Saturday, 8 January 2022

ठिकाना

 ठिकाना 

                    भूख हा .. बचाओ बचाओ ... चिचियावत एती वोती लुकाये के कोशिस म लगे रहय । जेकर तिर जातिस तिही ओला मारे बर धरय .. कहूँ तिर सुरक्षित रेहे के जगा नइ दिखत रहय । जेकर पेट म खुसरतिस तिही हा हइतारा बन .. पेट भितरि मारे के जुगाड़ जमा डरय .... दिल म खुसरतिस त उही मेर चपक के ओकर इहलीला ला समाप्त करे बर धर लेवय । मन म खुसर जतिस त ओतके बेर मुसेटे के प्रयास हो जाय । आँखी म रेहे के प्रयास करिस फेर उहों ओहा रहि नइ सकय ... ओला मारे बर तरह तरह के उदिम रच के मार डरय । 

                    एक दिन भूख हा अपन सरी कारोबार ला समेट के वापिस स्वर्ग के रुख कर लिस । चित्रगुप्त हा किथे .. तोला धरती म रेहे बर अतेक जगह दे हन अऊ तैंहा काबर जहाज म समान धरके दोरदिर ले इहाँ आगे होबे । तोर सेती ब्रम्हा के बेवस्था बिगड़ जही .. धरती म तोर काम ला कोन करही .... । बपरा केहे लगिस .. सब जगा मोला मारे के अतेक उपाय रचे जावत हे के मोर रहना दूभर होगे हे ... मोर काम उहाँ के मन ला मारे के दे रेहे फेर .. मोर ले कन्हो मरे बर तियार निये । हरेक जगा भूख मरगे ... भूख मरथे कहिके प्रचारित करके मोला अतका कमजोर बना देहे के .. मोला अइसे लागथे के मेंहा अब सहींच म मर चुके हँव ... । 

                    चित्रगुप्त ला समझ नइ अइस । वहू सोंच म परगे । कुछ समे पहिली भारत आजाद होय रहय । देश चलाये बर बड़े जिनीस भवन हा ... संसद बनगे । चित्रगुप्त ला उपाय सूझगे .. ओहा भूख ला खमाखम आश्वासन देवत किहीस .. तोर बर जगा बनगे । जा उंहे जीबे अऊ शान से जब तक चाहबे रहिबे .... । कुछ दिन बर अस्थायी ठिकाना बनाये के हिसाब से बिगन समान धरे ... संसद भवन म भूख हा खुसरगे । धीरे धीरे अपन पूरा भूख परिवार ला बला डरिस । तबले .. जे जे मनखे हा संसद म बइठथे ... तेहा कतको खा लेथे हजम हो जथे .. ओकर भूख मरबेच नइ करय .. । भूख ला स्थायी ठिकाना मिलगे .. । 

हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन … छुरा

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