Friday, 17 November 2023

मातर मड़ई के जोहार..

 मातर मड़ई के जोहार..

  हमर छत्तीसगढ़ म देवारी परब ल तीनेच दिन के मनाए जाथे. कातिक अमावस के सुरहुत्ती अउ गौरा-ईसरदेव बिहाव परब. बिहान भर नवा खाई (अन्नकूट) अउ गोवर्धन पूजा अउ वोकर बिहान भर मातर परब. हमर  इहाँ के परंपरा म मातर के दिन ही मड़ई जगाए के परंपरा ल घलो पूरा करे जाथे. वइसे तो मड़ई ल सुरहुत्ती के दिन बनाए जाथे, अउ फेर घर के तुलसी चौरा या कोनो कुआँ तीर मढ़ा दिए जाथे, फेर वोला मातर के दिन ही गाँव के सियान मन बाजा-गाजा संग परघा के लेगथें, इही ल हमन मड़ई जगाना कहिथन. एकर बाद फेर तहाँ ले हमर इहाँ मड़ई अउ मेला के सरलग उमंग उत्साह चालू हो जाथे, जेहा महाशिवरात्रि म जाके पूरा होथे.

    हमर गाँव म गोवर्धन पूजा के बिहान भर मातर परब मनाए के रिवाज हे. गाँव भर के जतका गरुवा मन के बरदी हे, सबो ल दइहान ठउर म सकेले जाथे अउ जब गाँव भर के लोगन सकला जथें, त फेर वो सकलाए सबो गरुवा मनला वो जगा आंवर-भांवर घुमाए जाथे. ए बेरा म गाँव के पहाटिया समाज डहर ले दइहान ठउर म एक पूजा स्थल बनाए जाए रहिथे, जेला कतकों झन खुड़हर देव स्थापना करना घलो कहिथें. ये खुड़हर देव स्थापना या पूजा ठउर बनाए के बुता ल गोवर्धन पूजा के दिन ही पूरा कर लिए जाए रहिथे. उही मेर बोकरा के बली दिए के नेंग ल घलो पूरा करे जाथे. कतकों बछर बोकरा के बली के बलदा कोंहड़ा ल काटत घलो देखे हावन. अपन विशेष मयारुक गाय या भइंस ल वोमन ए बेरा म सोहाई घलो बांधथें.

    इही दिन हमर इहाँ मड़ई मनाए के घलो परंपरा हे. जानकर मन के अइसन कहना हे, के मड़ई ल खरीफ फसल के लुआए के बाद वोकर उल्लास के रूप म मनाए जाथे. एला अलग- अलग गाँव म अलग-अलग दिन मनाए जाथे, तेमा आसपास के दूसर गाँव वाले मन घलो अपन अपन गाँव के मड़ई ल धर के ए उल्लास म संघर सकंय. एकरे सेती गाँव के बइगा ह पंच सरपंच अउ आने सियान मन संग दिन तिथि जोंग के तीर तखार के सबो गाँव म एकर आरो कराथे.

   हमर गाँव नौकरीपेशा वाले गाँव आय तेकर सेती मातर के दिन ही मड़ई के आयोजन करे जाथे, तेमा रोजी रोजगार वाले मन मड़ई मना के बिहान भर अपन अपन बुता म संघर सकंय. 

  मड़ई म गाँव के जतका ग्राम्य देवता होथे, वोकरे मन के नांव म अलग-अलग मड़ई उठाए जाथे. ए सबमें एक माई मड़ई घलो होथे, जेला माई मड़ई या कंदई मड़ई घलो कहिथें. हमर गाँव म ए माई मड़ई ल मछिन्दर बबा ह उठावय. गाँव म हमरे पारा म उन राहंय. उंकर असली नॉव ल तो कभू जान नइ पाएन, हमन तो उनला मछिन्दर बबा अउ उंकर सुवारी ल मछिन्द्रिन दाई ही काहन. वोमन जात के केंवट रिहिन. उंकर मन के सरग सिधारे के बाद उंकर वंशज मन ही ए परंपरा के निर्वाह करथें.

   अइसे कहे जाथे, के मड़ई ह अच्छा फसल होए के उल्लास म ही मनाए जाथे. अउ अच्छा फसल जब वरुण देवता प्रसन्न होके भरपूर पानी बरसाथे, त होथे. एकरे सेती मड़ई परब के माई मड़ई ल केंवट या ढीमर समाज के लोगन ही उठाथें, काबर ते एमन वरुण देवता के उपासक होथें, अइसे माने जाथे.

   मातर मड़ई के परब म राउत समाज के भागीदारी अउ उत्साह ल देखतेच बनथे. एकर मन के बिना ए परब के रौनक के कल्पना घलो अबीरथा हे. जब राउत भाई मन अपन विशेष संवागा कर के गंड़वा बाजा संग दोहा पारत नाचथें, त अद्भुत दृश्य उपस्थित हो जाथे... 

पान खायेन सुपारी मालिक,

सुपारी के दुई कोर.

तुम तो बइठो रंगमहल में,

जोहार लेवव मोर.


अवत दिएन गारी गोढ़ा

जावत दिएन असीस.

दूधे खाव पूते बिहाव,

जीयव लाख बरीस.


  मातर परब संग मड़ई जागरण के जोहार अउ बधाई 🙏🌹😊

-सुशील भोले

संजय नगर, रायपुर

मो/व्हा. 9826992811

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