथे कि जऊन ह बिच्छी गोदवाथे ओला बिच्छी नई मारय। मार दिही ते ओखर झार नई चड़य। जऊन ह छाती म देवी-देवता गोदवाथे ओला नजर - डीट नई लगय। आधुनिकता के चकाचैंध म गोदना परंपरा ल बिसरे ल धर ले हे। तभे तो बिना गोदना के माईलोगन मन ऊदूप ले दिखथे-

मोर गोदना छत्तीसगढ़ के चिन्हा हरे पुछ ले 

बिना गोदना के बेटी-माई मन दिखथे उदूप ले

      आदिवासी मन म जऊन गोदना प्रचलित हे ओहा एदइसन हे- जांघ म - कजीरी, घुटना (माड़ी) के तीर गोड़ म - फुलिया, पीठ म - मांछी अऊ जादुई चैन, गोड़ म मछरी के छोरटा अऊ चकमक। गिराहिक के मन पसंद के मुताबित गुदनारी मन गोदना गोदथे। जऊन जघा देवी-देवता के गोदना गोदवाथे ओहा एदइसन हे- पद्म सेन देव पांव के देवता, गजकरन (हाथी) देवता गोड़ के देवता, कोड़ा (घोड़ा) देव गोड़ के उपर भाग (आघु तनी), हनुमान (शक्ति के देवता) बांह के देवता, भीम सेन (रसोई के देवता) पीठ म, झूलन देवी अऊ कटेश्वर माता छाती म। छत्तीसगढ़ म एदे गोदना के जादा चलन हे-

        नाक (डेरी आंखी के तीर) म - तीन बुंदकी जऊन ल मुटकी कहिथन। डाढ़ी म - एक बूंद के जऊन ल चुटकुलिया कहिथन। हिरदे म - राम लखन (मनखे जइसे) तीन बूदियां, बांह म - बांह पहुंचा, पांव म चूरा पैरी, हथेरी म मोलहा, नाड़ी म लवांग फूल। आदिकाल म परिधान के रुप म शुरुवात होइस होही जऊन बाद म आभूषण के रुप धारण करीस जऊन ह अब फैसन म बदल गे हे। चाहे जइसे भी हो आदिवासी मन के जीनगी म गोदना के महत्व ल नकारे नइ जा सकय।

मोर गोदना छत्तीसगढ़ के चिन्हा हरे

दुर्गा प्रसाद पारकर


छत्तीसगढ़ी गद्य साहित्य मा व्यंग्य के विकास यात्रा


 

*छत्तीसगढ़ी गद्य साहित्य मा व्यंग्य यात्रा*


           एक खूबसूरत फूल के पेड़ मा, जे काम काँटा के होथे, वइसने काम साहित्य मा व्यंग्य विधा हा करथे। हमर राज मा चाहे ददरिया गीत होय, भड़ोंनी गीत होय या जोक्कड़ गीत व्यंग्य कसे के जुन्ना चलन चलत आवत हे। हमर जुन्ना हाना ठेही घलो व्यंग्य ले भरे पड़े हे, जइसे ररूहा सपनाये दार भात, चोर ले जादा मोटरा उतलइन,कलजुग के लइका करै कछैरी,बुढ़वा जोतै नागर, कुकुर के पूछी कभू सीधा नइ होय, सब कुकुर गंगा जाही ता पतरी ला कोन चाँटही--- आदि कतको हे। साहित्य के पद्य विधा मा व्यंग्य के वर्णन भक्ति काल ले चलत आवत हे, फेर गद्य विधा मा व्यंग्य बाद मा आइस। आजादी के बाद छत्तीसगढ़ी मा गद्य विधा मा व्यंग्य पढ़े सुने बर मिलिस। अपन बात ला झोज्झे नइ कहिके, कोनो प्रतीक या फेर कोनो काल्पनिक पात्र, जीव जंतु के माध्यम ले कहना व्यंग्य आय। व्यंग्य कसना माने छत्तीसगढ़ी मा तुतारी मारना। नेता, अफसर, पंडित- पुरोहित या फेर समाज के अइसन व्यक्ति जेन अपन पथ ले भटक जाथे, ओला शब्द के तुतारी मा कोचे जाथे। एखर ले ना वो व्यक्ति ला कुछु कहत बने का करत काबर कि, वो बात सोज्झे वोला नइ कहै जाय। व्यंग्य गिरे थके शोषित पीड़ित के आवाज ला बुलन्द करथे, तभे तो हिंदी के साहित्कार बालमुकुंद गुप्त जी मन व्यंग्यकार मन ला गूंगी प्रजा के वकील केहे हे। व्यंग्य के विषय शोषक अउ शोषित होथे, जेला कोनो प्रतीक के माध्यम ले बात रखे जाथे। सीधा सीधा कोनो आदमी ला व्यंग्य के विषय नइ बनाय जाय। व्यंग्य के मूल उद्देश्य पथभ्रष्ट शासक, समाज, नेता, अफसर, पंडा पुजारी  मन ला फटकार लगाके  पथ मा लहुटाना होथे।


*छत्तीसगढ़ी व्यंग्य विधा के विकास अउ व्यंग्यकार**

                1900 ले 1950 तक  छत्तीसगढ़ी कविता मा व्यंग्य सहज दिखथे, फेर गद्य मा व्यंग्य के दर्शन आजादी के बाद दिखथे। छत्तीसगढ़ी भाषा मा व्यंग्य के दर्शन लेखक मनके नाटक अउ एकांकी मा घलो दिखथे। देखब मा पता लगथे कि छत्तीसगढ़ी मा व्यंग्य लेखन के शुरुवात पत्र पत्रिका मन मा व्यंग्य लेखन के साथ होइस। वो समय प्रकाशित पत्र पत्रिका अउ समाचार पत्र मन मा लेखक मन सरलग व्यंग्य कालम लिखत रिहिन, जेमा रामेश्वर वैष्णव, सुशील भोले, टिकेंद्र टिकरिया, चेतन आर्य, लक्ष्मण मस्तुरिया, केयूरभूषण, जयप्रकाश मानस,गिरीश ठक्कर, बन्धु राजेश्वर खरे, गजेंद्र तिवारी, हेमनाथ वर्मा, तीरथ राम गढ़ेवाल, दुर्गा प्रसाद पारकर, राजेन्द्र सोनी, शत्रुघ्न सिंह राजपूत आदि मन प्रमुख व्यंगकार रिहिन।

1995 मा *जयप्रकाश मानस के व्यंग्य संग्रह *कलादास के कलाकारी* प्रकाशित होइस। कलादास के कलाकारी ला हरि ठाकुर जी अउ कतको विद्वान  लेखक मन हा छत्तीसगढ़ी के पहली व्यंग्य संग्रह माने हे।

आवन छत्तीसगढ़ी मा व्यंग्य लिखइया व्यंग्यकार अउ उंखर रचना ला जानथन-


*रामेश्वर वैष्णव-* रामेश्वर वैष्णव जी के गीत के संगे संग हास्य व्यंग्य के घलो जवाब नइहे। वैष्णव जी मन व्यंगात्मक पद्य के साथ गद्य विधा मा घलो खूब व्यंग्य लिखिन। उन मन 500 ले जादा व्यंग्य सृजन करिन जे,प्रदेश भर के कतको पत्र पत्रिका मा सन 1966 ले सरलग छपते रिहिस। वैष्णव जी उत्ता धुर्रा, उबुक चुबुक,आँखी मूंद के देख ले, गुरतुर चुरपुर, छत्तीगढ़िया सबले बढ़िया जइसे कतको नाम से कालम मा व्यंग्य लिखें। उंखर लिखे कुछ व्यंग्य- का साग खायेस, सब्जी मनके गोठ बात,करिया कुकुर के उज्जर बात, अच्छा आदमी के हालत खराब प्रमुख हे।


*सुशील भोले*-  सन 1987 ले 1989 तक मयारू माटी के सम्पादन करत भोले जी स्वयं व्यंग्य लिखे अउ आने व्यंग्य कार मन ला सरलग स्थान देवय। मयारू माटी मा ज्यादातर *रामेश्वर वैष्णव, सुशील भोले, टिकेंद्र टिकरिया, चेतन आर्य, बन्धु राजेश्वर खरे, हेमनाथ वर्मा विकल, तीरथ राम गढ़ेवाल, गजेंद्र तिवारी* आदि लेखक मनके व्यंग्य छपे। गोल्लर ला गरुवा सम्मान, धोन्धो बाई, सम्मान के सपना, दीया तरी अंधेरा, बजरंग तोला युग पुरुष बनाबों आदि भोले जी के प्रमुख व्यंग्य हे।'भोले के गोले, भोले जी के 2015 मा प्रकाशित धारदार व्यंग्य संग्रह आय।


*जयप्रकाश मानस*- व्यंग्य संग्रह कलादास दास के कलाकारी के संग, मानस जी सन 1990- 91 मा अमृत सन्देश मा पंचनामा नामक कालम ले कतको व्यंग्य लिखिन।


*केयूरभूषण*- स्वतन्त्रता सँग्राम सेनानी, उत्कृष्ट कवि अउ लेखक स्व केयूर भूषण जी वैभव प्रकाशन(सम्पादक- डाँ सुधीर शर्मा) ले निकलइया पत्रिका अउ कतको आन पत्र पत्रिका मा व्यंग्य लिखे। देवता मनके भूतहा चाल उंखर उत्कृष्ट व्यंग्य आय।


*दुर्गाप्रसाद पारकर*- काखर संग बिहाव करबे,जय हिंद गुरुजी, तोर रंग निच्चट पनियर हे, बइगा घर लइका नइहे, कुकुर बने के साध, रायपुर वाले राजा के विकास यात्रा, पठोनी एक्सप्रेस, तीजा के बिहान दिन, दारू अउ बुधारू, पारकर जी के  प्रमुख व्यंग्य रचना आय। एखर आलावा अउ कतको अकन व्यंग्य पारकर जी मन लिखे हे। पारकर जी मन हिंदी के व्यंग्य ला घलो छत्तीसगढ़ी मा अनुवाद करे हे, जेमा, हरिशंकर परसाई जी के व्यंग्य के संगे संग फर के अगोरा म वृक्षारोपण(त्रिभुवन पाण्डेय के व्यंग्य),हमर वोट आखिर कोन डाहर जाही?(रवि श्रीवास्तव के व्यंग्य) ,दुर्योधन काबर फेल होथे? - (प्रभाकर चौबे के व्यंग्य),कुकरी चोर के कथा - (लतीफ घोंघी के व्यंग्य) प्रमुख हे। पारकर जी सन 1992-93 ले कतको पत्र पत्रिका मा स्तम्भ लिखत रिहिन(जइसे आनी बानी के गोठ स्तम्भ),जेमा व्यंग्य घलो रहय। बइगा घर लइका नइहे शीर्षक ले पारकर जी के व्यंग्य संग्रह अवइया हे।


*शत्रुघ्न सिंह राजपूत*- छत्तीसगढ़ी व्यंग्य के क्षेत्र मा शत्रुघ्न सिंह राजपूत के बड़ योगदान हे, उंखर लिखे व्यंग्य हीरा गँवागे कचरा मा, गउ माता परीक्षा मा आइस निबन्ध,नारद जी के छत्तीसगढ़ दौरा, आन लाइन कविता के बरसात, फ्री जीवी भरम जीवी अउ आंदोलन जीवी,जइसे मदारी के बाजा वइसने बेंदरा जे नाचा, बड़ उदार हे हमर कका, तिजहा फरार, बाबू अउ ओखर आफिस, खेल खेल मा कुर्सी के खेल,सबे करत हे मंथन,सत्ता खड़ी जे खास लंगर, जीभ के खसल पट्टी, पंचायती राज मा महीना मनके आरक्षण अउ पुरुष के सियानी, सलाह हाजिर हे, आदि के आलावा अउ कतको बहुचर्चित व्यंग्य हे। news18 cg मा राजपूत जी ला पढ़े जा सकत हे। राजपूत जी दैनिक भास्कर(कबीर चँवरा स्तम्भ) अउ कतको पत्र पत्रिका मा सन 1993 ले सरलग छपत आवत हें।


*राजेन्द्र सोनी*- क्षणिका,हायकू अउ प्रथम लघुकथा लेखक सोनी जी के आंचलिक कथा संग्रह खोरबाहरा तोला गाँधी बनाबों,व्यंग्य विशेष कहानी आय, जेमा आंचलिक समस्या अउ अंचल के पीड़ित शोषित मनके सुध दिखथे। एखर आलावा सोनी जी 2005 मा व्यंग्य विशेष कालम घलो निकालिन। 


*लक्ष्मण मस्तुरिया*- वइसे तो *मस्तूरिहा* जी मूलतः कवि गीतकार, अउ गायक रिहिन, फेर माटी कहे कुम्हार शीर्षक ले, सन 2015 मा वैभव प्रकाशन ले प्रकाशित पत्रिका गुनान गोठ मा सरलग व्यंग्य लिखे। जेमा *गाय न गरु सुख सोय हरु, जइसे अउ कतको सशक्त व्यंग्य रचना रहय*


*डॉ दीनदयाल साहू-* हरिभूमि चौपाल मा सरलग कालम लेखन , जेमा कतको व्यंग्य साहू जी लिख चुके हें। जइसे बीबी अउ टीबी, कुर्सी नइ पूरत हे, विकास के रद्दा, हमर गाड़ी चलत रहय, महूँ स्मार्ट हँव,देवारी मा होय दीवाला, चुनावी घोषणा,होरी तिहार के मजा नामक दर्जन भर व्यंग्य साहू जी लिखें हे।


*गिरीश ठक्कर*-लबरा के गोठ ठक्कर जी के बहुचर्चित अउ धारदार व्यंग्य आय।


 *कासी पूरी कुंदन*- बईमान के मूड़ मा पागा, गदहा माल उड़ावत हे, कासीपुरी कुंदन जी के व्यंग्य कृति आय।


*सन्तोष चौबे* - चौबे जी के लिखे चोरहा चिल्लाय चोर चोर बहुत बढ़िया व्यंग्य  आय।


*तमंचा रायपुरी(संजीव तिवारी)*- गुरतुर गोठ के सम्पादक संजीव तिवारी जी *बियंग के रंग* के रूप मा व्यंग्य के दशा दिशा ला देखावत व्यंग्यकार मनके विचार ला संरेखत एक संग्रह निकालिन। जेमा छत्तीसगढ़ी म गद्य साहित्य : विकास के रोपा, बियंग के अरथ अउ परिभासा, बियंग म हास्य अउ बियंग, हास्य अउ बियंग के भेद, देसी बियंग, बियंग के उद्देश्य अउ तत्व, बियंग विधा, बियंग के अकादमिक कसौटी, बियंग के महत्व : बियंग काबर, बियंग के भाखा, छत्तीसगढ़ी बियंग के रंग, अउ बाढ़े सरा जइसे बारा ठन खांचा म बांध के व्यंग्य के जम्मो इतिहास ल पिरोये के उदिम करे गे हवय। संगे संग गुरतुर गोठ अउ आन पत्र पत्रिका मन मा अपन मन के बात ला तिवारी जी व्यंग्य रूप मा लिखें।


*वीरेंद्र सरल*-  नवा सड़क के नवा बात,बछरू के साध अउ गोल्लर के लात, छत मा जल संग्रहण, बैठागुंर ला चिट्ठी, घट घट मा राम, गोल्लर उवाच, आदि के अलावा अउ बनेच अकन छत्तीसगढ़ी व्यंग्य सरल जी मन सरल सहज भाषा शैली मा पिरोये हे।

             

*धर्मेंद्र निर्मल*-भगत के लात, नवा महाभारत, बाढ़ के बढ़वार निर्मल जी के सशक्त व्यंग्य संग्रह आय।


*विट्ठल राम साहू निश्च्छल*- के पत्नी पीड़ित संघ,वा रे गोंदली, गैस सिलेंडर लानव पति नम्बर वन कहलावव,सम्पत अउ विपत,अब महूं हैसियत वाला होगेंव, मोबाइल कथा आदि मनोरंजक अउ धारदार व्यंग्य हे।


*चोवाराम वर्मा बादल*- बादल जी एक छंदकार, कहानीकार के साथ साथ बड़का व्यंव्यकार घलो आय। उंखर लिखे व्यंग्य दू मिनट,सेम्पल अउ शोध,प्रेम, प्रसंशनाचार्य साहित्यविद,चक्कर मा चक्कर, ईलाज, रोजगार प्रशिक्षण केंद्र आदि बहुत धारदार हे।


*हरिशंकर गजानंद देवांगन जी*- देवांगन जी व्यंग्य लेखन मा माहिर हे, उंखर लिखे- लहू, मिटना अउ मिटाना, पंख, महाकुम्भ, रावण कब मरही, चेतावनी, पनही,कलम, गांधी जिंदा हे, रजिस्ट्रेशन,गांधी जी के बाद, कर्जा के प्रकार,चुनाव आयोग मा भगवान आदि सब चर्चित व्यंग्य हे। देवांगन जी सरलग पत्र पत्रिका मा छपत रहिथे,अउ सरलग उत्कृष्ट व्यंग्य लिखत हे।


*राजकुमार चौधरी रौना*- "का के बधाई" राजकुमार चौधरी जी के 2019 मा प्रकाशित व्यंग्य विधा के सशक्त संग्रह आय। जेमा देशी गदहा, कुल मिलाके मरना हे, आवव खँचका खनी, जइसे उत्कृष्ट व्यंग्य सम्मिलित हे। 


*सत्य धर बान्धे"ईमान"* जी के महूँ बनहूँ नेता, महँगाई, सलमान खान जे बिहाव, मोटापा, जय हो गोल्लर देवता प्रमुख व्यंग्य रचना आय।


*विजेंद्र वर्मा*- मोला कुकुर बना देबे,कुकुर घुमइया मनखे,सेल्फी बिलहोरत हे,काय के नवा साल,तेकर ले तो चिरइ बने,बेटी के पीरा,हंडा निकाले हे,मालचू कस मितान आदि वर्मा जी के चर्चित व्यंग्य रचना आय, जे  कतको पत्र पत्रिका मा जघा पा चुके हे।


*डाँ अशोक आकास*-जी के अंते तंते शीर्षक ले व्यंग्य संग्रह छत्तीसगढ़ केसरी मा छपत रिहिस।


*ललित साहू जख्मी*- जख्मी जी के लिखे  व्यंग्य टेटका के बदलत रंग, कुकुर खुसर जही, गजब जे स्टाइल, चुनई जे बेरा, सोझ रद्दा टेंड़गा चाल, बस मा गँवई गांव जे सफर आदि कतको पत्र पत्रिका मा छप चुकें हे।


*लखनलाल साहू लहर*- लहर जी व्यंग्य रचना छत्तीसगढ़ राज कुर्सी मा चपकागे, गौटिया राज अउ पंचायती राज, इही आय आय मोर सपना के छत्तीसगढ़ कतको पत्र पत्रिका मा छप चुके हे।


              छत्तीसगढ़ी साहित्य मा मूलतः व्यंग्यकार गिनती के हे, भले व्यंग्य रचना अउ व्यंगकार ऊपर कोती बड़ अकन दिखत हे, फेर छत्तीसगढ़ी व्यंग्य संग्रह के बात करिन  ता  तो अउ सम्मानजनक नइहे। येखर कारण व्यंग्य के विषय विशेषता ले अंजाना होना अउ थोरिक कठिन विधा हो सकत हे, संगे संग विमर्श सलाह ना मिलना अउ कोनो बड़का व्यंग्य कार ला ना पढ़ना  भी हो सकत हे। व्यंजनाशब्द शक्ति मा शब्द ला गूथ के कोनो भटके ला(शोषक) तुतारी कोचना अउ ओखर मुँह ले(शोषक)हक्का बक्का ना निकलना, कोनो सहज बूता नोहे। 

                  फेर आज यदि कहन ता व्यंग्य विधा के जेन कसर रिहिस वो पूरा होवत दिखत हे। छत्तीसगढ़ी गद्य के विकास बर संचालित वॉट्सप समूह लोकाक्षर के माध्यम ले  घलो कई व्यंग्य रचना अभी तक पढ़े बर मिले हे, जेमा छंदविद अरुण कुमार निगम जी के रेखा रे रेखा, मंगनी मा मांगे मया नइ मिले रे,मथुरा प्रसाद वर्मा  के- गुरुजी, अश्वनी कोशरे के- हंस तो हंस होथे, तोर नाँव का हे, हीरा गुरुजी समय के- गुलाबी, महेंद्र कुमार मधु के- चाहा पानी, फकीर प्रसाद फक्कड़ के- तड़क फांस, सरकार बाबा,जीतेंन्द्र वर्मा खैरझिटिया के - जगाना मना हे, आशा देसमुख के- पितर नेवता आदि। एखर संगे संग सरलग गद्य विधा मा लिखत सरला शर्मा जी, स्वराज करुण जी, रामनाथ साहू जी, गयाप्रसाद साहू जी, डाँ अनिल भतपहरी जी,राजकुमार लोधी मसखरे,दिनेश चौहान, पोखनलाल जायसवाल, अजय अमृतांशु, चन्द्रहास साहू, डी के सार्वा,  टिकेश्वर साहू गबदीवाला,अनिल पाली, रामेश्वर गुप्ता, मोहन निषाद आदि साहितकार मन घलो अवइया समय मा जरूर व्यंग्य विधा के कोठी ला भरही ये आशा हे। एखर आलावा पत्रिका के पहट, दैनिक भास्कर के संगवारी, चैनल इंडिया, गुरतुर गोठ,अँजोर, छत्तीसगढ़ झलक, अपन डेरा, लोक सदन, आरुग चौरा, चौपाल,मड़ई, खबर गंगा, राजिम टाइम्स, आरुग चौरा आदि अउ कतको पत्र पत्रिका के सम्पादक मन घलो समय समय मा शब्द बाण ढीलत रहिथे।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को कोरबा(छग)

 

सन्दर्भ ग्रंथ 


गूगल सर्च,

गुरतुर गोठ बेब पोर्टल,

छत्तीसगढ़ी गद्य खजाना,

लोकाक्षर वॉट्सप समूह।

अरुण निगम, डाँ दीनदयाल साहू, ओमप्रकाश अंकुर, दुर्गा प्रसाद पारकर, सुशील भोले, रामेश्वर शर्मा, वीरेंद्र सरल आदि साहित्यकारों से फोनिक सलाह।


Friday, 21 January 2022

व्यंग्य-रजिस्ट्रेशन

 रजिस्टेशन 

                    जनता हित के जम्मो बूता के रजिस्टेसन के मुहिम ... सरकार डहर ले चारों मुड़ा चले लगिस । गाँव के मनखे मंगलू के .... अभू तक न कन्हो रजिस्टेशन होय रिहीस .... न कभू कन्हो हित के काम ..... । प्रचार प्रसार के माध्यम ले ओला जनता के हित बर होवत रजिस्टेशन के बारे म जइसे पता लगिस .... तइसने उहू हा ..... रजिस्टेशन कराये बर निकल गिस । सरकार हा जनता ला कन्हो तकलीफ झिन होय सोंचके जगा जगा रजिस्टेशन के आपिस खोले रहय । उहाँ बड़े बड़े मनखे मन के लम्भा लइन देख खुसरे के हिम्मत नइ करत रिहीस । फेर पेट के भूख हा मनखे ला अतेक मजबूर कर देथे के ओला पूरा करे बर जी परान लगा देथे । एक दिन हिम्मत करके लइन म लगगे । पहिली दिन जब ओकर नम्बर अइस तब तक काऊंटर बंद होगे । दूसर दिन बिहिनिया ले लइन लगिस ... नम्बर के आवत ले काउंटर फेर बंद होगे । ओकर भाग म कुछ अइसे रिहीस के ओकर नम्बर आये के पहिली .... काऊंटर बंदेच हो जाये । 

                    एक दिन बिहिनिया चार बजे ले उठिस अऊ लइन म लगगे । ओ दिन मंगलू हा लइन म अकेल्ला रिहीस । ओकर आगू पिछू कन्होच नइ रिहीस । मंगलू आज खुस रिहीस के ओकर रजिस्टेशन आज हो जही । फेर गरीब मजदूर मनखे ला का पता कि देस के सरकारी मनखे बर कन्हो कन्हो दिन छुट्टी के घला होथे । जब ले दुनिया म आहे तबले बिगन कन्हो आराम अऊ बिगन छुट्टी के ....... काम काम अऊ काम म लगे हे ...... बपरा मंगलू ...... । वहू दिन धोखा खागे । फेर हिम्मत नइ हारिस । रजिस्टेशन ले मिलइया मुफत के सुबिधा के लालच म दूसर दिन फेर पहुंचगे । बहुत मुस्किल से रजिस्टेशन करइया बाबू साहेब से मुलाकात होइस । बाबू साहेब हा मंगलू ला देखतेच साठ पूछ बइठिस के ..... तैं काये चीज के रजिस्टेशन कराये बर आये हस ? तैं हा अइसने फटेहाल चुसे शोषित दिखत हस । तोर देंहें अऊ हाव भाव ला देखके कन्हो भी जान डरही के तैं भारतीय अस । तोला कन्हो प्रमान के का आवसकता ........ ? तैं का करबे रजिस्टेशन करवाके .....  ?

                    मंगलू किथे –  हमर कस मनखे के हित बर रजिस्टेशन होवत हे .. सुनेव त महूं ... गाँव ले आगेंव बाबू साहेब । मोरो नाव म कुछु रजिस्टर्ड कर देते । बाबू पूछथे के ..... तोर नाव ला कामे रजिस्टर करँव ? तोला देख के कोन कही के .... तैंहा भारतीय नोहस कहिके ...... ? मंगलू पूछिस – मेंहा अपन नाव के रजिस्टेशन कराये बर थोरेन आहंव बाबू ..... । मेंहा न कन्हो जमीन जायदाद जगा भुंइया के रजिस्टेशन बर आये हँव ...... न नागरिकता के ........ न अऊ कहूँ बड़का चीज के ....... । मेंहा केवल अतके बर आये हँव के ...... मोर हिस्सा के रोटी ला मोर नाव म रजिस्टर्ड कर देवव ....... । मोर हिस्सा के रोटी ला हरेक दारी ... कौंरा ले नंगा लेथे बइरी मन ..... । मोरो नाव म एक बेर रोटी रजिस्टर्ड हो जतिस त ... महूं अपन दमखम ले अपन हांथ के रोटी ला कन्हो ला नँगावन नइ देतेंव । जे हांथ मोर रोटी कोती उठतिस तेला टोरेच के बइठारतेंव । बाबू साहेब हाँसिस अऊ किहीस – मुरूख मनखे ....... रोटी जइसे चीज के रजिस्ट्री मांगथस ....... तोला थोर बहुत शरम तको नइ लागे रे ...... । अपन नाव के रोटी रजिस्टर्ड कराये बर बड़का मनखे बने बर परथे ।

                    मंगलू किथे – बहुत बछर हो चुकिस बाबू साहेब .... हमन ला अइसन भुलियारत ...... । हमन बड़का नइ बन सकन तेला ... तहूँ जानत हस । फेर जब रजिस्टेशन के बात चलिच गेहे त मोरो प्रण हे ....... आज तो मेहा अपन नाव के रोटी रजिस्टर्ड करवइच के जाहूं । ओकर पिछू के लँभा लइन म .... काँव काँव होय लगिस । तब बाबू साहेब हा अपन साहेब तिर बिचार बिमर्स करे बर चल दिस । मौका के नजाकत ला देखत साहेब हा उपर फोन लगइस । उपरवाले किथे – सत्तर पछत्तर बछर पोहागे अब ये पार टरकाना बहुतेच मुस्किल हे । ओकर नाव ले जे चीज रजिस्टर्ड हे तेला देखा दे .... फेर कइसे देखाना हे ते बात के ध्यान राखे जाय । साहेब अऊ ओकर ले उपरवाले के बात ला .... इसारा म बाबू साहेब समझगे । मंगलू ला बाबू साहेब किथे – तोर नाव के चीज के रजिस्ट्री हो जही फेर ..... ओकर एवज म उपरवाले ला घला कुछु दे बर लागही । मंगलू किथे – मोर तिर फूटी कउड़ी निये । में कायेच ला दे डरहूं तेमा ..... ? बाबू किथे – उपर म रहवइया मन .... तोर नाव म पहिली भी बहुत अकन चीज ला फोकट म रजिस्टर्ड कर चुके हे ... फेर ये पइत ..... बिगन बदला के नइ देवय । ओला सिर्फ अपन बोट ला सौंप दे .... । तोर नाव ले रजिस्टर्ड चीज ला देखा दिये जाही ।  

                    मंगलू जानना चहिस के ..... ओकर नाव म काये काये चीज रजिस्टर्ड हे । बाबू साहेब हा फाइल खोल के ऊँकर नाव ले रजिस्टर्ड जम्मो चीज के मालिकाना हक के कागजात निकालिस । अतेक लँभा लिस्ट देखके ..... बिगन परखे .... बिगन आकब करे ...... मंगलू कस जम्मो जनता हा .... ओतके बेर अपन बोट ला उपर वाले मनखे के नाव कर दिस । बदला म ओतके बेर .... भूख .. गरीबी .. बेकारी ... तंगहाली अऊ शोषण के .... मालिकाना हक के कागजात पागे । सरकारी भाखा ला नइ समझ सकइया अपढ़ गँवार मंगलू ..... एक बेर फेर चुचुवागे । अतेक अकन समान के मालिकाना हक ला ढोवत .... समयपूर्व बुढ़ापा ला गिफ्ट मा पाके ..... कनिहा कूबड़ टूटे लगिस । अभू घला ओकर नाव के रोटी हा ...... दूसर के पेट म खुसरके छटपटावत हे ........ अऊ मंगलू बुधारू मन ..... अपन नाव के रजिस्टर्ड रोटी के तलास म  ............ ।  

  हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन , छुरा .

छत्तीसगढ़ी साहित्य मा व्यंग्य यात्रा


 

छत्तीसगढ़ी साहित्य म व्यंग्य के यात्रा 


व्यंग्य रचना अउ व्यंग्य गोठ म वो शक्ति रहिथे कि मनखे ल सुधरे बर प्रेरित करथे. कतको बेरा व्यंग्य गोठ ह झगरा के जड़ घलो बन जाथे. महाभारत काल म दुर्योधन ल द्रोपदी के बात कि "-अंधवा के बेटा ह अंधवा जइसे हस " ह तिलमिला के रख दीस. जेकर सेती ये व्यंग्य बात के बदला ले के ठान लीस. वोकर दुष्परिणाम महाभारत युद्ध के रुप म सामने आइस. 

   दूसर कोति देखथन कि रत्नावली के व्यंग्य बात ल सुनके कि -" हांड मास के तन ले अत्तिक प्रेम करथस!  अतकी प्रेम भगवान ले कर लेहू त त़ुमन जिनगी रुपी भव सागर  ले पार हो जाही "ह तुलसी जैसे संत दीस.


  वइसे तो कविता म घलो जमगरहा व्यंग्य रहिथे. कबीर, तुलसी ,रहीम, वृंद सहित बड़का कवि मन के रचना म सीख के साथ व्यंग्य छुपे हवय . कहानी, एकांकी, नाटक म व्यंग्य के गुन मौजूद रहीथे. 


पर इहां व्यंग्य के अर्थ हमन ल साहित्य के नवा विधा व्यंग्य लेखन के बात करना हे.ये विधा ह आधुनिक साहित्य के सबले लोक 

प्रिय विधा बन गेहे. ये विधा के सम्राट हरिशंकर परसाई जी माने जाथे. जब मेहा स्कूल म पढ़त रेहेंव त उंकर व्यंग्य रचना "टार्च बेचने वाला " पढ़े रेहेंव. बाद म विभिन्न अखबार अउ पत्र- पत्रिका म उंकर रचना पढ़ेव. आकाशवाणी ले घलो उंकर व्यंग्य वार्ता सुनेंव. परसाई जी ह अपन व्यंग्य  रचना के माध्यम ले राजनीति म गिरते स्तर, नेता मन के झूठा वादा, भ्रष्टाचार, जमाखोरी, पाखंड, दिखावा उपर जमगरहा कलम चलाइस. ये विधा म लिख के परसाई जी ह जन जन म लोक प्रिय होइस. दुर्घटना ले गुजरे के बावजूद परसाई जी शासन /प्रशासन के समक्ष कभू नइ झुकिस अउ जनता जनार्दन ल जीवन भर जागरुक करे के कारज करते रीहीस. 


  हिन्दी व्यंग्य विधा म  लतीफ घोंघी जी, त्रिभुवन पांडे जी,  काशीपुरी कुंदन,  प्रभाकर चौबे जी, रवि श्रीवास्तव जी,  शरद कोठारी जी (नगर दर्पण, सबेरा संकेत राजनांदगांव) रामेश्वर वैष्णव जी, गजेन्द्र तिवारी जी विनोद साव जी, शत्रुघ्न सिंह राजपूत जी, कुबेर सिंह साहू जी, वीरेन्द्र साहू सरल जी,   गिरीश ठक्करजी (सुई की चुभन) के नांव आदर के साथ ले जाथे. 


 मेहा ह लतीफ घोंघी जी के व्यंग्य रचना ल जादा पढ़े अउ सुुने हवँ. विभिन्न अखबार के रविवारीय अंक के संगे संँग साहित्यिक पत्रिका म पढ़े हवँ. आकाशवाणी रायपुर ले प्रसारित उंकर व्यंग्य रचना ल अब्बड़ चाव ले सुनवँ . उंकर व्यंग्य रचना म व्यंग्य के सँग हास्य के पुट झलकय जेहा मन ल गुदगुदाय अउ व्यवस्था पर जमगपहा प्रहार करय. 


  अइसने शरद जोशी जी के रचना ल पत्र पत्रिका म पढ़े के सँगे सँग रेडियो अउ टीवी म सुने रेहेंव. 


 छत्तीसगढ़ी साहित्य म व्यंग्य लेखन के यात्रा.....


 आवव अब छत्तीसगढ़ी साहित्य मा व्यंग्य लेखन के यात्रा के गोठ करथन. छत्तीसगढ़ी म गद्य रचना के शुरुआत 1950 के बाद जादा देखे ल मिलीस. "छत्तीसगढ़ी मासिक" (संपादक -मुक्तिदूत)," लोकाक्षर" (संपादक -नंदकिशोर तिवारी जी)  के माध्यम ले छत्तीसगढ़ी गद्य ल बने वातावरण मिलीस.  सुशील भोले जी के संपादन म 1987 से 1989 तक "मयारु माटी "पत्रिका म रामेश्वर वैष्णव जी, टिकेन्द्र टिकरिहा जी चेतन आर्य जी, राजेश्वर खरे जी के  सँगे सँग दूसरा व्यंग्यकार मन के लेख प्रकाशित होय हे.


छत्तीसगढ़ी म व्यंग्य लेखन के एक बड़का नाँव रामेश्वर वैष्णव जी के हे. वैष्णव जी ह 1966 ले व्यंग्य लिखे के शुरु करीस. उंकर व्यंग्य लेख कई ठक अखबार अउ पत्रिका म प्रकाशित होइस जेमा बांगो टाईम्स(बागबाहरा) म 1966से 1968 तक (स्तंभ-आंखी मूंद के देख ले),छत्तीसगढ़ झलक म 1978 से 1981 तक,  नवभारत म 1983 से 1990 तक अउ फेर बाद म 2010 से 2013 तक (स्तंभ -उत्ता -धुर्रा), 1995 से1997 तक दैनिक भास्कर म (स्तंभ -उबुक -चुबुक), 2009 से 2011 तक छत्तीसगढ़ी सेवक म 1980 से 1986 तक (स्तंभ - गुरतुर -चुरपुर)फेर 2010 से 2013 तक (स्तंभ - सबले बढ़िया छत्तीसगढ़िया) साप्ताहिक रुप म प्रकाशित होइस. वैष्णव जी ह लगभग  पांच सौ व्यंग्य लिखे हे. पर उंकर छत्तीसगढ़ी व्यंग्य ह किताब के रुप म सामने नइ आ पाइस. जबकि हिन्दी म उंकर पांच व्यंग्य संग्रह निकले हे.उंकर व्यंग्य के कुछ शीर्षक म " का साग खायेस, सब्जी मन के गोठ बात, करिया कुकुर के उज्जर बात, "अच्छा आदमी के हालत खराब " शामिल हे. 


 1995 म जय प्रकाश मानस के छत्तीसगढ़ी व्यंग्य संग्रह "कलादास के कलाकारी "पहचान प्रकाशन (प्रकाशक - राजेन्द्र सोनी) रायपुर ले प्रकाशित होइस.हमर छत्तीसगढ़ के बड़का साहित्यकार जेमा हरि ठाकुर जी, चितरंजन कर जी, डॉ. बल्देव, डॉ. बिहारी लाल साहू, राजेन्द्र सोनी, राम लाल रात्री मन ह अपन लेख म ये व्यंग्य संग्रह ल छत्तीसगढ़ी के पहिली व्यंग्य संग्रह (व्यक्तिगत) माने हे. येकर ले पहिली मानस जी ह 1990-91 म अमृत संदेश(संपादक - गोविन्द लाल वोरा) म "पंचनामा' स्तंभ म व्यंग्य लेख लिखे. 

   

   छत्तीसगढ़ी म व्यंग्य लेखन ल बढ़ावा दे म लोकाक्षर (संपादक - नंद किशोर तिवारी) देशबंधु के मड़ई(संपादक- आदरणीया सुधा वर्मा जी) वैभव प्रकाशन (संपादक - सुधीर शर्मा जी) हरिभूमि के चौपाल(संपादक-दीन दयाल साहू जी) पत्रिका के पहट(संपादक- गुलाल वर्मा जी), छत्तीसगढ़ सेवक(संपादक- जागेश्वर प्रसाद जी) मयारु माटी (संपादक -सुशील भोले) गुरतुर गोठ (संजीव तिवारी जी) "हांका", दैनिक सबेरा संकेत(संपादक- शरद कोठारी जी, सुशील कोठारी जी) छत्तीसगढ़ झलक(संपादक-चन्द्रकांत ठाकुर) नवभारत,  अमृत संदेश के अपन डेरा, दैनिक भास्कर, समवेत शिखर, आरुग चौंरा( संपादक -ईश्वर साहू आरुग छत्तीसगढ़ आस पास(प्रदीप भट्टाचार्य जी) 

नांदगांव टाईम्स(संपादक -अशोक पांडे जी) दैनिक दावा( संपादक -बुद्धदेव जी) बांगो टाईम्स, कृषक युग(विद्या भूषण ठाकुर जी) कला परंपरा(संपादक- गोविन्द साव जी) विचार विन्यास(संपादक -डॉ. दादू लाल जोशी जी) विचार विथि

(संपादक - सुरेश सर्वेद जी) 

साकेत स्मारिका ( संपादक -कुबेर सिंह साहू जी) राजिम टाईम्स (संपादक - तुका राम कंसारी जी ) छत्तीसगढ़ी लोकाक्षर ग्रुप (ग्रुप एडमिन द्वय - अरुण कुमार निगम जी अउ सुधीर शर्मा जी) 


अंजोर(संपादक-जयंत साहू जी) अउ विभिन्न पत्र पत्रिका ह गद्य के विभिन्न विधा के संग व्यंग्य लेखन ल बढ़ावा दीस / देवत हे. 


 छत्तीसगढ़ी म व्यंग्य लेखन पहिली छुट- पूट चलते रीहीस.लिखइया कम रीहीस फेर छत्तीसगढ़ राज्य बने के बाद छत्तीसगढ़ी  म व्यंग्य लेखन के बढ़वार देखे ल मिलीस. नवा राज बने ले छत्तीसगढ़िया साहित्यकार मन के स्वाभिमान म जिहां बढ़ोत्तरी होइस त दूसर कोती छत्तीसगढ़ी ल राजभाषा बनाय के मांग ह जोर पकड़े लागीस. हमर छत्तीसगढ़ के साहित्यकार मन कविता के सँगे सँग गद्य म घलो अपन कलम ल चलात गिस. साहित्य के नवा विधा व्यंग्य म घलो लिखइया साहित्यकार मन म बढ़ोत्तरी होइस. 

छत्तीसगढ़ी व्यंग्य लेखन क्षेत्र म रामेश्वर वैष्णव जी,  सुशील यदु जी, शत्रुघ्न सिंह राजपूत  जी  (कबीर चँवरा(स्तंभ) दैनिक सबेरा संकेत में 1993 से लगातार 15 साल साप्ताहिक प्रकाशित होइस, रायपुर के कई ठक अखबार म घलो छपिस ) ,लक्ष्मण मस्तुरिया (गुनान गोठ, वैभव प्रकाशन द्वारा 2015 म प्रकाशित, जेमा 34 व्यंग्य लेख हे, गाय न गरु सुख होय हरु, ये व्यंग्य ह एम. ए. हिन्दी साहित्य म शामिल रीहीस ),  सुशील भोले जी (मयारु माटी म " बजरंग तोला युग पुरुष बनाबो ", छत्तीसगढ़ी सेवक म किस्सा कलयुगी हनुमान के प्रकाशित होइस.  व्यंग्य संग्रह -भोले के गोले 2015 म प्रकाशित) , छंद विद् अरुण कुमार निगम जी (रेखा रे रेखा, मंगनी मा मांगे मया नइ मिले) परमानंद वर्मा जी, दुर्गा प्रसाद पारकर जी (  1992 से 1994 तक रौद्र मुखी स्वर म छत्तीसगढ़ी व्यंग्य स्तंभ "आनी -बानी के गोठ"प्रकाशित ,  व्यंग्य लेखन संग्रह -" बईगा घर लईका नइ हे" जल्दी प्रकाशनाधीन हे. जेमा उंकर 14 छत्तीसगढ़ी व्यंग्य लेख हे) वीरेन्द्र साहू सरल जी  ,  के. के. चौबे जी,  पुरुषोत्तम अनासक्त, धर्मेन्द्र निर्मल जी (हांका म प्रकाशित होथे)  दीन दयाल साहू जी (बीवी अउ टीवी, कुर्सी नइ पूरत हे, होरी तिहार के मजा, चौपाल म दो दर्जन ले जादा व्यंग्य प्रकाशित होइस) , टिकेन्द्र नाथ टिकरिहा जी, हेमनाथ वर्मा जी, चेतन आर्य जी, तीरथ राम गढ़ेवाल, राजेश्वर खरे, गजेन्द्र तिवारी, चोवा राम वर्मा बादल जी, डी. के. सार्वा, रामेश्वर गुप्ता, रमेश चौहान, बिट्ठल साहू जी, राजेन्द्र सोनी जी, के. के. चौबे जी, हरि शंकर  गजानंद देवांगन जी,   गया प्रसाद रतनपुरिहा, राज कुमार चौधरी जी  ( व्यंग्य संग्रह- का के का बधाई  2019 म प्रकाशित ), गिरीश ठक्कर जी  (लबरा के गोठ,छत्तीसगढ़ झलक, राजनांदगांव म 10 साल तक साप्ताहिक रुप म प्रकाशित,  कृषक युग अउ चौपाल म भी व्यंग्य प्रकाशित होइस) , मथुरा प्रसाद वर्मा, अश्वनी कोसरे, हीरा लाल गुरुजी, विजेन्द्र वर्मा जी,चन्द्रहास साहू जी, लखन लाल साहू लहर (गौंटिया राज अउ पंचायती राज, नांदगांव टाईम्स म प्रकाशित, का इही आय मोर सपना के छत्तीसगढ़, 23 दिसंबर 2003 म सबेरा संकेत म प्रकाशित ,  छत्तीसगढ़ राज ह कुर्सी म चपकागे ,21 दिसंबर 2000 म दैनिक भास्कर के कालम अपनी बात म प्रकाशित) जितेन्द्र वर्मा खैरझिटिया जी,  डॉ. अशोक साहू आकाश (छत्तीसगढ़ी केशरी म "अंते तंते "शीर्षक ले प्रकाशित),महेन्द्र कुमार बघेल मधु जी (चाहा- पानी 2007 म साकेत स्मारिका म प्रकाशित),  फकीर प्रसाद साहू" फक्कड़  " (तड़क फांस, सरकार, बाबा) राजनांदगांव के नांव सामिल हे.


 2019 म  गुरतुर गोठ के संपादक संजीव तिवारी जी ह छत्तीसगढ़ी व्यंग्य लेखन उपर आलोचानात्मक किताब निकालिस. येमा "छत्तीसगढ़ी व्यंग्य लेखन : दशा अउ दिशा "के बहाने दो दर्जन छत्तीसगढ़ी व्यंग्यकार के रचना के बारे म समीक्षा करे गेहे. येमा तिवारी जी ह  छत्तीसगढ़ी व्यंग्यकार के लेखन के बारे म सुग्घर चर्चा करे हे. 


  व्यंग्य रचना म साहित्यकार ह कोनो प्रतीक लेके बात रखथे. पशु- पक्षी के सभा, जानवर मन के बइठका जइसे विषय ल लेके व्यवस्था उपर अब्बड़ प्रहार करथे. 


छत्तीसगढ़ी लोकाक्षर ग्रुप के माध्यम ले छत्तीसगढ़ी व्यंग्य ह पोठ होवत हे. येमा जुड़े दर्जन भर के करीब बुधियार साहित्यकार मन ये विधा म अपन कलम चलावत हे. 


आज  छत्तीसगढ़ी साहित्य म व्यंग्य विधा ह अब्बड़ लोक प्रिय विधा बन गेहे.


संदर्भ - 1. हमर छत्तीसगढ़ के एक दर्जन साहित्यकार मन ले चर्चा जेमा व्यंग्यकार घलो शामिल हे. 


        2.   छत्तीसगढ़ी लोकाक्षर ग्रुप 


3. विभिन्न पत्र -पत्रिका 


            

      ओमप्रकाश साहू "अंकुर "


         सुरगी,राजनांदगांव

Sunday, 16 January 2022

छेरछेरा पुन्नी के मूलमंत्र


 

छेरछेरा पुन्नी के मूलमंत्र


                          कृषि हमर राज के जीविका के साधन मात्र नोहे, बल्कि संस्कृति आय, काबर कि खेती किसानी के हिसाब ले हमर परब संस्कृति अउ जिनगी चलथे। उही कड़ी के एक परब आय, छेराछेरा। जे पूस पुन्नी के दिन मनाय जाथे। ये तिहार ला दान धरम के तिहार केहे जाथे। वइसे तो ये तिहार मानये के पाछू कतको अकन किवदंती जुड़े हे, फेर ठोसहा बात तो इही आय कि, ये बेरा मा खेत के धान(खरीफ फसल) लुवा मिंजा के किसान के कोठी मा धरा जावत रिहिस, उही खुशी मा एक दिन अन्न दान होय लगिस, जेला छेरछेरा के रूप मा पूरा छत्तीसगढ़ मनाथें।  पौराणिक काल मा इही दिन,भगवान शिव के पार्वती के अँगना मा भिक्षा माँगे के वर्णन मिलथे। सुनब मा आथे कि भगवान शिव अपन विवाह के पहली माता पार्वती तिर नट के रूप धरके उंखर परीक्षा लेय बर गे रिहिस, अउ तब ले लोगन मा उही तिथि विशेष मा दान धरम करत आवँत हें। 

                     ये दिन ले जुड़े एक पौराणिक कथा अउ सुनब मा मिलथे, कथे कि एक समय धरती लोक मा भयंकर अंकाल ले मनखे मन दाना दाना बर तरसत रिहिन, तब आदि भवानी माँ, शाकाम्भरी देवी के रूप मा अन्न धन के बरसा करिन। वो तिथि पूस पुन्नी के पबरित बेरा पड़े रिहिस। उही पावन सुरता मा, माता शाकाम्भरी देवी ला माथ नवावत, आज तक ये दिन दान देय के पुण्य कारज चलत हे। भगवान वामन अउ राजा बली के प्रसंग घलो कहूँ मेर सुनब मा आथे।

                रतनपुर राज के कवि बाबूरेवाराम के पांडुलिपि मा घलो ये दिन के एक कथा मिलथे, जेखर अनुसार राजा कल्याणसाय हा, युद्धनीति अउ राजनीति मा पारंगत होय खातिर मुगल सम्राट जहाँगीर के राज दरबार मा आठ साल रेहे रिहिस, अउ इती ओखर रानी फुलकैना हा अकेल्ला रद्दा जोहत रिहिस। अउ जब राजा लहुट के आइस ता ओखर खुशी के ठिकाना नइ रिहिस, रानी फुलकैना मारे खुशी मा अपन राज भंडार ला सब बर खोल दिस, अउ अन्न धन के खूब दान करें लगिस, अउ सौभाग्य ले वो तिथि रिहिस, पूस पुन्नी के। कथे तब ले ये दिन दान धरम के  परम्परा चलत हे।

                  कोनो भी तिथि विशेष मा कइयों ठन घटना सँघरा जुड़ सकथे, जइसे दू अक्टूबर गाँधी जी के जनम दिन आय ता शास्त्री जी घलो इही दिन अवतरे रिहिन, दूनो के आलावा अउ कतको झन के जनम दिन घलो होही। वइसने पूस पुन्नी के अलग अलग कथा, किस्सा, घटना ला खन्डित नइ करे जा सके। फेर सबले बड़का बात ये तिथि ला, दान पूण्य के दिन के रूप मा स्वीकारे गेहे। अउ दान धरम कोनो भी माध्यम ले होय, वन्दनीय हे। छेराछेरा तिहार मा घलो वइसने दान धरम करत,अपन अँगना मा आय कोनो भी मनखे ला खाली हाथ नइ लहुटाय जाय, जउन भी बन जाये देय के पावन रिवाज चलत हे, अउ आघु चलते रहय। ये परब मा देय लेय के सुघ्घर परम्परा हे, छोटे बड़े सबे चाहे धन मा होय चाहे उम्मर मा आपस मा एक होके ये परब मा सरीख दिखथें। लइका सियान के टोली गाजा बाजा के संग सज सँवर के हाँसत गावत पूरा गांव मा घूम घूम अन्न धन माँगथे, अउ सब ओतके विनम्र भाव ले देथें घलो। छेरछेरा तिहार के मूल मा उँच नीच, जाति धरम, रंग रूप, छोटे बड़े, छुवा छूत,अपन पराया अउ अहम वहम जइसे घातक बीमारी ला दुरिहाके दया मया अउ सत सुम्मत बगराना हे। फेर आज आधुनिकता के दौर मा अइसन पबरित परब के दायरा सिमित होवत जावत हे। बड़का मन कोनो अपन दम्भ ला नइ छोड़ पावत हे, मंगइया या फेर गरीब तपका ही माँगत हे, अउ देवइया मा घलो रंगा ढंगा नइहे। *एक मुठा धान चाँउर या फेर रुपिया दू रुपिया कोनो के पेट ला नइ भर सके, फेर देवई लेवई के बीच जेन मया पनपथे, वो अन्तस् ला खुशी मा सराबोर कर देथे। एक दूसर के डेरउठी मा जाना, मिलना मिलाना अउ मया दया पाना इही तो बड़का धन आय। छेरछेरा मा मिले एक मुठा चाँउर दार के दिन पुरही, फेर मिले दया मया, मान गउन सदा पुरते रइथे।* इही सब तो आय छरछेरा के मूलमंत्र। कखरो भी अँगना मा कोनो भी जा सकथे, कोनो दुवा भेद नइ होय। फेर आज अइसन पावन परम्परा देखावा अउ स्वार्थ के भेंट चढ़त दिखत हे, शहर ते शहर गांव मा घलो अइसन हाल दिखत हे। ये तिहार मा ज्यादातर लइका मन झोरा बोरा धरे, गाँव भर घूम अन्न धन माँगथे, सबे घर के एक मुठा अन्न धन अउ मया पाके, उंखर अन्तस् मा मानवता के भाव उपजथे, उन ला लगथे, कि सब हम ला मान गउन देथे, छोटे बड़े,धरम जाति, ऊँच नीच, गरीब रईस सब कस कुछु नइ होय, अइसनो सन्देशा घलो तो हे, ये परब मा। छोट लइका मनके मन कोमल होथे, दुत्कार अउ भेदभाव देखही सुनही ता निराश हताश तो होबे करही।

                 छेरछेरा अइसन पबरित परब आय जे गांव के गांव ला जोड़थे, वो भी सब ला अपन अपन अँगना दुवार ले, दया मया देवत लेवत अन्तस् ले, दान धरम ले या एक शब्द मा कहन ता मनखे मनखे ले। ये खास दिन मा जइसे माता पार्वती अँगना मा नट बन आये शिव जी ला सर्वस्व न्योछावर कर दिन, राजा बली भगवान वामन ला सब कुछ दे दिस,माँ शाकाम्भरी भूख प्यास मा तड़पत धरतीवासी ला अन्न धन ले परिपूर्ण कर दिस, रानी फुलकैना अपन परजा मन ला अन्न धन दिस, अउ किसान मन अपन उपज के खुशी ला  थोर थोर सब ला बाँटथे, वइसने सबे ला विनयी भाव ले अपन शक्तिनुसार दान धरम करना चाही। लाँघन, दीन हीन के पीरा हरना चाही, अहंकार दम्भ द्वेष, ऊँच नीच ला दुरिहागे सबे ला अपने कस मानत मान देना चाही, मया देना चाही।

*दान धरम अउ मया पिरीत के तिहार ए छेरछेरा।*

*मनखे के मानवता देखाय के आधार ए छेरछेरा।*


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

छेरछेरा विशेष- दू रुपया


 

दु रुपिया 


                                 चन्द्रहास साहू

                           मो  8120578897


             बस ठेसन के ठेला मा  पेपर पढ़त- पढ़त असकट लाग गे आज । कोनो ढंग के एको खबर नइ हावय । मरनी- हरनी  के खबर ले शुरू होथे अऊ उही मा खतम । आज एक परिवार हा रेलवे ठेसन मा....? कोन जन का खबर आये ते  ? आगू पढ़े ला नइ भाइस। सरकार गरीबी हटाये बर अपन विकास मॉडल के विज्ञापन देये रिहिस। ससन भर देखेव अब्बड़ सुघ्घर रिहिस मॉडल हा। अऊ सुघ्घर नारा घला लिखाये रिहिस।

"अब सब उछाह मा रही ..! भगा जाही गरीबी हा ।'' 

मेहां केहेव पानवाला ला।

"गरीब करा कुछु राहय कि नही ..फेर नारा सबरदिन रही साहब गरीबी हटाओ के । ये नारा हा आजादी के सत्तर बच्छर पहिली ले आवत हावय अऊ मोला लागथे अवइया बेरा..... ? नारा भलुक बदल जाथे फेर गरीबी...? गरीबी तो अंगद के पांव आवय।''

पान वाला किहिस।

 "फेर हमर जागरूक सरकार के ये मॉडल मा गरीबी पल्ला भाग जाही अइसे लागथे।''

मेहां केहेव। अब तिवारी जी घला आ गे रिहिस। हमर गोठ मा ओखर गोठ मिंझरगे ।

"ओखरे सेती तो भइया ! शहर के सुघराई बढ़ाना हावय तब जम्मो गरीब मन ला हटा देना चाहिए...।''

"हटा देना..? ये का गोठ आय जकहा बरोबर ?''

 तिवारी जी के गोठ सुनके अकचका के केहेव।

"हव भई मारे मा का पाप..? धरती के बोझ तो आवय गरीब मन।''

"गलत गोठ आय येहा तिवारी जी! मानवता अऊ संवेदना नाव के घला कोनो जिनिस होथे। चिरई - चिरगुन,कुकुर - माकर, किरा -मकोरा जम्मो ला जिये के अधिकार हावय तब गरीब मन ला काबर नइ रही..?''

तिवारी जी के आंखी ललियागे अऊ सिकल लाल होगे मोर गोठ सुनके। पानवाला घला बिरोध करिस तिवारी के गोठ के।

" हाव जम्मो कोई ला जीये के अधिकार हाबे भई । फेर कभु - कभु अइसने लागथे तेला केहेव ।''

 तिवारी किहिस मुरझावत ।

"अइसन बिचार घला पबित्तर नइ हे तिवारी जी। कभु झन कहिबे ।''

समझायेव ।

हमन दुनो कोई बस ठेसन मा ठाड़े होके गोठियावत हावन। एक झन माइलोगिन आइस कोन जन के दिन के नइ नहाए हावय ते .? संग मा तीन झन तारा - सिरा  लइका । घोंघटाहा ओन्हा, हाथ मा कटोरा धरे। दु चार ठन सिक्का ला उछाल के खनखनावत हावय खुनर - खुनर।

"दु चार रुपिया दे दे साहेब ! लइका मन लांघन हावय।'' 

भिखारिन के गोठ ला अनसुना कर दिस तिवारी जी हा। लइका मन मोर करा झुम गे अब। 

जतका खाहु तुमन, खवाहु ।... फेर पइसा नइ देवव। मेहा किरिया खा डारे हव । पाछु दरी  बड़का मंदिर मा मंगइया मन ला जइसे पइसा देयेव वइसने झोकिस अऊ मंदिर के पाछु कोती जाके दारू अऊ गांजा पीयत रिहिस। 

"हे भगवान...? ''

भिखारिन अऊ जम्मो लइका ला बरा अऊ समोसा के पुड़िया देयेव। झटकुन खा डारिस। पुड़िया ला डस्टबिन मा डारिस अऊ अब चाहा पीयत हावय। तिवारी जी घला ठेसन के फर्श मा पान पीक ला पूरक के विश्व के छप्पा छाप डारे रिहिस। 

"कहा जावत हस तिवारी जी ?''

"रायपुर मंत्रालय जाए बर निकले रेहेव भइया फेर साहब मन फैमिली टूर मा हमरे कोती आवत हावय। अगोरत हावव ओमन ला। महराज मइनखे आवव भइया ! दु चार झन ला गंगा असनान्द करवाना हावय। ट्रांसफर के सीजन हावय अभी। एसी हाल के फ्रंट टेबल ला बुक कर दे हावव मेहा।''

तिवारी जी मुचकावत किहिस। 

"मोर गंगा हा माइके गे रिहिस उही ला अगोरत हव ।''

दुनो कोई ठठाके हास डारेन।

छेरीक छेरा छेर मरकनीन छेर छेरा ...।

माई कोठी के धान ला हेर हेरा... ।।

लइका जवनहा मनके टोली गली खोर मा किंजरत हावय । कतको झन मन  बाजा मोहरी बजावत छेरछेरा मांगत हाबे , तब कतको झन मन झोला टुकनी चुंगड़ी धरके । कोनो लइका बटकी गंजी ला धर के छेरछेरा मांगत हावय। रमायेन  वाला मन भक्ति गीत , राउत मन दोहा पार के ,पंथी दल मन बाबाजी ला सुमरत , लीला रामसत्ता वाला मन झांकी निकाल के , करमा दल गा के अऊ डंडा नाचा वाला मन नाचत हु..कु...हु..कुहहू  कुहकी मारत रिहिस। जम्मो , अब्बड़ सुघ्घर बरन गांव के। जम्मो के मन गमकत हावय अऊ गांव गदबदावत हावय। लइका मन रोवत हे , गावत हे । तब कोनो झगरा घला होवत हे। अन्न लछमी कोठी मा जतना गे हावय अऊ बाचल - खोचल हा ससुरार जाए के तियारी करत हावय मंडी के रस्दा मा। गांव मगन हे अऊ शहर घला माते हे उछाह मा ।

बड़का चमचमावत गाड़ी फाइव स्टार होटल के आगू मा ठाड़े होगे। तिवारी जी के सिकल मा उछाह हमागे।

 छेरिकछेरा छेर मरकनीन छेरछेरा..।

माई कोठी के धान ला हेरहेरा ...। 

लइका जवनहा डोकरा डोकरी छेरका मन अब गाड़ी वाला ला मांगत हावय छेरछेरा। 

"व्हाट आर यू डूइंग बेगर पीपल ? छत्तीसगढ़ में विश्व की बेहतरीन आयरन ओर मिलती है, सुना था। खनिज संपदा से सम्पन्न लेकिन यहां इतने भिखारी ...ओ माई गॉड ।''

आधुनिकता के चद्दर ओढ़े साहब के सारी किहिस। साहब घला पंदोली देवत रिहिस।

साहब अऊ परिवार वाला मन गाड़ी ले उतर गे रिहिस। तीर मा ठाड़े डोकरा किहिस।

    "भीख नइ मांगत हावन साहब ! छेरछेरा मांगत हावन। येहा हमर राज के पोठ लोकपरब आय।'' 

"कोई लोक परब वरब नही है। कटोरा लेकर हाथ फैलाकर  मांगना भीख ही है।'' 

"मांगना ही भीख आवय तब तोर दाई ददा हा कुछु जिनिस मांगही तहु भीख आय..? गोसाइन  स्नो पावडर बर पइसा मांगही तहु भीख आय ..? लइका मन खेल खेलउना कापी किताब बिसाये बर पइसा मांगही तहु हा भीख आय साहब.. ।  भिखारी तो .. तुमन सादा ओन्हा पहिरइया आवव साहब ! हमर खनिज संपदा बर हाथ लमात रहिथो।''

तिवारी जी देखते रहिगे ओखर ले आगू सियान हा ओखर साहेब ला जोहार दिस। 

साहब सुकुरदुम होगे।..मुक्का आरुग मुक्का।

" ये मंदहा - गंजहा संग झन उलझ सर जी ! दु कौड़ी के ...येमन । ''

तिवारी जी डंडासरन होवत किहिस।

फ्रेंच फ्राई, पोटेटो ट्विस्टर, पिज़्ज़ा,बर्गर  मन्चूरियन अऊ सलाद संग जीरा राइस। टेबल साज गे रिहिस। साहेब के सास ससुर गोसाइन सारी अऊ लइका पिचका जम्मो झड़कत हावय। तिवारी जी रिसेप्शन मा बइठ के ललचावत हावय। टीवी मा देखे तब ललचा जावय । ये तो लाइव टेलीकास्ट हावय । कइसे बिहनिया खपुर्री रोटी ला पानी पी पी के, अटेस के खाये रिहिस।

"ठीक है तिवारी जी ! बढ़िया स्वादिष्ट भोजन करवाये। हमलोग चलते है। आओ रायपुर कभी..।''

"जी सर!'' 

पांच बेरा जी सर कहि डारिस।

"अच्छा ! रायपुर आओगे तब यहां का विश्व प्रसिद्ध नगरी दुबराज और कड़कनाथ मुर्गा लेकर आना बहुत नाम सुना हूं।''

"जी सर!

 जम्मो कोई सीढ़ी उतर गे अऊ गाड़ी कोती चल दिस। ससन भर देखिस आधा छोड़े पिज़्ज़ा बर्गर कोल्डड्रिंक जीरा राइस पनीर ला। जम्मो ला डस्टबीन मा डारत हावय बाई हा। देखे लागिस मुचकावत साहब ला , हासत गोसाइन, दांत खोटत सास- ससुर, खिलखिलावत लइका लोग  अऊ बाब कटिंग हेयर स्टाइल वाली  नान्हे ओन्हा पहिरे पीठ उघरा वाली सारी ला..। 

चार हजार चार सौ तिरालिस रुपिया मात्र।

"अई.... ''

तिवारी जी के मुहु उघरा होगे। 

"एक ठन टेबल के ...।''

हाव तिवारी जी होटल मैनेजर किहिस अऊ तिवारी हा पइसा पटाइस। अपन गोसाइन ला धन्यवाद दिस लइका के कापी किताब अऊ किराना बर लिस्ट संग पइसा देये रिहिस बिहनिया ।

तिवारी जी दउड़त खाल्हे आगे अब।आखरी दरी जोहार भेट करना चाहिस फेर गाड़ी आगू कोती रेंग दिस। ...अऊ थोकिन दुरिहा मा ठाड़े होइस तब तिवारी जी के सिकल दमके लागिस। अब धन्यवाद कहिके हाथ मिलाही साहब हा। मन गमकत रिहिस।

"अरे तिवारी जी ! हम सब को भर पेट खाना खिला दिए और इस टॉमी को..? इनके लिए भी बिस्किट लेकर आ जाओ।

"जी सर ।''

तिवारी दुकान ले बिसा के दिस।

"अच्छा ठीक है। अब चलते है ...ओ नगरी दुबराज और कड़कनाथ को याद रखना...जब भी आओगे तब.... ।''

 गाड़ी अब भुर्र  ...होगे। जम्मो कोई चल दिस। तिवारी जी कठवा बनगे रिहिस। फेर मने मन अब्बड़ होले पढ़ डारे रिहिस। 

छेरिकछेरा छेर मरकनीन छेरछेरा..।

माई कोठी के धान ला हेरहेरा ...। 

जवनहा के आरो सुनके सुध मा आइस। 

"चल भाग बे..! अतका बड़का सांगर-मोंगर होके लइका मन बरोबर छेरछेरा मांगत हावस।''

"का करबे महराज..? बारो महीना तुमन मांगथो। आज के दिन हमन बावहन महराज बन के  मांग लेथन।''

"बने ठोसरा मारथस रे नानजात ।'' 

तिवारी जी हांसत रिहिस बनावटी हांसी। डेरी खीसा ले सौ पांच सौ के गड्डी निकालिस। ससन भर देखिस अऊ फेर खीसा मा डार दिस। जेवनी खीसा ले सौ पचास के दु चार ठन नोट निकालिस अऊ..फेर धर लिस। अब पाछु खीसा ले सिक्का निकालत हावय।  हथेली मा मड़ाइस अऊ अंगरी ले निमारे लागिस- दस पांच दु एक..। ..अऊ अब दु के सिक्का ला अल्थी - कल्थी करके देखिस अऊ जवनहा ला दे दिस। 

"धर रे ये दु रुपिया ला। दु रुपिया के पुरती हावस तेहां।''

"जय होवय महराज तोर । लइका मन दुधे खाय दुधे अचोवय । तोर गोड़ मा कांटा झन गड़े।'' जवनहा असीस दिस।

छेरीक छेरा...। आरो आय लागिस।

जवनहा आने कोती रेंग दिस अब। मोरो गोसाइन के बस आ गे रिहिस। बेग मन ला कन्डेक्टर उतारत रिहिस। 

"झटकुन नइ आवस । बेग मन ला उतारे ला लाग..। आरुग दु रुपिया के पुरती घला नइ होवस कभू -कभू।''

गोसाइन के मीठ गोठ आवय।

 फटफटी मा बइठारेव अऊ घर कोती जावत हव गुनत - गुनत दु रुपिया के पुरती कोन आय...?

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चन्द्रहास साहू द्वारा श्री राजेश चौरसिया

आमातालाब रोड श्रध्दानगर धमतरी

जिला-धमतरी,छत्तीसगढ़

पिन 493773

मो. क्र. 8120578897

Email ID csahu812@gmail.com