अगहन बिरस्पत कहानी 1
अन्न के करौ जतन..
एक गाँव म साहूकार अउ साहूकारीन रहिन। बड़ मेहनती रहिन। स्वभाव ले दयालु सबके सुख -दुःख म खड़े होय। चीज -बस के कुछु कमी नइ रहिस। कोठी मन ले धान -पान उछलत रहय। धान के बड़ जतन होय फेर कोदो -कुटकी के पुछारी नइ रहय खेत -खलिहान, कोठार म परे रहय। ओखर भूर्री बारय।
एक दिन के बात आय. अधरतिया के बेरा लक्ष्मी दाई मन बइठे गोठियावत रहए , कोदईया दाई कहीस -बहिनी हो इहाँ मोर बड़ अपमान होथे रात-दिन मोला होरा भूंझत हें मोर देंह जरत हे हाथ -गोड़ कुटकुट ले पिराथे , लइका -बाला मोर ऊपर थूकथें -मूतथे। तुंहर तो अड़बड़ जतन होथे फेर मोर एक रत्ती कदर नई हे। मैं अब इहाँ नई रहौं , इहाँ ले जाहूं। धनईया दाई कहिथे बहिनी सबले बड़े तहीं अस तैं नई रहिबे त मैं का्य करहूं। आज जतन होत हे कोन जाने काली मोरो हाल तोरे असन होही। महूं नई रहंव तोरे संग जाहूं। दूनों के गोठ ल सोनईया दाई सुनत रहय उहू कहिस तुमन बड़े मन नइ रहू तो मैं काबर रहूँ महूं जाहूं तुहर संग , सोनईया दाई के बात ल सुन के रूपईया दाई कहिथे महीं अकेल्ला काय करहूं महूं जाहूं तुहर संग। चारों लछमी माई मन सुनता -सलाह होगें।
दूसर दिन अधरतिया जब सबे झन सुत गें चारों लछमी माई साहूकार के घर ले निकल गिन। चारों झन जात गिन रस्ता म जंगल आ गे , एकदम घनघोर , कोदईया दाई कहिथे जंगल अड़बड़ घना हे बहिनी आगू नइ जान कोनो बने असन जगा देख के रुक जथन। कुछ दूर म एक ठन दिया बरत दिखिस। चारों झन उही कोती चल दीन। देखिन एक ठन नानकुन झोपड़ी भर हे , आसपास अउ घर नई हे। इहाँ जंगल म कोन रहिथें ?
फेर आसरय तो चहिये , दरवाजा ल खटखटाईन आरो ल सुन के भीतरी ले एक सियान दाई कंडील धरे आइस चारों माई ल देख के अकबका गे। यहा घना जंगल अधरतिया के बेरा अउ चार झन जवान -जवान सुंदर लकलक करत माई लोगिन देख के अकबका गे , फेर आधा डर -बल के पूछिस -काय बेटी हो।
लक्षमी दाई मन पूछिस -अउ कोन-कोन रहिथे तोर संग। सियान कहिस -अकेल्ला रहीथों।
लछमी दाई- दाई हमन ल आसरा चाही।
सियान थोरकन गुनिस फेर कहिथे मोर कुरिया तो नानकुन हे बेटी हो तुमन बड़े घर के लगथो , कइसे रहू इहाँ।
लछमी दाई- ओखर फिकर झन कर हमन रहि जबो. इहाँ जंगल म अउ कहां जाबो।
सियान ल दया आगे. सिरतोन कहिथो बेटी कहां जाहु। आओ भीतरी म।
भीतरी म लछमी दाई मन गिन। सियान ओमन ल बैठे बर खटिया ल दीस। पानी लान के दीस अउ कहिस बेटी हो मैं गरीबीन छेना थाप के अउ बेच के जिनगी चलाथों खाय बर पेज -पसिया मिलही।
लछमी दाई- हमन ल परेम ले जेन खवाबे तेन ल खाबो , पेज -पसिया ल पीबो। एकठन बात हे - हमन इहाँ हन कोनो ल झन बताबे। खा- पी के सबो झन सुत गें। सियान मुधरहा ले उठ के गोबर बिनय अउ तहाँ ले छेना थोपय, बेरा उवय तो बस्ती म घूम -घूम के छेना बेचय , बेचे से जेन पैसा मिलय तेखर खई -खजाना लेवय। रोज के ओखर यही नियम रहय। सियान भले गरीबीन रहीस फेर बहुत ईमानदार , दयालु अउ संतोसी रहीस हे। वहु दिन सियान मुंधरहा ले उठिस , ओखर संग संग लछमी दाई मन घलो उठ गें।
पूछिन बाहिर -बट्टा केती बर जाबोन दाई। सियान गुनिस यहा जवान म जंगल भीतरी कहाँ जाही , सोच के कह दिस - इही तीर में निपट लो बेटी।
चारों झन झोपडी के चारों कोती बइठ गें।
बेरा उवीस तो सियान के आंखी फटे के फटे रहीगीस , झोपड़ी के चारों कोती ल देख के। यहा का एक कोती कोदो के कुड़ही ,दूसर डहर धान , तो तीसर कोती रुपया -पैसा , अउ चौथइया कोती सोन -चांदी के ढेरी। सियान अकबका गे , सोच म परगे , कोनो जादू टोना तो नई करत हे , असिखिन -बही तो नो हे। लदलद कांपे लगीस। धाय भीतरी धाय बाहिर होय।
लछमी -दाई मन सियान के भाव ल भांप लीन , ओला समझाईंन , दाई भगवान तोर मेहनत ल चिन्हिस अउ तोला दे हे , सकेल डर।
सियान के डर थोरकन कम होइस। मरता क्या न करता आधा डर-बल के सबे ल सकेलिस। दुसरया तिसरया दिन फेर वसनेहे होइस। सियान समझ गे एमन साधारण मनखे नई हे , हो न हो साक्षत लछमी दाई ए।
सियान के दिन फिर गे। अब वो गोबर बीने ल , छेना बेचे ल नई जाय , झोपड़ी के जगह सुंदर महल बन गे। पूरा बस्ती म. दूर -दूर गांव म बात फ़इल गे। सियान सबके मदद घलो करेय , दान -पून करय। सबो झन सियान ल घूमा -फिरा के , डरा -धमका के पूछय काय करेस के तोर दिन फिर गे। फेर सियान बताय नई।
लछमी दाई मन ओला चेताय रहय। ओती साहूकार के घर धीरे -धीरे सबो धन -संपत्ति खतम होगे। कतकोन मेहनत करय खेत -खलिहान सूख्खा के सूख्खा ,धूर्रा उडियावत । मेहनत -मजदूरी करें के नवबत आगे। सियान के ख्याती साहूकार तक पहुंच गे। साहूकार ल शक होगे हो न हो लछमी दाई ओखरे घर गे हे। खोजत -खोजत साहूकार सियान के घर पहुंच गे।
सियान साहूकार के सुंदर आवभगत करीस।
साहूकार धीरे ले सियान ल पूछिस , का करेय दाई के तोर दिन फिर गे। झोपड़ी ले महल हो गे। सियान टस के मस नई होइस। साहूकार डराइस -धमकइस , पुचकारीस ।
सियान डेराय -डेराय भीतरी में गीस अउ लछमी दाई मन ल कहीस , चलव बेटी हो साहूकार आय हे तुमन ल खोजत -खोजत। तुमन ल बलावत हे। बहुत जोजियाइस। आखिर म लछमी दाई मन मिले -बर हामी भरीन अउ बाहर आइन। लछमी दाई मन ल देख के साहूकार उखर पांव तरी गीर गे , रोय-गाय लगीस , माफ़ी मांगीस। सबे लछमी दाई मन पसीज गे , जाय-बर तइयार होगे।
फेर कोदईया दाई कहीस- तोर घर म मोर बड़ अपमान होथे, नई जाव। साहूकार कहीस अब नई होय दाई , भूल हो गे माफ क़र दे , तोर सखला-जतन करहू। आखिर म कोदईया दाई घलो मान गे . सबे लछमी दाई मन सियान ल अड़बड़ आसिरवाद दीन अउ साहूकार के संग चल दीन।
साहूकर के दिन फेर बहूर गे। साहूकार ल समझ आगे , घर म सबोझन ल समझाइस, भगवान दे हे तेन सबे जिनीस के सखला-जतन करना चाही।
प्रेम से बोलो लछमी महरानी के जय।
"मोर कहानी पूरगे , दार- भात चूरगे।
(प्रस्तुति : सुशील भोले)
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