Saturday, 8 January 2022

डोकरी दाई (लघुकथा)

 डोकरी दाई (लघुकथा)


    आज ललिता हा दसवीं के परीक्षा देय बर इस्कूल मा आधा घंटा देरी मा अमरिस।सबो लइका मन कुरिया मा अपन ठउर मा बइठ के लिखत रहिन। एती गुरुजी मन घलो ओला नइ आय हे जानिन ता ओखर रद्दा देखत अगोरा करत रहिन।काबर कि ललिता इस्कूल के सबले हुसियार लइका आवय। रोजीना छे किलोमीटर दुरिहा ले साइकिल मा आथय अउ पढ़ई मा एको दिन नांगा नइ करत। आते साट ओला परीक्षा कुरिया मा बइठार के सवाल कागज अउ जुवाप कागज ला देइन अउ लिखेबर कहिन।

          आधा घंटा देरी मा आय पाछू अउ दू घंटा लिखे के पाछू लघियात गुरुजी करा जुवाप कागज ला जमा करके कुरिया ले बहिर निकलगे। बहिर मा खड़े बड़े गुरुजी हा ओला थाम के पूछिस- आज कइसे देरी से आय अउ बिन बेरा होय लघियात जावत हस बेटी, पढ़ के नइ आय रहे का? ललिता गुरुजी ला बताइस कि-नहीं गुरुजी! मय पढ़ के आय हँव अउ सबो ला लिखे हँव।आज रतिहा मोर डोकरी दाई हा बीतगे। अभी ओखर काठी हवय। मय परीक्षा देय बर नइ आय रतेँव, फेर मोर महतारी हा समझाइस कि ए मोर उही डोकरी दाई हरय जौन हा मोर पढ़ई बर बबा अउ ददा ला झगरा करे रहिस।बेटी अउ बेटा मा दुभेदवा झन करव। अउ एला इस्कूल मा भर्ती करव। मय अप्पड़ रहिगेंव,एखर दाई अप्पड़ रहिगे फेर ललिता हा अप्पढ़ नइ रहय ओहा पढ़ही। मय ओखर सपना ला पूरा करेबर आय हँव। नइ आतेंव ता ओखर आत्मा ला शांति नइ मिलतिस। अभी ओखर काठी हवय ओमा संघरहूँ अउ आखरी दर्शन करहूँ।


हीरालाल गुरुजी "समय"

छुरा, जिला-गरियाबंद

No comments:

Post a Comment