जेठउनी ....
कातिक के दूसर पाख एकादशी ...तुलसी बिहाव है न ? आज के बाद चार महीना ले सुते देवता धामी मन जागहीं तभे तो लोग लइका मन के बर बिहाव सुरु होही । लोक मान्यता आय ओइसे मुख्य कारण ये हर आय के चार महीना चौमास मं लोगन खेती किसानी मं बिपतियाय रहिथे । पानी बादर मं बर बिहाव करे ले घराती , बराती सबो ल परेशानी तो होबे करथे ।
वृंदा पतिव्रता नारी रहिस फेर मति फिर गे ते पाय के छल ल नइ चीन्ह पाईस , रिसा के पति महाराज श्राप दिस जा तैं तुलसी के बिरवा बन जा फेर तोर जघा घर के बाहिर अंगना मं रहिही । ठीक हे भाई सदा दिन ले तो नारी ही सजा पावत आवत हे । चिटिकन ध्यान देहव ...हमर संस्कृति मं नारी के शक्ति रुप के पूजा अर्चना के विधान घलाय तो हे न ? तभे तो वृंदा श्राप दिहिस भगवान हरि ल , गुनव तो नारी के शक्ति ल ..दूसर बात के भगवान हरि नारी के सम्मान करीन तभे तो मूड़ नवा के सालिग राम पथरा बन गिन । ओकरो ले बड़े बात के तुलसी चौंरा मं सालिग राम तुलसी के जरी मेरन माने गोड़ तीर बिराजथें ...। भगवान तो पुरुषोत्तम आयं न फेर नारी ल सम्मान देहे बर शरणागत हो गए हें ।
इही हर आय हमर संस्कृति के विशेषता जिहां नर नारी दूनों एक दूसर के सम्मान करथें , कोनो छोटे बड़े नोहयं बल्कि एक दूसर के पूरक आयं ।
वृंदा के महत्ता ल उजागर करे च बर तो कहिथन वृंदावन बिहारी ...।
फेर कोनो दिन अउ लिखिहंव ...चलत हंव कुसियार के मड़वा तियार हे तुलसी , सालिगराम के बिहाव करे बर हे ।
सरला शर्मा
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