एक कहानी हाना के ...
अड़हा बईद प्राण घात
मोहना महराज ला नवागढ़ क्षेत्र म कोन नइ जानय । नाड़ी बईद के नाम से प्रसिद्ध रहय महराज हा । जेकर हाथ नाड़ी ला छू देतिस तेकर कल्यान हो जतिस । छोटे मोटे बीमारी से लेके भूत परेत मरी मसान तको ला भगाये के दवई बूटी अऊ उपाय धर के दुकान चलइया मोहना महराज के परिवार के खरचा , इही दुकान के भरोसा चल जाय । समे बीतत कतेक दिन लागथे गा ........ समे के साथ मोहना महराज के बुढ़हापा लकठियाये लगिस । ओकर एक झिन बेटा रहय जेहा जिनगी भर बइठे बइठे खाये मारे टकराहा रहय । ओला अपन भविष्य के कन्हो फिकर नइ रहय । मोहना महराज हा अपन बेटा ला समझा समझा के थक गिस । ओहा अपन जिनगी अऊ परिवार के प्रति अतेक लापरवाह रिहिस के , ओकर परिवार के खरचा बर तको मोहना महराज के कमई के आसरा अऊ सहारा रहय । मोहना महराज के बजरंग नाव के नाती रिहिस , धीरे धीरे वहू बड़का होय लगिस । मोहना महराज अपन बेटा ला भलुक नइ सिखा पढ़हा सकिस फेर अपन नाती ला , प्रण करके सिखाये पढ़हाये लगिस ताकि , दुनिया ले जाये के पाछू , ओकर परिवार के खरचा असानी ले चल जावय । बजरंग घला मोहना महराज के बइदई बूता म रूचि लेहे लगिस अऊ ओकर संग दुकान म बइठके बईदई अऊ बइगई बूता सीखे लागिस । मोहना महराज हा मरीज मनला अपन नाती बजरंग के हाथ ले दवई देवाये बर धर लिस । धीरे धीरे बजरंग हा बहुत अकन दवई के नाव अऊ काम ला जान डरिस ।
कुछ समे बाद के बात आय ... मोहना महराज बीमार परगे । खोरोर खोरोर खांसत , घेरी बेरी थूँकत मोहना महराज के दुकान हा , नाती बजरंग के भरोसा होगे । मोहना महराज के उमर , शुरू होवत बिमारी अऊ घर के बाढ़त खरचा हा , नाती बजरंग ला अकेल्ला दुकान सम्हाल के मरीज देखे बर मजबूर कर दिस । भलुक दवई बूटी के सफ्फा बात ला नइ जानय बजरंग हा , तभो ले अपन बबा तिर ले बहुत ज्ञान अर्जित कर ले रहय , ओतका म ओकर काम चल जाय । जे समझ नइ आवय तेला , अपन बबा तिर भितरी म खुसरके पूछ लेवय ।
एक दिन के बात आय । एक झिन मरीज अइस अऊ बतइस के ओकर मलदुवारी बड़ अग्यावत हे । बजरंग बईद हा पूछिस के , काली का खाये रेहे , पेट सफ्फा होहे के निही , नाड़ी ला टमर के देखिस । मरीज बतइस के , बखरी के हरियर हरियर नावा मिरची थोकिन जादा खवागे , पेट तो साफ होगे फेर मलदुवारी हा आगी अंगरा कस अग्यावत बरत हे । बजरंग बईद हा दवई के अलमारी तिर गिस अऊ एक ठिन बड़का सीसी ले तेल निकालिस अऊ छोटे सीसी म ढार के मरीज ला देवत किहिस के , रात रात के सुते के पहिली बने धो धुवा के इही तेल ला पाद तरी बथ बथले चुपर लेबे । दू दिन म माढ़ जही , नइ माढ़ही ते फेर आ जबे । मरीज पइसा दिस अऊ चल दिस ।
तीन दिन बाद ......... । मोहना महराज हा दुकान म थोकिन बइठे लइक होगे रहय । मोहना महराज हा दुकान के आगू म , खुरसी मढ़हाके रऊनिया सेंकत रहय , तइसने म , उही मरीज फेर अइस अऊ मोहना महराज के पाँव पयलगी करत अपन समस्या बतावत किहिस के , को जनी का दवई दिस तोर नाती हा , अगियाये के समस्या तो बिलकुलेच दूरिहागे महराज फेर , अतेक जुड़ जुड़ लागथे के झिन पूछ , आगी तिर म पिछू करके बइठथँव तभो जुड़ कमतियावत निये । मोहना महराज पूछिस – काये दवई दे रिहिस बाबू तोला ? मरीज अपन दवई ला देखइस । मोहना महराज ला नानुक सीसी के दवई समझ नइ अइस , तभे ओकर नाती आगे । मोहना महराज हा अपन नाती ले , उही दवई के सीसी ला मंगइस , जेमे ले ढार के दे रहय । नाती हा उही सीसी ला लानिस । सीसी ला देखके मोहना महराज किथे – मोर नाती हा तोला दवई तो बने देहे । देखा भलुक ............. कइसे जुड़ लागथे तेला देंखँव ........ । मरीज किथे – कइसे गोठियाथस महराज , बाहिर म चार प्रकार के मनखे रेंगत हे कइसे देखांहूँ ..... ? मोहना महराज किथे – अपन पँवतरी ला , बाहिर होय चाहे भितरी ....... , देखाये म का लाज ......... ? मरीज किथे – पँवतरी हा जुड़ लागतिस त पँवतरी ला देखातेंव महराज ........ मोर तो .........। मोहना महराज हा मरीज के बात काटत किथे – पँवंतरी हा जुड़ लागथे त , पँवतरी ला नइ देखाबे त , काला देखा डरबे तेमा जी , बिमारी के जगा ला ठीक ठाक देखाबे तभे तो , तोर सही उपचार होही गा ....... । मरीज किथे – महराज पँवतरी म कहींच बिमारी निये त ओला देखाये के का मतलब ....... । मोर समस्या तो मलदुवारी म हे , उही एकदमेच जुड़ जुड़ लागथे । मोहना महराज समझगे के ओकर नाती हा , मलदुवार के आगी ला ठीक करे बर , जे तेल म पादतरी लगाये के जानकारी लिखे हे उही तेल ला दे दिस .......... । महराज जान डरिस के ओकर नाती हा पाद तरी के मतलब पँवतरी निही बलकी कुछ अऊ समझगे , येमा मरीज के कुछु दोष निये .........। मोहना महराज हा मने मन सोंचे लगिस – अच्छा होइस कुछु खाये के दवई नइ दिस निही ते , मरीज के बंठाधार हो जतिस । नाती के इलाज के इज्जत राखे बर मरीज ला पूछिस – कती तिर लगाये रेहे ये तेल ला अऊ तोला मोर नाती का केहे रिहीस । मरीज किथे – तोर नाती हा तेल देवत समे केहे रिहीस के तेल ला पाद तरी लगाबे । मोहना महराज किथे – अरे मुरूख , मोर नाती हा तोला पादतरी माने पंवतरी म दवई ला लगाबे अइसे केहे रिहिस हे , तैंहा पाद तरी के मतलब मलदुवार समझ गेस । पँवतरी म ये तेल ला लगातेस ते , तोर मलदुवार के जलन हा दूर हो जतिस । मरीज लजागे अऊ मुड़ी गड़ियाके चल दिस । मोहना महराज जानत रहय के पाँव अगियाये के दवई तेल ला , बजरंग हा मलदुवार म चुपरे बर दे दे रहय , फेर का करबे , नाती के मोहो अऊ नाती ला बइदई म स्थापित करे के चाह म , बात बनाके अपन नाती ला बचा डरिस । मोहना महराज के चेहरा म बजरंग के भविष्य के चिंता हमागे । इही फिकर म अपन ओंठ ला , बजरंग कस बईद के करम के सेती बुदबुदाये ले नइ रोक सकिस – अढ़हा बईद परान घात ............. ।
हरिशंकर गजानंद देवांगन , छुरा .
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