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*जंगल राज-1*
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*( छत्तीसगढ़ी लघुकथा )*
चितवा हर बघवा ल कहिस- कइसे भईराम ! महुँ घलव तोरे असन बलखरहा हंव ।...चल मान लेंय ,तोर ल रंच-मंच कमसल होंहा ,फेर अतकी भर ले मोर हिस्सा -बाँटा नई ये का जी ।
येला सुनके बघवा तो एक पईत गुर्राइस , तब फेर देश -काल -परिस्थिति ल समझ के ,अपन बुद्धि -विवेक...अकिल ल बउर के ,बड़ मीठ भाखा म कहिस-दउ चितवा ! तँय तो मोर मंत्री रह !
बातचीत चलते रहिस कि वोमन के आगु म कोलिहा आ गय ।वोला देखके चितवा ,प्रश्नवाचक नंजर ले बघवा कोती ल देखिस, तब बघवा कहिस -येहर हमर स्थानीय नेता आय । येहर हमर प्रवक्ता आय । येहर हमर भेदिया-मुखबिर घलव आय ।
तभे आगु म एकठन खरगोश -खरहा हर दिख गय , तब चितवा के आँखी म वोइच प्रश्न मन फेर तँउरिस...
"अरे , येहर तो वोटर भर आय, कभु साले चुनाव हो जाही, तब येहर हमन ल वोट दिही।" बघवा हर हाँसत कहिस ।
*रामनाथ साहू*
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