तुमा के नार
चन्द्रहास साहू
मो- 8120578897
सोना हा कोठार मे अऊ कोठार ले कोठी डोली मा गमकत हावय। सुरूर - सुरूर जुड़ हवा जाड़ा घरी। कतका सुघ्घर हावय कन्हार माटी मा घपटे ओन्हारी-सियारी लाखड़ी बटरा मन। हमर ननपन मा गजब हो जावय ये बेरा। ओन्हारी ला चोराये ला जावन अऊ उही कका भइया मन ला खवावन होरा भूंज के जेखर ला चोराये राहन। ..अऊ ये बेरा मड़ई के मजा ? लइका सियान जम्मो के मन डोले लागथे मड़ई के डांग-डोरी कस। आज हमर गांव मुजगहन के मड़ई आय। शहर हा मोर गांव तक लमिया गे हावय फेर गांव के परम्परा अभिन नइ नंदाये हावय।
"काबर मनाथे दाई मड़ई-मेला ?''
"मड़ई लोक परम्परा आवय। देवी देवता डिही-डोंगर ला परघा के असीस लेये के अऊ धन्यवाद देये के परंपरा आवय येहां । किसान एखरे असीस अऊ छाहत ले मुठा भर धान बोथे अऊ काबा भर लुथे। रखवार आय आंगा देव बूढ़ा देव ठाकुर देव सीतला दाई हा गांव के । बईगा हा सुमिरन करके परघाथे। जम्मो माई पिला बाटुर -सांगुर मन उछाह मा मेला किंजरथे ।''
दाई मोला अइसना बतावय मोर ननपन मा दाई के गोठ के सुरता आगे।
"कोन हो गा !''
कका आवय । भीतरी कोती बलायेव । सगे तो नो हे फेर मोर गांव के हरे तब कका कहिथव। अब शहर मा रहिथे। कभु-कभु गोठ बात करे बर आ जाथे मोर घर। लोटा अऊ थारी धर के आये रिहिस अपन ददा ले रिसा के।अब चार जगा फ्लेट हावय। संगमरमर टाइल्स लगे बड़का-बड़का घर। बड़का खाली प्लाट घला। "अब्बड़ मिहनत करेस तब अतका चीज ला सकेलेस कका !''
"हहो बेटा !
"कतको भुंइया हा तो छेकल घला आवय सुने हव कका ! कोनो नइ रोकिस छेकीस पटवारी तहसीलदार नगर निगम हा ।''
मेहां पुछेव खोदा निपोरी करत।
" हव बेटा कोनो नइ बरजिस। बन के तुमा नार कांटा खूंटी मा डिपरा खोचका मा छिछलत कइसे लोई धरथे ,लोई ले कइसे भोगाथे अऊ पेड़ाथे। पाहटिया देखथे गरवा चरावत तब आज लेगहु काली लेगहु तुमा ला अऊ अब बरदी ला आने कोती लेग जाथे।अऊ पहटिया हा कभु नइ चोरा सके। छेकल भुंइया हा घला अइसना होथे । कोनो नइ धियान दिस तब सुघ्घर हे नही ते....?
"...अऊ सुना कका अब्बड़ दिन मा आये हस।''
"का करबे बेटा ! ककरो घर अब फोकटे - फोकट जाये ला नइ भाए। दुनो टुरा लइका मन अब मोर ठेकेदारी ला सिखगे हावय । कमावत खावत हावय रुखम - सुखम । दुनो के लइका लोग तुमा के नार बरोबर नत्ता-गोत्ता बगरे हावय। नाती नतनीन भरा पूरा परिवार हावय। तभो ले संसो हा घुना किरा बरोबर खावत हे। ''
कका के सिकल बुझा गे रिहिस बतावत - बतावत।
"काकी के सुरता करथस कका..?''
"नही बेटा ! तोर काकी हा तो बने मरिस। न सेवा करवाइस न जतन पानी। बिहनिया सत्संग के पाठ करत- करत समाधि लगीस अऊ प्राण तज दिस। ये दुख ला सही डारथो रे ! फेर बाढ़े मोटियारी बेटी हिरौंदी के अकेल्ला पन अब नइ देख सकव...? लेग जा तिरलोकी नाथ...! मोला।
कका के आंखी के कोर भींजगे रिहिस। अगास कोती दुनो हाथ लमा के किहिस।
"संसो झन कर कका सब बने होही। एसो एको झन सगा पहुना आइस नही कका !''
"दु झन आइस। दोनो दुये हाल होगे। एक झन हा दुजहा रिहिस । बिहाव करे के लइक लइका के बाप। अऊ दुसर हा जकहा रिहिस। धन बइहा । कोनो गरीब ला घला दे दुहु बेटा! टुरा हा दु पइसा कमावत राहय परिवार ला चला सके।''
कका किहिस अऊ ट्रिन-ट्रिन,ट्रिन-ट्रिन कका के फोन के घंटी बाजिस । दुवारी मा निकलगे। मेहां चाहा बनावत हव कका। जम्मो कोई मड़ई देखे ला गेये हावय।
"सबके बनौती बना दे तिरलोकी नाथ ! हिरौंदी के जुग जोड़ी ला पठो दे । मेहां सुमिरन करेव।बारवी पढ़ के छोड़े हावय। सिलाई कड़ाई के सुघ्घर बुता जानथे । ड्राइंग पेंटिंग अऊ ब्यूटी पार्लर घला अब्बड़ सुघ्घर जानथे। जम्मो रंग ला सुघ्घर भरथे। फेर ओखर काया के करिया रंग हा अब्बड़ रोवाथे अऊ छोटे कद काठी थोकिन दांत निकले। ....तब अऊ संसो हावय। आज कल के टुरा ला का चाही ..? पेट बर दारू बाइक बर पेट्रोल अऊ बाइक के पाछु मा रूप सुंदरी बाई । टुरा पास करे तब टुरी नही, टुरी मन करे तब टुरा नही। .. अऊ दुनो मन करे तब ददा नही । कइसे बिहाव होही हिरौंदी के ?
आजकाल फेसबुक वाट्सअप पत्रिका पेपर मा छपवाके टुरी खोजथे। मोरो सारा बर खोजत हन । वाट्सअप के फोटो ...? अब्बड़ सुघ्घर । स्टाइलिश। नइ जावन रे । टुरी के फोटो ला देख के अधरे ले डर्रावव मेहां । फेर सारा के जिद मा जावव। देखव ते अइसे लागे धरती फाट जातिस अऊ उहिन्चे समा जातेव। फोटू मा श्याम सुन्दर अऊ सिरतोन मा ...।
सारा ला लेगेव सगा पहुना हिरौंदी ला देखे बर।सारा एके झन आय दु एकड़ खेत। सारा हा भलुक ट्रक चलाथे फेर मन्द-महुआ , मांस - मछरी कुछु ला नइ जाने । दु खोली के घर अपन कमई ले बनाये हावय। ददा हा कपोंडर हावय अऊ बपरी दाई हा दु बच्छर ले खटिया मा पचत हावय। लोकवा होगे हे। रास- बरग गोत - गवतरी जम्मो गोठ बात होइस। कल्पना के अगास मा तौरइया सारा घला अब भुइयां मा रेंगे ला जान डारे रिहिस। हिरौंदी घला अपन साच ला जानत हावय। कोरी खैरखा सगा आइस अऊ हीन के गिस तेला। दुनो कोई मन करिस फेर ददा ...?
" ले पाछू बताबो ।''
कका किहिस अऊ जम्मो कोई लहुटगे।
"कस रे ! हमन अतका गय गुजरे हावन कि हमर बेटी हा ट्रक ड्राइवर बर जाही। रंग रूप मा पातर हावय ते का होइस । कोनो सजोर टुरा आही। ट्रक ड्राइवर, उप्पर ले ओखर दाई हा लोकवा वाली । ससरार मा गोड़ मड़हावत सास के मल मूत्र धोये के बुता करही छी.. छी...।
नइ देवव भई अइसन घर मा।''
कका किहिस।
" ओखर दाई लोकवा वाली हावय तेन अलग गोठ आवय कका ! फेर ट्रक ड्राइवर मन घला सुघ्घर होथे । वहु मन सोजबाय कमाथे। घर चलाथे।''
"ट्रक ड्राइवर मन ही तो लबरा रहिथे चोर बदमाश घला होथे।''
"होवत होही ....। मंदिर मस्जिद मा बइठइया घला जम्मो कोई ईमानदार नइ होवय अऊ वइसना जम्मो ड्राइवर लबरा अऊ चोर नइ होवय।
"अब तेहां जान कका तोर बेटी ये अच्छा सोचे होबे।''
कका के संग बातिक बाता मा मेहां हरागेव अऊ कान धर के चेत गेव। कोनो टुरी टानकी के चक्कर मा नइ राहव अइसे।
कका के गोठ बात फोन मा होगे रिहिस। महु हा सुरता ले उबरगे रेहेव। बुझाये मन ले आके सोफा मा बइठगे कका हा। मेहा अदरक डारके सुघ्घर चाय बना डारेव । पानदान मा एक गिलास पानी अऊ चाहा ला सजाके कका करा लेगेव।
"का होगे कका काखर फोन रिहिस ?
चाय परोसत पुछेव।
"बहुरिया के फोन रिहिस बाबू। घर बलावत रिहिस।''
"ले बइठ न कका अब्बड़ दिन मा आये हस।''
मोहाटी के कपाट बाजिस। भतीजा टुरा आवय। टुप-टुप पांव परिस अऊ पाव भर जलेबी ला दिस।
"कका मड़ई के मिठई ।''
"खुश रहा बाबू दुधे खा दुधे अचो। मेहां असीस देयेव अऊ खीसा ले सौ के पत्ती निकाल के घला। टुरा फेर पाव परिस टुप-टुप ।
"देख रे मंद महुआ झन पीहू अऊ लड़ई झगरा ले दूर बाहिर रहू ।''
मेहां बरजेव।
"हव।'' कहत चल दिस।
"मड़ई जाबो कका चल ।''
नऊ ठाकुर आय मोहाटी ले चिचियावत किहिस।
"हव ...आ ठाकुर आरो करेव।''
"दाढ़ी बनाये के बेरा मिलस नही। नेता जी बरोबर गायब हो जाथस अऊ पइसा के लालच मा समहेरा मा आथस। ले धर ।...अऊ सुन पाछु दरी बरोबर मन्द महुआ पी के हुल्लड़ झन करबे। पाछु दरी दु हजार मा निपटे रेहेस एसो सस्ता मा नइ छोड़े ... घर कुरिया बेचे ला लाग जाही।
"हव कका ।''
ठाकुर हा मुड़ी हला के हुकारु दिस।
"साँझकुन तोर गोसाइन ला पठोबे । दु चार ठिन चद्दर कथरी ला लेग जाही। तुहरो घर सगा सोदर आही ते ओढे के बुता आही।
"हाव कका!''
पांव परिस अऊ जाये लागिस फेर टोकेव।
"अरे सुन तोर काकी ला मड़ई के सेती अऊ पइसा झन मांगबे।''
"हा.. हा... मेहां तो मांग डारे हव कका वहु हा पचास ठन दिस। टुरा हा हांसत किहिस।
"बड़ चतुरा हस रे ! एके झन उड़ाबे झन पइसा ला, लोग लइका बर खई - खजानी ले लेबे ।अऊ फुग्गा खेलाउना बिसा लेबे।''
नउ ठाकुर चल दिस। कका हा चाहा पी डारे रिहिस। जूठा कप ला उठा के गोड़ धोनी कोती मड़ा देव। पान सुपारी देयेव अऊ मचोली मा बइठत जमहावत पुछेव
"...अऊ सुनाव कका ! अब्बड़ बेरा ले फोन मा गोठियावत रेहेस। घर मे सब बने-बने हावय न ?''
"का बने , का गिन्हा गोठियावव बेटा !''
"का होगे कका ! बताबे तब जानहु गा !''
" बेटी हिरौंदी हा कुरिया मा खुसरगे तारा कूची लगा देहे। बहुरिया हा अब्बड़ मनाइस मड़ई जाये बर तभो ले नइ निकलत हावय। हिरौंदी के कोनो संगी सहेली घला नइ हावय। जम्मो के बर बिहाव होगे हे। बहुरिया आय ओखर भौजी घला अऊ संगी सहेली घला। ओखरे मन संग हांस गोठिया लेथे ताहन अपन कुरिया मा खुसरे रहिथे।''
कका बताइस। अऊ जलेबी ला खाये बर देयेव। अब दुनो कोई जलेबी झड़कत हावन। रसवाला जलेबी ओन्हा कपड़ा मा चुचवावत ले।
मोहाटी के कपाट बाजिस मोर सारा अऊ ओखर पाछु मा ओखर गोसाइन आइस। बच्छर भर नइ होये हावय बिहाव हा। मरवा भर चुरी, अईठी , कनिहा मा करधन ,छम छम बाजत सांटी, गोड़ मा लगे माहुर ,चक्क लाल के चिकचिकावत लुगरा, कुहकू ले भराये मांग अऊ दमकत सिकल। अब्बड़ सुघ्घर दिखत हावय बरन हा नेवनिन के।
मुचकावत घर मा हमाइस अऊ गोड़ धोनी कोती पठो देयेव लोटा भर पानी देके।
इही नोनी ला मांगे हन कका घर परिवार ला सुघ्घर सम्हालत हावय। भगवान हा सुघ्घर गढ़े हावय । रूप रंग मा सुघ्घर हावय अऊ आदत बेवहार मा घला।
तोला छिनमिनासी नइ लागे ओ ! अपन लोकवा वाली सास के मलमूत्र धोथस तब। एक दिन पुछेव मेहां। तब किहिस काया के का ठिकाना भईया ! कब सर जाही ते ? मोर दाई हा लोकवा वाली रहितिस तब सेवा करतेव अऊ कोनो पुछतिस घला नही। सास हा घला महतारी आवय। मोर धरम आवय जतन करे के। आज मेहां जतन करहु तब अवइया बेरा मा मोरो लोग लइका मन मोर जतन करही । अइसना तो केहे रिहिस नोनी हा पाछु दरी गे रेहेव तब। कतका सुघ्घर सोच मन गदगद होगे। अब्बड़ गरब हावय कका नोनी उप्पर।
गोड़ धोके आइस अऊ हमर दुनो के टुप- टुप पांव परिस।
"तोर चुरी अम्मर रहे बेटी ! तुमा के नार सही अन्न धन लोग लइका ले भरा पूरा परिवार बाढ़े।''
कका असीस दिस। बखरी के तुमा नार ला देखत रिहिस। कोनो लमरी कोनो गोल कोनो छोटका कोनो बड़का अऊ कोनो घोलहा।
ट्रिन-ट्रिन,ट्रिन-ट्रिन कका के फोन के घंटी फेर बाजिस। ओखर बहुरिया आवय।
"बाबू हिरौंदी अपन कुरिया मा अब्बड़ रोवत हावय झटकुन आ अऊ मना बुझा। बरतन बासा ला घला पटकत हावय। झटकुन आ टू...टू...फोन कटगे ।
अब कका अपन घर कोती जाये बर निकलगे कुछु गुनत-गुनत। संसो करत।बुझाये मन ले।
...अऊ मोर घर मा जम्मो लरा-जरा समागे। तुमा के नार मन।
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चन्द्रहास साहू द्वारा श्री राजेश चौरसिया
आमातालाब रोड श्रध्दानगर धमतरी
जिला-धमतरी,छत्तीसगढ़
पिन 493773
मो. क्र. 8120578897
Email ID csahu812@gmail.com
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