*// फटकन //*
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(कहानी)
*हमर पड़ोसी गांव (पारा)म एक अल्हड़ कारी कलुटी टुरी के नाव "फटकन" रहिस | ओकर ले बड़े-बड़े अउ तीन झन नोनी रहिसे | लगातार एकनार लड़की अंवतरे रहिन | जब ए दारी चौथे लईका घलो लड़की अंवतरे हे सुनीस,तव ओकर बाप दुखीराम ह खूब दुखी होईस, अउ गुस्सा के कहिस- "एला घुरूवा म फेंक देवौ !! तव पारा-मुहल्ला के एक झन डोकरी दाई ह सुपा म धर के सादा कपड़ा ओढ़ा के "ए चौथईया टुरी" ला घर के बाड़ी के घुरूवा म मढ़ा देहिस !तिहां ओकर फुफू दाई ह उठा के लाने रहिस अउ कहिस-"काबर नाराज होवत हस भईया ? एहू नोनी ह लक्ष्मी स्वरूपा आय, भगवान के आशीर्वाद मिलही, तव आगामी लईका ह जरूर बाबू होही, अत्तेक हतास मत हो !"*
*सियान मन कहैं - जब कोनो के लगातार नोनीच-नोनी अंवतरैं,तब अईसने नेंग (टोटका) करत रहेन ! ए नेंग कत्तेक सहीं रहिस के नहीं रहिस ? तेकरे सेती अईसने टुरी के नाव मेलन,फेंकन, फटकन धरत रहेन !*
*कोनो के बार-बार लड़का हो के नइ नांदत रहिन,तब होवईया लड़का के नाव-घंसिया,महेत्तर,बीपत, खटाई,खोरबहरा धरत रहेन ! तभे वो लईका नांदत ( बांचत) रहिस ! बड़ा विचित्र मान्यता रहिस !*
*ये फटकन टुरी ला नानपान ले ओकर ददा ह तिरस्कार करत रहिस ! न तो ओकर बर खाई-खजेना,खिलौना लेवत रहिस,न ही नवा-नवा ओढ़ना बिसावत रहिस ! बपुरी ह निच्चट चिथरा-चिथरा पहिरे रहय ! जब ओला जर-बुखार हो जावत रहिस,तब ५ पैसा के स्प्रो, आनंदकर गोली भी नइ देवत रहिस ! बिचारी रोवत,कल्हरत परे रहय !*
*जब वोहा सात-आठ साल के हो गे,ओकर जऊंरिहा जम्मो लईकन पढ़े जावत रहिन,तभो ओकर ददा ह नइ पढ़ावौं कहि देहिस | गांव के गुरूजी मन ओकर घर आ के "फटकन" ला पढ़ाए बर कहिन,लेकिन मोर पूंजी नइ हे कहिके दुखीराम ह पढ़ाबेच नइ करिस*
*सिरतोन म वो बखत खूब भूखमरी रहय ! भारत देश आजाद होए के बाद हमर सरकार अउ सरकारी योजना ला कोनो जानतेच नइ रहेन | वोही बखत अमेरिका द्वारा हमर देश म स्काईलेब अणु बम गिराए के दहशत फैले रहिस ! बिहान साल खूब बजुरा दुकाल पर गईस ! तब भारत सरकार ह गांव-गांव म राहत कार्य चालू करे रहिसे,तेमा सड़क,तालाब म गोदी खने के बदला लाल-लाल गेहूं दाना सहीं चाऊर देवत रहिस,तेला खाए नइ सकत रहेन ! तभो ले जीव बंचाय बर थोर-थार खा लेवत रहेन ! तभे हमन जानेन -"ये सड़क,तालाब म गोदी खनवाए के काम ह भारत सरकार के योजना आय !"*
*तव फटकन बिचारी काय करतिस ? रोज घर के छेरिया-बोकरा ला चराए जावत रहिस | एक टंगली अउ लाठी खांध म धरे रहत रहिस | डारा,पाना काट-काट के छेरिया-बोकरा ला खवावत रहिस*
*अईसे-तईसे फटकन १८ बच्छर के हो गे | तभो ले ओकर बर ढंग के सलवार-कमीज नइ बिसावत रहिस | पारा-मुहल्ला के टुरन मन अपन चिरहा-फटहा पेंट,कमीज ला देवत रहिन,तउने ला पहिरे रहय !*
*अट्ठारह बच्छर के उमर म छोटे हाफ पेंट पहिरे फटकन के रोंठ-रोंठ जांघ अउ माड़ी ह पीछू डहर ले खूब लोभलोभावन दिखय ! "तईसने चिरहा-फटहा कमीज ले ओकर हालत-डोलत जवानी ह दिखय ! तव टुरन के लार टपकै ! फेर ओकर खांध म टंगिया अउ बड़का लाठी धरे देख के टुरन मन सऊंहे नजर देखें के हिम्मत नइ करे सकत रहिन !"*
*परिस्थिति अउ हालत से मजबूर फटकन ह नानपन ले टूरन संग कबड्डी, भौंरा,बांटी,गिल्ली डंडा खेलै, कुश्ती लड़ै, अपन जांघ ठोंक के टूरन ला हुरिया देवत रहिस ! "अपन दाई के दूध पीए हस, तव आ जा स्साले कहय !" कभू टुरिन संग नइ खेलत रहिस | तेकरे सेती ओकर हाव-भाव ह टूरा सहीं हो गए रहिस !*
*फटकन हा जब टूरन ला गारी देवै-" अबे, स्साले, कमीना,हरामखोर,तोर फलान-ढेकान ,मार डारहूं,काट डारहूं स्साले कहै !" तेकरे सेती कोई टूरन ओकर डहर घूर-घूर के निहारे नइ सकत रहिन !*
*ओ झिथरी-मिथरी टुरी ह अपन चुंदी ला खुद काट लेवत रहिसे, हमेशा डोंकवा,बीत्ता भर राखै अउ कभ्भू तेल नइ लगावत रहिसे ! साईंत ओकर ददा ह ओला चुपरे बर साबुन,तेल भी नइ देवत रहिसे ! अईसने अरेटन-परेटन रहै !"*
*साईंत खाए बर पेट भर भात,बासी भी नइ देवत रहिस ! तभे तो खेत-खार के आमा,जामुन,बोईर,पीपरी, बेल,कैत अउ तलाव के खोखमा, पोखरा,कुकरी कांदा,ढुलेना कांदा खा के अपन भूख मिटावत रहिसे !"*
*गांव के सब्बो खार म कै ठन आमा,जामुन,बेल,कैत,बोईर पेड़ हवंय ? तऊन सब ओला मुअखरा सुरता रहै | कोनो भी पेड़ म एकदम बेंदरी सहीं कूद के चढ़ जावत रहिसे ! अउ एकदम तोलंग म चढ़ के दंतुवन काट के पारा-मुहल्ला म बेंचत रहिसे, आमा, जामुन,बोईर,कैत,बेल आदि खेत-खार ले टोर के लावय अउ गांव-बस्ती म बेंचत रहिस, तऊने पैसा ला गुल्लक म भर के राखे रहय*
*गणेश पांडाल या नवरात्रि पर्व म कुछु भाव-भजन, नाचा गम्मत होवत जानै, तव एको झन संगवारी धर के खच्चित हबर जावत रहिस ! फेर ओकर चरित्र म दाग लगे वाला बात कभू नइ सुने हन !"*
* *तभो ले ओकर हाव-भाव ला देख के लोगन कहैं-एकर संग कोन टुरा बिहाव करही ? ए हा जीयत भर बिन ब्याही रहि जाही !"*
*ओकर अल्हड़पन, आवारगी सुभाव ला देख के भी ओकर ददा ह बिहाव करे के उजोग नइ करिस | लेकिन जवानी के जोश तो सबो जीव-जंतु म होथे !*"
*एक दिन एक निठल्ला,कामचोर टुरा ह कईसे ढंग के ओला प्रेम जाल म फंसा डारिस, तिहां दुनो झन भोलेनाथ के मंदिर म जा के बिहाव कर डारिन ! लोगन किसम-किसम के गोठ गोठियावैं-"वो अवारा छोकरी ह बिहाव के बंधन म कै दिन रहिही ? ओला तो खुली आजादी चाही ! अरे ओ निठल्ला छोकरा ह ओला कै दिन पोंसे सकही ? आदि आदि .......!"*
*लेकिन बिहाव करते साथ फटकन के व्यवहार म आश्चर्यजनक बदलाव आईस ! अब अपन चुंदी मं तेल लगा के सुंदर चोटी करै,सुंदर मुंड़ ढांक के आदर्श बहू जैसे रहय, खूब अजीबो-गरीब बदलाव आईस ! अब ओकर ददा-दाई अउ कुल परिवार खूब मया करे लागिन !"*
* मोला पुरखा के गांव छोडे लगभग चालीस बच्छर हो गए हवय | ए दरम्यान म अंवतरे लईकन ला मैं नइ चिन्हौं | अभी हाल म खूब जोर से अकरसहा पानी बरसीच हवय,बरसत पानी ले बांहचे खातिर मैं हा एक काम्प्लेक्स के पोर्च तरी छईंहाय रहेंव | खूब जोर से पानी गिरत रहिस, ओ काम्प्लेक्स के मुख्य दरवाजा ले एक महिला निकलीस अउ जोर से आवाज लगाईस-"गया भईया $$$ ए भईया $$$$
*मैं एकदम चौंक गयेंव !!!*
*तैं कोन अस ?*
*अरे मोला नइ चिन्हस भईया ?*
*ओकर मुंह ला एकटक निहारत मैं कहेंव-नइ चिन्हत हौं बहिनी, कोन अस बता ?*
*अरे मैं फटकन तो अंव गा |*
*ओ हो ! बिल्कुल नइ चिन्हात हस बहिनी, तैं इहां का करे बर आय हस ?*
*अरे ये काम्प्लेक्स ह मोरे तो आय गा |*
*अच्छा, वाह ! वाह !*
*ये गोठ पूरा होय के पहिली पांव परिस अउ मोर हाथ ला धर के कहिस-चल,हमरो कुटिया म पांव धो लेबे*
*मैं मूर्तिवत ओकर संग ओ काम्प्लेक्स भीतर गयेंव, खूब आलीशान बंगला !| एक आलीशान कमरा म बैठार के फटकन ह आवाज लगाईस बहू .....मोर बड़े भईया आए हवय,पानी लान अउ जल्दी चाय-नाश्ता लगा | भीतर से जवाब मिलीस-जी मम्मी | फेर तत्काल पानी,चाय-नाश्ता ले के ओकर बहू मन हाजिर हो गईन, ममाससुर मान के दूरिहा ले शिष्टाचार करीन*
*मैं पूछेंव- तोर कै झन बेटी,बेटा हंवय ?*
*तव बताईस- चार झन बेटे बेटा हवंय भईया,बेटी एको झन नइ हवंय,ये बहू मन मोर बेटी आंय"*
*मैं कहेंव-वाह बहिनी ! अउ का हालचाल हवय ?*
*तब बताईस-मोर चारों बेटा खूब हूनरबाज हवंय,एक बर ट्रेक्टर ले दिए हौं, एक बर छोटा हाथी, एक हालर अउ आटा चक्की चलाथे,एक बेटा ह किराना दुकान के थोक व्यापारी अउ ये काम्प्लेक्स के देखभाल करथे*
*वाह बहिनी ! ये सब कईसे करे हस ?*
*तव बताईस-सब ले पहिली "महिला स्व-सहायता समूह बनायेंव,फेर गांव के जम्मो स्कूल म मध्यान्ह भोजन योजना म काम करेन,फेर गांव के जम्मो तालाब ला ठेका ले के मछली पालन करेन,फेर बैंक से लोन ले के महिला कुटिर उद्योग चालू करेन, जेमा बड़ी,पापड़,अचार, कृत्रिम मशरूम तैयार करना,सिलाई,कढ़ाई,बुनाई, डेयरी उद्योग, आंगन बाड़ी में ब्लाक भर दलिया पूर्ति आदि ढेर सारा काम हमर महिला समूह द्वारा करथन, तोला ये जान के अब्बड़ेच खुशी होही भईया- "आजकल राष्ट्रीय पार्टी के मोला मंडल अध्यक्ष बनाए गए हवय*
*मैं कहेंव-अरे वाह ! वाह ! शाबाश, अब तो मैं तोला नेताजी बोलिहौं*
*नही भईया, मैं तोर बहिनीच अंव*
*मैं कहेंव-ठीक हे बहिनी, अब मोला छुट्टी दे, पानी गिरना बंद हो गे*
*फटकन उर्फ़ मंडल अध्यक्ष ओ बहिनी ह खाना खाए बिना मोला छुट्टी नइ देवत रहिस,तव मैं कहेंव-घर म खूब जरूरी काम हवय बहिनी, समय निकाल के फेर आहूं कहि के मैं अपन बाईक चालू करेंव, वो बहिनी ह फेर आबे भईया कहिके दूर तक मोला देखते रहिस .........*
*बरसों के टूटे मया जुर गे*
*मोर कहानी पूर गे*
*(सर्वाधिकार सुरक्षित)*
दिनांक-०६.०१.२०२२
*गया प्रसाद साहू*
"रतनपुरिहा"
*(उर्फ योगानंद)*
मुकाम व पोस्ट-करगी रोड कोटा जिला बिलासपुर (छ.ग.)
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