Sunday, 16 January 2022

छेरछेरा पुन्नी के मूलमंत्र


 

छेरछेरा पुन्नी के मूलमंत्र


                          कृषि हमर राज के जीविका के साधन मात्र नोहे, बल्कि संस्कृति आय, काबर कि खेती किसानी के हिसाब ले हमर परब संस्कृति अउ जिनगी चलथे। उही कड़ी के एक परब आय, छेराछेरा। जे पूस पुन्नी के दिन मनाय जाथे। ये तिहार ला दान धरम के तिहार केहे जाथे। वइसे तो ये तिहार मानये के पाछू कतको अकन किवदंती जुड़े हे, फेर ठोसहा बात तो इही आय कि, ये बेरा मा खेत के धान(खरीफ फसल) लुवा मिंजा के किसान के कोठी मा धरा जावत रिहिस, उही खुशी मा एक दिन अन्न दान होय लगिस, जेला छेरछेरा के रूप मा पूरा छत्तीसगढ़ मनाथें।  पौराणिक काल मा इही दिन,भगवान शिव के पार्वती के अँगना मा भिक्षा माँगे के वर्णन मिलथे। सुनब मा आथे कि भगवान शिव अपन विवाह के पहली माता पार्वती तिर नट के रूप धरके उंखर परीक्षा लेय बर गे रिहिस, अउ तब ले लोगन मा उही तिथि विशेष मा दान धरम करत आवँत हें। 

                     ये दिन ले जुड़े एक पौराणिक कथा अउ सुनब मा मिलथे, कथे कि एक समय धरती लोक मा भयंकर अंकाल ले मनखे मन दाना दाना बर तरसत रिहिन, तब आदि भवानी माँ, शाकाम्भरी देवी के रूप मा अन्न धन के बरसा करिन। वो तिथि पूस पुन्नी के पबरित बेरा पड़े रिहिस। उही पावन सुरता मा, माता शाकाम्भरी देवी ला माथ नवावत, आज तक ये दिन दान देय के पुण्य कारज चलत हे। भगवान वामन अउ राजा बली के प्रसंग घलो कहूँ मेर सुनब मा आथे।

                रतनपुर राज के कवि बाबूरेवाराम के पांडुलिपि मा घलो ये दिन के एक कथा मिलथे, जेखर अनुसार राजा कल्याणसाय हा, युद्धनीति अउ राजनीति मा पारंगत होय खातिर मुगल सम्राट जहाँगीर के राज दरबार मा आठ साल रेहे रिहिस, अउ इती ओखर रानी फुलकैना हा अकेल्ला रद्दा जोहत रिहिस। अउ जब राजा लहुट के आइस ता ओखर खुशी के ठिकाना नइ रिहिस, रानी फुलकैना मारे खुशी मा अपन राज भंडार ला सब बर खोल दिस, अउ अन्न धन के खूब दान करें लगिस, अउ सौभाग्य ले वो तिथि रिहिस, पूस पुन्नी के। कथे तब ले ये दिन दान धरम के  परम्परा चलत हे।

                  कोनो भी तिथि विशेष मा कइयों ठन घटना सँघरा जुड़ सकथे, जइसे दू अक्टूबर गाँधी जी के जनम दिन आय ता शास्त्री जी घलो इही दिन अवतरे रिहिन, दूनो के आलावा अउ कतको झन के जनम दिन घलो होही। वइसने पूस पुन्नी के अलग अलग कथा, किस्सा, घटना ला खन्डित नइ करे जा सके। फेर सबले बड़का बात ये तिथि ला, दान पूण्य के दिन के रूप मा स्वीकारे गेहे। अउ दान धरम कोनो भी माध्यम ले होय, वन्दनीय हे। छेराछेरा तिहार मा घलो वइसने दान धरम करत,अपन अँगना मा आय कोनो भी मनखे ला खाली हाथ नइ लहुटाय जाय, जउन भी बन जाये देय के पावन रिवाज चलत हे, अउ आघु चलते रहय। ये परब मा देय लेय के सुघ्घर परम्परा हे, छोटे बड़े सबे चाहे धन मा होय चाहे उम्मर मा आपस मा एक होके ये परब मा सरीख दिखथें। लइका सियान के टोली गाजा बाजा के संग सज सँवर के हाँसत गावत पूरा गांव मा घूम घूम अन्न धन माँगथे, अउ सब ओतके विनम्र भाव ले देथें घलो। छेरछेरा तिहार के मूल मा उँच नीच, जाति धरम, रंग रूप, छोटे बड़े, छुवा छूत,अपन पराया अउ अहम वहम जइसे घातक बीमारी ला दुरिहाके दया मया अउ सत सुम्मत बगराना हे। फेर आज आधुनिकता के दौर मा अइसन पबरित परब के दायरा सिमित होवत जावत हे। बड़का मन कोनो अपन दम्भ ला नइ छोड़ पावत हे, मंगइया या फेर गरीब तपका ही माँगत हे, अउ देवइया मा घलो रंगा ढंगा नइहे। *एक मुठा धान चाँउर या फेर रुपिया दू रुपिया कोनो के पेट ला नइ भर सके, फेर देवई लेवई के बीच जेन मया पनपथे, वो अन्तस् ला खुशी मा सराबोर कर देथे। एक दूसर के डेरउठी मा जाना, मिलना मिलाना अउ मया दया पाना इही तो बड़का धन आय। छेरछेरा मा मिले एक मुठा चाँउर दार के दिन पुरही, फेर मिले दया मया, मान गउन सदा पुरते रइथे।* इही सब तो आय छरछेरा के मूलमंत्र। कखरो भी अँगना मा कोनो भी जा सकथे, कोनो दुवा भेद नइ होय। फेर आज अइसन पावन परम्परा देखावा अउ स्वार्थ के भेंट चढ़त दिखत हे, शहर ते शहर गांव मा घलो अइसन हाल दिखत हे। ये तिहार मा ज्यादातर लइका मन झोरा बोरा धरे, गाँव भर घूम अन्न धन माँगथे, सबे घर के एक मुठा अन्न धन अउ मया पाके, उंखर अन्तस् मा मानवता के भाव उपजथे, उन ला लगथे, कि सब हम ला मान गउन देथे, छोटे बड़े,धरम जाति, ऊँच नीच, गरीब रईस सब कस कुछु नइ होय, अइसनो सन्देशा घलो तो हे, ये परब मा। छोट लइका मनके मन कोमल होथे, दुत्कार अउ भेदभाव देखही सुनही ता निराश हताश तो होबे करही।

                 छेरछेरा अइसन पबरित परब आय जे गांव के गांव ला जोड़थे, वो भी सब ला अपन अपन अँगना दुवार ले, दया मया देवत लेवत अन्तस् ले, दान धरम ले या एक शब्द मा कहन ता मनखे मनखे ले। ये खास दिन मा जइसे माता पार्वती अँगना मा नट बन आये शिव जी ला सर्वस्व न्योछावर कर दिन, राजा बली भगवान वामन ला सब कुछ दे दिस,माँ शाकाम्भरी भूख प्यास मा तड़पत धरतीवासी ला अन्न धन ले परिपूर्ण कर दिस, रानी फुलकैना अपन परजा मन ला अन्न धन दिस, अउ किसान मन अपन उपज के खुशी ला  थोर थोर सब ला बाँटथे, वइसने सबे ला विनयी भाव ले अपन शक्तिनुसार दान धरम करना चाही। लाँघन, दीन हीन के पीरा हरना चाही, अहंकार दम्भ द्वेष, ऊँच नीच ला दुरिहागे सबे ला अपने कस मानत मान देना चाही, मया देना चाही।

*दान धरम अउ मया पिरीत के तिहार ए छेरछेरा।*

*मनखे के मानवता देखाय के आधार ए छेरछेरा।*


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

2 comments:

  1. बहुत सुग्घर गुरुदेव जी

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  2. प्रिय भाई जितेंद्र कुमार वर्मा "खैरझिटिया" जी
    दान-पुण्य के तिहार "छेरछेरा" के संबंध म खूब सुग्घर सराहनीय लेख लिखे हौ |
    हिरदय ले धन्यवाद, साधुवाद अउ छेरछेरा तिहार के गाड़ा गाड़ा बधाई अउ शुभकामना देवत हौं

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