*महात्मा गांधी जी ला श्रद्धा सुमन*
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*लगभग ३५० बच्छर तक ब्रिटिश हूकूमत ह हमर भारत देश म शासन करते हुए भारतवासी के नस-नस ले वाकिफ हो चुके रहिस*
*दुर्भाग्यवश हम सब भारतवासी म जात-पात,छुआछुत, ऊंच-नीच,धर्म भीरू, आलसीपन, कामचोर,संतोषी प्रवृत्ति, भाई-भाई म झगरा,बाप-बेटा म तकरार,नशाखोरी आदि बुराई अउ एही हमर मुख्य कमजोरी ला अंग्रेज मन सबसे बड़े हथियार बना लेहिन,तभे अत्तेक दिन तक तानाशाही करते हुए हम सब भारतवासी ऊपर अपार जुल्म सीतम ढाए के साहस करिन*
*हमर नजर के सामने हमरे बेटी-बहू के इज्जत ला तार-तार करके हैवानियत करे के आदत बना लेहे रहिन*
*तऊन महान क्रूर तानाशाही पशु तुल्य अंग्रेजी हूकूमत के विरूद्ध आवाज उठाने वाला,घोरतम अंधकार में एक "चिराग" रूपी महान् आत्मा गुजरात के पोरबंदर नामक छोटे से गांव में जन्मे "मोहनदास करमचंद गांधी जी" अवतरित होईस*
*मोहनदास करमचंद गांधी से "महात्मा" के उपाधि प्राप्त करना "कोई चना-मुर्रा खाए सहीं सहज नोहय*
*तईसने एक सामान्य इंसान ला हमर देश के जम्मो लईका,सियान,स्त्री-पुरूष,सब्बो जवान,आमजनमानस द्वारा फोकटे-फोकट "राष्ट्रपिता" ले संबोधन काबर करिन ? "राष्ट्रपिता" नाम से संबोधन कोई व्यर्थ संबोधन नोहय,नइतो हर मनखे ला राष्ट्रपिता नइ कहितिन? एहूच संबोधन के पीछे मोहनदास करमचंद गांधी जी के व्यक्तित्व अउ कृतित्व के परिणामस्वरूप ही आप ला "राष्ट्रपिता" नाम से संबोधन करे जाथे*
*आज के परिवेश ला देखते हुए कोनो उथली सोच के कारण कहना सुरू कर दिए हवंय के -गांधी जी अब अप्रासंगिक हो गए हवंय,ये विचार हा समवेत स्वर नोहर,बल्कि वो बोलैया मनखे के जतका बुद्धि,जईसन सोच हवय,तेकर उपज आय*
*जबकि मोर व्यक्तिगत विचार से श्रद्धेय गांधी जी,अपन जीवनकाल म पूजनीय तो रहिबे करिस, आज भी प्रासंगिक हवंय,कल भी प्रासंगिक रहिही अउ चिरकाल तक सदा दिन प्रासंगिक ही रहिहीं*
*ये बात भी अकाट्य सत्य आय -पेट भर भोजन प्राप्त हो जाय के बाद कतको लजीज व्यंजन रहे,चाहे मेवा मिष्ठान रहे,ओकर कोई औचित्य नइ रहै*
*भरपेट पानी पी लेहे के बाद छटाक भर पानी घलो औचित्यहीन लगते*
*स्वारथ सिद्ध हो जाय के बाद सगे बाप के प्रति भी वो सद्भावना नइ रहै,नइतो मौका परे म "गधा ला घलो बाप कहना पड़ जाथे*
*एक बात अउ अटल सत्य हवय-"बड़े से नदिया म जब तक स्वयं के जलधारा प्रवाहित होवत रहिथे,तब तक वोमा के जल हा परम पवित्र,एकदम निर्मल नीर बोहावत रहिथे,लेकिन जब वोमा छोटे-छोटे ढेर सारी अन्य नदिया आ के मिल जाथे, शहर-शहर,कस्बा-नगर के गटर के गंदगी पानी आ के मिल जाते,तब "पापनासनी गंगा मैया" के जल ला घलो प्रदूषित कर देथे*
*तईसनेच महात्मा गांधी जी जब तक स्वयं के विचारधारा स्वयं के सिद्धांत के पालन करत रहिन,तब तक महान् पूजनीय रहिन,लेकिन जब गांधी जी कोई पार्टी,कोई परिवार के प्रति जुड़ के ऊंकर दबाव में काम करना सुरू करिन,तब से आप के महत्व,आप मान-सम्मान धीरे-धीरे धूमिल होना सुरू होगे*
*अईसनेच कोई महापूरूष के व्यक्तिगत त्याग,तपस्या सेवाभाव हा पूजनीय रहिथे,लेकिन जब कोनो आश्रम बना लेथैं,आश्रम बना के ढेर सारा चेला,समर्थक,अनुयायी बना लेथें,तब ओकर अनुयायी मन ओकर सिद्धांत के पुजारी बने के ढोंग करे लागथें अउ वो महापुरुष के विचारधारा, सिद्धांत ला क ख ख घ नइ जानते हुए भी अपन"डेढ़ बुद्धि" लागू करके संबंधित महापुरुष अउ ओकर सिद्धांत,वाद के मटियामेट कर डालथैं*
*आज हमर देश के महान विभूति राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी के १५१वें जन्म दिवस के उपलक्ष्य में सादर नमन करते हुए श्रद्धा सुमन अर्पित करत हौं*
दिनांक-०२.१०.२०२०
*गया प्रसाद साहू*
"रतनपुरिहा"
*प्रादेशिक महासचिव*
*कला परंपरा-कला बिरादरी संस्थान छत्तीसगढ*
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