मुद्दा के ताबीज
तइहा तइहा के बात आय । केऊ बछर के तपस्या अऊ मेहनत के पाछू राज पाठ मिले रहय बपरा मनला । मुखिया सोंचत रहय के कइसनों करके राज पाठ ला बनाये राखना हे । ओहा हरसम्भव उपाय करे म लगे रहय । संगवारी मन खुरसी ला कतकोन सम्हाले बर धरय ... डोलेच बर धरय .. कतको झन संगवारी मन ओकर पाया ला किड़किड़ ले धरे रहय तभो ले एक कनिक एती वोती म .. मुखिया हा .. खुरसी ले खसले कस हो जाय । कन्हो उपाय समझ नइ आवत रिहिस । तब लोकतंत्र बबा के अहमियत पता लगिस । लोकतंत्र बबा तिर खुरसी ला बंधवाये के सोंचिन । लोकतंत्र बबा हा झाड़ फूँक करके मंत्र बतावय अऊ पहिरे बर ताबीज देवय ।
मुखिया हा लोकतंत्र बबा के डंडासरन होगे । बबा हा ओकर आये के कारन अऊ तकलीफ पूछिस । मुखिया कहिथे ... तकलीफ कहींच निये बबा । सिर्फ येके ठिन फिकर रहिथे के अत्तेक बछर के मेहनत म राज पाठ मिले हे ... खुरसी हाले बर धरथे तब डर लागथे ... गिर झन जावन .. । बबा किहिस .. नइ गिरस । उपाय कर देथन फेर कुछ नियम हे तेकर पालन करे बर परही । मुखिया कहिथे .. खुरसी हा झन डोले .... हम झन खसलन ..... ओकर बर हरेक नियम धरम अऊ सरत मंजूर हे बबा । बबा कहिथे ... कोई बहुत बड़का नियम निये गा । एक ठिन ताबीज बांध के देवत हँव ....... येला कभ्भू झिन उतारबे चाहे कतको गरगस लागय । येला घेंच म हमेशा ओरमाये राखबे अऊ जनता ला जब पाये तब देखावत रहिबे । मुखिया कहिथे .. घेंच म ओरमाके राखना तो ठीक हे बबा ... फेर जनता ला जब पाये तब देखा के काये करबो । बाबा कहिथे .. निचट भकला अस जी । मेंहा ताबीज म कुछ अइसे मंत्र बांध के देवत हँव ... जेला जतका दिन तक ओरमाके देखा सके म सफल रहिबे ... ततका दिन तक दुनिया म कोई माई के लाल तोर हाँथ ले राज पाठ नइ नंगा सकय ।
मुखिया हा लोकतंत्र बबा के बात समझिस निही । बबा हा फोर के किहीस .. भूख .. गरीबी .. मँहगाई .. बेरोजगारी .. भ्रस्टाचार .. आरक्षन .. करियाधन .. घोटाला .. देसी बिदेसी .. शराब बंदी अऊ बिकास के मुद्दा ला ताबीज म भर के देवत हँव । येला जब तक लटकाये रहिबे तब तक .. तोर राज पाठ ला कन्हो नंगा नइ सकय । बीच बीच म जनता ला देखाके आस्वस्त करबे के .. तुँहर समस्या के बोझा ला अपन घेंच म लटकाके तुँहरे भल बर मरत हँव । जे दिन मुद्दा ला ताबीज ले बाहिर निकाले के होसियारी देखाबे .... ते दिन राज पाठ ले हांथ धोये बर तियार रहिबे । मुखिया किथे .. अतेक अकन बोझा ला घेंच म ओरमाये रइहूँ त घेंच नइ पिराही बबा ... तब फेर आने बुता ला कइसे करहूँ । बबा किथे – ओरमाबे तैं ... पिराही तोर बिरोधी के .. । रिहीस बात काम बुता के ... त ओकर आवसकता का हे ... । जब अतके म काम चल जात हे ..... । घेरी बेरी ताबीज ला देखाना ... कमती बड़ बुता आय बाबू .. । मुखिया समझगे । ताबीज हा ये मुड़ी ले ओ मुड़ी ... ये घेंच ले ओ घेंच ... ये पीढ़ही ले ओ पीढ़ही ... जगा बदलथे । जेकर घेंच म बंधाये हे ते खुरसी म बइठे हे ... अऊ घेंच पिरा म आहत बिरोधी ... ताबीज नंगाये के जुगत बनात हे । मजबूर मुद्दा .. ताबीज बन लटकत हे ।
हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन छुरा .
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