Saturday, 8 January 2022

मया के दरपन

 मया के दरपन 


       सबित्री अउ गायत्री अपन दाई ददा के दूए झन बेटी रहिन। बेटा बरोबर दूनो ला पाल पोस के अउ पढ़ा लिखा के तियार कर दिस। सबित्री हा नर्सबाई बनके नउकरी घलो लग गे। बने असन सगा आइस ता दाई ददा मन सबित्री अउ गायत्री दूनो के बिहाव कर दिन। दूनों बहिनी नउकरी वाला मन घर गइन। नउकरी वाला दमांद पाके दाई ददा धन्न होगे।

       गायत्री बड़हर घर ससुरार आइस ता उहाँ ओला पढ़े-लिखे हावय कहिके बनेच मान गउन मिलिस।अपन पढ़ई उपर गायत्री ला बड़ गरब रहय....बने बने पहिरय... बने बने खावय। दू बच्छर पाछू एक ठन बाबू घलो कोरा मा खेले लगिस।दुलौरिन ननद घलो बिसा के ससुरार चल दिस। ससुर सास अउ अपन तीन झन खुशी खुशी जीनगी बतावत अउ चार बच्छर बीतगे। एक दिन संझा गायत्री के सास हा कइसे लागत हे कहिके खटिया मा सुत गे।रतिहा खायबर घलो नइ उठिस। सबोझन खा पी के सुत गे।बिहनिया गायत्री अपन सास ला चहा देय बर गिस ता देखिस ता ओखर चेतबुध हरागे। सास ला लोकवा मार दे रहिस, ओखर डेरी कति के हाथ, मुहू अउ गोड़ हा टेड़गा हो गय रहिस। गोसइया अउ ससुर ला बलाइस अउ ओला अस्पताल लेगवाइस। 

            गायत्री अपन सास के सेवा जतन करेबर लागही कहिके मइके चल दिस।ओखर ननंद हा अपन दाई के सेवा जतन करे बर आइस।एक महिना सुजी पानी, दवई गोली, आयुर्वेदिक दवई, योगा चलिस ता लघियात डोकरी हा लउठी धर के रेंगे ला धर लिस। सास ला बने होगे कहिके सुनिस ता गायत्री फेर ससुरार आगे।ओखर ननद घलो अपन ससुरार चल दिस। गायत्री एक दिन अपन गोसइया ला जिद करके नवा स्कूटी बिसाय बर बोलिस। लइका ला इस्कूल लेगे लाने बर सुभिता होही कहिके।गोसइन के जिद के आगू नव के नवा स्कूटी आगे।

       गायत्री एक दिन लइका ला इस्कूल छोड़ के आवत रहिस के एक ठन कुकुर हा स्कूटी मा झपागे। गायत्री हा स्कूटी संग गिर के घसटावत चपकागे। गोड़ मुरकुटागे अउ डेरी हाथ के हाड़ा हा चटग गे।सड़क मा रेंगइया मन उठाइन अउ अस्पताल मा लेगिन। ओखर गोसइया ला संदेश भेज के बलाइन। गायत्री के गोड़ अउ हाथ मा प्लास्टर चढ़ा दिन।एती ओखर सास सुनिस ता वहू अस्पताल आ गिस। लउठी टेकत अपन बहू कर गिस अउ कहिस- फिकर झन कर गायत्री, तोर सेवा जतन करे बर अभी मय धीरे बाँधे सक जाहूँ।....ए चहा ला पी... अउ बिस्कूट ला खा ले... बिहनिया के कुछू खाय नइ हस। अस्पताल के पलंग मा सुते गायत्री के दुनों आँखी ले आँसू ढरकत मुढ़सरिया मा बोहावत ओला मया के दरपन देखावत हे।



हीरालाल गुरुजी"समय"

छुरा,जिला गरियाबंद

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समीक्षा- पोखनलाल जायसवाल

पढ़े हस बाबू , कढ़े नइ हस। ए हाना ह आजकाल कुछ बनेच लागू होवत हे। अइसे लागथे। मनखे म मान मर्यादा अउ सेवाभाव ह कढ़े ले आथे, पढ़े ले नइ।नवा जमाना के मनखे कढ़े म थोरकन कच्चा हे। चार कक्षा आगर पढ़ के अब सबो सुवारथ के रद्दा म रेंगे लग गेहें। सियान मन के संसो फिकर छोड़ अपने म भुलावत जात हे। यहू ल भुला जथे कि काली हमरो संग अइसन बेवहार हो सकत हे। जेन बोबे, तेने तो लुबे का? सुवारथ के लपेटा म लपटाय अपन भविष के अनदेखा करथे। सास ससुर के सेवा जतन छोड़ गायत्री के महिना भर बर अपन मइके चल देना अउ सास के बने होय ऊपर ले लहुट आना , इही बताथे कि आज के पीढ़ी का सोचथे। 

     फेर कहिनी म सास के मया गायत्री के भरम ल टोरथे। सास घलव महतारी हो सकथे, कहूँ बहू बेटी बनके सेवा-जतन करय त। 

        कहिनी म बने बात ए हवय कि गायत्री ल अपन भूल के पछतावा होथे। सास के निश्छल मया के उज्जर दरपन म गायत्री अपन अंतस के कुरुप ल पछतावा के आँसू ले धो डरथे। 

        पात्र मन के संवाद ल थोरकन बढ़ा के कहानी ल अउ प्रभावी बनाय जा सकत हे।  जेकर ले पात्र मन उभर के आहीं अउ कहानी सजोर घलव होही। कथानक बहुत बढ़िया हे।

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