Monday, 6 November 2023

एक कहानी हाना के .... अटके बनिया नवसेरा

 एक कहानी हाना के .... 


अटके बनिया नवसेरा

          तइहा तइहा के बात आय । गाँव के किसान मन बहुत मेहनती रहँय । खेत खार म रगड़ा टोर कमावय ... तेकर सेती धान , राहेर , तिल्ली अऊ चना नंगत होवय । तभो ले ... गरीबी हा बपरा किसान मनके पाछू नइ छोरत रहय । साधन सुविधा के अभाव म , किसान मनला , औने पौने भाव म, फसल बेंचे बर परय । तिर तखार के जतेक बजार रहय तेला , लूटमार करइया बनिया बैपारी मन कब्जिया डरे रहय । आवश्यकता के दूसर  जिनीस बिसाये बर , बपरा मन .... इही बनिया मनके मुहूँ ताके बर मजबूर रहय । बनिया मन , किसान के इही बात के फायदा उचाके , मंडल बनगे रहय । 

          एक बेर के बात आय । एक झिन बनिया सोंचिस के , शहर म रहिके ,  हफता पंद्रही म एक बेर आके अतेक कमा डरथन , जदि अइसन एको ठिन बड़का गाँव म घर बना लेबो , जिहाँ अऊ दूसर बैपारी मन के साथ कन्हो प्रतिस्पर्धा नइ रहि , तिंहा अऊ जादा कमा सकत हंन । बनिया के घरवाले मन , बनिया संग गाँव म रेहे बर मना कर दिस । तभो ले बनिया हा लालच म परके , एक ठिन बड़े गाँव म रेहे बर , बड़े जिनीस घर कुरिया परसार बना डरिस , ब्यारा बखरी बिसा डरिस । 

          बनिया हा जबले गाँव म घर बनाये रहय तबले , किसान मनला अपन फसल बेंचे बर , बाहिर जाये बर नइ परय । फेर बनिया हा बहुतेच चलाक अऊ लालची रिहिस । हरेक फसल ला एके भाव म बिसावय । बनिया हा गाँव वाले मन ला बतावय के सब किसान मोर बर एके बरोबर आय । काकरो बर मेहा माय मौसी नइ करँव तेकर सेती , हरेक घर के हरेक फसल ला एके भाव म बिसाथँव । अइसन करे म तहूँ मनला हिसाब बर सुभिता घला रइहि । बनिया हा हरेक फसल के कीमत एक आना म नौ सेर राखे रिहिस । किसान मनला बहुतेच घाटा खाये बर परत रिहिस , फेर बाहिर जाये के झंझट ले बाँचे बर  , इही बनिया तिर अपन सरबस लुटाये बर मजबूर रिहिन । 

          एक समे के बात आय  ... चैत बैसाख तक खूब बिसइस बनिया हा । किसान मन घला , चौमासा बर आवश्यकता के जिनीस बिसाये बर , बनिया के लूट के शिकार होवत रिहिन । बरसात लगे के पहिली , बनिया हा बिसाये फसल ला शहर लेगना चाहिस ताकि अपन ले अऊ बड़का बैपारी तिर बेंच सकय । पानी बादर दिखे के पहिली बिसाये समान धरके गाँव ले निकलना चाहिस । गाँव म बनिया के घर कोठी अऊ परसार म धान अऊ चना छलछलावत रहय । अतेक अकन ला एके संघरा सहर लेगके बेंचना बनिया बर एक ठिन मुसीबत होगे रहय । लालच म बिसा तो डरिस फेर लेगे के समस्या ठड़ा होगे रहय । तभे बिगन मौसम उदुपले पानी बरसना शुरू होगे । गाँव के मन अपन अपन गाड़ी बइला म खातू कचरा फटिकना सुरू कर दिन । तेकर सेती गाँव म बनिया के समान डोहारे बर किराया म गाड़ी बइला नइ मिल सकिस । बनिया हा अपन शहरिया संगवारी मन तिर मदत मांगिस । एक दिन ओकर संगवारी मन अपन अपन गाड़ी बइला ला , फुरसत पाके भेज दिस बनिया तिर , समान डोहारे बर । मौसम एकदमेच बदले बर धर लिस । रहि रहि के बादर घुरघुराये लगिस । बनिया ला फिकर हमागे । लकर धकर कुछ समान लाद के , जइसे निकले बर तैयार होइस , तइसे कस के बरस दिस । 

          बिहिनिया के समान जोराये गाड़ी ला निकलत ले सांझ होगे । गाँव के मन अपन अपन खेत जोतके , थिरा जुड़ाके लिम चौरा म बइठके , पासा खेलत रहय । तइसने म बनिया के गाड़ी मन चरपा के चरपा नहाके लागिस । किसान मन के खून पछीना के कमई ला लूटके लेगत रहय बनिया हा । बपरा किसान मन कातर भाव ले , अपन पछीना ला गाड़ी म चइघके जावत देखत रहय । थोकिन बेर म बनिया के एक झिन मनखे दऊँड़त भागत मदत मांगे बर गाँव पहुंच गिस । नौकर बतइस - गाँव ले जल्दी निकले के फेर म बनिया के गाड़ी हा धुसेरा कोती ले निकलत समे चिखला म धँसगे । निकले नइ सकत हे । बनिया हा .... गाँव के मनखे मन बर ... बहुत तपे रिहिस । कन्हो ला कतको आवश्यकता म तको उधारी बाढ़ही नइ दिस । गाँव के जवान छोकरा मन, बनिया ले बदला निकाले के ताक म रिहिन । बनिया के मदत के बहाना छोकरा पिला मन बनिया तिर पहुँचगे । बनिया हा छोकरा मन ला मदत के गोहार लगइस । छोकरा मन फोकट म मदत ले बिलकुलेच इंकार कर दिन । बनिया तिर पइसा बिलकुलेच सिरागे रहय । बनिया हा छोकरा मन तिर अबड़ गोहनइस । छोकरा मन मदत के किम्मत मांगिस । बनिया अटकगे । माड़ी भर चिखला म चभके गाड़ी बइला ला, कइसनो करके निकालना रहय । बनिया हा मदत के किम्मत पूछिस .... गांव के छोकरा मनले । छोकरा मन एकजुट होके आय रहय । छोकरा मन किथे – गाड़ी निकाले बर .... एक बेर हाँथ लगाये म एकेक झन ला ....  या तो हमर मन पसंद नौ नौ सेर अनाज देबर परही , या जेन गाड़ी ला निकालबो तिहीच गाड़ी के नौ नौ सेर अनाज हेर के चुकाये ला परही .... अऊ जतका घाँव हाँथ लगाबो ततका घाँव तोला मेहनताना दे बर परही चाहे गाड़ी निकले चाहे झन निकले .... । मरता का नइ करता ..... । बादर ला फेर घुरघुरावत देख बनिया ला जतेक जलदी हो सके निकले के लकर्री हमागे । धान गहूँ ले जादा इनला का पसंद हे ..... सोंच के बनिया हा मन पसंद अनाज दे बर राजी होगे । एक कोती हव तो कहि दिस फेर मन म उबुक चुबुक मातगे ..... । अतेक बाटुर के आवश्यकता नइ परही सोंचत ........ ताकतवार हाथ देखके दू झिन जवान ला पहिली बलइस । दूनो झिन जोर तो लगइन फेर गाड़ी टस ले मस नइ होइस । गाड़ी नइ निकलिस फेर ..... हाँथ लगाये के नौ नौ सेर अनाज तुरते निकलवा लिन । बनिया हा तब दू झिन अऊ बलइस । चार मिलके कोशिस करिन ..... गाड़ी अतका चभके रहय के एक इंच नइ घुचिस .... चारों झन जवान मन .... नौ नौ सेर अनाज हकरा लिन । जबान म फँसे बनिया के पछीना हा अनाज ला निकलत देख चुचुवाये लगिस । जब तक , जम्मो नौ झिन छोकरा मन नइ अइन , तब तक , गाड़ी एक इंच नइ हालिस । जम्मो मेहनतकस नौ झिन छोकरा मन गाड़ी ला मिलजुर के हाथ लगइन तहन , गाड़ी फुटले निकलके भाँठा म अमरगे । 

          दूसर गाड़ी ओकर पिछू चिखला म खुसरे रहय । वहू थोकिन आगू बढ़िस वहू फँसगे । वहू ला छोकरा मन नौ नौ सेर अनाज के बदला म निकालिस । नौ ठिन गाड़ी के निकलत ले बनिया के हलक सुखागे । कहूँ गाड़ी ले धान , कहूँ गाड़ी ले गहूँ .... कहूँ ले चना .... अऊ कहूँ ले उरिद मूंग तिंवरा राहेर चार चिरौंजी निकलगे । बनिया के हिरदे धकधकागे .... । बनिया के घर म अऊ अबड़ अकन समान लेवाये माढ़हे रहय ... ओला लेगना जरूरी रहय ... कोठी ला फोर चुके रहय ..  का करे ..  कइसे करे होगे .. पानी बरसात के दिन म कोन संग दिही .. चार दिन म आधा छोंड़ आधा धर .. करत .. महंगा समान मनला , हकर हकर के डोहार डरिस .. । आखरी खेप म .. गाँव के भुँइया ला प्रणाम करत , गाँव नइ लहुँटे के कसम खावत निकलगे । नौ सेरा बनिया के अटकई के चरचा तिर तखार म कतको दिन ले चलिस । अभू घला अइसन लालची मनखे मनके मुसीबत म फँसे के कामना करत , ओकर मदत के बहाना एहसान करके वापिस वसूली के आस रखइया मनखे ला देख ..... कतको के मुखारवृन्द ले हाना निकलत रहिथे – अटके बनिया नवसेरा ...। 

 हरिशंकर गजानंद देवांगन ,छुरा

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