संस्कृति के दरपन म छत्तीसगढ़
हमर देश संस्कृति के देश आय. इहाँ के हर भाग के, हर राज के अउ हर गाँव के अपन संस्कृति हे. वोकर अपन मौलिक संस्कृति हे. इही मौलिक संस्कृति ह वोकर असल म चिन्हारी के माध्यम बनथे. हमर छत्तीसगढ़ राज के घलो अपन मौलिक संस्कृति हे, जेला हम इहाँ के मूल संस्कृति या कहिन पारंपरिक संस्कृति के रूप म जानथन, एकर चिन्हारी करथन. आवव आज इही मूल संस्कृति, जेन आने राज अउ देश के चलागन ले अलग दिखथे, तेमा झॉंके के उदिम करथन.
नवा बछर-
वइसे तो पूरा दुनिया म अंगरेजी नवा बछर 1 जनवरी ल प्रशासनिक कामकाज के रूप म अपनाए जावत हे, तभो हर देश के अपन कालगणना पद्धति हे अउ वोकरे मुताबिक सबके अपन अपन नवा बछर हे. हमर देश म चैत्र शुक्ल एकम ल बहुत जगा नवा बछर के रूप म मनाए जाथे, फेर हमर छत्तीसगढ़ म बैशाख शुक्ल तीज जेला हम अक्ती परब के रूप म जानथन, तेला नवा बछर के रूप म मनाए जाथे. अक्ती परब के दिन ही इहाँ कृषि संस्कृति के शुरुआत होथे. गाँव के बइगा के मार्गदर्शन म नवा फसल के बोवाई के शुरुआत होथे, जेला इहाँ के भाखा म 'मूठ धरना' कहे जाथे.
अक्ती परब के दिन ही इहाँ खेती-किसानी ले जुड़े कृषि मजदूर जेला कमइया, बनिहार अउ सौंजिया आदि के नॉव ले जाने जाथे, उंकर मन के नवा बछर खातिर नियुक्ति होथे. अक्ती परब के दिन ही इहाँ पौनी-पसारी के रूप म चिन्हारी करे जाने वाला वर्ग के लोगन के घलो नियुक्ति होथे. मौसमी फल आमा, अमली आदि ल टोरे अउ खाए के चलागन घलो अक्ती के दिन ही होथे. नवा करसी म पानी भर के पीना, झुलसत गरमी ले बॉंचे खातिर घर कुरिया के खटिया ल अंगना या बाहिर म निकाल के रतिहा बेरा सूते के शुरुआत घलो अक्ती परब ले ही चालू होथे.
चातुर्मास अउ बिहाव-
हमर देश के संस्कृति म सावन, भादो, कुवांर अउ कातिक महीना के चार महीना ल चातुर्मास के रूप म मनाए जाथे अउ ए चार महीना ल बर-बिहाव जइसन शुभ कारज खातिर अशुभ माने जाथे या कहिन- आध्यात्मिक रूप ले उचित नइ माने जाय. काबर ते एकर संबंध म ए मान्यता हे के भगवान विष्णु ह ए चार महीना म सुरताय बर चल देथें.
अब जब हम छत्तीसगढ़ के मूल संस्कृति ल देखथन त इही चार महीना ह सबले शुभ अउ पवित्र जनाथे. ए चातुर्मास के चार महीना म हरेली, भीमा-भीमिन के बिहाव, नागपंचमी अउ राखी परब, तीजा, पोरा, कमरछठ, आठे कन्हैया, पितरपाख, नवरात, दंसहरा, गौरा-ईसरदेव बिहाव, सुरहुत्ती, मातर-मड़ई जइसन जम्मो प्रमुख परब मन आथें.
सबले बड़का बात इही चातुर्मास म इहाँ के दू प्रमुख देव मन के बिहाव के परब घलो मनाए जाथे. सावन महीना म भीमा-भीमिन के बिहाव के परब मनाए जाथे त कातिक अमावस के गौरा-ईसरदेव के बिहाव परब. मतलब ए के छत्तीसगढ़ के मूल संस्कृति म चातुर्मास के शुभ अशुभ वाले परंपरा ह मान्य नइए. इहाँ के लोक देवता मन चार महीना न तो थिरावंय अउ न सूतंय, भलुक जागृत रहिथें उहू म निरंतर.
तीजा-पोरा
देवी पार्वती द्वारा भगवान भोलेनाथ ल पति के रूप म पाए के प्रतीक स्वरूप तीजा परब ल देश के लगभग जम्मो क्षेत्र म अलग-अलग नॉव अउ तिथि म मनाए जाथे, फेर छत्तीसगढ़ म ए परब ल जेन किसम के मनाए जाथे वइसन अउ कोनो क्षेत्र म नइ दिखय.
छत्तीसगढ़ म तीजा परब ल मनाए खातिर विवाहित बेटी-माई मन अपन-अपन मइके आथें. मइके म आके कोनो परब ल मनाए के परंपरा देश के अउ कोनो भाग म देखे म नइ आय. ए प्रसंग के संदर्भ म बताए जाथे के देवी पार्वती ह जब शिव जी ल पति के रूप म पाए खातिर कठोर तप करीस, तब वो कुवांरी रिहिसे, अर्थात अपन पिता जी के घर म रिहिस. एकरे सेती हमर इहाँ ए परब ल मनाए खातिर तीजहारीन मन अपन-अपन पिता के घर अर्थात मइके आथें.
तीजा के संग इहाँ पोरा परब ल जोड़ के संयुक्त रूप ले तीजा-पोरा कहे जाथे. जबकि शिव जी के प्रमुख गण नंदीश्वर के जन्मोत्सव परब पोरा ह भादो अमावस अर्थात तीजा जेन भादो अंजोरी तीज के मनाए जाथे, वोकर ले दू दिन पहिली आथे.
छत्तीसगढ़ के मूल संस्कृति म पोरा के घलो अबड़ेच महात्तम हे. तीजा माने बर अवइया तीजहारीन मन के कोशिश रहिथे के उन पोरा के दिन ही अपन-अपन मइके पहुँच जावंय, तेमा पोरा पटके के नेंग म उन संघर जावंय.
पोरा परब के दिन छत्तीसगढ़ म धान के फसल ल सधौरी खवाए के नेंग करे जाथे. जइसे नवव्याहता बेटी ह पहिली बार गर्भ धारण करथे, त मइके वाले मन वोला सातवाँ महीना म सधौरी खवाथें, वइसने धान के फसल जब गर्भ धारण करथे तब उहू ल सधौरी खवाए जाथे. छत्तीसगढ़ी म धान के गर्भ धारण करना ल पोठरी पान धरना या पोठराना कहे जाथे. पोरा परब के दिन इहाँ के सब किसान मन माटी के बने पोरा म घर म बने रोटी-पीठा मनला भर के अपन-अपन खेत लेगथें अउ धान ल समर्पित करथें.
भादो के अंधियारी पाख म इहाँ कमरछठ परब मनाए जाथे. ए परब ह शिव जी के बड़का बेटा कार्तिकेय के जन्मोत्सव परब आय. संस्कृत भाखा के कुमार षष्ठ शब्द ह अपभ्रंश होके छत्तीसगढ़ी म कमरछठ होगे हे. एकरे सेती ए दिन कमरछठ उपास रहइया महतारी मन सगरी कोड़ के शिव अउ पार्वती के पूजा करथें, अउ उंकर ज्येष्ठ पुत्र अउ श्रेष्ठ संतान बरोबर अपनो संतान के कामना करथें. फेर आजकल ए कमरछठ परब ल हलषष्ठी के रूप म प्रचारित कर के बलराम जयंती के रूप म बताए जावत हे. ए ह सही नोहय.
देश के आने भाग ले अवइया लोगन मन अपन संग लाने पोथी-पतरा अउ संस्कृति संग सांझर-मिंझर कर के इहाँ के मूल परब ल आने रूप दे के सरलग प्रयास करत हें. हमला अइसन लोगन के चरित्तर ले बांच के अपन मूल ल जीवित रखे अउ प्रचारित करे के उदिम करत रहना हे.
भादो अंधियारा अष्टमी के मनाए जाने वाला भगवान कृष्ण के जन्मोत्सव परब जन्माष्टमी ल छत्तीसगढ़ म आठे कन्हैया के रूप म मनाए जाथे. छत्तीसगढ़ म जब नवा लइका मन अवतरथें त सबले पहिली इहाँ सूपा भर धान म वो लइका ल सूताए जाथे. ए परंपरा ह भगवान कृष्ण संग जुड़े हे. कृष्ण ह जब मथुरा के जेल म जनम लिस त वोला टोपली म धर के वोकर सियान वासुदेव ह गोकुल लेगे रिहिसे. एकरे प्रतीक स्वरूप इहाँ नवा अवतरे लइका ल धान ले भरे सूपा म सूताए जाथे.
भादो महीना के अंजोरी पाख म चउथ के दिन भगवान भोलेनाथ के छोटका बेटा अउ सब गण मन के नायक गणेश जी के जन्मोत्सव परब मनाए जाथे. अब पूरा देश के संगे-संग छत्तीसगढ़ म घलो गणेश परब ल पूरा दस दिन के उत्सव के रूप म मनाए जाथे. जगा-जगा गणेश पंडाल सजा के कतकों किसम के सांस्कृतिक कार्यक्रम मन के आयोजन करे जाथे.
हम पूरा भादो महीना म मनाए जाने वाला परब मनला देखिन त ए महीना ल शिव-पार्षद मन के महीना कहि सकथन.
नवा खाई-
खरीफ के नवा फसल ल अपन इष्टदेव ल समर्पित करे के परब आय नवा खाई परब ह. हमर छत्तीसगढ़ म ए नवा खाई परब ल अलग-अलग वर्ग के लोगन तीन अलग-अलग महीना अउ तिथि म मनाथें, जे ह छत्तीसगढ़ म सांस्कृतिक विविधता के ठउका उदाहरण आय.
छत्तीसगढ़ के वो भाग जेन परोसी राज ओडिशा ले जड़े हे, ए भाग के लोगन जेन उत्कल संस्कृति ल जीथें ए मन नवा खाई परब ल भादो महीना म गणेश चतुर्थी के बिहान भर ऋषि पंचमी के दिन मनाथें.
अइसने इहाँ के मूल निवासी आदिवासी समाज ह ए नवा खाई परब ल कुंवार महीना के अंजोरी पाख म आठे/नवमी के मनाथे.
इहाँ के मैदानी भाग म रइहया लोगन मन नवा खाई परब ल कातिक महीना के अंजोरी पाख म एकम के दिन अन्नकूट के रूप म मनाथें.
सबो वर्ग के लोगन अपन नवा फसल ल अपन देवता ल समर्पित करथें, फेर अलग अलग तिथि म.
दंसहरा-
कुंवार महीना के अंजोरी पाख म दसमी तिथि के दिन मनाए जाने वाला परब दशहरा ह असल म दंस+हरा अर्थात दंसहरा आय.
इहाँ ए जानना जरूरी जनाथे के विजयदशमी अउ दंसहरा दू अलग अलग परब आय, फेर हमर मन के अज्ञानता के सेती दूनों ह सांझर-मिंझर होके एक बनगे हे.
विजयदशमी के संबंध म तो सबोच जानथें के ए ह भगवान राम के द्वारा आततायी रावण ऊपर विजय प्राप्त करे के परब आय. जबकि दंसहरा ह भगवान भोलेनाथ द्वारा समुद्र मंथन ले निकले विष के पान के परब आय.
हमन सब जानथन के देवता अउ दानव द्वारा करे गे समुद्र मंथन ले जब विष निकलिस तब सबो झन एती-तेती भागे लागीन. इही बेरा म महादेव ह जगत कल्याण खातिर वो विष के पान कर के अपन कंठ म बसा लिए रिहिन हें. इही घटना के सेती महादेव ल नीलकंठ कहे गे रिहिसे. काबर के जहर ल अपन कंठ म धारण करे के सेती उंकर कंठ ह नीला परगे रिहिसे.
कुवांर महीना के अंजोरी पाख के दसमी तिथि ह उही तिथि आय, जे दिन भोलेनाथ ह अपन कंठ म विष ल धारण करे रिहिन हें. एकरे सेती ए दंसहरा तिथि के दिन आज घलो नीलकंठ नॉव के चिरई जेला हमन छत्तीसगढ़ी म टेहर्रा चिरई कहिथन एला देखई ल शुभ माने जाथे. काबर ते ए दिन ए नीलकंठ पक्षीय ल शिव जी के प्रतीक स्वरूप माने जाथे. जानकारी रहय के ए नीलकंठ पक्षी के संबंध ह राम-रावण वाले विजयदशमी संग कोनो किसम के नइए.
ए दंसहरा तिथि के विष हरण के पांच दिन बाद फेर समुद्र मंथन ले अमृत के प्राप्ति होए रिहिसे, एकरे सेती हमन आज घलो सब दंसहरा के पांच दिन बाद शरद पूर्णिमा के दिन अमृत प्राप्ति के परब मनाथन. खीर बना के चंदा के अंजोर म मढ़ाथन अउ अधरतिहा के पाछू फेर प्रसाद के रूप म अमरित बांटथन.
सुरहुत्ती-
छत्तीसगढ़ म देवारी परब ल तीन दिन के मनाए जाथे, जबकि देश के आने भाग मन म पांच दिन के. हमर छत्तीसगढ़ म कातिक अमावस के सुरहुत्ती मनाए जाथे, इहीच दिन रतिहा बेरा गौरा-ईसरदेव के बिहाव परब घलो मनाए जाथे. सुरहुत्ती के बिहान भर कातिक अंजोरी एकम के गोवर्धन पूजा करे के संग गाय-गरुवा मनला लोंदी/ खिचरी खवाए जाथे अउ एकर बिहान भर कातिक अंजोरी दूज के मातर परब मनाए जाथे. मातर परब के संग ही इहाँ मड़ई जागरण के नेंग ल घलो पूरा करे जाथे, जेहा मड़ई-मेला के रूप म अलग अलग गाँव अउ मेला ठउर मन म फागुन अंधियारी तेरस अर्थात महाशिवरात्रि तक चलथे.
छत्तीसगढ़ म कातिक अमावस के दिन मनाए जाने वाला सुरहुत्ती परब ह दीपदान के परब आय. ए दिन जम्मो गाँव के लइका मन अपन-अपन घर-दुवार, तरिया-नदिया, बारी-बखरी, कुआँ-बावली के संगे-संग गाँव के जम्मो देवी-देवता मन म दीया मढ़ाथें. एकर पाछू फेर अपन पारा-परोस अउ हितु-पिरितु मन घर घलो दीया मढ़ाए बर जाथें.
सुरहुत्ती के दीया ल पहिली नवा चॉंउर के पिसान ल सान के बनाए जाय. हमन लइका राहन त ए चॉंउर पिसान के बने दीया जब तेल अउ बाती लगा के बारे के बाद बुता जावय त वो दीया ह बने सेंकाय असन हो जावय, तेला कलेचुप निकाल-निकाल के खा जावत रेहेन. आजकाल चॉंउर पिसान के दीया के चलन थोरिक कम देखे म आथे.
सुरहुत्ती के रतिहा ही आधा रात ले गौरा-ईसरदेव के बिहाव परब ल मनाए जाथे. ए परब ल लोगन गौरा-गौरी के रूप म जादा सुरता करथें. इहाँ ए जाने के लाइक बात हे, के ए गौरा-ईसरदेव बिहाव ह देवउठनी परब ले दस दिन पहिली होथे, जबकि देश के आने भाग म ए बात प्रचलित हे के देवउठनी के पहिली बर-बिहाव जइसन कोनो शुभ कारज नइ करना चाही. फेर छत्तीसगढ़ के लोक संस्कृति म इहाँ के मुख्य देवता के ही बिहाव देवउठनी ले पहिली हो जाथे, जे हा सांस्कृतिक विविधता के एक सुंदर उदाहरण आय.
छेरछेरा-
संभवतः पूरा देश अउ दुनिया म छत्तीसगढ़ एकमात्र अइसन राज आय जिहां दान देवई अउ दान लेवई ल परब के रूप म मनाए जाथे. ए दिन अमीर-गरीब, छोटे-बड़े, ऊँच-नीच सबके भेद मिट जाथे. सबो मनखे दान मॉंगे बर जा सकथें अउ दान पा सकथें. कतकों कलाकार किसम के लोगन तो नाचत-गावत कुहकी पारत छेरछेरा मॉंगे बर जाथें, छेरछेरा के डंडा नाच तो इहाँ गजबे लोकप्रिय हे. ए दिन छत्तीसगढ़ के एक भी घर या व्यावसायिक संस्थान अइसे नइ राहय, जेन दान मॉंगे बर अवइया ल दान दे ले मना करय.
सामाजिक समरसता के अद्भुत परब छेरछेरा ल मनाए के इहाँ अलग-अलग वर्ग समाज म अलग-अलग कारण ले मनाए के मान्यता हे. आमतौर म ए छेरछेरा परब ल लोगन खरीफ फसल के कटाई अउ मिसाई के बाद एक उत्सव के रूप म मनाए के मान्यता देखब म आथे, जबकि इहाँ के मूल निवासी आदिवासी समाज ह छेरछेरा ल गोटुल/घोटुल के शिक्षा म पारंगत होए के पाछू तीन दिन के परब के रूप म मनाथे. उहें इहाँ के सब्जी उत्पादक मरार समाज ह ए छेरछेरा परब ल शाकंभरी जयंती के रूप म मनाथे. मोला अपन साधना काल म जेन ज्ञान मिले रिहिसे वोकर मुताबिक ए छेरछेरा परब ह शिव जी द्वारा बिहाव के पहिली पार्वती के परीक्षा ले खातिर नट बन के जा के भीक्षा माॅंगे के प्रतीक स्वरूप आय. एकरे सेती ए दिन नट जइसन विविध संवांगा कर के लोगन नाचत गावत कुहकी पारत दान माँगे बर जाथें.
अलग-अलग वर्ग के छेरछेरा मनाए के मान्यता भले अलग-अलग हे, फेर सबोच झन एला पूस पुन्नी के दिन ही मनाथें. छेरछेरा के माध्यम ले बहुत अकन लोककल्याण के कारज घलो हो जाथे.
छत्तीसगढ़ के बहुत अकन गाँव मन म रामकोठी भरे के परंपरा हे. छेरछेरा के दिन ही ए रामकोठी म सकेले धान अउ रुपिया आदि के हिसाब-किताब होथे, अउ जे मनखे एमा के सकलाए धन ल उधारी म लेना चाहथें, उनला दिए जाथे. जे मन उधार लेगे रहिथें उंकर मन जगा धन वापस जमा करवाए जाथे.
हमर गाँव नगरगाँव म प्रायमरी शाला तो अंगरेज मन के जमाना ले रिहिसे, फेर मिडिल स्कूल नइ रिहिसे. हमन जब पांचवीं पढ़त रेहेन तभे मिडिल स्कूल खोले के आदेश आइस, फेर शर्त ए रहिस के मिडिल स्कूल खातिर भवन ल गॉंव वाले मन बना के देवय. तब हमर गुरु जी मन हमन ल गाँव भर बेंड बाजा बजवावत छेरछेरा मंगवाए रिहिन हें. गाँव वाला मन घलो बढ़-चढ़ के दान दिए रिहिन हें, तब मिडिल स्कूल खातिर भवन घलो बने रिहिसे अउ कक्षा लगे के शुरुआत घलो होए रिहिसे. मोर जिनगी म छेरछेरा के ए गौरवशाली रूप के हमेशा सुरता म रइही. हमन गाँव भर घूम-घूम के छेरछेरा तो माँगे रेहेन संग म भवन निर्माण के बेरा श्रमदान घलो करे रेहेन.
कामदहन-
छत्तीसगढ़ म फागुन पुन्नी के होली के जेन परब मनाए जाथे, वो ह होलिका दहन के नहीं, भलुक कामदहन के परब आय. एकरे सेती इहाँ होले डांड़ ल बस्ती ले बाहिर रखे जाथे, अउ होले डांड़ तीरन माईलोगिन मन के जाना मना रहिथे. ए बात ल ठउका चेत करे के लाइक हे. काबर ते देश के आने भाग म होलिका दहन स्थल ल बस्ती के बीच म या आसपास म रखथें अउ माईलोगिन मन होलिका के पूजा करे बर घलो जाथें.
छत्तीसगढ़ म मनाए जाने वाला परब ल समझे बर हमला शिव जी के द्वारा कामदहन करे गे रिहिसे वो प्रसंग ल सुरता करे बर लागही.
देवी सती ह जब अपन पिता राजा दक्ष द्वारा करे गे यज्ञ म शिव जी ल आमंत्रित नइ कर के जेन अपमान करे रिहिसे, तेकर सेती सती ह यज्ञ कुंड म ही अपन देंह के त्याग कर दिए रिहिसे. एकरे सेती शिव जी ह घनघोर तपस्या म लीन होगे रिहिन हें. तब ताड़कासुर ह ब्रम्हा जी द्वारा शिव पुत्र के हाथ म ही मरे के वरदान माँग के भारी अतलंगी करत रिहिसे.
इही ताड़कासुर ले मुक्ति पाए खातिर देवता मन शिव जी के तपस्या भंग करे बर कामदेव ल भेंजथें, तेमा शिव तपस्या ले उठय, देवी पार्वती संग बिहाव करय अउ शिव पुत्र के जनम होय, जे ह अतलंगी करत ताड़कासुर के संहार करय.
देवता मन के अनुरोध करे म कामदेव अपन सुवारी रति संग शिव तपस्या भंग करे बर बसंत ऋतु के मादकता भरे मौसम के चयन करथे. हमर छत्तीसगढ़ म बसंत पंचमी के दिन होले डांड़ ठउर म अरंडी नॉव के पेड़/पौधा ल गड़ियाय के जेन परंपरा हे, वो ह असल म कामदेव के आगमन के प्रतीक स्वरूप ही आय. एकरे संग फेर होले डांड़ ठउर म वासनात्मक नृत्य-गीत के चलन चल परथे, जे हा फागुन पुन्नी तक सरलग चलथे. काबर के फागुन पुन्नी के ही दिन भोलेनाथ ह अपन तीसरा नेत्र ल खोल के कामदेव ल भसम करे रिहिन हें.
आप गुनव- होले परब म वासनात्मक नृत्य-गीत के जेन चलन चलथे, एकर ले होलिका ले का संबंध हे? फेर बसंत पंचमी ले लेके फागुन पुन्नी तक लगभग चालीस दिन के परब मनाए के घलो होलिका ले का संबंध हे? होलिका तो एक दिन म चीता रचवाइस, वोमा आगी ढीलवाइस अउ खुदे जल के भसम होगे.
छत्तीसगढ़ के होले परब म होलिका दहन ले संबंधित कोनो चिन्हा नइ दिखय. हमर छत्तीसगढ़ म पहिली होले परब म किसबीन नचवाए के घलो चलन रिहिसे. ए किसबीन नाच ह असल म रतिनृत्य के प्रतीक स्वरूप होवत रिहिसे.
संगी हो मैं हमेशा कहिथौं छत्तीसगढ़ के संस्कृति सृष्टि काल के संस्कृति आय, जेला हमला वोकर वास्तविक रूप म फेर से लिख-पढ़ के निमार-छांट के सबके आगू म राखे के जरूरत हे. कुछ लोगन आने आने क्षेत्र ले अवइया लोगन संग आए संस्कृति अउ ग्रंथ ल छत्तीसगढ़ के सांस्कृतिक चिन्हारी संग जोड़ के बताए के उदिम करत हें. हमला अइसन लोगन अउ उंकर पोथी-पथरा ले बांच के रेहे बर लागही, तभी हमर मूल सांस्कृतिक पहचान, हमर अस्मिता के उज्जर अउ सुग्घर रूप सुरक्षित रहि पाही.
जय छत्तीसगढ़.. जय छत्तीसगढ़ी
-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो/व्हा. 9826992811
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