*नवा साल के खुशी*
(लघुकथा)
बइसाखिन हा बिहनिया झाड़ू पोंछा करके, जूठा बर्तन मन ला माँज-मुँजा के नहाये-धोये बर घर फिरे के बेरा जाथौं मालकिन कहिके बता के लहुटय फेर आज बइठक मा चुपेचाप खड़े हे। वोला देख के सेठानी समझगे के येहा फेर आज पइसा नहीं ते छुट्टी माँगे बर खड़े हे। वोहा झुँझवावत पूछिस--कइसे बाई चुपचाप खड़े हस---का बात हे?
कुछु नहीं मालकिन---आज नवा साल हे ,मोर बेटवा हा केलौली करके कहे हे--आज नवा साल हे,डोंगरगढ़ दर्शन करे बर जाबो---तेकर सेती 300 रुपिया अउ संझा जुवर के छुट्टी दे देते।
वोतका ल सुनके सेठानी जँजियावत कहिस--का कहे--पइसा चाही---कहाँ के पइसा---पइसा पेंड़ मा फरथे का ---जब चाहौं तब हलाके दे दँव।अइसे भी तैंहा चार दिन पहिली एडवांस माँग के लेगे हस।महिना पूरे नइ राहय--बहाना बना-बनाके पगार ले जादा लेग जथस।अउ छुट्टी तो मिलबे नइ करय। जेने दिन जादा काम रहिथे उही दिन तोर नाटक चालू हो जथे।तोला बताये हँव न के आज मैंहा घर में पार्टी रखे हँव।मोर सखी-सहेली मन आहीं।नास्ता-पानी, खाना-पीना होही ---बर्तन मन ला कोन माँजही?
बैसाखिन बेचारी हा अपन मालकिन के कंकालिन जइसे रूप ला देखके आगू एको शब्द नइ बोलिस अउ मुँड़ ला गड़ियाके जाये ला धरलिस वोतके बेर अचानक सेठानी के बेटा विजय हा कहिस--आन्टी रुक थोड़ा। ये ले 500 रुपिया।अपन बेटा संग बढ़िया नवा साल मनाबे अउ संझा के तोर छुट्टी तको रइही।
जुग जुग जी राजा बेटा काहत बइसाखिन हा पइसा ल झोंक के आसिस देवत लहूटगे।तहाँ ले सेठानी हा विजय ला खिसियावत कहिस--काबर दे देच वोला। वो पइसा ला मैंहा तोला अपन दोस्त मन संग पार्टी करके नवा साल के खुशी मनाये बर दे रहेंव। विजय कहिस--का माँ---तहीं हा कहे रहे न के नवा साल के दिन खुशी बाँटे ले साल भर खुशी मिलथे ।उही काम तो करे हँव---मैं खुशी बाँट देंव।
चोवा राम वर्मा 'बादल'
हथबंद, छत्तीसगढ़
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