व्यंग्य- फैसला
अदालत म कटकटऊँवा भीड़ सकलाये रहय । अपराध सिद्ध हो जहि तहन ओला फाँसी हो जहि सोंच सोंच .. कुछ मन अशांकित सशंकित रहय .. त कुछ मन मने मन खुश रहय .. अच्छा होइस हमर बर रसता खुलही । फैसला आगिस – मामला बेफजूल आय । लोकतंत्र के हत्या हा कोनो अपराध के श्रेणी म अइ आवय । बल्कि अइसन करइया मन बहुत सम्माननीय अऊ पूजनीय मनखे हो जथे । अदालत के समे ला अइसन बेकार मामला ला उचा के बर्बाद झन करव । अइसे भी अइसन मामला के निपटारा बर अदालत के टाँग नानुक हे .. कटघरा म खड़ा होवइया के गिरेबान बहुत उपर हे । हम एमा कुछ कर नइ सकन .. । लोकतंत्र ला मरइया मन बाइज्जत बरी होगे ।
केस जनदालत म पांच बछर तक चलिस । कटघरा म खड़ा मनखे हा केस जीतगे । लोकतंत्र ला मरइया हा एक बेर फेर क्षेत्र के इलेक्टेड प्रतिनिधि बनगे ।
हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन , छुरा
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