Saturday, 29 January 2022

लोकतंत्र के आत्मकथा

 लोकतंत्र के आत्मकथा 

                सोंसी गली म किंजरत .... कलहरे के अवाज सुन ..... मोर गोड़ ठिठकगे । एती ओती खुल्ला कपाट देख ... ओकर भितरी म नजर दौंड़ायेंव ..... कहींच नइ दिखीस । आवाज के दिसा म  कान देके सुने के प्रयास करे लगेंव ..... आवाज हा उहीच तिर के आधा ओधे कपाट के भितरि ले आवत रिहीस । कपाट बजाके .... कहाँ जी कहत भितरि डहर खुसर गेंव । लरी लरी डोरी ओरमे खटिया म ..... तार तार हो चुके कथरी उपर ..... घुमघुम ले चिरहा चद्दर ओढ़हे सुते रहय । चद्दर के छेदा ले आधा देंहें झाँकत रहय फेर ... अतेक छेदा के बावजूद .... न हाथ .... न गोड़ .... कहींच दिखत नइ रिहीस । अतका समझ नइ आवत रिहीस के मुड़ी कती हे .... गोड़ कती । तिर म गेंव त लम्भा लम्भा रूक रूकके आवत कलहरत साँस ..... अइसे लगिस के ..... कोन जनी कब छूट जही परान । सिर्फ हिरदे धड़कत रहय । घरके मन ला हाँक पारेंव .... कन्हो नइ दिखत हव जी .... देखव तुँहर सियान कइसे करत हे .... ? कोई उत्तर नइ मिलीस । बिमरहा हा कोन आय .. तेला जाने के इच्छा जागृत होगे । सोंचे लागेंव , कोन होही एहा ? एकर देखरेख करइया मन कहाँ हे ? येकर अइसे हालत कइसे होइस ?  

               तभे हाँसे के आवाज अइस .... । हाँसना बंद होइस तहन मोर कान म बोले के आवाज अइस - तेंहा अइसे सोंचत हावस बाबू , जानो मानो मोला कभू नइ देखे हस .... । मय अवाक रहि गेंव .... अऊ केहेंव ... अभू ले पहिली सहीच म तोला देखे नइ अंव , त जानहूंच कइसे ? फेर बोले के आवाज सुनेव - मोर अइसन हालत के जिम्मेदार तहूँ तो अस .... । मोर दिमाग खराब होगे .... न चिन न पहिचान ..... अउ उप्पर ले मोरे उप्पर आरोप घला लगावत हे । मय वापिस रेंगे ल धरेंव । तभे चिरहा चद्दर भितरि ले ..... ओकर थोथना के उपर भाग दिखीस – आँखी तोपाय रहय .... येहा बिगन देखे  मोला कइसे चिन्हत हे ? प्रश्न ठड़ा होगे ..। एकर नाक कान मुहुँ .... कहींच नइ दिखत हे .... कइसे सुनत हे अऊ कइसे गोठियात हे ? समझ नइ अइस । 

                जिज्ञासा ले जादा डर बाढ़गे । मोर देंहे घुरघुराये लगिस । वापिस भागे बर गोड़ नइ उचत रहय । फेर आवाज अइस – कहाँ जाबे बाबू .... मोला अइसन स्थिति में अमराके .... तहूँ नौ दो ग्यारह होना चाहथस । तोर ले पहिली ..... कतको अइन , कतको गिन .... फेर कन्हो ल मोर दुरदसा उप्पर तरस नइ अइस । चद्दर ला फेंकके ओहा उचके जइसे बइठिस ..... मोर देंहें म डर के मारे पछीना निकलगे । भूत परेत मरी मसान ला अभी तक कभी नइ देखे रेहेंव ..... उही तो नोहे ...... सोंचत .. मोर सरी कोती गिल्ला होगे । भागे के प्रयास करेंव ... फेर गोड़ उचबे नइ करिस । उही तिर ... ओकर कोती बिगन देखे ... अपन आँखी कान ला मूंद के ऊँखरूँ बईठ गेंव । थोरिक बेर म .... आवाज बंद सुन .... पूछेंव - तैं कोन अस तेला तो बता ? ओ किथे - बतावत हँव बाबू , अधीर झिन हो गा .... । 

                ओहा केहे लगिस – तैं का करबे बाबू जानके .... । मोला जनइया मन .... मोला जाने के पाछू मोर अइसन हालत करिन हे ..... फेर तैं इहाँ तक मोला जाने बर आये हस ..... तैं अइसन नइ कर सकस .... फेर गलत समे म आगे हस बाबू .... । अभी जानबे तहन बाहिर निकलके भुला जबे .... मोला तो मोर जनम देवइया मन ..... भुलागे हें .... तेकरे सेती तो भुगतत हौं । ओमन मोला अंगियाना नइ चाहे .... तेकर सेती अपन देखरेख अऊ सुरक्षा बर दूसर कोती निहारत रहिथँव .... फेर कन्हो राखना नइ चाहे । जेकर डेरौठी म ओड़ा देथँव , तिही दुतकारथे । जेन मनखे ल अपन समझथँव , उहींचे ले दुतकार मिलथे । तेकर सेती इहींचे परे हँव .... समे के अगोरा करत .... । 

               वोहा कहितेच रहय - तैं सोंचत होबे के मोरो दई ददा मन बड़ बिचित्तर हे .... अपन लइका ला जनम दे के पाछू .... अइसने काबर मरे बर छोंड़ देतिस कहिके ? ओमन मोला अइसने नइ छोंड़े रिहीस गा .... । मोला राजा बनही कहिके ..... मोर लालन पालन , देखरेख अऊ सुरक्षा ला बड़े मनके हांथ म सौंप दिस .... । तैं मोला फेंकत होही कहात होबे के .... गरीब के लइका ला कन्हो अमीर हा थोरेन पालही अऊ राजा बनाही .... ? ओ समे मोर ददा मन गरीब नइ रिहीन जी .... । अतका अमीर रिहीस के .... जेला पाये तेला .... राजा बना सकत रिहीस .... । मोला राजा बनाये बर संस्कार के आवश्यकता महसूस करत .... मोला दूसर के हांथ म दे दिस .... बस इही गलती होगिस । मोर खिरे हांथ  गोड़ ला देख तोरो मन म सवाल आवत होही ..... का येहा अइसनेच पैदा होये होही तेमा ... ? लमभा सांस मारत रुक के किथे – मेंहा जब जनम धरे रेहेंव तब ..... मोर सरी अंग रिहीस हे । जेकर कोरा म भरोसा करके .... मोला छोंड़िन .... तिही मन मोर बिगाड़ करे हे .... । तैं हाँसत हस ना ..... के यहा महंगाई के दिन म .... बिमार विकलांग बोझा कस जीव के फोकटे फोकट कतेक दिन ..... कोन पूछ परख देख रेख करही तेमा .... । रोवत बताये लगिस – हमर तिर अतेक चीज बस रिहीस के .... तिहीं सुनतेस त .... तुहीं ला मोर केयर टेकर बने के इच्छा जागृत हो जतिस । मोर महतारी बाप मन अतका अमीर रिहीन के .. मोर देखरेख शिक्षा संस्कार अऊ सुरक्षा बर चार झिन केयर टेकर राखिन ..... फेर उही बैरी मन ..... मोरे चीज ला खइन अऊ मुही ला दुतकारिन । मोला अतका गरीब बना दिन के ..... ऊँकर गोदी के जगा .... ऊँकर सरन परे बर मजबूर होगेंव ..... दंड पुकार के ससन भर रो डरिस ....... । आँसू  खटिया तरी बोहाये लगिस । चुप होइस तहन किथे - तोर मन म सवाल आवत होही के .... अइसन म अपन दई ददा तिर वापिस नइ जातिस .... ? मोर दई ददा मन ला इही केयर टेकर मन ..... तोर बेटा हा हमर राजा आय कहिके .... बरगला डरे हाबे । मोला अपन दई ददा ले मिलन नइ देवय ..... । कहूँ तोरे कस मिले बर पहुँचिचगे .. त मोला चिन्हय निही । अइसन हालत म देख ..... चिनहीच कोन .... ? 

               मोर केयर टेकर मन बर ... तोर मन मा घुस्सा दिखत हे मोला .... फेर ऊँकर मजा नइ बता सकस । ऊँकर कुछ नइ बिगाड़ सकस । ओकर नाव सुन के तोर पोटा काँप जही .... । सुने के इच्छा करे त सुन ..... मोर पहिली केयर टेकर व्यवस्थापिका आय .... जेकर सरन म अपन ठिकाना बनाये के , अपन आप ल सुरक्षित करे के प्रयास करेंव । वोमन मोला सुरक्षित राखे हन कहिके .... बड़े जिनीस हाल भितरि म .... कुटकुट ले मारिन पीटिन । मय रेंगे झिन सकँव कहिके , मोर गोड़ ल टोर के बइठार दिन । केऊ खेप मोर नाक इँखरे मन के सेती कटइस । जइसे तइसे उहाँ ले निकल के दूसर केयर टेकर कार्यपालिका कोती प्रस्थान करेंव । देखते देखत मोर हाथ ल काट दिन चंडाल मन .... ताकी कुछू काम बूता झिन कर सकँव । बड़ निराश होगे रेहेंव । फेर आसा के किरन दिखीस तीसर केयर टेकर .... न्यायपालिका कोती । उहू हथियार धरके बइठे रिहीस । जातेच साठ दिमाग ल नंगा लिस ...... सोंचे झिन सकय कहिके । जेल म डारे बर धरत रिहीस । बड़ मुश्किल ले परान बचा के पल्ला भागेंव .... चौथा केयर टेकर कोती ... उहू कमती खतरनाक नइ रिहीस । मोर आए के अगोरा करत रिहीस । जइसे पहुंचेंव तइसे , देख झिन सकय , सुन झिन सकय , कहिके , आंखी अऊ कान ल काट के झोला म धर लीन । 

                बोलत बोलत रुक गिस । थोरिक बेर म .. आवाज अइस – तैं जरूर सोंचत होबे के .... तोला गरीबी देखा दिस .... तोर चीज बस धन दोगानी ला नंगा लिस अऊ तोला नइ राखिन .... फेर एमन तोर अंग ला काये करिन होही ? जेमन मोर गोड़ ल राखे हावंय , तेमन जनता ल गुमराह करत बतावत फिरथें के देखव .... हमन अपन गोड़ म नइ रेंगन , मोरे गोड़ म , मोरे बताये रद्दा म रेंगथन । इही मन मोर नाक ल कटवा के , अपन नाक म लगवाके , अपन नाक ल ऊँच करके घूमथें । जेमन मोर हाथ ल धरे हे , तेमन कहिथें के मोरे हाथ ले .... जनता बर काम करत हन । मोर दिमाग लुटइया मन मोरे दिमाग ले पूरा काम काज चलत हे कहिके , डंका बजावत फिरथें । अऊ आँखी कान लेगइया मन , जनता ल ये कहिके भरमाथे के , मोरे आँखी कान के अनुसार देख सुनके अपन कलम चलाथन । 

               तोर मन म जरूर प्रश्न उचत होही ..... के अइसन म मोर अऊ कन्हो अंग ल लेगे बर आ जही तब ? तब ये गरीब के कुटिया म मय कइसे सुरछित रहि सकहूँ ? एमन मोला आके मार डारही तब ? जोर से हाँसिस .... हा ...... हा ...... हा ...... । अभू तक ये चारों झन ..... मोर दई ददा के कुटिया के डेरौठी म अपन गोड़ ल नइ मढ़ाए हे । अऊ में जानत हँव .... अवइया समे म घलो नइ मढ़ाये । त एकर ले सुरछित जगा कती करा हे , तिहीं बता ? रिहीस गोठ बात मोर जिये मरे के , मय ऊँहे जिंदा रहि सकथँव जिंहा .... गरीब भुखर्रा .... मोर पेट भरय । जिहाँ उघरा नंगरा किसान मोर तन ढंकय । फुटपाथी मजदूर मोला अपन करा रेहे के जगा दे । में हाँसेव तेला देख डरिस अऊ केहे लगिस – तैं हाँसत हस बेटा ..... तैं सोंचत होबे ..... जेमन अपनेच बर नइ कर सके , तेमन मोर का बेवस्था करहीं । खुद महामुश्किल ले जइसे तइसे अपन जिनगी ल पोहाथें तेमन मोला काये जिंदा राखिही ? इही सचाई ल स्वीकारना बहुत मुश्किल हे बाबू .... । इँकर तिर सत्य , अहिंसा , भाईचारा अऊ ईमान के हावा बोहावत हे । इही हावा मोला जिये बर उर्जा देथे । अऊ जब तक हईतारा मन के गोड़ के धुर्रा , इँकर डेरौठी म नइ परही , तब तक जिंन्दा हँव । मोर अऊ जनता गरीब के बीच महतारी बेटा के संबंध हे । जनता के पेट जइसे भरथे .... महू तृप्त हो जथँव । ओहा अपन तन तोपे लइक कमा डरथे तब मोरो देंहे म कपड़ा पर जथे । ओला फुटपाथ म नींद आ जथे तब मोरो नींद पर जथे । तैं अब तो समझगे होबे के मोर नेरवा आज तक कटाये निही ..... तभे तो ..... । 

               अतेक राम कहानी सुने के पाछू घला .... में समझ नइ पायेंव के .... ओहा कोन आय .... पूछ पारेंव .... अब तो बता दव तूमन कोन अव ? ओ किथे - अतका दुखड़ा सुनाये के पाछू में सोंचेंव .... तैं जान गे होबे । इहां इहीच समस्या हे , जेमन मोला सुरक्षित जरूर राखे हे तिही मन जाने निही .... में कोन आँव तेला ....  । ओमन जे दिन जान डरही ..... तिही दिन मोर सरी अंग वापिस जाम जही । मिही तो लोकतंत्र आँव बाबू ..... जेला जिंदा राखे के जतन लोक हा करे हे अऊ मारे बर तंत्र भिड़े हे .... । लोक मोला जाने निही .... तंत्र मोला माने निही .... । आगू होना चाही लोक ला ..... फेर तंत्र अगुवा जथे .. ओहा लोक के अगुवाई ला स्वीकार नइ करत हे .... । मोला जाने बर हरेक पांच बछर म बड़े जिनीस जलसा देस भर म होथे .... लोक ला भरपूर मौका मिलथे फेर ..... का करबे .... तंत्र हा भरमा के लोक ला छुद्र स्वारथ म बुड़ो के ..... मोला जाने समझे ले रोक देथे । मोला अवतरे सत्तर बछर होगे .... फेर एक दिन बर घला राजा नइ बन सकेंव .... उलटा .... पेरेंट्स के सऊँख के सेती ..... अपन सरी अंग ला खोके ..... बीते केऊ बछर ले .... घुरवा कस अतगितान परे हँव .... । मोला जिंदा रखे के ..... पाले के .... पोसे के अऊ कन्हो प्रकार ले सुरक्षित राखे के पक्का इंतजाम मोर इही गरीब , बेबस , लाचार दई ददा मन भले करत हाँबय फेर को जनी कब जानही के .... मिही ऊँकर बेटा .... राजा लोकतंत्र .... आँव । वइसे हईतारा मन मोला जान सम्मेत मार घला देना चाहथें , फेर मोर मरे के घोसना नइ चाहें । मोर नाव ले .... जेकर हांथ म पद पावर पइसा आ जथे .... तेहा मोला भले जियन नइ दे ..... फेर मरे बर घला नइ दे ....। जेकर हांथ म पावर होथे .. केवल उहीच हा मोला जियत हे कहिथे ..... बांकी मन मोला मरगे मरगे कहिके .... चिचियावत रहिथे .....। मोरे मरई जियई के नाव ले .... इंकर दुकान ....... बिना कन्हो बिघन बाधा के जोरदार चलथे .... । तेकर सेती मोला सहींच म मारके .... मोर मरे के अधिकारिक घोसना सम्भव निये .... । में इहाँ काबर दरद पीरा म कलहरत हँव ... तहू प्रश्न तोर मन ला उद्वेलित करत होही .... यहू ला सुनले ..... मोर दई जनता के पेट भरत निये .... ओकर बाँटा के जेवन ला कौंरा ले नंगा के लेग जावत हे .... ओला गली गली नंगरा कस किंजरे बर मजबूर कर देवत हें अऊ एक रात चैन से नींद भर नइ सुतन देवत हे ..... त मोला तो दरद पीरा तो होबे करही बाबू .... । सुसके के अवाज आए लागिस । थोरिक बेर म .... खटिया म ढलंग दिस ..... में उचाये के कोसिस करेंव .... पांच बछर होये के पाछू जागहूँ कहत .... आँखी मुंद लिस .... ।   

   हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन  , छुरा

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