**राजभाषा के ओढ़ना ओढ़े मान पाय बर ताकत हे छत्तीसगढ़ी*
छत्तीसगढ़ अपन लोकसंस्कृति अउ परम्परा ले जाने जाथे। अलगे राज के रूप म एकर निर्माण घलव इही लोक संस्कृति अउ लोक परम्परा के पहचान संग होइस। छत्तीसगढ़ ल राज बने २३ बछर होगे अउ छत्तीसगढ़ी ल राजभाषा के दर्जा मिले १६ बछर। फेर छत्तीसगढ़ी ल राजभाषा के रूप म मान नइ मिल पाय हे।
अभी चुनई घरी सबो झन वोट माँगे बर छत्तीसगढ़ी के शरणागत रहिन। सियान-सियानिन मन तिर वोट के फसल काटे बर गुड़ म पागे बरोबर मीठ-मीठ छत्तीसगढ़ी गोठियाइन। रकम-रकम के गीत बजवा के प्रचार-प्रसार करिन। छत्तीसगढ़िया के जम्मो छत्तीसगढ़ियापन ल ओढ़े मुँहाटी-मुहाँटी किंजरिन हें। अइसन सिरिफ अभिन भर नइ पीछू चुनई म घलव करिन। जनता तिर जाके उँकर हितवा बने के कोनो मौका नइ छोड़िन। सबो दल देखावा करे के इहीच दल-दल म बोजाय हें। कोनो सहराय के लइक नइ हे। छत्तीसगढ़ी बर इँकर दाँत हाथी सहीं हे। खाय के आने अउ दिखाय के आने।
वर्तमान सरकार छत्तीसगढ़ियावाद ल लेके अतेक बुता करिन कि लोक संस्कृति, लोक परब मन के प्रति लोगन के झुकाव फेर बाढ़े लगिस। अपन संस्कृति अउ परम्परा बर लोगन के स्वाभिमान जागिस। फेर सरकार लोकसंस्कृति लोक परब के संवर्धन बर जरूरी माध्यम कोति चेत नइ करिन। अपन वोट के खेती करत दिखिस। कोनो भी लोकजीवन के लोकसंस्कृति अउ लोकपरम्परा के संवाहक ओकर भाषा होथे। छत्तीसगढ़ी राजभाषा बने के पाछू उपेक्षित हे। राज-काज के भाषा १६ बछर म नइ बन पाइस। एकर बड़का कारण सरकार के इच्छा शक्ति आय। चाहे सरकार म कोनो दल राहय, जरूरी हे छत्तीसगढ़ी के प्रति उँकर समर्पण दिखय। छत्तीसगढ़ी ल मिले राजभाषा के दर्जा एक ठन कलगी बरोबर शोभायमान हे। ओकर संवर्धन होय अउ राज-काज के भाषा बनय ए दिशा म कोनो किसम के उदिम नइ करिन। आजकाल एक ठन नवा ट्रेण्ड दिखत हे नेता मंत्री मन के, जनता ले छत्तीसगढ़ी म गोठियाय के।
आज छत्तीसगढ़ी एम ए स्तर म पढ़ाय जावत हे। भाषाई दृष्टि ले एकर पढ़ई प्राथमिक कक्षा ले होना चाही, तब कहूँ छत्तीसगढ़ी के विकास सब दृष्टि ले हो पाही। स्कूली शिक्षा म नेंग छूटई पाठ्यक्रम रहे ले न रोजगार के अवसर मिल पावय अउ न ओकर बरोबर पढ़ई च हो पावय। जब तक जेन शिक्षा या विषय ले रोजगार के अवसर नइ मिलही, वो विषय म भला कोनो पढ़ के का करहीं? भाषाई शिक्षा म रोजगार के अवसर शिक्षा संस्थान म ही हो पाथे। आने क्षेत्र म रोजगार के अवसर सरकारी उपक्रम ले ही समझौता कर के बन पाथे। अइसन म जब तक सरकार ऊपर दबाव नइ बनही, तब तक छत्तीसगढ़ी राजभाषा के ओढ़ना ओढ़े मान पाय बर सरकार के मुँह ताकत रही। कहूँ कुर्सी खतरा म जनाही, अउ डूबत बर तिनका के सहारा सहीं छत्तीसगढ़ी उन ल तिनका जनाही, वो दिन नेता मन घलव एला थाम के अपन नैया पार लगाय म चिटिक देर नइ करँय। सरकार राज-काज दूनो बर छत्तीसगढ़ी के मोहताज होवय, वो दिन के अगोरा हे। बेवसाय ले जुड़े मनखे जिंकर घर भीतरी छत्तीसगढ़ी नइ चलय, ओमन घलव अपन व्यापार ल चलाय बर सुघर छत्तीसगढ़ी बोले बर सीख लेवत हें, फेर हम छत्तीसगढ़िया मन अपने बोली-भाखा म बोले ले हीन भाव समझे धर ले हन। अतका घलव नइ देखन कि अलगे भाषा के दू मनखे हमरे बीच अपन बोली-भाखा म कतका गर्व के संग गोठियाथें। जेन दिन छत्तीसगढ़ी बर हमर भीतर के स्वाभिमान जागही, तेन दिन तय हे सरकार अउ सरकारी तंत्र घलव छत्तीसगढ़ी ल राजभाषा के बरोबर मान दिहीं। यहू सुरता रखन कि छत्तीसगढ़ी चुनाव म प्रचार प्रसार के माध्यम हो सकथे, त राजकाज के काबर नइ हो सकय? ....झुकता है आसमान झुकाने वाला चाहिए।
पोखन लाल जायसवाल
पठारीडीह(पलारी)
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