जिंहाँ नइ पहुँचे रवि ... तिहाँ पहुँचे कवि
छत्तीसगढ़ म तइहा तइहा के समे म छत्तीस ठन रजवाड़ो रहय । रजवाड़ो के बीच आपसी तालमेल घला बहुत रहय । इहाँ के राजा मन अपन अपन राज विस्तार से अधिक अपन जनता के भलाई बर जादा ध्यान देवय । एक राजा के सम्बंध दूसर राजा से बहुतेच बढ़िया रहय । एक दूसर ले रोटी बेटी के सम्बंध बनाके अपन दोस्ती अऊ रिश्ता ला अऊ मजबूती दे डरय । परोस के राजा ले कोनो खतरा नइ रहय तेकर सेती नियमित सेना के घला ओतेक आवश्यकता नइ परय । फेर काकर मन म कब पाप हमा जही अऊ कोन काकर ले दुश्मनी ठान के चढ़ई कर दिही तेकर कोनो ठिकाना घला नइ रहय तेकर सेती .. प्रशिक्षित अप्रशिक्षित कुशल अकुशल नियमित अनियमित सेना सबो राजा राखे रहय ।
चारों डहर बगरे शांति के पाछू घला प्रशिक्षित कुशल नियमित सेना हा राज के सीमा के चौकीदारी म हमेशा तैनात रहय अऊ हरेक आने जाने वाला उपर नजर राखय । कचना धुरवा के वंशज मन विंद्रानवागढ़ के राजा रिहीन । कचना धुरवा के वंश जइसे जइसे बाढ़त गिस ... इँकर राज के विभाजन होवत गिस । भई बँटवारा म सबो के राज हा नान नान होगे । इँकर मन के मन म आपसी इरखा द्वेष पनपगे । तभो ले येमन आपस म नइ लड़िन ।
छत्तीसगढ़ म मराठा सेना हा अपन कब्जा जमावत विंद्रानवागढ़ के वैभव सुन राजिम तक पहुँच गिस । विंद्रानवागढ़ के विभाजित राजा मन ला मराठा मन के आगमन के कानों कान खभर नइ हो पइस । एक दिन फिंगेश्वर राजा के उपर मराठा सरदार हा हमला बोल दिस । सरगी नरवा के तिर म दुनों के सेना के बीच तगड़ा मुकाबला होइस । तोप गोला बारूद अऊ नावा नावा हथियार से सुसज्जित मराठा सेना हा फिंगेश्वर के सेना ला हरावत उहाँ के राजमहल म कब्जा जमा डरिस । रानी मन सुरक्षित कोमाखान रजवाड़ा तक पहुँचगे फेर राजा निकल नइ पइस । राजा ला महल के काल कोठरी म कैद करके राख लिस । राजा तिर बहुत धन सम्पदा रिहिस .. फेर मराठा मन उहाँ तक पहुँच नइ सकिन । राजा ला काल कोठरी के भीतर बहुत यातना मिले लगिस । मार म ओकर अंग अंग सिहर गिस । मुहुँ टेड़गा होगे । कुछ दिन म ओकर हाड़ा जवाब दे बर लग गिस ।
मराठा के सरदार हा राजा के धन सम्पति के पता लगाये बर राजा के सहयोगी मंत्री सेनानायक अऊ राजा के दरोगा तको ला यातना देवत रहय फेर कोई भी मनखे हा अपन जबान नइ खोलिस । मराठा सरदार हा इँकर जबान खोलवाये बर दरबार म उपाय पूछिस । उहाँ के राज बइद हा राजभक्त रिहिस । ओहा नइ जानत रिहिस के राजा हा मरगे हे के जियत हे । ओला जइसे पता चलिस के राजा हा कालकोठरी म धँधाये हाबे .. ओला बाहिर निकाले बर ओकर जीव म तहल बितल मातगे । सवाल के जवाब खोजत .. उपाय मिलगे । ओहा मराठा सरदार ला बतइस के राजा अऊ ओकर सहयोगी मंत्री सेनानायक मन के जुबान हा कालकोठरी म खुसरे खुसरे मार खा खाके चभगगे हे सरदार । इँकर देंहे म सूरज के गर्मी जब तक नइ परही तब तक इँकर जुबान ले बक्का नइ फूटय । सरदार ला राजबइद के बात जँचगे । उही दिन राजा , मंत्री अऊ सेनानायक ला अलग अलग कालकोठरी ले बाहिर राजभवन के खुले मैदान म लाने गिस । तीनों झन एक दूसर ला देख .. रो डरिन । तीनों झन ला गोली बनाके चँटावत राजबइद हा इँकर रिहाई के तरीका ला समझाये लगिस । राज बइद हा तीनों झन ला अपन मुहुँ खोले से बिलकुल मना कर दिस । राजबइद हा लुका लुकाके तीनों झन बर हथियार के बेवस्था कर डरिस । तीनों झन ला राजबइद हा बनेच हिस्ट पुस्ट कर डरिस अऊ भागे के उपाय बतइस फेर तीनों झन मराठा सरदार के चाक चौबंद बेवस्था देख उहाँ ले भागे के हिम्मत नइ करिन ।
एक दिन मराठा सरदार ला पता चलगे के .. राजबइद के इलाज से कुछ नइ होवत हे .. न सुरूज के तपन से । यहू सुगबुगाहट मिलगे के राजबइद हा तीनों झन ला इहाँ ले भगाये के योजना बनावत हे । चारों झन ला दूसर दिन महल चौक म फाँसी दे के एलान कर दिस । जनता हा .. अपन राजा ला या तो भाग गेहे सोंचय या मरगे । फेर जबले सुरूज के घाम म येमन आना शुरू करिन तबले .. जनता घला जान डरे रहय के राजा , मंत्री अऊ सेनानायक जम्मो झन जियत हे । भितरे भीतर जन सेना तैयार हो चुकिस । दूसर दिन भरे मंझनियाँ चारों झन ला फाँसी के फंदा तिर .. मराठा सरदार हा आखिरी इच्छा पूछिस । तीनों कुछ नइ बोलिन .. तब राजबइद हा किहिस के मेंहा अपन राज के गौरव गान सुनना चाहत हँव सरदार । तब राज के एक झन कवि ला .. राज बइद के आखिरी इच्छा खातिर .. राज के गौरव गान सुनाये बर किहिस । कवि हा छत्तीसगढ़ी म वीर रस के कविता तब तक सुनइस जब तक तीनों के लहू म गर्मी अऊ जोश के संचार नइ होइस । एती जनता घला विद्रोह बर तैयार हो चुके रिहीस । कविता के सिरावत ले राजा अऊ सेनानायक के जोश उमड़गे । ईँकर मन के हाथ हा पिछु डहर केवल डोर म बंधाये रहय । जोर के आवाज के साथ राजा अऊ सेनानायक हा हुंकार भरिस । बघवा संग निहत्था लड़इया राजा अऊ सेनानायक के ताकत म पिछु डहर के डोर टूटगे । राजा के आदेश ले देखते देखत विद्रोह होगे । चारों डहर अफरातफरी मातगे । मराठा सरदार ला ओकर मनखे समेत बंधक बना डरिन ।
सुरूज के तपन हा राजा अऊ ओकर संगवारी मनखे के देंहें म .. गरमी जरूर भर दे रिहिस फेर लहू म जोश अऊ ताकत नइ भर सकिस .. तेकर सेती ओमन कतको मौका मिले के पाछू घला भाग नइ सके रिहिन । कवि के कुछ पँक्ति हा उँकर देंहें के भीतर तक अइसे खुसरिस के उँकर लहू म जोश अऊ गर्मी के संचार उमड़गे .. ईँकर ताकत जाग गे । राजा ला वापिस अपन राज मिलगे । जिंहाँ तक सुरूज नरायण नइ पहुँच सकिस तिंहाँ तक कवि पहुँचके अपन राजा ला बचा डरिस । तबले विंद्रानवागढ़ रियासत समेत देश के जम्मो भाग म .. कवि अऊ कविता ला बड़ सम्मान मिले लगिस । अइसे प्रभावशाली बात या बुता .. जेहा काकरो जिनगी ला एक नावा दिशा अऊ सोंच देके .. एक मुकाम तक पहुँचा देथे .. तब अइसन बात के कहवइया ला .. अभू घला नीक नीक सुने बर मिल जथे ... जिंहाँ नइ पहुँचे रवि ... तिहाँ पहुँचे कवि ... ।
हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन , छुरा .
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