खिचरी
चन्द्रहास साहू
मो - 8120578897
आज लुहुंग-लुहुंग तरिया गिस। तरिया अमरके झटपिट-झटपिट कपड़ा लत्ता ला कुढ़ोइस। खबल-खबल नहा धो डारिस। अब लकर-लकर मंदिर अमरगे राधाकिशन के अउ उत्ता-धुर्रा पूजा करके खन-खन करत सिक्का ला चढ़ाके दंडासरन होइस। हबर-हबर बासी खाइस अउ सटर-पटर जोरिस-जंगारिस टिफिन लेगे बर। तनतीन-तनतीन साईकल ला कुरिया ले निकालिस। पम्प निकालके सुर्र-सुर्र हवा भरिस। अब हफर-हफर साईकल चलावत हाबे। भुर्रुर-भुर्रुर साईकल दउड़त हे अउ सुरुर-सुरुर हवा चलत हाबे। काया के पसीना घला सुखावत-अटावत हे। घड़ी चौक अमरगे। घड़ी ला देखिस नौ पैतालीस। मुचमुच-मुचमुच मुचकाये लागिस। ओगरे पसीना ला पोछिस। अब तीर के राइस मिल अमरगे। तीर-तार मा साईकल ला स्टैंड करिस अउ सुटुर-सुटुर राइसमिल मा खुसरगे। गड़गिड़-गड़गिड़ लोटा भर पानी ला पी डारिस अउ सुकुरदुम होगे। आगू मा सांगर-मोंगर जवनहा ठाड़े हाबे।
"कइसे बे, मनराखन ! अभिन बेरा ये आय के ? दस बजे आये के नेमाये हाबे अउ सवा दस बजे आवत हस मार टेस-टास मा। जाए के बेर कइसे हड़बड़-हड़बड़ करथो ..? एक बुता उपराहा नइ होना चाही ? घड़ी देख के कमाथो ...अउ कोनो एकोकन उपराहा होगे तब आगर के घाघर पइसा लेथो।....जांगर-चोट्टा हो।''
सेठ आय। कर्रस-कर्रस कर डारिस। अगिया-बेताल होगे। मनराखन अब सुटुर-सुटुर अपन बुता मा लग गे। पहिली मिल मा माड़े चाउर के छल्ली ला गिनही वोकर पाछू आज के बुता के योजना बनाही। मनराखन बरोबर रामबगस दुलार कातिक मन तो अउ बिलम ले आइस, अब्बड़ झँझेटिस। फेर मटर-मटर करइया मटमटही मन गियारा बजे आइस तभो ले चिट- न पोट करिस सेठ हा। आय के बेरा ला देखथे दस बजे ले थोड़को आगर होगे तब एड़ी के रिस तरवा मा चढ़ जाथे सेठ पिला के अउ जाये के घण्टा भर ले जादा हो जाही तभो ले आँखी नइ उघरे।
जम्मो ला गुनत-गुनत गोदाम के चाउर बोरी ला गिन डारिस मनराखन हा।
"दू हजार एक सौ चालीस बोरी हाबे सेठ टोटल। मोट्ठा चाउर वाला चार सौ बोरी के एक रेक, उसना छे सौ के दू रेक, ममहाती चाउर तीन सौ बोरी के एक रेक। अरवा चाउर सिरागे काली नौ ट्रक माल नागपुर कटनी गुंटूर हैदराबाद बागबाहरा अउ राजिम गिस हाबे।''
मनराखन सेठ ला बताये लागिस।
"आज बस्तर भेजबे पुराना गोदाम के मोट्ठा चाउर ला। पूरा दस हजार नौ सौ पैतीस बोरी हाबे सबो ला उही कोती खपा देबे।''
"फेर सेठ जी ! वो तो रिजेक्ट मॉल आय ओमा इल्ली घला लगत हाबे।''
"वोकर से तोला का मतलब ..? कोनो लंदर-फंदर मा झन पर तेहां। जतकी काहत हँव ओतकी कर।''
सेठ टीरटीर-टीरटीर करे लागिस।
"..…. छत्तीसगढ़ मा ही तो खपही रे ! मोट्ठा अउ अलवा-जलवा चाउर हा। आदत घला होगे हाबे इहाँ के मनखे मन ला सरहा चाउर खाये के। पाँच ट्रक ममहाती चाउर ला लहुटा देये रिहिन अधिकारी हा पाछू दरी। ममहाती चाउर मा कमीशन कमती जाथे अउ मोट्ठा, सरहा चाउर में तो सर-बसर कमीशन देये ला परथे-फिफ्टी फिफ्टी। घुरवा मा फेंकाये वाला जिनिस बेचा जाथे हमर अउ अधिकारी के तिजोरी घला भर जाथे-दुनो कोई उछाह मा रहिथन।''
दीवार मा लगे किशन भगवान के फोटो मा माथ नवावत सेठ बतावत हाबे अउ हाँसत हे।
मनराखन सेठ के मुँहू-मुँहू ला देखे लागिस। कतका दोगला हाबे येमन। लोटा धरके आये रिहिन अउ लबारी मार के अतका जिनिस बना डारिन। स्कूल कॉलेज फैक्टरी जम्मो के मालिक बनगे अउ हमर छत्तीसगढ़िया भाई बहिनी मन अभिन घला दारू पीके लट-लटाये रहिथे, खोर्रा गोड़ में चार तेंदू खोजत हे। वाह रे चतरा परदेसिया हो। रूपरंग बोली भाखा जम्मो ला हथिया डारेव।
मनराखन गुनत हाबे वोकरो मुँहू करू हो जाथे।
"अरे मनराखन तेहां जानथस ये जतका चाउर जाथे न ट्रको-ट्रक वोकर आधा माल लहुट के आ जाथे हमरे करा। वोला फेर दुबारा तिबारा बेचथन।''
मनराखन के मुँहू उघरा होगे। संसो मा घला परगे। सेठ कइसे आज भकरस-भँइया गोठियावत हाबे।
"कइसे सेठ ?''
"ये छत्तीसगढ़िया मन घला चतुरा हाबे रे ! तरी उप्पर कारड बना लेहे। दू रुपिया किलो मा चाउर बिसाथे अउ बीस रुपिया मा कोचिया करा फेर बेच देथे। कोचिया करा लें बाइस रुपिया मा हमन फेर बिसाथन ताहन सरकार ला चवालीस रुपिया मा फेर बेचथन। अब सरकार हा सोसायटी मा मयारुक जनता मन ला फेर दू रुपिया किलो मा बेच देथे। कहावत बरोबर होगे ये चाउर हा, हाय रे मोर बोरे बरा घूम फिरके मोरेच करा हा....हा....हा....!''
मनराखन ला अइसे लागिस जइसे वोकरे ऊप्पर हाँसत हाबे। मनराखन अब ट्रक मन के हियाव करे लागिस।
मिल के बॉयलर मा धान ओईरावत हाबे,भाँप मा उसनावत हे, सुखत हे दरावत हे कोड़हा भूसा अलग-बिलग होके साबुत चाउर निकलत हे। ऐति-वोती जम्मो कोती कमइया मन पसीना ओगरा के बुता करत हाबे। चाँउर के हिसाब-किताब करिस मनराखन हा। कहाँ ले कतका मॉल आइस-गिस जम्मो के हियाव करिस। मनराखन हा मुंशी बुता ला अभिन सीखत हाबे। .... अउ अब अपन संगी-संगवारी मन संग जेवन करे ला बइठ गे।
चना के घुघरी साग संग भात ला लपेटे लागिस अउ उदुप ले सुध आगे दाई के। जब ड्यूटी आइस तब घर मा नइ रिहिन दाई हा। की पेड मोबाइल मा नम्बर डायल करिस।
"हलो छोटू ! कहाँ हे भाई दाई हा ?''
छोटू, मनराखन के कका के बेटा आवय। कुछु उच्च -नीच होथे तब उही ला सोरिया लेथे।
"दाई ! सोसायटी गेये रेहेस नही ओ! चाँउर छोड़ाये बर ?''
"हांव बेटा ! गे रेहेंव गा। मोट्ठा चाँउर मिलिस बेटा सबरदिन बरोबर फेर चाँउर हा ठिकाना नइ हाबे अब्बड़ जलियाहा हाबे। अब्बड़ छीने-चाले ला लागही। पतारी कीरा घला बिलबिलावत हाबे। कइसे गा, तोर आजा घर कोती ममहाती मासरी चाँउर देथे अउ हमर कोती सबरदिन मोट्ठा ?''
"कइसे करबो दाई ! सरकार वइसने चाँउर ला पठोथे तब। फुन-फान लेबे, छीन-चाल लेबे ओ।''
"हांव बेटा ! फोकटे-फोकट बिचारा सेल्स मेन अब्बड़ गारी-बखाना खाथे गा।''
सेल्समैन बर सोग मरत किहिस दाई अहिल्या हा।
ले झटकुन घर आबे सांझकुन मंदिर लेगबे मोला।''
"हांव दाई !''
"बेटा! लाली बेटी के कुछु सोर मिलिस गा। कब आहू किहिस ? कहाँ हाबे ? बने सुघ्घर हाबे न गा ? कोन गाँव मा हाबे ?''
दाई के नरी बइठ गे रो डारिस पूछत ले।
"हांव दाई ! पुलिस वाला साहब करा जाके पूछहूं का होवत हाबे केस के तेला। हफ्ता दिन मा आके पता करबे केहे रिहिन, जानबा करहुं पइसा लागही ते अउ चढ़ाहु चढ़ोत्तरी।''
मनराखन उदास होगे। दाई तो अब बम्फाड़ के रो डारिस। फोन कटगे टू....टू....टू.... के आरो के संग।
शहर तीर के गाँव-तेलीनसत्ती। दाई अहिल्या अउ बेटा मनराखन इही गाँव मा रहिथे। दाई घर राखथे अउ बेटा हा शहर के राइसमिल मा बुता करथे-मुंशी बुता। मनराखन के छोटे बहिनी लाली हा पांचवी मा रिहिस तब ददा बितगे रिहिन। एक भाई एक बहिनी अउ दाई अहिल्या, अतकी तो परिवार आय मनराखन के। अब्बड़ पढ़ाहू बहिनी तोला ! तोर जम्मो साध ला पूरा करहुँ। तोर सपना के जम्मो रंग ला भरहू। अब ददा नइ हाबे ते का होइस ? भलुक बड़का भाई आवव फेर ददा बरोबर जम्मो जिम्मेदारी ला उठाहु। मनराखन मने-मन किरिया खा डारिस। पढ़ई छोड़के अब राइसमिल मा रेजा-कुली के बुता करे लागिस।
......फेर मनराखन के चेहरा मा जतका उछाह रहिथे वोकर ले जादा संसो होथे लाली बर। काबर संसो नइ करही ? निर्भया ला कोन नइ जाने ? महराजिन के एकलौती बेटी के का गत कर डारिस होस्टल मा रही के पढ़त रिहिन तब। अउ..... पुलिस वाला सिन्हा जी के बेटी ? हे भगवान ! न कोनो जात धरम लागत हाबे न पद-प्रतिष्ठा। मइलाहा मइनखे मन बेरा के अगोरा मा रहिथे। पेपर अखबार टीवी मा तो बस, इही अनित हा ब्रेकिंग न्यूज रहिथे। नेशनल क्राइम रिपोर्ट के आकड़ा तो कहिथे सिरिफ तिरालीस प्रतिशत क्राइम ला पुलिस रजिस्टर करथे। ......अउ बाकी सत्त्तावन प्रतिशत क्राइम के का होथे ? मनराखन मुड़ी ला धर लेथे। अउ सुध लमाये लागथे अखबार मा पढ़े रिहिन तेला। कोनो मन लोक-लाज के भय ले, कोट-कछेरी ले बाचे बर तब कोनो डर्रा के आगू नइ आवय अउ कोनो-कोनो तो खुद मर जाथे फेर कोनो ला जानबा नइ होवन देय।
मोर बहिनी ला काकरो मइलाहा नजर नइ लगन देंव। बचा के राखहु बैरी मन ले। छइयां बनके संगे-संग रहू फेर बहिनी लाली ला टिक्की लगन नइ देंवव। मनराखन फेर किरिया खा डारिस-मनेमन मा।
नानकुन रिहिन लाली हा चिरई बरोबर उड़ियावय फेर अब बड़का होइस तब तो बेड़ी लगगे। इहाँ नइ जाना, उहाँ नइ जाना। जादा नइ गोठियाना-बतराना। हाँसी-ठिठोली जम्मो बर पाबंदी लगगे। वोकरो तो अगास आवय। पाँख हाबे तब काबर नइ उड़ियाही लाली हा ?
"दाई ,भाई हो ! बेंगलोर जाहू पढ़े बर।''
लाली आज किहिस।
"बैंगलोर....? जानथस कोन कोती परथे तौनो ला ?''
"अउ पइसा कहा ले आही टूरी ?''
"न बाप के सगा, न दाई के लरा-जरा, नइ पठोवन।''
दाई बरजत हाबे। भाई मनराखन घला बम्बियागे । घर मा रहा। भलुक कमती पढ़ फेर हमर राज ला छोड़ के झन जा। जतका पढ़बे ओतका पढ़ाहू फेर परदेस नइ पठोवव।'' मनराखन अउ दाई दुनो कोई के ब्रम्हवाक्य होगे।
"मोरो सपना हाबे कुछु करे के । .....अउ बिन सपना के नइ जी सकव मेंहा।''
लाली किहिस अउ रो डारिस गोहार पार के। अब्बड़ उदास राहय लाली हा। दू दिन ....चार दिन ..... अब्बड़ मनाइस दाई अउ भाई ला।
.....नइ मानिस अउ एक दिन ...? कोनो नइ जाने कहाँ गिस लाली हा तेला। मरत हाबे धुन जीयत हाबे तेखरो सोर-संदेश नइ हाबे। मनराखन तो थाना कछेरी जम्मो के डेरउठी ला खुंद डारिस। फेर बिन पइसा के का होही ? नत्ता-गोत्ता संगी-संगवारी जम्मो ला पूछ डारिस फेर लाली के कोनो आरो नइ हाबे।
दाई अहिल्या हा अगोरा करत हाबे भगवान राम के। बेटी के दुख मा पथरा होगे हाबे न। लाली आही तभे जीवन मिलही वोकरे सेती मंदिर-मंदिर माथा टेकथे। मस्जिद-मस्जिद अर्जी लगाथे। ....अउ का करही बपरी हा ? इही मन तो आस अउ बिस्वास के ठउर आवय। रोज किशन भगवान के डेरउठी मा अर्जी लगाथे। ...अब उही तो आसरा हाबे।
चाँउर लाने हाबे कोटा ले। आज घला कुछु बनावत हाबे भोग लगाये बर। जम्मो पारी रिकम- रिकम के जिनिस बनाथे दूध-मही लेगथे अउ राधा किशन मंदिर मा चढ़ाथे फेर मंदिर के परदेसिया पुजारी मन ला का भाही ठेठरी-खुरमी फरा-दुधफरा हा। ....कभु नइ झोंकिस अहिल्या के कलेवा ला, सबरदिन दुतकार दिस।
अहिल्या आय कभु हार नइ माने। राहेर दार मूंग दार अउ चाँउर ला छांट-निमार डारिस उत्ता-धुर्रा। खबल-खबल बरतन ला धोके हबर-हबर जम्मो तियारी कर डारिस। भरर-भरर आगी ला बारिस अउ खबले कड़ाही ला चढ़ा डारिस। गाय के घीव मा जम्मो मसाला ला भुंजत हाबे। खर्रस-खर्रस चम्मच चला के बनावत हाबे करमा दाई के खिचरी। डबडब-डबडब डबके लागिस अउ घर भर भरगे माहर-माहर करत दुबराज चाँउर के खिचरी हा। आरुग खिचरी अब अगोरा करत हाबे भगवान के अउ दाई अगोरा करत हाबे अपन बेटा मनराखन के।
घर लुहटिस मनराखन हा। सटर-पटर तियार होइस अउ अमरगे शहर के सबले बड़का मंदिर मा अपन दाई संग। भलुक शहर के बड़का मंदिर आय चमचमावत संगमरमर वाला फेर वोला अउ जादा बड़का बनाये बर बड़का दान पेटी राखे हाबे। मनराखन हा जानथे मंदिर मा चढ़ोत्तरी चढ़ाये ले लाली लहुट के नइ आवय फेर दाई के मन राखे बर सौ पचास रुपिया ला चढ़ा के रसीद माँगथे।
"हूं....... ये पचास रुपिया ले जादा महंगा तो रसीद कागज के हाबे। रसीद देके का करहुँ ...? देख ये जम्मो कोई हा दस हजार ले आगर चढ़ोत्तरी चढ़ावत हे। दस हजार दे अउ रसीद ले।''
उदुप ले पाछू दरी के घटना के सुरता आगे मनराखन ला। सात हजार महिना कमाथो तब दस हजार ला का चढ़ोत्तरी चढ़ाहू। गुनत-गुनत सीढ़िया के पैलगी कर के मंदिर मा गिस। आरती के बेरा अमरिस। अब्बड़ भीड़ लगे हाबे भक्त मन के। राधाकिशन के मूर्ति अब्बड़ सुघ्घर लागत हाबे। गाना बजाना के संग आरती होइस। राधाकिशन के मूर्ति के आगू मा लड्डू खोवा मेवा मालपुवा ढ़ोकला फाफड़ा धनिया पंजीरी नरियर फल-फलहरी छप्पन भोग माड़े हाबे-भोग के बेरा आय अब।
अहिल्या घला संसो करत हाबे। आज तक कभु कोनो जिनिस लाने रिहिन तौन ला कभु नइ झोंकिस पुजारी हा। सबरदिन दुतकारिन। कभु कलेवा ला लहुटा के लानीन तब कभु गरीब मन ला बांट के अवसोसी पूरा करिस अहिल्या हा। फेर कभु राधाकिशन ला भोग नइ चड़ीस अहिल्या के बनाये कलेवा के।
आज तो पीतल के बटलोही मा खिचरी धरे हाबे -आरुग खिचरी। तेली समाज के आराध्य दाई कर्मामाता के खिचरी खाये बर भगवान जगन्नाथ हा रोज जावय माता कर्मा घर। अउ कर्मा दाई हा सौहत भगवान ला खिचरी खवाये।
"बाल रूप कृष्ण, नटखट कृष्ण सबके दुख दूर करइया किशन। आज मोरो बिपत ला टार दे मोर बंशीबजइया ! मोर खिचरी ला खा ले अउ मोर दुख ला टार दे। नोनी लाली कहाँ हाबे तेखर सोर बता दे।''
अहिल्या के आँखी छलके लागथे। गदगद-गदगद ऑंसू निकलथे। भलल-भलल रो डारथे।
अब गीत-संगीत बाजा मोहरी मा आरती होइस। अब भोग लगाये के तियारी करत हाबे। आज उदुप ले अलहन होगे छत में चिपके छिपकली हा जम्मो छप्पन भोग मा गिरगे। अउ पीड़हा मा माड़े जम्मो परसाद ला अशुद्ध कर दिस।
पुजारी मुड़ धरके ठाड़े होगे। अब का करही कृष्ण के लीला आय-छलिया किशन। अशुद्ध चढ़ावा ला थोरे चड़ाही।
खुदुर- फुसुर होये लागिस। लाखो रुपिया के रसीद कटइया अउ छप्पनभोग के चढ़इया के मन उदास होगे। अहिल्या खिचड़ी ला धरे हाबे। पाछू दिन बरोबर झन दुतकारे कोनो हा अभिन घला डर्रावत हाबे। भगवान जानथे अहिल्या भलुक घीव नइ खावय फेर खिचरी ला घीव डार के बनाये हाबे। मोट्ठा चाँउर ला खा लेथे फेर भगवान बर दुबराज के खिचरी लाने हे।
"ये दे मेंहा लाने हँव आरुग खिचरी ।''
अहिल्या किहिस अउ भीड़ ला चीरत भगवान के आगू मा आके ठाड़े होगे। पुजारी के मन होइस भगाये के फेर सोना बरोबर चमकत पीतल के बटलोही मा ममहावत खिचरी हाबे सुनिस अउ चेहरा मुचकाये लागिस।
माता कर्मा के खिचरी कृष्ण बरन धरे जगन्नाथ ला अमरगे रिहिन अब। पाँच बच्छर के साध पूरा होगे। आँखी ले तरतर-तरतर आँसू आवत हाबे अब अहिल्या के। भलभल-भलभल अउ रोवत हे।
"मोर बेटी !''
"मोर लाली !''
"मोर किशनभगवान !''
अंतस कलपत हाबे अउ पडपीड़-पडपीड़ पढ़त हाबे अहिल्या हा।
"ले दाई ! अब चुप रहा। जम्मो भीड़ अब खलखल ले झर गे। चल हमू मन अब घर जाबो।''
मनराखन समझावत हे हलु-हलु पीठ मा थपकी देके। सुडुक-सुडुक करिस दाई हा अउ फेर रोये लागिस कल्हर-कल्हर के। चारो खूंट ला देखिस अब कोनो नइ हावय। एक्का दुक्का मनखे बाचीस।
उदुप ले अपन सेठ ला देखिस। चमचमावत गाड़ी ले उतर के आवत हाबे। चढ़ोत्तरी के जम्मो पइसा ला बैंक मा जमा करही सेठ हा।
"दान दक्षिणा कर बे मनराखन तभे सुनही भगवान हा ! बिनती ला फोकट नइ सुने।''
सेठ आय।
रटफिट- रटफिट सोज्झे जोत देंव अइसे लागिस मनराखन ला फेर कलेचुप होगे। एक बेर पांव-पैलगी, जोहार-भेट अउ करिस दुनो कोई। अउ अब जुच्छा बटलोही ला धरके लहुटत हाबे अपन घर जाये बर। सीढ़ियां उतरत हाबे कि गुरतुर आरो ला सुनिस।
"दाई...!''
"भाई....!''
वोहा तीर मा आगे अब लकर-धकर रेंगत दउड़त। देखिस अब ससन भर ते देखते रहिगे मनराखन अउ दाई अहिल्या हा। मोटियारी लाली आवय खाकी ड्रेस पहिरे। खाँध मा सितारा चमकत हाबे अउ माथ मा शेर बिराजे हे। इंडियन आर्मी के सिपाही लाली अब सौहत ठाड़े हाबे आगू मा
"मोर बेटी ...!''
"मोर बहिनी ...''
पोटार लिस अपन बहिनी,अपन बेटी ला मनराखन अउ दाई अहिल्या हा।
"बिन बताये काबर चल देये रेहेस टूरी !
"कहाँ चल दे रेहेस बहिनी !
".....अउ कोन ड्रामा के ड्रेस ला पहिर डारे हस रे ?''
आनी-बानी के सवाल सुन के मुचकावत रिहिस लाली हा।
मेंहा तुंहर मन ले भलुक दुरिहा गेये रेहेंव फेर दुरियाये नइ रेहेंव। मोर सहेली रंजना संग गोठ बात करत रेहेंव बेरा-बेरा मा। हाल चाल जान डारव तुंहर मन के। इंडियन आर्मी के ट्रेनिंग मा गेये रेहेंव अट्ठारा महीना के। पूरा कोर्स करे में ढ़ाई बच्छर होगे। तुमन ला तो बताये रेहेंव बेंगलोर जाहू कहिके। तूही मन नइ भेजेव। वोकरे सेती तुमन ला थोकिन बिसरा के भारत माता ला मया करत रेहेंव।''
मुचुर-मुचुर मुचकावत किहिस लाली हा। अहिल्या गुर्री-गुर्री देखत रिहिस।
"जादा झन खिसिया दाई ! परसाद खवा अब ।''
लाली किहिस अउ बटलोही ला धर लिस। बटलोही तो जुच्छा हाबे। अउ बने देखिस अँजोर मा एक दाना खिचरी चिपके रिहिस। लाली निकालिस अउ खा लिस। तृप्त होगे भगवान किशन बरोबर। वहुँ तो द्रोपदी के एक दाना चाउर मा पेट भरे रिहिन।
सिरतोन कतका सुघ्घर दिखत हाबे मुचकावत लाली हा । दाई अघा जाथे। कभु लहरावत पिंयर धजा पताका ला देखथे तब पिंयर ओन्हा पहिरे खिचरी खाके मुचकावत बाके-बिहारी बंशी बजईया ला। सिरतोन माता कर्मा के खिचरी ला खा के अघा गे दुलरवा कान्हा जी हा। ....अउ अहिल्या के राम घला आगे लाली के बरन मा।
------//-------//--------//------
चन्द्रहास साहू द्वारा श्री राजेश चौरसिया
आमातालाब रोड श्रध्दानगर धमतरी
जिला-धमतरी,छत्तीसगढ़
पिन 493773
मो. क्र. 8120578897
Email ID csahu812@gmail.com
No comments:
Post a Comment