*मानवरूपी डोरी...✍🏻*
जमाना तो जमाना फेर जेला अपन मानबे ओहु घलो बईरी, गोक्खी हे रे काकर मेर सुमता बांधव अब मन घलो साखी नई देत हे....
थोकन आघू का बढ़े धरेन सब हमर बईरी बने ल धर लीन
शिक्षा, संस्कृति, क्रीड़ा,साहित्य, शासकीय नौकरी, घर परिवार समाज सबो क्षेत्र ल मैं देख डरेव तन-मन-धन समर्पण करके
कतको सुघर काम कर ले फेर जलनेवाला मन ओला गिराय बर खुद अतका गिर जाथे कि जिहाँ तक नजर नई जाय
कोनो अधिकारी मेडम सो काम करे त चमची हो जथे, गुरुजी के बात मानबे त हितवा कहाथे,
नियमित खेलकूद करबे तहा षडयंत्र चालू हो जाथे,
सुघर लेख लिखबे तभो उँकर आँखि म गड़ जाथे,
टुरामन सो सुघर हास बोल देबे त आचरण अउ चरित्र म उँगली उठा देथे, सामाजिक कार्य म भी जातिभेद करथे
सब डाहर ल सोच के देख के भगवान कसम मोर बरम ह कल्ला जाथे मैं दुनियां के परपंच ल नई जानव अउ न जानना चाहंव मोला सतकर्म करे म खुशी मिलथे,जीत म उत्साह, कोनो मोर साहित्यिक त्रुटि निकालथे अउ तारीफ करथे त मोर मनोबल बढ़थे कि अउ सुघर नित नव सृजन करव
मोर सो आर्थिक गरीबी हे फेर मैं मानसिक गरीब नई हँव
काला अपन कहव काला दुश्मन, फेर एक बात हे
*मानव रूपी डोरी ल कतको*
*व्यवहार अउ प्रेम रूपी दूध पिला*
*फेर ओकर मुँह ले जहर*
*ही निकलही*
जलन भावना अच्छी बात आय फेर कोनो के अच्छाई ल देख के ओला गिराना सही नोहय अगर जलन भावना रखना हे त कॉम्पिटिशन एग्जाम म करव ताकि रिजल्ट देख के नाक ऊँच होवै...!
मैं पूछत हँव आज पूरा मानव समाज सो का अइसना जलनभावना म कोनो ल गिरना मानवता ये?
*आलेख*
*सुनीता कुर्रे*
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