गऊ माता के इच्छा
सरग म गऊ महतारी ला मनाये बर ब्रम्हाजी लगे रहय । गऊ माता हा धरती म जनम धरे बर बिलकुलेच मना कर दे रिहिस । ब्रम्हाजी कारण पूछिस तब गऊ माता बतइस - धरती के रहवइया मन महू ला मनखे समझथे अऊ अपने कस … खाये बर चारा देथे । मेहा मनखे थोरहे आँव ... तिहीं बता , मोला पचही तेमा ? मोर रेहे बर .. बड़े बड़े गौशाला बना देथे ... हमन नानुक कोठा अऊ परसार के रहवइया आवन .. ओतेक बड़ जगा के आक्सीजन ... हमन ला बर्दाश्त नइ होवय , साँस ले बर तकलीफ शुरू हो जथे । इलाज पानी तो अतेक कर देथे के .. झिन पूछ ...। दूध नइ आही त सुजी , बाढ़हे बर सुजी ....... । बछरू बियाये बर सुजी .....। मोला अस्पताल सुजी पानी दवई बूटी हा डर लागथे ...... कहूँ मनखे मन कस घिसट घिसट के झन मरँव .. । ब्रम्हाजी किथे – तोला तो खुश होना चाही के .... तोर बहुतेच ख्याल राखथे धरती के मन .... ? गऊ माता किथे – खुश होके जातेंव ... फेर मोर का उपयोगिता हे उहाँ ... ? मोर दूध के कन्हो आवश्यकता निये .... मिठई बनाये बर यूरिया आ चुके हे । मोर गोबर कन्हो ला नइ चाही । छेना के जगा गेस सिलेंडर म जेवन चुरथे । उपज बढ़होये बर ... गोबर खातू के जगा .... रासायनिक कचरा हा खातू बन चुके हे । अब तो मोला बछरू जनमे के घला जरूरत निये ... मनखे के पेट ले ... भुकुर भुकुर के खवइया .... कतको गोल्लर ..... जनम धर डरे हे । मोर पिला के का आवश्यकता हे अब तो खेती करे बर ...... मशीन निकल चुके हे ।
ब्रम्हाजी किथे – जे गऊ पोसथे तेला सरग मिलथे .... तैं नइ जाबे त .. मनखे मन कोन ला पोस के सरग म आहीं । गऊ माता किथे – धरती म पोसे पाले बर कुकुर हाबे .. । रिहिस बात तोर सरग के .. त सुन भगवान , जे कुकुर पोसथे तेकर घर , तोर सरग ले कतको सुंदर होथे .... । जीते जी सरग भोगइया मनखे ला मरे के पाछू ... तोर सरग के काये आवश्यकता । एक बात अऊ ... मेहा धरती म जाथँव त .... मोला कन्हो पोसय निही ..... मेंहा पोसथँव ... कतको झिन ला जियत ले अऊ कतको झिन ला ..... मरे के बाद .... । ब्रम्हाजी पूछिस - कइसे ? गऊमाता किथे – जियत रहिथँव त .... मोर नाव के सरकारी लछमी म .... कतको मनखे पल जथे । मर जथँव त .... मोर लाश म रोटी सेंकत ..... कतको के जिनगी सँवर जथे ..... ।
ब्रम्हाजी किथे – जनम धरे के बेरा लकठियावत हे ..... तैं जा बेटी ... ? गऊ माता किथे – तोर आदेश ...... मुड़ी नवा के स्वीकार हे फेर ...... मोरो एक ठिन शर्त हे ....... में उहां गाय के पेट ले जनम नइ धरँव ...... । उदुपले अइसन अलकरहा बिचार सुन ....... सुकुरदुम होके ब्रम्हाजी मुहुँ फार दिस ..... । पछीना पछीना होके ... सियान थकथकागे । हावा धुँकत .... चित्रगुप्त उपाय बतइस – येला दू गोड़िया बना देथन । वइसे भी धरती म येहा साधारन दू गोड़िया कस .... उपयोगिता विहीन होके ..... बिगन हुँके भुँके भुगतत हे .... । दू गोड़िया बन जही ते कम से कम मुहुँ तो दिखहि ....... । ब्रम्हाजी किथे – अतेक सिधवी ला काकरेच पेट म डार देबे .... ? मुहुँ ला काये करही देखाके .. ? चित्रगुप्त किथे – तैं ओकर फिकर झिन कर भगवान । में ओकर बेवस्था कर देवत हँव ..... । रिहीस बात मुहुँ के ... येहा बोलय झन कहिके ... जम्मो झन एकर सेवा बजाये के छ्द्म उदिम करही ... । उही समे ले गऊ माता हा जनता के नाव ले जनम धरके आये लगिस अऊ ओकरे कस भुगतत .. जिये मरे लगिस । तभो ले गऊ माता सिर्फ अतके म बड़ खुश हे के .... अब ओला जियत ले दूसर ला पोसे बर नइ लागे .... बल्कि उही ला पोसे के नाव म .... इहाँ के इंद्र मन .... जियत मरत लड़त भिड़त रहिथें ।
हरिशंकर गजानंद देवांगन , छुरा .
No comments:
Post a Comment